Tuesday, August 3, 2021

अब तक किये ७ ज्योतिर्लिंगो की #यात्रा दर्शन वृतांत


हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। यह हैं :
१) गुजरात के काठियावाड़ में श्रीसोमनाथ, २) आंध्र में नल्लमलाई में स्थित श्रीशैलम में श्रीमल्लिकार्जुन ३) मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्रीमहाकाल, ४) मध्य प्रदेश में ही नर्मदा के तट पर ॐकारेश्वर, ५) झारखण्ड के देवघर चिताभूमि  में वैद्यनाथ, ६) महाराष्ट्र में पुणे के पास डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, ७) तमिलनाडु के सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, ८) गुजरात के द्वारका में श्रीनागेश्वर, ९) उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, १०) गोदावरी के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, ११) उत्तराखंड के केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और १२) महाराष्ट्र में एल्लोरा की श्रीघृष्णेश्वर।


गुजरात के काठियावाड़ में श्रीसोमनाथ मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्रीमहाकाल,
मध्य प्रदेश में ही नर्मदा के तट पर ॐकारेश्वर उत्तराखंड के केदारखंड में श्रीकेदारनाथ
महाराष्ट्र में पुणे के पास डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ
गोदावरी के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर झारखण्ड के देवघर में वैद्यनाथ
तमिलनाडु के सेतुबंध पर श्री रामेश्वर आंध्र में नल्लमलाई में स्थित श्रीशैलम में श्रीमल्लिकार्जुन
गुजरात के द्वारका में श्रीनागेश्वर महाराष्ट्र में एल्लोरा की श्रीघृष्णेश्वर

हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है। मेरा असीम सौभाग्य हैं कि मैं इसमें ७ स्थानों पर गया और दर्शन किये। जिस ५ ज्योतिर्लिंगों के देखने की कामना अभी तक शेष हैं वह हैं महाराष्ट्र में भीमा शंकर, गुजरात में सोमनाथ और नागेश्वरनाथ, मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर और उत्तरा खंड में केदारनाथ। जिन 7 ज्योतिर्लिंगो के दर्शन का अवसर मिला है उनके बारे में दो शब्द !


1. बैद्यनाथ धाम, देवघर सबसे पहले मैं देवघर,झारखण्ड स्थित बैद्यनाथ धाम की बात करूंगा मेरे Home Town जमुई से मात्र 100 KM पर स्थित है यह देव स्थान। हम बचपन से जाते रहे है। हमारे परिवार के सारे शुभ कार्य मुन्डन वैगेरह यही होते रहे है। जाने का सबसे सुलभ तरीका है रेल से जाना। पटना हो कर हावड़ा से दिल्ली रेल रथ पर स्थित जसीडिह ज० से देवघर 8 KM की दूरी पर है और जसिडीह से लोकल ट्रेन या औटो से देवघर जाया जा सकता है। हम कई बार ट्रेन, कार या बस से देवघर जा चुके है पर कांवर ले कर सुल्तानगंज से जल ले कर पैदल - नंगे पांव बाबा दर्शन को जाना रोचक और रोमांचक दोनो था । मैंने पांच बार प्रयास किया है। मै एक ग्रुप के साथ 4 बार 100-105 KM कि०मी० यह यात्रा पूरी कर चुका हूँ सावन के महिने में प्ररम्भ में या अंत में। पहली बार मै अकेले ही निकल पड़ा था लेकिन पक्की सड़क और धूप को avoid करना चाहिए यह ज्ञान न होने के कारण और गैर जरूरी जोश के कारण 20 कि०मी० की यात्रा के बाद ही पांव में आए फफोलो ने मेरी हिम्मत तोड़ दी और साथ साथ चलने वाले कांवरियों के लाख हिम्मत दिलाने पर भी आगे नहीं जा सका और रास्ते में पड़ने वाले एक शिवालय में ही बाबा को जल अर्पण कर लौट आया। बिन गुरू होत न ज्ञान रे मनवां। कावंर यात्रा में मेरे गुरू बने मेरे छोटे बहनोई सन्नू जी और उनके छोटे भाई। उन्हें परिवार सहित कांवर में जाने का 14-15 साल का अनुभव था और मैने बहुत कुछ कांवर के बारे में उनसे हीं सीखा। जब मैं बच्चा था तो उमरगर बबा जी मामू को कांवर पर हर वर्ष जाते देखता था। गांव से ही कांवर ले कर चलते सिमरिया घाट पर ही जल भर कर वे नंगे पांव चल पड़ते थे यानि 50 सांठ मील की अतिरिक्त यात्रा। पहले सरकार के तरफ से कुछ प्रंबध नहीं होता और यात्री भी कम होते थे अतः राशन साथ ही ले चलना पड़ता होगा। जगह जगह रूक कर खाना पकाना खाना नहाना। कंकड़ पत्थर पर चलना खास कर सुईयां पहाड़ पर, या लुट जाने का खतरा झेलते यात्रा करनी पड़ती थी। अब सावन में रोड के किनारे मिट्टी डाला जाता है और, जगह जगह खाने पीने की दुकानें भी सज जाती है। कई संगठनों द्वारा सहायता शिविर, प्रथम उपचार केन्द्र, मुफ्त चाय, नाश्ता, पैर सेकने को गरम पानी और मेले सा माहौल से ये यात्रा काफी सुगम हो गई है। जगह जगह धर्मशालाएं है। लेकिन अब भी यदि अषाढ़, सावन, भादों को छोड़ दिया जाय तो अन्य दिनों में ये यात्रा बहुत सुगम नहीं हैं। मैने गजियाबाद के प्रवास के दौरान कावड़ यात्रियों को देखा है,जो ज्यादा लम्बी यत्राएं करते हैं पर जो बात देवघर कांवर यात्रा को कठिन बनाती है वह है नंगे पांव चलने का हठयोग। मै इस यात्रा का रूट नीचे दे रहा हूँ।


कांवर यात्रा का रूट



बाबा बैद्यनाथ मंदिर

2.रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग दूसरा ज्योतिर्लिंग जहाँ मै गया वह था रामेेश्वरम (1969 और 2009) रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। और शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है। यह शंख के आकार द्वीप है। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। आज भी इस ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। यहां के मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। यह माना जाता हैं की रावण वध के बाद राम सीता, लक्ष्मण, हनुमान और पूरी वानर सेना इसी मार्ग से लौटे और ब्रह्म हत्या के पाप से बचने इसी तट पर शिव की पूजा की । शिव लिंग लाने हनुमान को कैलाश भेजा गया लेकिन देर होती देख सीता जी द्वारा बालू से निर्मित शिवलिंग की पूजा की गयी बाद में हनुमान जी के द्वारा लाये शिवलिंग को भी मंदिर में स्थापित किया गया । श्री राम ने २२ तीर्थों का जल ला कर यहाँ कुंडो में भर दिया और आज भी शिव दर्शन के पहले इन कुंडो में लोग नहाते हैं । २००९ के यात्रा में हम लोग भी इन कुंडो में नहाने के बाद ही मुख्य मंदिर में गए ।

रामेश्वरम मंदिरहजार खम्भोंवाला गलियारा
गन्दमादन/रामझरोखा लक्ष्मण तीर्थ


रामेश्‍वरम, चेन्‍नई से सड़क मार्ग द्वारा अच्‍छी तरह से जुड़ा हुआ है। चेन्‍नई से रामेश्‍वरम तक के लिए नियमित रूप से बसें चलती है। पर्यटक, वाल्‍वो से भी रामेश्‍वरम तक जा सकते है। चेन्‍नई से रामेश्‍वरम तक का वाल्‍वो से किराया 500 रूपए और राज्‍य सरकार की बसों का किराया 100 से 150 रूपए होता है। चैन्नै ईग्मोर से ट्रेन से भी रामेश्वरम जा सकते है। सबसे नजदीकी एयरपोर्ट मदुराई है। हम मदुराई से ही टैक्सी ले कर रामेश्वरम गए थे। यहाँ कई होटल है और रुकने की व्यवस्था है। मुख्य मंदिर के आलावा भी कई दर्शणीय स्थान है। हम लक्ष्मण तीर्थ, अग्नितीर्थ और राम झरोखा देखने गए थे ।


3.काशी विश्वनाथ

मैं और मेरे ३ दोस्त १९७८ में दिल्ली गए थे एक इंटरव्यू देने । मैंने और मेरा मित्र सुधांशु मुख़र्जी ने निर्णय लिया की लौटते समय मुग़ल सराय में उतर कर काशी विश्वनाथ का दर्शन पूजन कर लेंगे । क्या पता था कि मैं तीसरे ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने वाला हूँ । बहुत सारी यादें तो नहीं बची पर विश्वनाथ मंदिर के अलावा भारत माता मंदिर और बी एच यू के विश्वनाथ मंदिर भी गए थे ।

काशी विश्वनाथ मंदिर

भारत माता मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हज़ार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास आदि का आगमन हुआ हैं।


4.महाकालेश्वर, उज्जैन

चौथा ज्योतिर्लिंग जिसका दर्शन मैंने किया वो हैं महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन। उज्जैन मै दो बार गया या शायद ३ बार पहली बार 1994 में बिटिया के साथ गया था जो तब इंदौर में पढ़ती थी और दूसरी बार 1997 में पत्नी के साथ। उस बार जब हम इंदौर से उज्जैन जा रहे थे और बस स्टैंड मैं बस का इंतज़ार कर रहे थे । बहुत लेट होता जा रहा था और लगने लगा था की बस आज नहीं जाएँगी तभी एक कार आ कर रुकी । किसी की प्राइवेट कार थी और उन्हें एयरपोर्ट ड्राप कर वापस लौट रही थी । ड्राइवर ने बस के भाड़े में ही ले चलने की पेशकश की । हम सोच में पड़ गए क्या यह SAFE हैं । फिर महाकाल की इच्छा समझ कार में चढ़ गए । ड्राइवर ने हमें उज्जैन में उस सिद्ध (डबराल बाबा) के यहाँ ले गया जहाँ हमे जाना था । वे एक केमिस्ट्री के प्रोफेसर थे और विक्रांत भैरव के भक्त और सिद्ध पुरुष हैं ऐसा प्रसिद्ध था । बिना कुछ पैसा वैगेरह लिए लोगों की सहायता करते थे । हमें सिर्फ फूल ले कर जाना था । बाबा ने हमारे प्रश्नों का उत्तर दिया और हमारी समस्या का उपाय बताया । वहां से हम महाकाल गए । फिर रूद्र सागर किनारे शक्ति पीठ (हरसिद्धि मंदिर) गए जहाँ माँ की केहुनी गिरी हैं ऐसी मान्यता है । काल भैरव मदिर गए और शराब का प्रसाद भी चढ़ाया जो पता नहीं कहाँ गायब हो गया । भर्तहरी गुफा घूमने गए सब शांत था पर एक गुफा में एक ब एक दिखा एक साधु नंग धरंग सिर्फ लंगोट में भस्म लगाए मानव खोपड़ी सामने रखे बैठे थे । हम डर से गए । जब हम सामान्य हुए उन्होंने हमे भस्म दिया जो शायद चिता से लिया गया होगा अतः उसे हमने कहीं छोड़ दिया । एक बंद सी गुफा भी दिखी जिसके अंदर जाने नहीं दिया गया और कहा गया इस गुफा से सतयुग में वापस जाया जा सकता हैं और कोई वापस नहीं आया अब तक । पता नहीं क्या सच क्या झूठ । जहाँ तक मुझे याद है मैं एक बार इसके बाद भी अकेले ही उज्जैन गया था महाकाल के दर्शन भी किये थे। तब डबराल बाबा से मुलाक़ात नहीं हुई क्योंकि वे अपने विक्रांत भैरव मंदिर कुछ विशेष पूजा करवा रहे थे । मैं भी वही चला गया और बहुत मात्रा में दिए गए प्रसाद को खाया पर डबराल बाबा से मिल नहीं पाया ।
डबराल बाबा के बारे में कुछ बता दू । डबराल बाबा के नाम से मशहूर गोविंद प्रसाद कुकरेती एक भारतीय योगी और विक्रांत भैरव और महावतार बाबाजी के शिष्य थे। उन्हें बाबा और श्री डबराल बाबा के नाम से भी जाना जाता था। डबराल बाबा मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन के रहने वाले थे। हाल में पता चला कि २०१६ में उन्होंने महा समाधि ली थी ।

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महाकाल मंदिरहरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर
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काल भैरव मंदिर भृतहरि गुफा

5.त्रयम्बकेश्वर
त्रयम्बकेश्वर पाँचवाँ ज्योतिर्लिंग है जिनका दर्शन मैंने 4 बार किया हैं। हर बार सबसे पहले हम नासिक गए और वहीँ से त्र्यंबकेश्वर गये। पिछली बार २०१२ में गए थे। त्र्यंबकेश्वर गोदावरी नदी के स्रोत के पास स्थित 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। हैरानी की बात है कि यहाँ यह शक्तिशाली नदी एक छोटे से नाले की तरह दिखती है। चूंकि रविवार का दिन था, इसलिए अप्रत्याशित भीड़ थी। हमें दर्शन से पहले 3 घंटे के लिए क्यू में खड़ा होना था - २०१२ का अनुभव मेरे पहले के अनुभवों के एकदम विपरीत था १९९७ में कोई क्यू न था और ना ही क्यु लगाने कि कोई व्यवस्था , जबकि २००७ में बिना baricade का क्यू था और २०११ मे छोटे क्यू में खड़ा होना पड़ा था। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग कि असाधारण विशेषता इसके तीन मुख हैं जो भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र को धारण करते हैं। मंदिर 3 भागों में है, नंदी मंडप, उपासना मंडप और गर्भ गृह। पास स्थित एक कुंड को गोदावरी का उद्गम माना जाता है।

यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। पुण्य सलिला गोदावरी के पास है यह त्रयम्बकेश्वर मंदिर । गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और ''लक्ष्मण कुंड'' मिलता हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

कुशवरत कुण्ड- गोदावरी उदगम स्थल त्र्यंबकेश्वर मन्दिर

6. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्री सैलम, आँध्रप्रदेश

छठा ज्योतिर्लिंग जिनका मैंने दर्शन किया वो हैं आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन जो श्री शैल शिखर पर स्थापित हैं । हम यहाँ २००३ में सुलुरपेट से नेल्लोर मारकापुर होते हुए कार से गए थे ।

सुलुरपेटा से श्रीसैलम - कवाली - मारकपुर हो कर


हम सुलुरपेट से सुबह निकले नई जगह जाने का उत्साह में हमने नहीं सोचा था कि हमारी यात्रा कितनी लम्बी होगी । ग्रुप में 4 सदस्य थे मैं सपत्नीक और मेरे कलीग राजेश गुप्ता सपत्नीक । अम्बेसडर कार थी तीन जने पीछे बैठे और एक जन आगे कि सीट पर । हमने विंडो सीट और फ्रंट सीट पर बारी बारी से बैठ कर पूरा रास्ता तय किया। ताकि सभी लोग रास्ते का आनद ले सकें । हम दोपहर बाद कवाली पहुंचे । सभी घरों के आगे लाल मिर्च सूखते देख कर समझ आ गया कि यहाँ लाल मिर्च कि खेती बहुत होती होगी । करीब सात बजे शाम तक हम मरकापुर पहुंचे । रात यही रुकने का निर्णय लिया गया। क्योंकि आगे कोई रुकने लायक जगह नहीं मिलने वाली थी । अचछा ठहरने लायक होटल खोजने में थोड़ा टाइम लग गया । एक खबसूरत भव्य मंदिर दिख रहा था । सुबह इसी मंदिर यानि चिन्ना केशव मंदिर के दर्शन कर हम आगे बढ़ गए । पूरा रास्ता जंगलों से भरा था और प्रकाशम् जिला नक्सल प्रभावित क्षेत्र था अतः हमें श्री सैलम पहुंचने की जल्दी थी ।

श्री सैलम में APTDC के पुन्नामी गेस्ट हाउस में रुक गए । सुबह मल्लिकार्जुन और भ्रमराम्बा देवी के दर्शन पूजन किये । बहुत भीड़ तो नहीं थी फिर भी करीब २ घंटे लग ही गए । मंदिर के बाहर कुछ लोग हमें मिले जो गरीबों को खाना नास्ता खिलाते थे आपके तरफ से पैसे लेकर । पता लगा वे सारी बातें नहीं बतातें और यह एक ठगी जैसा लगा हमे । छोटी सी जगह है श्री सैलम । फिर भी कुछ लोकल चीज़ों को खरीदारी कि और पाताल गंगा देखने चल पड़े । पाताल गंगा यानि कृष्णा नदी जो श्री सैलम से बहुत नीचे बहती है। ऊँची ऊँची ८००-९०० सीढ़ियां उतर चढ़ कर हम गए । नीचे हमने बोटिंग कि । बोट पर ही नास्ता भी किया और hydel पावर हाउस तक घूम कर वापस आ गए । यहाँ श्री सैलम डैम है जो हैदराबाद को श्री सैलम से जोड़ता है और हैदराबाद से कार या बस से यहाँ आना ज्यादा आसान हैं ।


7.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

सातवां ज्योतिर्लिंग जहाँ मैं गया वह हैं घृष्णेश्वर (2003,2011 और 2012) । 2003 में मै नवी मुंबई से बस से आया था। यह एल्लोरा के बहुत करीब हैं मैं यहाँ तीन बार गया और अंतिम बार २०१२ में शिरडी होते हुए आया था। पिछली बार 2011 में आया था में तो पता चला सिर्फ धोती पहन कर अंदर जाना है इसलिऐ बाहर से प्रणाम कर चला आया था 2012 में जाना कि धोती के लिए वे strict नहीं है सिर्फ शर्ट उतार कर bare chested अंदर जाने की अनुमति थी, पैंट बदल कर धोती की कोई बाध्यता नहीं थी। मैंने शायद रु 250/-का टिकट लेकर अभिषेक किया और बहुत अच्छे से किया । थोड़ी भीड़ थी लेकिन पांडा जी ने बहुत अच्छी तरह बैचेस में करवाया। हम औरंगाबाद में रुके थे और एल्लोरा, अजंता, दौलताबाद और बीबी का मकबरा भी देखने गये जिस पर मेरा अलग ब्लाग है लिंक दे रहा हूँ।

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