Sunday, June 28, 2020

सेलम -तमिल का अल्पज्ञान और जर्मनी


१९८०-८२ की बात है मेरे नियोक्ता मेकॉन को सेलम स्टील प्लांट में एक स्टेनलेस स्टील मिल स्थापित और कमीशन (erection and commissioning) करना था। और इस काम के लिए मेरी पोस्टिंग रांची से सेलम, तमिलनाडु  हो गयी । सेलम या सालेम वास्तव में एक मध्यम आकार का वाणिज्यिक शहर है। यह सेलम जिला का मुख्यालय भी है । यहाँ आने के बाद जिस बात ने मेरा ध्यान खींचा वह था तीन रोड जक्शनों  के नाम। स्थानीय लोग तीन मुख्य रोड जक्शन को थ्री रोड (मून रोडा) , फोर रोड (नाल रोडा) और फाइव रोड (अन्ज रोडा) जक्शन के नाम से बुलाते थे। आप तो जान ही गए होंगे कि तमिल में ३, ४, ५ को मून, नाल और अन्ज कहते है।
 
5 रोड ज० भविष्य में 
5 रोड ज०

यहाँ उस समय दो अच्छे होटल थे। नेशनल जो फोर रोड जक्शन के पास था और श्री गोकुलम जो फाइव रोड या अन्ज रोड जक्शन के पास था। हम होटल श्री गोकुलम में रुकते थे। हमें रोज स्टील प्लान्ट सेलम रेलवे स्टेशन होते हुए जाना पड़ता था और ये होटल  स्टेशन के नजदीक था।  पिछले कई सालों से अब यह एक हॉस्पिटल है।

गोकुलम्

१९८० मेें मेरे पिताजी की बहुत कम उम्र में मृत्यु हो गयी थी, और पूरे परिवार की जिम्मेदारी अब मुझ पर थी । शुरू में मैं सेलम पोस्टिंग से थोड़ा नाखुश था, लेकिन अपने दो सहकर्मियों के साथ मैंने जल्द ही अपने जीवन का आनंद लेना शुरू कर दिया। सेलम प्रवास की कई रोचक घटनाऐं हैं जिसे मैंने अपने विभिन्न ब्लॉगों में शामिल किया है। आदतन जिन भाषाओ का मुझे पाला पड़ता, उसकी लिपि और बोलचाल के कुछ शब्द अंक वैगरह सीख लिया करता था। रसियन, नेपाली, जर्मन, बंगाली और तमिल कुछ ऐसी ही भाषाए हैं। बंगाली तो अच्छी तरह पढ़ बोल लेता हूँ पर अन्य भाषाओ का ज्ञान प्रारम्भिक ही है। अपने सहकर्मी Sri   TV Vaidyanathan और Sri CND Nair से मेरी अच्छी निभने लगी थी । हम लोग प्लांट से १० बजे रात तक होटल लौटते थे। हमारा डिनर रूम में ही रखा होता क्योंकि तब तक होटल का रेस्टोरेंट बंद होने का समय हो जाता। खाना खा कर हम प्राय: हर दिन एक नाईट शो फ़िल्म जिसका समय ११ बजे से १ बजे तक का होता था,  ज़रूर देखते। तमिल,  मलयालम, अंग्रेजी और कभी कभी हिन्दी फिल्म भी। जिस दिन फिल्म का प्रोग्राम नहीं होता उस दिन मिलिट्री होटल में नॉन वेज खाने जाते। आश्चर्यजनक रूप से इस छोटे (उस समय) शहर में ५५-६० सिनेमा हॉल थे। रात में नाइट शो रात एक बजे को ख़तम होता था उस वक़्त महिलाओं को कांजीवरम साड़ी पहने स्वर्णाभूषणों से लदे फदे हवाई चप्पल में पैदल जाता देखता तो उनकी निडरता पर आश्चर्य होता ।कभी-कभी फ़िल्मों के पोस्टर में अंग्रेज़ी में लिखे फ़िल्मों का नाम तो पढ़ लेते थे पर सिनेमा हॉल का नाम तमिल में ही होता। बस यही कारण था मैंने तमिल लिपि भी सीख ली थी। "30 दिनों में तमिल सीखो" मैंने चेन्नई पहुँचते ही खरीद लिया था।
एक घटना मेरे इसी भाषाई अल्पज्ञान से सम्बंधित है। एक बार हमारे वरिष्ठ सहकर्मी श्री डी.डी. सिन्हा सालेम आये। उस समय मैं अकेला ही था सालेम में। Vaidyanathan या Nair  जो दूभाषिए का काम कर देते थे और जिनके बदौलत हम तमिल, मलयलम फिल्म देेख लेते थेे,  राँची गए हुए थे। एक रविवार हम स्टेशन के पास के सिनेमा हॉल 'रमना' में एक हिन्दी फ़िल्म देखने गए थे। इंटरवल में हम पुरुष शौचालय खोजने लगे। मैंने चैनैई (तब मद्रास) के।  लोकल बसों में लेडीज सीट के ऊपर लिखा देखा था पेनकाल् (பெண்கள்) । सिनेमा हाल में जब मैने एक शौचालय के ऊपर कुछ और ही लिखा देखा तो उसी को पुरुष शौचालय समझ बैठे और हम दोंनो अंदर चले गए। उस दिन पिटते-पिटते बचे। एक बार हम दोनों शहर केे बीचों बीच स्थित वसंत विहार रेस्टुरेंट में गऐ। मैंने अपने तमिल ज्ञान को उपयोग में लाते हुए वेटर से पूछा तैयर बड़ा एरक् (दही बड़ा है?) । वेटर यह सोच कर की मुझे तमिल आती है अपने फ्लो में मेनू आइटम्स तमिल में बोलने लगा? मेरे पल्ले कुछ न पड़ा तो मैंने फिर पूछा तैयर बड़ा एरक् ? वह फिर तमिल में कुछ कह कर चला गया। शायद यह कह रहा होगा कि जो बताया बस वही है, श्री डीडी सिन्हा ने फिर कहाँ अब मेरा  इशारों ( Sign Language) का कमाल देखो। उन्होंने हाथ हिला कर वेटर को बुलाया। वे बोले 'मसाला दोसा' और दो ऊँगली दिखाई और वेटर दो दोसा ले आया। फिर कॉफी भी इसी तरह मंगाई गई।


बाद में १९८३ में ऐसा एक वाकया जर्मनी प्रवास के दौरान का भी हैं। जर्मनी पहुंचते ही लेने आए सहकर्मी के अंग्रेजी में बताए पते को न समझता देख मैंने टैक्सी वाले को अपार्टमेंट का पता जर्मन में बताया था । "सेक्सउन्ड स्वांसीस" (26 को जर्मन में - sechsundzwanzig कहते हैं ) ओबेरबिलकेर अले" और मेरे सहकर्मी मेरे जर्मन ज्ञान से शायद थोड़ा ज्यादा ही प्रभावित हो गए।  रेेेलवे स्टेशन या अन्य जगहों पर पूछ ताछ के लिए मुझे आगे कर दिया जाता। एक बार हम लोग राईन नदी पर क्रूज लेना चाहते थे और पूछ ताछ का काम फिर मुझे सौपा गया। मैंने। जर्मन में पूछा "वास ईस्ट ज़ाइट अब्फार्ट वास ईस्ट उन्ड  प्रेइस" Was ist zeit der abfarhrt und preise ?. बस जहाज छूटने का समय और टिकट का दाम पूछा था और काउंटर वाली लड़की ने लम्बी चौड़ी बात जर्मन में कर दी। फिर पल्ले कुछ नहीं पड़ा और हम बैरंग लौट आये।दूसरा वाकया भी रोचक हैं। एक दिन हम लोगों ने हैम्बर्ग का बस ट्रिप बहुत सस्ते में देखा। सभी को अच्छा लगा और मैने पूरे ग्रुप का टिकट ले लिया। पता में मैंने अपना नाम और 26, ओबरबिलिकर एले,  लिखा। टिकट में बस का समय लिखा था 8.00-CA। जाने के दिन हम लोग सुबह से ही किचन में लग गए और पूरे ग्रुप का रास्ते का खाना पूरी, उबले अंडे, आलू भुजिया बना कर केला के साथ पैक कर बस अड्डे जो हॉप्टबानहॉफ यानी मुख्य रेलवे स्टेशन के पास था समय से पहले  पहुँच गए। बस का इंतज़ार हमने 9 बजे तक किया  फिर निराश लौट आये। जम कर खाना पीना किया।


            २६, ओबरबिलकर अले, डुसेलडॉर्फ 
              बस छुट जाने के बाद पार्टी 

 बाद में पता चला-‘CA’ का मतलब जर्मन में हैं approximately,   करीब करीब इस समय जायेगा। एजेंट ने कहा बस ६ बजे सुबह  चली गई और  पक्का टाइम बताने के लिए आपको चिठ्ठी भेजी  थी। हमारे अपार्टमेंट में फ़ोन नहीं था। मोबाइल तब था नहीं। ऑफिस का फोन न० हमने दिया नहीं। चिठ्ठी के सिवा और कोई चारा ना था। पोस्ट ऑफिस से पता लगाया तो पता चला चूँकि हमारे अपार्टमेंट के लेटर बॉक्स पर मेरे नाम के बजाय हमसे वहाँ पहले ठहरे स्व कुमरेसन का नाम लिखा था अत: डाकिये ने चिठ्ठी लेटर बॉक्स में नहीं डाली । डाकिये ने शहर में किसी और A.K.Sinha को ढ़़ूढा और  चिठ्ठी उनके लेटर बॉक्स में डाल दिया । हमारे देश मेंं तो ऐसी स्थिति मेें डाकिए किसी कुएं में चिठ्ठी फेंक आतेे।
ऐसे भाषाई ज्ञान या  अल्पज्ञान का ज्यादा मौके पर फायदा ही हुआ है। कभी कभी ही दिक्कते हुई है, वह भी अब एक रोचक स्मरण हो कर रह गयी है।
बस सेलम प्रवास की कई और बातें फिर कभी।

1 comment: