Friday, February 28, 2025

चैन्नै ट्रिप और नाती से मिलना -२

पिछले ब्लॉग (पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें) में मैंने चेन्नई तक आने ने जो जो दिक्कत हुई और जो दिक्कत बहन दीपा और बहनोई बीरु जी को पेरंबूर स्टेशन पर तक आने और चार घंटे प्रतीक्षा करने में हुई उसीका वर्णन किया। इस ब्लॉग में कुछ खुशी के पल के बारे में लिखूंगा । रांची से सीधे बंगलुरू जाने के वजाय चेन्नई हो कर जाने का हमारा मकसद दो थे। दीपा का SEA BEACH वाले घर को फिर से देखना और इसका आनंद लेना और उमंग यानि बड़े नाती जिसने चेन्नई के एक प्रसिद्द कालेज में इसी पिछले वर्ष ही दाखिला लिया था उससे मिलाना। हमने करीब दस दिन चेन्नई रुकने की योजना बनाई थी। सोचा था ऊपर लिखे दो आनंदमय अनुभव के साथ कुछ नज़दीक वाली जगहें भी घूम लेंगे। शायद हम २०१७ के बाद पहली बार दक्षिण भारत आये थे। तब हम चेन्नई के अलावा बंगलुरु , कुर्ग और मंगलुरु भी गए थे और उस यात्रा पर मेरा एक ब्लॉग भी है। हमे उन दो शादियो़ के गिफ्ट के बतौर कुछ कपडे भी खरीदने थे जिसमें हम अगले दो हफ्ते में शामिल होने वाले थे। पर चेन्नई में हम दोनों की तबियत एक के बाद एक ख़राब हो गई जिसके कारण हम आवश्यक जगहें नहीं घूम पाए। आगे हम अच्छे अनुभव ही साँझा करेंगे।

चेन्नई में फ्लैट समुद्र के किनारे था इसलिए गर्मी एकदम नहीं थी। पंखा चलने की कोई जरूरत नहीं हुई । पहली रात समुद्र के शोर में अपने को एडजस्ट करने में बीता। हमें अचानक अपना शिलांग ट्रिप याद आ गया। हमारा होम स्टे वहां स्प्रेड ईगल फाल के पास था । झरना दिखता तो नहीं था पर उसकी आवाज़ लगातार आ रही थी। समुद्र के आवाज़ से एडजस्ट हुए तो २:३० बजे से ही मुर्गों ने बोलना शुरू किया। इन सबों के बावजूद हम थके थे नींद फिर भी मस्त आई। अगली रात तक हम लोग पूरी तरह अभ्यस्त हो गए और समुद्र / मुर्गे की आवाज़ से कोई समस्या नहीं हुई। नाती उमंग २६ जनवरी को फ्री नहीं था। उसकी परीक्षा चल रही थी। इस कारण उससे मिलने का दिन २५ जनवरी निश्चित किया गया उसकी परीक्षा के बाद यानि ११:३० के बाद। क्यूंकि परीक्षा के बाद उसे मेस भी जाना होगा , हम लोगों ने १ बजे तक उसके कॉलेज पहुंचने का निश्चाय किया। मेरे बहनोई बीरु जो को सोसाइटी के कुछ काम भी निपटाने थे।

उमंग से मिलने हम २५ जनवरी को जाने वाले थे और अगले शुक्रवार, शनिवार और रविवार वह घर आने वाला था। खैर हम देर से निकले ही थे फिर २६ जनवरी के लिए कई नेता भी २५ को ही पहुंचने वाले थे और एयरपोर्ट के रास्ते ही हमें जाना था - लब्बोलुआब यह कि हमें रास्ते में बहुत जाम मिला। हमें पहुंचते पहुंचते तीन बज गए। उमंग गेट पर ही आ गया। हम कैंम्पस देखना चाहते थे पर उमंग एक बार ही अंदर जा सकता था इसलिए हम कही बैठने के लिए कोई रेस्टोरेंट या मॉल ढूढ़ने निकल पड़े।



अपने नाती या पोते के कालेज जा कर मिलने की ख़ुशी मैं बयान नहो कर सकता। जिसके जन्म पर अमेरिका गए, जिसको तीन महीने के उम्र में सूप में चावल फटकने पर खिल-खिला कर हंसते सुना और जो मासूम बच्चा मेरे ऑफिस से आने पर दरवाजे के दस्तक से ही पहचान लेता और इंतजार करता मिलता था आज इंजीनियरिंग कालेज का छात्र है। चुप चुप रहने वाला अब बिना रुके बोल रहा है और अपने मन की बातें खुल कर share कर रहा है। गजब की ख़ुशी हमारे दिल में भर गयी।



खैर। घर से चलते समय VIT के नज़दीक बैठने की एक जगह यानि "स्काई वाक रेस्टोरेंट " का लोकेशन देख कर चले थे - जहां बैठा जा सकता है, लेकिंन वहां पहुंचते उससे पहले ही दिख गया "Grounded Cafe "। कैफ़े खाली था । यहाँ आसानी से कुछ घंटे बिताया जा सकता था इसलिए हम यहीं बैठ गए। हमने खाना आर्डर करने में कोई जल्दी नहीं दिखाई और एक एक आइटम बारी बारी से आर्डर करने लगे। कॉफी भी सभी ने अलग अलग समय में आर्डर किया। फिर भी दो घंटे बहुत जल्दी बीत गए और जब पांच बज गए तो हम सभी उठ गए।
जाने तो तत्पर हुए तो उमंग बोल पड़ा "इतने जल्दी जा रहे है आप लोग ?" उसके चेहरे पर निराशा, आश्चर्य और उदासी का मिला जुला भाव था। उसके चेहरे पर HOMESICKNESS - गृहातुरता दिख रही थी । हॉस्टल में रहने पर घर वाले और घर का खाना किसे याद नहीं आता ? हम भी अकचका गए , आखिर उमंग चार दिनों बाद दो दिनों के लिए WEEKEND पर घर आने वाला था।तब उमंग ने पांच बजे तक लौटने पड़ता। क्योकि ट्रेवल टाइम दो घंटे का है। क्योंकि हम लोग खुद आ गए थे उमग को सात बजे तक हॉस्टल जाना था । सभी के साथ समय बिताने के लिए हमने कोई पार्क वैगेरह खोजने की कोशिश की । उमंग से पूछा । पर रेस्टोरेंट / पार्क इत्यादि का उसे अभी कुछ पता नहीं था। कैसे पता हो ? इंस्टीट्यूट से बाहर जाने ही नहीं देते - बच्चों को अपने आस पास का कुछ पता नहीं होता। पार्क नहीं मिलने पर हम इंस्टीट्यूट जा कर देखने और वहीं घूमने के इरादे से अंदर चले गए। शानदार कालेज है। जब हमने इंजीनियरिंग पढ़ी थी तब कुल चार बिल्डिंग और एक वर्कशॉप ही थे हमारे कॉलेज में, पर यहाँ तो अनगिनत बिल्डिंग थी वह भी कई तल्लों वाली।



VIT gate और गजेबो
उमंग के हॉस्टल के पास गाड़ी रोक कर हम पैदल घूमने निकल पड़े। बहुत बड़े मैदान , जिसमें कई ग्रुप में छात्र क्रिकेट, फुटबॉल खेल रहे थे, के चारों ओर घुमते हुए हम पहुंचे गजेबो । यहां कई फ़ास्ट फ़ूड , चाय- कॉफी , लस्सी कोल्ड ड्रिंक के स्टाल थे । अपने जमाने में हम कहते कालेज कैंटीन। मेस के खाने से ऊब जाने पर छात्र अपना स्वाद बदल सकते है यहाँ, और दोस्तों के साथ समय भी बीता सकते है। कई छात्र छात्राये जुटें थे। हमने नोट किया की जब कोई छात्र-छात्रा ज्यादा करीब आने की कोशिश करते थे सिक्योरिटी वाले सीटी बजा कर उन्हें दूर दूर रहने की हिदायत देते रहते थे। ये ज्यादातर सीनियर छात्र थे। उमंग का amusing कमेंट था "After all they are adults "। लेकिन हम लोग यह सब देख आश्वस्त हो गए । बच्चा पढ़ने आया है पढ़ेगा ही वाली फीलिंग। जब हम वापस जाने लगे हम भावुक होने लगे । नानी ने नाती को गले लगते हुए कहा "उमंग देख कही कोई सिक्योरिटी वाला सीटी न बजा दे "!

Thiru TV Vaidyanathan and me

मैं अपने एक पुराने सहकर्मी TV Vaidyanathan से मिलने भी गए जिससे ३०-३५ साल बाद मिले। उसका फ्लैट काफी दूर था। पहले उससे कहीं बीच में मिलने का प्लान बनाया । पर हमलोग का फ्री टाइम मैच नहीं कर रहा था, इसलिए मैं उसके फ्लैट में ही मिल आया। वो अकेला ही रहता है और दमा का मरीज भी है, जिसे उसने योग से काबू कर रखा है। हमारा सारा समय पुरानी यादों (लिंक को क्लिक कर सेलम के बारे में पढ़ें) को दोहराने में बीत गया। सेलम में हमारा फेवरिट होटल, बेयरा मंजुनाथ, सुबह किसी के घर नुमा ढाबे की इडली और लेट नाइट सिनेमा। वैद्यनाथन ने मुझे पेसरट्टू बना कर खिलाया। उसका समय किचन के कामों में बीत जाता है। बचे समय में अपनी सोसायटी का काम कर देता है। चैन्नै से हम बैंगलोर गए जहाँ हमने एक शादी में शामिल हुए । वो वाकया अगले ब्लॉग में।

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