Friday, August 13, 2021

सुबह की दैनिक पदयात्रा

मेरी सुबह की ''पदयात्रा'' कभी ३-४ किलोमीटर की होती थी पर अब २ किलोमीटर ही करता हूँ । कोरोना काल में मैं दिल्ली में था तब काफी दिनों यह सिलसिला बंद था पर अब रांची आने पर सुबह निकलता हूँ मास्क पहन लेता हूँ और वाकिंग शू (दूसरे लोग रनिंग शू कहते हैं ) भी पहनता हूँ । कुछ दिनों डबल मास्क लगा कर गया था तो साँस लेने में तकलीफ होती थी इसलिए अब सिर्फ सर्जिकल मास्क पहनता हूँ ।

रोज़ रोज़ उसी समय निकलने वाले लोगों को पहचानने लगा हूँ । कुछ दौड़ते है कोई कोई किसी बंद दुकान के सामने बरामदे में तरह तरह से व्यायाम करते मिलते हैं । कौन सा आसान या व्यायाम करते है यह कभी कभी अनुसन्धान का विषय हो जाता हैं । शायद बाबा रामदेव भी न बता पाएं । एक पैर से थोड़ा लाचार एक व्यक्ति भी रोज़ मिल जाते है और मुझे ओवरटेक भी कर लेते हैं । टीनएजर बच्चों के दो तीन ग्रुप मिलते है जो शायद नजदीक के एक मैदान में खेल कर या व्यायाम कर या सिर्फ दौड़ कर आते हैं पसीने से लथ पथ । एक बात जो कॉमन हैं वह है की एक्का दुक्का को छोड़ सभी बिना मास्क के होते हैं और मुझे यह शक होने लगता हैं कही ये लोग मुझे ही पागल या बुद्धू तो नहीं समझ रहे हैं ।

Morning walk picturesMorning Walk Pictures

मेरे घर से करीब ६०० मीटर पर एक फ्लाईओवर हैं । मैं इसके किनारे बने फुटपाथ पर ही रोज टहलने जाता हूँ । बाएं तरफ घूमा हुआ इस फ्लाईओवर का बायां फुटपाथ छोटा हैं पर थोड़ा स्टीप लगता हैं जबकि दाए तरफ लम्बा पर काम स्टीप लगता हैं । दोनों तरफ टहलने का अनुभव अलग अलग हैं । बाएं तरफ कम लोग टहलते हैं क्योंकि मेन रोड छोड़ कर थोड़ा कच्चे रास्ते पर चलने पर मिलने वाली सीढ़ी चढ़ कर ही फुटपाथ पर आ सकते हैं । पर यह फुटपाथ कुत्ता चराने वालों के बीच काफी लोकप्रिय हैं, जबकि यह फ्लाई ओवर का पैदल पथ है न इसमे कोई पेड़ है न ही पोल। रास्ते में क्या क्या पड़ा मिलेगा आप सोच सकते हैं । स्ट्रीट वाले कुत्ते भी इसी तरफ ज्यादा आते हैं और कभी कभी कोई कामचोर नौकर अपने मालिक के भेड़िये जैसे कुत्ते को लाकर बीच रास्ते में 'पार्क' कर देता हैं और उसके लाख कहने पर कि "कुछ नहीं करेगा" मेरी हिम्मत नहीं होती उसे पार कर जाने की । फिर भी कभी कभी इस तरफ भी टहलने जाता हूँ । एक सहतूत और एक अमरूद का पेड़ रास्ते में झुके मिलते है और यदि काफी सवेरे निकले तो कुछ फल बचे मिल जाते है ।

दाएं तरफ जाने के लिए हमें आते जाते दोनो बार मेन रोड क्रॉस करना होता हैं फिर भी जाता हूँ । इस तरफ का वॉकवे तरुणों (टीनएजर्स ) में ज्यादा लोक प्रिय हैं और सुबह का फोटो खींचने के दृश्य अच्छे मिलते हैं । आने जाने वाले ट्रैन भी कभी कभी दिख जाते हैं । कुछ लोग जो मिलते हैं उनके बारे में दो शब्द । यह सभी टहलने के बहाने घर से निकलते हैं और टहलते दौड़ते भी हैं । पर यह उन्हें मिलने जुलने का मौका भी देता हैं । आज कल स्कूल कॉलेज में बिना GF या BF के शायद ही कोई मिले और जब तक स्कूल नहीं खुले थे तब कई ऐसे युगल इस फुटपाथ पर दिख जाते थे । एक ग्रुप में एक लड़का और एक लड़की बातें कर रहे होते और एक सहेली थोड़ी दूर खड़ी रहती थी और एक ग्रुप बैलेंस्ड था दो लड़के दो लड़किया धीरे धीरे बात करते ये लोग पास जाने पर किसी टॉपिक पर अचानक जोर से बोलने लगते, शायद सोचते होंगे बुड्ढे को क्या पता चलेगा । एक १३-१४ साल के लड़की जो एथलिट लगती हैं दौड़ कर हमारे घर के मोड़ तक आती फिर वाक यानि टहलने लगती । कान में ईयर फोन लगा रहता और उसकी बात शुरू होती । क्योंकि वह धीरे धीरे ही टहलती करीब करीब मेरा टहलने का समय बराबर होता और वह करीब आधे घंटे बाते करते दिख जाती और मेरे लौटने के बाद भी करती रहती । शायद कुछ वही बाते होगी जो घर पर नही हो सकती होगी। कई लोग eardrops लगाए रहते है और बाते करते रहते है। क्युकि ये अकेले रहते है और न मोबाईल दिखता है न ईयर फोन तब लगता है कांके पागलखाने से भागे लोग तो नही ?

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पानी सब धो डालता हैं । गंगा जल में तो पाप तक धुल जाते है और आज मुझे वॉकवे करीब करीब साफ़ दिखा .. नहीं नहीं ये म्युनिसिपल कार्पोरेशन का काम नहीं था इंद्रदेव ने रास्ता धो डाला था । ऐसे रोज़ दाएं तरफ का कचरा अलग होता । साधारण कचड़ा जैसा सभी जगह मिल जाता - केले का छिलका, जूस बिस्कुट नमकीन का पैकेट, तम्बाकू का पाउच और सिगरेट के पैकेट । पर कुछ कचरे जो अलग हैं और दाए तरफ मिल जाते हैं वो है दारू की बोतले, व्यव्हार में लाये गए कंडोम और सिरिंज जो शायद किसी ड्रग लेने वाले ने फेका हो । एक दिन मिला तब मैंने सोचा किसीने गलती से फेंक दिया होगा पर दो- तीन दिन दिखने पर मेरा शक पक्का होने लगा । माचिस के सारी की सारी तीलियाँ जली फेंकी हुई देख कर मैं सोच रहा था क्या हैं यह । फिर एक दिन मैंने देखा एक दुबला लम्बा लड़का रोड से रेलिंग फांद कर वॉकवे में आया और जब मैं दूर चला कागज पर कुछ रख कर जला कर सूघने लगा और कुछ खाया । मैं लौट कर उस जगह आया तो वहाँ अजीब सी गंध थी । मैं SURE हो गया माचिस का क्या रहस्य था । कभी कभी कफ सिरप की शीशियां भी मिलती हैं जो भी बच्चे नशे के लिए व्यव्हार में लाते हैं ।
क्या कोई तरीक़ा हैं इन बच्चों को इस फंदे से बचाने का और वापस लाने का ?

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