Thursday, August 21, 2025

चालक रहित (Driverless) वाहन

फ़र्ज़ करें आप रास्ते पर चले जा रहे हो और अचानक एक कार आपके सामने से गुजर जाती है और आप देख कर हैरान हो जाते हैं कि कार में ड्राइवर ही नहीं है। आप क्या सोचेगे? खुद से चलने वाली कार बाजार में आ गई हैं या डर जाएंगे कि कोई भूत चला रहा है?

ड्राइवरलेस कार या autonomous कार का प्रयोगिक चलन कई अमेरिकन शहर जैसे फिनिक्स, लास एंजेलिस, सेन फ्रांसिस्को में जारी है । कई शहरों में ऐसी कार का उपयोग टैक्सी के रूप में शुरु भी हो गया है।
आम लोगों के लिए ऐसी कार एक भुतहा कार लग सकती है। एक स्टडी के अनुसार ड्राइवरलेस टैक्सी में सफर करना थोड़ा परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है, कई लोगों के लिए शुरुआत में थोड़ा डर और अनिश्चितता हो सकती है, लेकिन यह यात्रा करने का एक सुरक्षित और कुशल तरीका भी हो सकता है। कुछ लोगों को यह अनुभव वाकई डरावना लगता है, खासकर इसकी नवीनता। वहीं कुछ लोग इसे ज़्यादा पसंद करते हैं और पारंपरिक टैक्सियों की तुलना में इसे बेहतर भी पाते हैं।

अमेरिका के फिनिक्स और औस्टिन शहर में उबर ने Baidu और Waymo जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी का उपयोग करते हुए, चालक रहित कारों को बतौर टैक्सी तैनात भी कर दिया है । इन चालक रहित वाहनों को Uber की राइड-हेलिंग सेवा में एकीकृत किया जा रहा है, जिससे ग्राहकों को स्वचालित टैक्सी बुलाने का विकल्प मिलेगा । ऊबर वाले अन्य शहरों में भी भविष्य में इन चालक रहित टैक्सियों को लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। एक समाचार के अनुसार लोग 20-20 चालक सहित टैक्सी को decline कर रहे हैं ताकि उन्हें चालक रहित टैक्सी में सफर का अनुभव मिल सके।


Waymo Taxi San Francisco, फोटो Wiki के सौजन्य से

कैसे चलता है चालकरहित कार
मैं स्टील रोलिंग मिल के कंट्रोल से वाकिफ हूं। इसमें एक mode होता है optimisation ! इस मोड में कंट्रोल सिस्टम में प्रयोग होने वाले फार्मुला हर बार थोड़ा update होता है और एक समय ऐसा आता है सिस्टम इतना perfect हो जाता है कि सही सही product बनने लगता है। यानि हर बार सिस्टम कुछ सीखता है और याद रख लेता है। यही learning process कृत्रिम बुद्घिमत्ता या arficial intelligence का आधार है। जब हम कार चलाते हैं तो हम रोड के दूसरे उपयोग कर्ता के action को predict कर लेते है और तो और रोड के गड्ढे भी हमें याद हो जाते है। Three C का गुरू मंत्र हमें corner, child and cattle से सावधान रहना अवचेतन अवस्था में भी सिखा देता है। मानव मष्तिस्क का यह optimisation ही चालक रहित वाहन में उपयोग होने वाले artificial intelligence के जड़ में है। आखिर सीखने के बाद कई जानवर भी सरकस में सायकल चला लेता है तो on board computer क्यों नहीं ? चालक रहित कार में हर तरह के सेंसर लगाने पड़ते हैं, आखिर मानव चालक कार में आंख, कान से देख सुन कर रोड के अवरोध, अन्य वाहन की स्थिति, सिग्नल के रंग, रोड पर के लेन मार्किंग, स्पीड लिमिट, वाहनों के हार्न, एम्बुलेंस के सायरन इत्यादि के अनुसार कार चलाते है। इन inputs को अपने अनुभव (यानि learning prpcess या मस्तिष्क के optimisation-जिसमें अन्य चालको के क्रिया प्रतिक्रिया का पुर्वानुमान भी सामिल है) के अनुसार analyze कर एक्सलेटर ब्रेक या स्टेयरिंग को दबाता या घुमाता है। कहना न होगा कि औटोमेटिक गियर वाली या एलेक्ट्रिक वाहन से क्लच पहले ही हट चुका है। लब्बो-लुआब यह है सब function तो चालक रहित कार में भी आवश्यक है। जिसमें सेंसर inputs को analyze करने और कार चलाने या कृयान्वित करने की जिम्मेदारी कार के optimized AI चलित ओन बोर्ड कंप्यूटर की होगी‌ आगे इस पर और चालक रहित कार के औटोमेशन लेवल पर भी चर्चा करेंगे।

Robo racing car, फोटो Wikipedia के सौजन्य से

चालक रहित कारों में सेंसर:
** कैमरे: लेन में बने रहने, ट्रैफ़िक संकेतों की पहचान और वस्तुओं का पता लगाने के लिए दृश्य जानकारी प्रदान करते हैं।

** रडार: वस्तुओं की दूरी और गति मापते हैं, विशेष रूप से प्रतिकूल मौसम की स्थिति में उपयोगी। धुंध में जब मानव की आंखें देख नहीं सकती, वैसे मौसम में भी इसके भरोसे चालक रहित कार चल सकती हैं।

** LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग): पर्यावरण का एक 3D मानचित्र बनाता है, जो विशेष रूप से वस्तुओं का पता लगाने और मानचित्रण के लिए उपयोगी है।

** अल्ट्रासोनिक सेंसर: पार्किंग सहायता जैसे नज़दीकी दूरी के पता लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

** इनके सिवा वाहन के आंतरिक स्थिति जैसे कार की स्पीड, acceleration, तापक्रम इत्यादि के लिए भी सेंसर होते है।

चालक रहित कारों के लेवल:
कई औटोमेशन feature मानव चलित कार में आने बहुत पहले से आते हैं जैसे ओटोमेटिक गियर, क्रूश कंट्रोल, कैमरा और proximity sensor / alarm. पर कई feature आते गए जिससे कार में कई आटोमेशन लेवल हो गए।

सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स (SAE) इंटरनेशनल द्वारा कम कारों को परिभाषित किया गया है, जो स्तर 0 (नो ड्राइविंग ऑटोमेशन) से लेकर, जहाँ चालक का पूर्ण नियंत्रण होता है, स्तर 5 (पूर्ण ड्राइविंग ऑटोमेशन) तक है, जहाँ वाहन बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, किसी भी परिस्थिति में, कहीं भी स्वयं चल सकता है। ये स्तर प्रौद्योगिकी की प्रगति को दर्शाते हैं।

** जहाँ स्तर 1-2 के लिए चालक की निरंतर निगरानी आवश्यक है,

** स्तर 3 के लिए चालक को विशिष्ट परिस्थितियों में पर्यवेक्षक बनने की अनुमति है, और

** स्तर 4-5 के लिए चालक की न्यूनतम या शून्य भागीदारी के साथ उच्च या पूर्ण स्वचालन की आवश्यकता होती है। ऐसे मेरी राय यह है कि मशीन सब कुछ सीख ले पर मानव मन के छठी इंद्री के सोच को नहीं समझ सकता।


लदा फदा ट्रोला

भारत में यदि ऐसी कार आ जाए
अब आप कल्पना कीजिए भारत में सब कंटीनेंट के शहरो में ऐसी कार लांच हो जाय । उन जगहों में जहां लेन ड्राइविंग ठीक ठाक follow की जाती है ऐसी कार तो आराम से चल लेगी पर जब फास्ट लेन में धीमी ट्रक चल रही हो या तीन लेन घेर कर लदी फदी ट्रोला आगे आगे चल रही या मोटर साइकिल लेन कटिंग कर रहे हो तो ऐसी कार कितनी गति से चल पाएगी यह कोई भी अनुमान लगा सकता है। ऐसे बाइकर्स द्वारा लेन कटिंग तो अमेरिका यूरोप में भी होता ही है आजकल।‌ भारत में तो उन एक्सप्रेस वे पर भी बाइकर्स घुस जाते हैं जहां 2 wheelers बैन है। रास्ते पर पानी भरा हो या भयंकर बर्फ पड़ रही हो तो क्या ऐसी कार चल सकेगी ? पता नहीं।

ट्रैफिक सब कन्टीनेंट में

आशा है अब आप जब कभी भी स्वचलित कार देखेंगे तो उसे भूत चलित समझ कर नहीं डरेंगे, happy undriving !

Tuesday, August 19, 2025

धराली और ग्लोबल वार्मिंग

पिछले वर्ष नवंबर में उत्तराखंड के सिलक्यारा टनेल में हादसा हो गया और कई दिनों तक कई मजदूर फंसे रह गए। तब मैंने एक ब्लॉग लिखा था। क्लिक कर पढ़ें। इस बार भी उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी राज्य कई आपदाओं से जूझ रहा है। क्यों होता है ऐसा ? और क्यों हम इसे रोक नहीं पाते इसे। आईए विचार करें।

हाल के दिनों में भारत के पहाड़ी राज्यों में अतिवृष्टि और भूस्खलन से होने वाली त्रासदी की कई घटनाएं हुई। हिमाचल के कई जिले के रास्ते अभी तक कटे बहे पड़े हैं। उत्तराखंड के धरौली में हुई तबाही के बाद होने वाले rescue की खबर अभी TV पर चल ही रही थी कि जम्मू-कश्मीर के किस्तवार में बादल फटने की घटना में 46 तीर्थ यात्रियों (जो मचैल देवी की यात्रा पर थे) के मृत्यु और अनेकों के घायल होने की खबर आ गई। और कल की बात करे तो कठुआ (J and K ) में बदल फटने की घटना ने सात लोगों की जान लेली । इसमें अन्य नुकसान सामिल नहीं है।


धराली ABP / किस्तवार DD News के सौजन्य से

पड़ोसी देश की बात करे तो पाकिस्तान के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में अचानक आई बाढ़ से कम से कम 337 लोगों की मौत हो गई है, जबकि हाल के दिनों में क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ के कारण दर्जनों लोग लापता हैं। इसी प्रकार के समाचार यूरोप और अमेरिका से भी आ रहे है।

पाकिस्तान में बाढ़ 2025 हिन्दुस्तान टाइम्स के सौजन्य से

पिछले वर्ष (२०२४) यूरोप में करीब ४ लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हो गए और इस वर्ष heat wave से पूरा यूरोप परेशान है । अब अमेरिका (USA ) की बात करते है CNN के अनुसार इस वर्ष जुलाई तक "कभी फुर्सत और राहत का पर्याय मानी जाने वाली गर्मी अब चिंता और उथल-पुथल का मौसम बन गई है। जीवाश्म ईंधन प्रदूषण और अन्य जटिल कारकों ने इन महीनों को बढ़ते ख़तरे के दौर में बदल दिया है, जिसमें लगातार गर्म लहरें, भीषण जंगल की आग और विनाशकारी बाढ़ शामिल हैं।"

USA में बाढ़ 2025, CNN के सौजन्य से

इन सभी आपदाओं का कारण क्या है ? इसका उत्तर है हमारे वैज्ञानिको के पास, बस सारी मानवता लाचार सी सब देख रही है और कई जगहों पर तो मानव ही इन आपदाओं का कारण बनता नज़र आता है। इनको समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। कार्बन डाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन साइकिल के बारे में ज़्यदातर लोगों ने पढ़ा ही होगा । प्रकृति ने एक ऐसा बैलेंस बनाया जिसमे कार्बन डाई ऑक्साइड को हमारे दोस्त वनस्पति / जंगल ऑक्सीजन में बदल देते है। हम अपनी CO2 बनाते है चाहे साँस लेने में या आग इत्यादि जलने में और प्रकृति उसे फिर ऑक्सीजन में बदल देती है इस तरह की CO2 और Oxygen की मात्रा वायुमंडल में स्थिर बनी रहे। लेकिंन मानव एक तरफ ज्यादा आग जलाता कर CO2 और गर्मी पैदा कर रहा है - कल कारखानों में , मोटर कारों में , हवाई जहाजों में और युद्ध में और दूसरी और CO2 को बदल कर ऑक्सीजन देने वाले जंगलों पेड़ों भी हम काट रहे है । नतीजा CO2 - ऑक्सीजन का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। अब यही कार्बन डाई ऑक्साइड ऊपरी वायुमंडल में एक सतह बना कर धरती में पैदा होने वाली गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोक देती है ।

धरती को कितनी गर्मी मिलती है और कितनी गर्मी धरती के वायुमंडल से बाहर चली जाती है इससे तापमान का एक संतुलन बनता है और वैश्विक औद्योगीकरण (१८५०-१९००) काल के पहले के संतुलन को आधार माना गया है - सभी अंतरास्ट्रीय समझौतों और प्रयत्नों के लिए। पेरिस समझौते के तहत, देशों ने वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने पर सहमति व्यक्त की, ताकि दीर्घकालिक वैश्विक औसत सतही तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सके और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास जारी रहें। हालाँकि ज़्यादातर देश पेरिस समझौते का हिस्सा हैं, लेकिन ईरान, लीबिया और यमन सहित कुछ देशों ने या तो इसकी पुष्टि नहीं की है या इससे बाहर निकल गए हैं। नए प्रशासन के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी समझौते से हटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन सब कारणों के अलावा मूमध्यीय प्रशांत महा सागर के उष्ण धाराओं के कारण होने वाले "एल नीनो" या "ला नीना" के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन इन समझौता का हिस्सा नहीं है।

भारत ने निम्नलिखित लक्ष्य इस दिशा में स्थापित किए है और बहुत कुछ हासिल भी किया है : " गैर-जीवाश्म ईंधन (renewable energy ) से स्थापित क्षमता का 40% प्राप्त करने का लक्ष्य। 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य। 2.5 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए वन क्षेत्र का विस्तार करने की योजना। शुल्क और सब्सिडी में कमी के माध्यम से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना। जुलाई 2025 तक भारत में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 119 गीगावाट थी। लेकिन जब तक विश्व के सभी अति विकसित देश इस दिशा में अपने अपने लक्ष्य न बनाये या सक्रिय रूप में इस दिशा में कार्य नहीं करते Global Warming कम नहीं की जा सकती।

निश्चित रूप से कोई एक देश अकेले Global Warming पर लगाम नहीं लगा सकता। पर त्रासदी के होने पर जान माल की हानि कम करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता है। कहना न होगा की पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरण बहुत नाज़ुक होता है और विकास के लिए किया प्रत्येक प्रोजेक्ट कुछ न कुछ हानि पंहुचा ही जाता है। मुझे याद है ८०'s तक गंगोत्री से हमारे पंडा जी जब जाड़ों में हमारे घर आते तो बताते की ऋषिकेश से ऊपर बहुत कम ही रोड है और उन्हें प्रायः पूरी दूरी पैदल तय करनी पड़ती है और अब हम चारधाम के गंगोत्री और बद्रीनाथ तक बस से जा सकते है और केदारनाथ और यमुनोत्री के काफी करीब तक रोड चली जाती है। हमने भी 2023 जून के उत्तराखंड ट्रिप में बहुत जगहों पर लैंड स्लाइड देखी थी। रोड , टनेल और जल विद्युत परियोजना सभी पहाड़ के लोगों के लिए आवश्यक है। पर शायद इनके सभी के planning /execution में हमसे कुछ कमी रह जाती है। या फिर इन विकास परियोजनाओं से पहाड़ी राज्यों पर पर्यटकों के आगमन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जहां पर्यटन से निवासियों की आमदनी बढ़ती वहीं इससे अनियोजित होटल , मकान, दुकान, होम स्टे भी बन जाते हैं। पेड़ कट जाते हैं वो अलग। पर्यटक भी पर्यावरण का उचित ख्याल नहीं रखते।

यही कुछ धराली त्रासदी में जान माल के अत्यधिक नुकसान का कारण बन गया। समाचारों से जो निश्कर्श निकाला जा सकता है वह मैं आगे लिख रहा हूं । क्षीर गंगा नदी या गाद भागीरथी में मिलने के पहले एक त्रिकोणीय डेल्टा सा बनाता है। गंगोत्री तक बस आ जाने से यात्रियों की भीड़ प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है और धराली उनके खाने ठहरने का सबसे उपयुक्त और लोकप्रिय जगह बन गई है। नतीजन क्षीर गंगा के किनारे और उसके त्रिकोणीय डेल्टा पर कई होटल दुकान बन गये थे। लोग निश्चितं थे कि ये छोटी नदी अपने इन किनारों के बीच ही सीमित रहेगी। लेकिन जब अचानक से बहुत सी बारिश हुई तो ये छोटी नदी अपने प्राकृतिक रास्ते पर बह निकली ढ़ेरों मिट्टी और पत्थर के साथ। जब तक लोग संभलते सौ से अधिक लोग मलबों में दफन हो गए। भयानक बारिश से दो स्थान पर रोड भी बह गए, धंस गए और सहायता पहुंचने में देर भी हो गई। कई काम किए जा सकते हैं। पहला तो पर्यटक और कारों की संख्या परमिट इत्यादि से सीमित करना पड़ेगा। रोड जाम की समस्या से निजात भी तो चाहिए।


चोप्ता में जाम 2023, cantilever रोड

दूसरा कोई निर्माण स्थिर स्थलों पर हो , भूस्खलन संभावित क्षेत्र या नदी नालों के प्राकृतिक बहाव पर न हो। टनल भूस्खलन से निजात दिला सकता है, यदि इसके निर्माण में पहाड़ो के संतुलन को क्षति न पहुंचाई जाय। स्विट्जरलैंड में भूस्खलन संभावि स्थान पर कैंटीलीवर रास्ते जिन पर छत भी हो दिख जाते हैं । मैं जानता हूं कि रोड और पर्यावरण विशेषज्ञ के पास अवश्य कई और बेहतर विकल्प होंगे। आज बस इतना ही।

Wednesday, August 13, 2025

काठमांडू मनोरम मार्ग से

मैं या हम कब पिछली बार बीरगंज से सड़क मार्ग से काठमांडू आये थे अब याद भी नहीं। शायद १९९५-२००० के बीच में एक बार काठमंडू सड़क मार्ग से गए होंगे । जब से हमारे दोनों बच्चे दिल्ली- NCR मैं रहने लगे है हमेशा दिल्ली होकर ही नेपाल की हवाई यात्राी की है। पहले भी कलकत्ता से काठमांडू की फ्लाइट ले लेते थे । हाल में रक्षाबंधन के दिन पत्नी का प्रोग्राम बना। भतीजी US से आई हुई थी और उन्हें, भाईयों को राखी बांधने का अवसर भी मिल रहा था (बताता चलूँ मेरी श्रीमती का मायका काठमांडू में हैं ) हमारे विवाह के बाद पहली बार यानि ५२ वर्ष बाद । मैंने रांची से शताब्दी और आसनसोल से मिथिला एक्सप्रेस में रिजर्वेशन कर लिया। सावन में जसीडीह तक भीड़ होने की संभावना थी पर AC2 डिब्बे में कोई भीड़ नहीं हुई और हम आराम से रक्सौल पहुंच गए । रक्सौल भारत नेपाल सीमा पर भारत का एक busy शहर है । पहले नेपाल के बीरगंज से काठमांडू तक हवाई यात्रा की प्लानिंग थी पर मेरे साले साहब डॉ बिमल काठमांडू से गाड़ी लेकर बीरगंज आ गए थे और हमें लेने रक्सौल स्टेशन तक अपने बीरगंज के मित्र रमेश जी की गाड़ी लेकर आ गए। हमें तो बहुत ही सुविधा हो गयी लेकिन स्टेशन रोड से कस्टम के बीच के रेलवे क्रासिंग ने बहुत परेशान किया। करीब १ घंटे लग गए।


India rail info dot com के सौजन्य से

हम बीरगंज में थोड़ी देर रूक कर और रमेश जी के यहाँ लज़ीज़ नाश्ता कर काठमांडू के लिए निकल पड़े । पत्नी जी ने रमेश जी को राखी भी बांधी। हमारा पिछले अनुभव मुग्लिंग हो कर काठमांडू जाने का था जिसमे 290 KM का रास्ता तय करने में करीब १०-१२ घंटे में लगते थे पर बिमल जी ने बताया की इस बार हमें कुलेखनी - दक्षिण काली ही कर जाना है और 135 KM के रास्ता तय करने में ४-५ घंटे ही लगने वाले थे । बीरगंज से हम अमलेखगंज - हेटौंडा होकर भैसे पहुंचे । अमलेखगंज के रास्ते में हम वो ढाबा ढूंढने लगे जहाँ का वर्णन हमने अपने एक बस यात्रा वाले ब्लॉग में किया था । पर कहाँ १९९० की बात और कहाँ २०२५ का परिदृश्य। जंगल काट कर कई घर , मकान , दुकान और होटल बन गए है। लिंक पर यहाँ क्लिक कर वो पुराना अनुभव भी पढ़ सकते है।

भैसे से दो रास्ते अलग हो जाते है एक सिवभन्ज्याङ्ग - दमन - पालुंग -टीस्टुंग हो कर सबसे पुराना 'बाईरोड को बाटो' और दूसरा नया छोटा रास्ता। हम छोटे रास्ते के तरफ निकल लिए । ये रास्ता भीमफेदी हो कर जाता है । फ़ेदी का नेपाली शब्द है जिसका अर्थ है बेस जहां से पहाड़ शुरू होता है।


अभी के (२०२५) के यात्रा के कुछ दृश्य

मुझे काठमांडू यात्रा का अपना पहला अनुभव याद हो आया जब पता चला था की 'बाईरोड को बाटो' बनने के पहले यानि १९५० के पहले भीम फ़ेदी हो कर लोग पैदल काठमांडू जाए जाते थे और काठमांडू वैली की पहली कार भी इसी पैदल रास्ते से लोगों के कंधे पर गयी थी । मैं अपने पुराने ब्लॉग का लिंक यहाँ दे रहा हूँ। 1973 में की गई उस यात्रा ब्लॉग में मैंने लिखा था--

"अमलेखगंज
हम एक घंटे में अमलेखगंज पहुंच गए। पता चला पहले रेल गाड़ी यहाँ तक आती थी। गूगल करने पर पता चला की नेपाल सरकार रेलवे (NGR) नेपाल का पहला रेलवे था। 1927 में स्थापित और 1965 में बंद हुआ। 47 किमी लंबी ये रेलवे लाइन नैरो गेज थी और भारत में सीमा पार रक्सौल से अमलेखगंज तक था। आगे जाने पर चुरिया माई  मन्दिर के पास सभी बसें रुक रही थी। पूजा करके ही बसें आगे बढ़ती थी । हमारी बस भी रुकी। पूजा कर खलासी ने सबको प्रसाद बाटें। जब बस आगे बढ़ी तो चुरिया माई का महात्म्य पता चला। अब बस चुरे या टूटते पहाड़ों (Land Sides prone) के ऋंखला से गुजर रही थी।   अगला स्टॉप हेटौंडा था। यह एक औद्योगिक शहर है। अब यहाँ लम्बे पर सहज रास्ते से यानि महेन्द्र राज मार्ग से नारायणघाट और होकर मुंग्लिंग होते हुए भी काठमांडू जाया जा सकते है। तब ऐसा नहीं था। अगले स्टॉप भैसे ( एक जगह का नाम ) में एक छोटे पुल के पार बस रुकी दिन के खाने के लिए। इसके बाद चढ़ाई वाला रास्ता था, सो डर डर कर ताजी मछली भात खाये। अभी तक पुर्वी राप्ती नदी के किनारे किनारे चले जा रहे थे। रोड पर जगह जगह झरने की तरह स्वच्छ पानी गिर रहा था। नेपाली में इसे धारा कहते है। लोग इसी पानी में बर्तन कपडे धोने नहाने से लेकर पीने पकाने का पानी तक ले रहे थे। पानी ठंडा शीतल था और आँखों को बहुत अच्छा लग रहा था।

भैसे ब्रीज,, काठमाण्डु की पहली कार, कन्धों पर

रास्ते के बारे में पत्नी जी बताती जा रहीं थी। उन्होंनें बताया कि पहले तराई से काठमाण्डू घाटी लोग भीमफेदी होकर पैदल ही जाते थे। घाटी में पहली कार भी लोगों के कन्धे पर इसी रास्ते ले जाया गया था। 28 किमी का यह पैदल रास्ता लोग तकरीबन तीन दिनों मे पूरा करते थे। यह सोच कर मुझे घबराहट होने लगी कि यदि हमें भी पैदल जाना पड़ा तो कई बार 3000 फीट से 7000-8000 फीट चढ़ाई उतराई (रास्ते का चित्र देखें)   चढाई करते क्या मै सही सलामत पहुंच भी पाता?"

भीमफेदी..भीमफेदी होकर पैदल रास्ता ऊंचाई का उतर चढाव देखे (AH42=त्रिभुवन राजपथ)

पैसा वसूल मार्ग / दृश्य

मैंने सोचा था पालुंग टिस्टुंग वाले रास्ते से अधिक scenic ये रास्ता थोड़े ही होगा। पर भैंसें से आगे बढ़ते ही मेरा कैमरा निकल आया। ऐसी वैली और ऐसे पहाड़। हमें दो बार 6000 फीट तक चढ़ना था और फिर उतरना था।


चितलांग का नाशपाती, नाशपाती बगान

पहले सुना था रास्ता संकरा और खतरनाक है, पर अब रास्ता काफी चौड़ा है। फिर भी सुमो शेयर टैक्सी वाले बहुत गंदा चलाते हैं और सावधानी की जरूरत है। पहाड़ बादलों से ढका था और कही कही मार्ग में दृश्यता काफी कम थी। सबसे ऊँची जगह से तो बादल हमारे नीचे दिख रहे थे और हम बादल के ऊपर।


हिल टॉप रेस्टोरेंट , एक झरना

यहीं पर है कुलेखानी जल विद्युत परियोजना है। कुलेखनी नदी जो बागमती की एक सहायक नदी है पर बांध बना है। इससे जो लेक बना है उसे ईंद्र सरोवर कहते हैं और यहां एक पर्यटक स्थल चितलांग भी है। तीन पावर प्लांट एक के नीचे एक लगाया गया है जो‌ कुल ६० मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है। हम जब नीचे जा रहे थे तब पिछले साल बांध के दो फाटक के अचानक खोलने से होने वाले बर्बादी देखे । कई स्थान‌ पर सड़क बह गई थी और डाइवर्सन बनाए गए थे। नीचे उतरने के बाद फिर एक बार ६००० फीट की उंचाई तक जाना पड़ा जहां एक रेस्टोरेंट था। हम चाय सेल रोटी खाकर आगे बढ़ गए। एक तरह का नाशपाती यहां बहुतायत से होता है और उससे wine भी बनाया जाता है। जगह जगह फल के स्टाल लगे थे । हम भी चार किलो नाशपाती खरीद कर आगे बढ़े। दक्षिण काली और फारफिंग होते हुए हम काठमांडू पहुंचे।

Monday, August 4, 2025

हमारे पास के 2 और शिवमंदिर सावन में शिवधाम भाग 7

सावन में शिव के धाम सीरीज का यह अंतिम क़िस्त है। इस भाग में दो शिव धामों का वर्णन करेंगे। अशोक धाम - लखीसराय , हरिहर महादेव सोनपुर !

कुछ वर्ष बीत गए समस्तीपुर से लौटते समय मैंने ड्राइवर से पूछा कि अशोक धाम कहाँ है। हम उस मंदिर तक जाने वाली सड़क के बहुत पास थे। ड्राइवर ने चुटकी लेते हुए कहा, "वहाँ जाना चाहेंगे ?" और मैं उसके दिए प्रलोभन का विरोध नहीं कर सका और तुरंत मान गया।मनो शिव जी ने हमें दर्शन के लिए बुलाया था। हम उसी समय अशोक धाम गए थे, जिसे अब श्री इंद्रदमनेश्वर महादेव कहा जाता है।
लगभग 52 साल पहले, 1973 में, अशोक नाम का एक 9-10 साल का बच्चा खेत में खेल रहा था, तभी उसे लगभग 20 फुट ऊँचे टीले से पत्थर जैसी कोई चीज़ झाँकती हुई दिखाई दी। जब टीले को खोदा गया, तो एक विशाल प्राचीन शिवलिंग मिला। कई अन्य प्राचीन कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ भी मिलीं। उस समय अखबारों में कई लेख लिखे गए थे जिनमें दावा किया गया था कि यह स्थान वास्तव में हरिहर क्षेत्र है (जिसके बारे में भी मै इसी ब्लॉग में लिखनेवाला हूँ ) क्योंकि पास से हरोहर नदी बहती है।


अशोक धाम लखीसराय

अब यह जगह एक भव्य मंदिर परिसर के रूप में विकसित हो चुकी है, जिसमें एक सुंदर धर्मशाला आदि भी है। यह जगह लखीसराय से लगभग 5-7 किमी दूर है। वहाँ ली गई कुछ तस्वीरें यहाँ साझा की गई हैं। दर्शन करने लायक जगह है यह!


अशोक धाम लखीसराय , एक चित्र विकिपीडिया से ली गई है

हरिहर महादेव
हम हाजीपर में था एक पारिवारिक कार्यक्रम में गए थे । हमारे पास एक दिन था और हमने वैशाली घूम लेने का फैसला लिया । एक और फैसला लिया गया की हम सुबह सिर्फ चाय पी कर चलेंगे .. सबसे पहले प्रसिद्द हरिहरनाथ मंदिर , वह पूजा करेंगे नाश्ता करेंगे और फिर निकल चलेंगे वैशाली के भग्नावशेष देखने ।
हम लोग चौरसिया चौक के पास कन्हेरी घाट रोड की तरफ से मुड़ गए और गूगल मैप के सहारे चल पड़े । रास्ते में एक संकरा पुल पड़ा जो गंडक नदी के उपर था । इतना संकरा की दो गाड़िया मुश्किल से ही निकले। दोनों तरफ साइकिल और मोटर साइकिल के लिए भी पुल बने थे पर सभी साइकिल वाले बीच से ही चलते । जैसे ही पुल पार हुआ वो चौक आ गया जहाँ गज ग्राह की खूबसरत सी प्रतिमा लगी थी । हमने गाड़ी रुकवाई और एक दो फोटो खींच लिए ।


हरिहरनाथ मन्दिर, गन्डक गन्गा सन्गम गज ग्राह मुर्ति चौराहा , सोनपुर

वहां से हरिहरनाथ मंदिर नज़दीक ही था । हम लोग गंडक के किनारे किनारे बढ़े ही जा रहे की पता चला मंदिर था गेट और रास्ता पीछे ही रह गया । हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ा । छोटा सा बाजार था । मिठाईयों की दुकान , पूजा से सामानों की दूकान , खिलोने वैगेरह की दूकान थी , एक मिनी देवघर।
हम लोग एक दूकान पर रुक कर पूजा की डलिया, फूल, नारियल, सिंदूर, धुप बत्ती लेकर मंदिर की और गए। यहाँ तरह तरह के पंडा मिलते है जो सालाना पूजा के नाम पर रकम मांगते है। हम कुछ दे दिला कर मंदिर से बाहर आ गए और प्रांगण में कुछ भी फोटोग्राफी की ।

हरिहर नाथ का इतिहास
हरिहर क्षेत्र के महत्व को लेकर ग्रंथों में भगवान विष्णु व भगवान शिव के जल क्रीड़ा का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार महर्षि गौतम के आश्रम में वाणासुर अपने कुल गुरु शुक्राचार्य, भक्त शिरोमणि प्रह्लाद एवं दैत्य राज वृषपर्वा के साथ पहुंचे और सामान्य अतिथि के रूप में रहने लगे।
वृषपर्वा भगवान शंकर के पुजारी थे। एक दिन प्रात: काल में वृषपर्वा भगवान शंकर की पूजा कर रहे थे। इसी बीच गौतम मुनि के प्रिय शिष्य शंकरात्मा वृषपर्वा और भगवान शंकर की मूर्ति के बीच खड़े हो गये। और इससे वृषपर्वा क्रोधित हो गये। और उन्होंने तलवार से वार कर शंकरात्मा का सिर धर से अलग कर दिया। जब महर्षि गौतम को इसकी सूचना मिली वे अपने आपको संभाल नहीं सके और योग बल से अपना शरीर त्याग दिये। अतिथियों ने भी इस घटना को एक कलंक समझा। इस घटना से दुखित शुक्राचार्य ने भी अपना शरीर त्याग दिया। देखते-देखते महर्षि गौतम के आश्रम में शिव भक्तों के शव की ढे़र लग गयी। गौतम पत्नी अहिल्या विलाप कर भगवान शिव को पुकारने लगी। अहिल्या की पुकार पर भगवान शिव आश्रम में पहुंच गये। भगवान शंकर ने अपनी कृपा से महर्षि गौतम व अन्य सभी लोगों को जीवित कर दिया। सभी लोग भगवान शिव की अराधना करने लगे। इसी बीच आश्रम में मौजूद भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की अराधना किये। भक्त की अराधना सुन भगवान विष्णु भी आश्रम में पहुंच गये। भगवान विष्णु और शिव को आश्रम में देख अहिल्या ने उन्हे अतिथ्य को स्वीकार कर प्रसाद ग्रहण करने की बात कही। यह कहकर अहिल्या प्रभु के लिए भोजन बनाने चलीं गयीं। भोजन में विलम्ब देख भगवान शिव व भगवान विष्णु सरयू नदी में स्नान करने गये सरयू नदी में जल क्रीड़ा करते हुए भगवान शिव और भगवान विष्णु नारायणी नदी(गंडक) में पहुंच गये। प्रभु की इस लीला के मनोहर दृश्य को देख ब्रह्मा भी वहां पहुंच गये और देखते-देखते अन्य देवता भी नारायणी नदी के तट पर पहुंचे। जल क्रीड़ा के दौरान ही भगवान शिव ने कहा कि भगवान विष्णु मुझे पार्वती से भी प्रिय हैं। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित होकर वहां पहुंची। बाद में भगवान शिव ने अपनी बातों से माता के क्रोध को शांत किया। ग्रंथ के अनुसार यही कारण है कि नारायणी नदी के तट पर भगवान विष्णु व शिव के साथ-साथ माता पार्वती भी स्थापित है जिनकी पूजा अर्चना वहां की जाती है। इसी कारण सोनपुर का पूरा इलाका हरिहर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यहां भगवान विष्णु व शिव ने जलक्रीड़ा किया इसलिए यह क्षेत्र हरिहर क्षेत्र (हरि= श्री विष्णु, हर= शिव जी) के नाम से प्रसिद्ध है।
इसीलिए यह इलाका शैव व वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसी हरिहर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा से एक माह का मेला लगता है। पहले तो यह पशु मेला के रूप में विश्वविख्यात था। लेकिन अब इसे और आकर्षक बनाया गया है।

गज ग्राह की कहानी तो आपको पता ही होगा । जब गज की पुकार पर हरि दौड़े आये ग्राह यानि मगरमच्छ से गज की जान बचाई । पुराणों के अनुसार, श्री विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी ( गज ) व मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई वर्षों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया। जिन्होंने प्रकट हो कर मगरमच्छ से गज को बचाया ।