Sunday, August 15, 2021

मिथिला क्षेत्र में पार्वती -शिव विवाह गीत

मिथिला क्षेत्र

बोलचाल और सांस्कृतिक रूप में मैं बिहार को ३-४ भागों में देखता हूँ जो बिहार की अपनी परंपरा के बंधन से जुड़ा हैं और कई बातें पूरे बिहार में एक जैसी ही होती हैं । यह हैं मगही क्षेत्र, भोजपुरी क्षेत्र, अंगिका क्षेत्र और मिथिला या तिरहुत का क्षेत्र । आज मैं मिथिला के बारे में कुछ लिखना चाहता हूँ ।मिथिला क्षेत्र का महत्त्व भागवान राम के ससुराल के कारण तो है ही विद्यापति का शिव प्रेम के कारण शिव के ऊपर रचित कई रचनाएं भी बहुत प्रसिद्द हैं मिथिला क्षेत्र की मिथिला या मधुबनी पेंटिंग का ही एक रूप पूरे बिहार में विवाह के अवसर में कोहबर के रूप में बनाया जाता हैं ।

शिव विवाह के गीत
बड़ी दीदी के विवाह का एक दृश्य

शिव विवाह की चर्चा होते ही मुझे एक पुरानी बाद याद आती है । मेरी बड़ी बहन अंजु दी की शादी थी। बारात दरवाजे पर लगी । और जीजा जी गाड़ी से बाहर वरमाला के लिए निकले। सिर्फ धोती पहने । लंबा कद, श्याम वर्ण, देह मे जनेऊ, आखों में काजल, हाथ मे एक छूरी (नजर बट्टू)। एकदम शिव रूप में, बस शिव के हाथ मे त्रिशूल डमरू भी था । शिव विवाह का लोकगीत "माई जोगिया ठाढ़ अंगनवा में" को चरितार्थ कर रहे थे। तब हेमंत कुमार का वह गीत भी बहुत लोक प्रिय था। "शिव जी बिहाने चले बिभूति लगाय के" । मानों इसी दृश्य के लिए लिखा गया हो। माँ ने तब कुछ नहीं कहा पर मेरी बड़ी मौसेरी बहन स्व शांति दीदी थोड़ी मुखर थी और बोल पड़ी "मौसा को कोई और लड़का नहीं मिला ?" मानों विद्यापति के गीत "गे माई हम नहीं आज रहब एही आंगन जो बुढ़ होईतो जमाई" को शांति दी स्वर दे रहीं हो। दूसरे दिन जब जीजा जी सूट लगा कर खीर खाने आए तब जा कर शांति दी को चैन आया जैसे राम विवाह का गीत चरितार्थ हो रहा हो " कओने नगरिया सऽ एलै सुन्दर दुलहा" । सच ही है सत्यम् शिव् सुंदरम् !

हमारे पूज्य देवों में तीन प्रमुख जोड़ियां हैं शिव-पार्वती की, सीता और राम की और राधा और कृष्ण की । इनमे शिव पार्वती की जोड़ी सबसे सुखी जोड़ी हैं क्योंकि सीता और राम ने वन में १४ साल बिताये फिर हुआ सीता हरण, राम रावण युद्ध, अग्नि परीक्षा और फिर सीता निष्काषन और अंत में सीता का धरती में पवेश । कष्टों से भरा ही था उनका जीवन । राधा कृष्णा एक प्रेमी जोड़ी थे और उन्हें भी अलग होना पड़ा । कृष्ण ने रुक्मणि के साथ विवाह रचाया और द्वारका जा बसे।
सती और शिव के कथा तो सबको मालूम हैं। ।प्रजापति पुत्री सती का शिव के साथ विवाह से प्रसन्न नहीं थे और पिता द्वारा शिव के अपमान के पश्चात सती यज्ञ की अग्नि में प्रवेश कर गयीं । इस पश्चात शिव दुःख और क्रोध से भर गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने सती की देह उठाई और ब्रह्मांड में घूमने लगे। प्रलय के कोप से ब्रमांड की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी की देह को कई भागों में विक्त कर दिया। और जहाँ जहाँ उनके देह के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गया । शिव की पहला विवाह तो यू खत्म हो गया पर सती ने पर्वत राज के यहाँ पार्वती के रूप में पुनःजन्म लिया और तपस्या कर शिव से विवाह किया। पर विवाह ऐसे ही नहीं हो गया । पार्वती की माता शिव के वाह्य रूप के कारण यह विवाह नहीं चाहती थी । जरा कल्पना कीजिए वर नंग धिरंग सिर्फ मृग छाला पहने, जटा जूट के साथ भष्म लपेटे आभूषण की जगह गले में सर्पों की माला, त्रिशूल डमरू लिए बैल की सवारी किए चला आ रह है, और बारात में शिवगण भूत बैताल की तरह नाचते शोर मचाते चले आ रहे हो तो कौन सी माता बेहोश न हो जाय इस पर मैथिली में कई गीत है ।


हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई
एक त बैरी  बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ


पहिलुक बाजन डमरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल। गे माइ।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पराय गे माइ।


धोती लोटा पोथी पतरा
सेहो सब लेबनि छिनाय। गे माइ।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय लय घिसियाब, गे माइ।

भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दृढ करू अपन गेआन। गे माइ।
सुभ सुभ कय सिव गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ।
 

मैथिली ठाकुर (एक प्रतिभावान उभरती गायिका) द्वारा गया इस नचारी का यू ट्यूब वीडियो का लिंक दे रहा हूँ

पार्वती की माता मैना देवी फक्कड़, भष्म लगाए, बाघम्बर और त्रिशूल धारी बूढ़े को अपनी बेटी के दूल्हे के रूप में देख मानो शॉक में है और इसका सारा दोष भाग्य, पार्वती के पिता और नारद जी को देती हैं और क्रोध में आकर क्या क्या करेंगी इस गीत में विद्यापति ने उसी तरह के भाव डाला है जैसे पार्वती मिथिला की ही बेटी हो । और अंत मैं मैनादेवी को समझते हैं ही की गौरी हर तो एक सामान है और शुभ शुभ विवाह होने दो । उन्हे क्या पता यह फक्कड़ जोगी सबसे बड़ा दानी है।

एक और गीत में विद्यापति माता की निराशा इस शब्दों में व्यक्त करते है :

"गे माई  चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि 
सूर्य सन करितो जमाई गे माई"
मैथिली ठाकुर द्वारा गाए इस गीत का यू ट्यूब विडिओ

विवाह हो जाता हैं फिर शिव को मानाने की बारी आती हैं उन्हें कैसे मनाया जाय। न उन्हें शाल चहिये न दुशाला, मृग छाला कहा से लाय ? ऐसी बहुत सी दिक्कतें होती हैं । इस पर गीत देखिये :

का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही,
पुरी कचौड़ी से शिव के मनहू ना भावे
भांग धतूरा कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही

शाला दुशाला शिव मन हू ना भावे
मृगा के छाल कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही

हाथी और घोड़। शिव मनहू ना भावे
बसहा बैल कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही

कोठा अटारी शिव के मनहू ना भावे
टुटली मडइया कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही

सोना और चांदी शिव के मनहू ना भावे
सर्प के माला कहा पाइब हो शिव मानत नाही
का लेके शिव के मनाई हो शिव मानत नाही

मैथिली ठाकुर द्वारा गाए इस गीत का यू ट्यूब विडिओ


पार्वती के बिदाई के समय भी माता मैनादेवी की मन अशांत ही था क्योंकि उन्हें चिंता थी की नाज़ों से पली उनकी बेटी गौरी टूटे मड़ैया में कैसे रहेंगी, पति के लिए भांग धतूरा कैसे पीसेंगी

 छोटी मोटी टुटल मड़ैया में गौरी रानी कोना के रहथि हे 
छोटी मोती टुटल मड़ैया में गौरी रानी कोना के रहथि हे 
  कोना के रहथि कते दुःख सहती कोना के रहथि कते दुःख सहती

मैथिली ठाकुर द्वारा गाए इस गीत का यू ट्यूब विडिओ


उगना

एक कहानी जो प्रचलित हैं वो हैं उगना के बारे में । शिव भक्त विद्यापति ने एक बार शिव जी से पूछा क्या आप मेरे मित्र के रुप में या किसी अन्य वेश में नहीं रह सकते?
"पुत्र ! मैं तुम्हारा सेवक उगना बनकर तुम्हारे साथ रहूँगा। तुमसे केवल एक निवेदन है कि तुम इस रहस्य को अपने तक रखोगे। और तो और किसी भी परिस्थिति में अपनी पत्नी सुशीला से भी इस रहस्य को उजागर नहीं करोगे।"
इस पर महाकवि ने गर्दन हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी। भगवान महादेव पुन: उगना के वेश में आ गए। हालांकि इस घटना के बाद महाकवि प्रयास करते कि उगना से कम से कम काम करवाया जाय । लेकिन उनकी पत्नी तो इस सच से बिल्कुल अन्जान थी।
एक दिन सुशीला ने उगना को कोई कार्य करने के लिए कहा। पर करना कुछ और था पर कर उसने कुछ और दिया। इस पर सुशीला अपना क्रोध नहीं बर्दाश्त कर पाई। आवेग में आकर जमीन में पड़े झाड़ू उठाकर तरातर उगना पर बेतहाशा प्रहार करने लगी। उगना झाड़ू खाता रहा। इसी बीच महाकवि वहाँ पहुँच गए। उन्होंने सुशीला को मना किया। परन्तु सुशीला ने मारना बन्द नहीं किया। अब कवि के सब्र का बांध टूट गया। एकाएक भावातिरेक में चिल्लाते हुए बोले- "अरी, ना समझ नारी! उगना सामान्य चाकर नहीं बल्कि भगवान शंकर स्वयं है।"
कवि का इतना कहना था कि उगना अन्तध्र्यान हो गया। जब तक विद्यापति को अपनी गलती का अहसास हुआ उगना विलीन हो चुके थे । कवि घोर पश्चाताप में खो गये। उगना, उगना, उगना रट लगाने लगे। महाकवि ने एक अविस्मरणीय गीत का उगना के लिए निर्माण किया। गीत नीचे दिया जा रहा है:

उगना रे मोर कतय गेलाह। 
कतए गेलाह शिब किदहुँ भेलाह।।
भांग नहिं बटुआ रुसि बैसलाह।
जो हरि आनि देल विहँसि उठलाह।
जे मोरा कहता उगना उदेस।
नन्दन वन में झटल महेस।
गौरि मोन हरखित मेटल कलेस।
विद्यापति भन उगनासे काज।
नहि हितकर मोरा त्रिभुवन राज।

राम सिया के विवाह के बारे में अगले ब्लॉग में लिखूंगा

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