प्रेम रंग
प्रेम इक अहसास है इसे अहसास ही रहने दो यारों
रंगों छंदों में इसे बांधने की जिद न करो
किसी के आने से जब मन में खनक जग जाए
किसी के जाने से जब मन में कसक जग जाए
जब आंखों को पढ़ने का शउर आ जाए
जब तारीफ सुन अपने पे गुरूर आ जाए
जब किसी के आंसू तूम्हें बरबस तड़पा जाए
जब किसी की बेरूखी न हो काब़िले बर्दास्त
यही इश्क है यही इश्क है यही इश्क है जनाब
जब भयानक ठंड हो और दे दो अपनी कंबल
हो बारिश और तुम दे दो जब अपना छाता
जब ग़मगीन हो रोने को दे दो अपना कांधा
समझो कि तुम्हें प्यार हुआ प्यार हुआ है प्यारे
इसे मर्ज-ए मुहब्बत प्रेम या प्यार कह लो
कौन सा रंग है यह, ये तो बताना मुश्किल है
चाहो तो इसे प्रेम रंग कह लो यारो
बिच्छोह का अलग मिलन का अलग रंग होता है।
कोई भी रंग हो यही तो प्रेम रंग होता है।
अमिताभ, रांची
Tuesday, October 14, 2025
प्रेम रंग
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment