सावन में शिव के धाम सीरीज का यह अंतिम क़िस्त है। इस भाग में दो शिव धामों का वर्णन करेंगे। अशोक धाम - लखीसराय , हरिहर महादेव सोनपुर !
कुछ वर्ष बीत गए समस्तीपुर से लौटते समय मैंने ड्राइवर से पूछा कि अशोक धाम कहाँ है। हम उस मंदिर तक जाने वाली सड़क के बहुत पास थे। ड्राइवर ने चुटकी लेते हुए कहा, "वहाँ जाना चाहेंगे ?" और मैं उसके दिए प्रलोभन का विरोध नहीं कर सका और तुरंत मान गया।मनो शिव जी ने हमें दर्शन के लिए बुलाया था। हम उसी समय अशोक धाम गए थे, जिसे अब श्री इंद्रदमनेश्वर महादेव कहा जाता है।
लगभग 52 साल पहले, 1973 में, अशोक नाम का एक 9-10 साल का बच्चा खेत में खेल रहा था, तभी उसे लगभग 20 फुट ऊँचे टीले से पत्थर जैसी कोई चीज़ झाँकती हुई दिखाई दी। जब टीले को खोदा गया, तो एक विशाल प्राचीन शिवलिंग मिला। कई अन्य प्राचीन कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ भी मिलीं। उस समय अखबारों में कई लेख लिखे गए थे जिनमें दावा किया गया था कि यह स्थान वास्तव में हरिहर क्षेत्र है (जिसके बारे में भी मै इसी ब्लॉग में लिखनेवाला हूँ ) क्योंकि पास से हरोहर नदी बहती है।
अशोक धाम लखीसराय
अब यह जगह एक भव्य मंदिर परिसर के रूप में विकसित हो चुकी है, जिसमें एक सुंदर धर्मशाला आदि भी है। यह जगह लखीसराय से लगभग 5-7 किमी दूर है। वहाँ ली गई कुछ तस्वीरें यहाँ साझा की गई हैं। दर्शन करने लायक जगह है यह!
अशोक धाम लखीसराय , एक चित्र विकिपीडिया से ली गई है
हरिहर महादेव
हम हाजीपर में था एक पारिवारिक कार्यक्रम में गए थे । हमारे पास एक दिन था और हमने वैशाली घूम लेने का फैसला लिया । एक और फैसला लिया गया की हम सुबह सिर्फ चाय पी कर चलेंगे .. सबसे पहले प्रसिद्द हरिहरनाथ मंदिर , वह पूजा करेंगे नाश्ता करेंगे और फिर निकल चलेंगे वैशाली के भग्नावशेष देखने ।
हम लोग चौरसिया चौक के पास कन्हेरी घाट रोड की तरफ से मुड़ गए और गूगल मैप के सहारे चल पड़े । रास्ते में एक संकरा पुल पड़ा जो गंडक नदी के उपर था । इतना संकरा की दो गाड़िया मुश्किल से ही निकले। दोनों तरफ साइकिल और मोटर साइकिल के लिए भी पुल बने थे पर सभी साइकिल वाले बीच से ही चलते । जैसे ही पुल पार हुआ वो चौक आ गया जहाँ गज ग्राह की खूबसरत सी प्रतिमा लगी थी । हमने गाड़ी रुकवाई और एक दो फोटो खींच लिए ।
हरिहरनाथ मन्दिर, गन्डक गन्गा सन्गम गज ग्राह मुर्ति चौराहा , सोनपुर
वहां से हरिहरनाथ मंदिर नज़दीक ही था । हम लोग गंडक के किनारे किनारे बढ़े ही जा रहे की पता चला मंदिर था गेट और रास्ता पीछे ही रह गया । हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ा । छोटा सा बाजार था । मिठाईयों की दुकान , पूजा से सामानों की दूकान , खिलोने वैगेरह की दूकान थी , एक मिनी देवघर।
हम लोग एक दूकान पर रुक कर पूजा की डलिया, फूल, नारियल, सिंदूर, धुप बत्ती लेकर मंदिर की और गए। यहाँ तरह तरह के पंडा मिलते है जो सालाना पूजा के नाम पर रकम मांगते है। हम कुछ दे दिला कर मंदिर से बाहर आ गए और प्रांगण में कुछ भी फोटोग्राफी की ।
हरिहर नाथ का इतिहास
हरिहर क्षेत्र के महत्व को लेकर ग्रंथों में भगवान विष्णु व भगवान शिव के जल क्रीड़ा का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार महर्षि गौतम के आश्रम में वाणासुर अपने कुल गुरु शुक्राचार्य, भक्त शिरोमणि प्रह्लाद एवं दैत्य राज वृषपर्वा के साथ पहुंचे और सामान्य अतिथि के रूप में रहने लगे।
वृषपर्वा भगवान शंकर के पुजारी थे। एक दिन प्रात: काल में वृषपर्वा भगवान शंकर की पूजा कर रहे थे। इसी बीच गौतम मुनि के प्रिय शिष्य शंकरात्मा वृषपर्वा और भगवान शंकर की मूर्ति के बीच खड़े हो गये। और इससे वृषपर्वा क्रोधित हो गये। और उन्होंने तलवार से वार कर शंकरात्मा का सिर धर से अलग कर दिया। जब महर्षि गौतम को इसकी सूचना मिली वे अपने आपको संभाल नहीं सके और योग बल से अपना शरीर त्याग दिये। अतिथियों ने भी इस घटना को एक कलंक समझा। इस घटना से दुखित शुक्राचार्य ने भी अपना शरीर त्याग दिया। देखते-देखते महर्षि गौतम के आश्रम में शिव भक्तों के शव की ढे़र लग गयी। गौतम पत्नी अहिल्या विलाप कर भगवान शिव को पुकारने लगी। अहिल्या की पुकार पर भगवान शिव आश्रम में पहुंच गये। भगवान शंकर ने अपनी कृपा से महर्षि गौतम व अन्य सभी लोगों को जीवित कर दिया। सभी लोग भगवान शिव की अराधना करने लगे। इसी बीच आश्रम में मौजूद भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की अराधना किये। भक्त की अराधना सुन भगवान विष्णु भी आश्रम में पहुंच गये। भगवान विष्णु और शिव को आश्रम में देख अहिल्या ने उन्हे अतिथ्य को स्वीकार कर प्रसाद ग्रहण करने की बात कही। यह कहकर अहिल्या प्रभु के लिए भोजन बनाने चलीं गयीं। भोजन में विलम्ब देख भगवान शिव व भगवान विष्णु सरयू नदी में स्नान करने गये सरयू नदी में जल क्रीड़ा करते हुए भगवान शिव और भगवान विष्णु नारायणी नदी(गंडक) में पहुंच गये। प्रभु की इस लीला के मनोहर दृश्य को देख ब्रह्मा भी वहां पहुंच गये और देखते-देखते अन्य देवता भी नारायणी नदी के तट पर पहुंचे। जल क्रीड़ा के दौरान ही भगवान शिव ने कहा कि भगवान विष्णु मुझे पार्वती से भी प्रिय हैं। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित होकर वहां पहुंची। बाद में भगवान शिव ने अपनी बातों से माता के क्रोध को शांत किया। ग्रंथ के अनुसार यही कारण है कि नारायणी नदी के तट पर भगवान विष्णु व शिव के साथ-साथ माता पार्वती भी स्थापित है जिनकी पूजा अर्चना वहां की जाती है। इसी कारण सोनपुर का पूरा इलाका हरिहर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यहां भगवान विष्णु व शिव ने जलक्रीड़ा किया इसलिए यह क्षेत्र हरिहर क्षेत्र (हरि= श्री विष्णु, हर= शिव जी) के नाम से प्रसिद्ध है।
इसीलिए यह इलाका शैव व वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसी हरिहर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा से एक माह का मेला लगता है। पहले तो यह पशु मेला के रूप में विश्वविख्यात था। लेकिन अब इसे और आकर्षक बनाया गया है।
गज ग्राह की कहानी तो आपको पता ही होगा । जब गज की पुकार पर हरि दौड़े आये ग्राह यानि मगरमच्छ से गज की जान बचाई । पुराणों के अनुसार, श्री विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी ( गज ) व मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई वर्षों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया। जिन्होंने प्रकट हो कर मगरमच्छ से गज को बचाया ।
Monday, August 4, 2025
हमारे पास के 2 और शिवमंदिर सावन में शिवधाम भाग 7
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