चैन्नई
आप शायद सोच रहे होंगे कि ये क्या शीर्षक है? शादी- नाती? नहीं आप जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है। अभी मेरे नाती के शादी का वक़्त नहीं आया है। मुझे एक रिश्तेदार जो बंगलुरु में रहते है के यहाँ शादी में जाना था और मैंने इसी मौके का फायदा उठा कर अपने नाती जो चेन्नई में पढ़ रहा है से मिलने का प्रोग्राम बना लिया । आम के आम गुठली के दाम के तर्ज पर हमें अपनी छोटी बहन जो चेन्नई में ही रहती है से भी मिलने का मौका मिल रहा था । उत्साह से हम सराबोर थे पर चेन्नई तक की यात्रा उतनी मजेदार नहीं रही । दक्षिण भारत में मेरा काफी समय बीता है और अक्सर रांची से चेन्नई तक हम अल्लेप्पी एक्सप्रेस से ही गए है। इसमें AC2 भी है और पैंट्री भी। चेक करने लगे तो इसमें सिर्फ वेटिंग लिस्ट में हो टिकट मिल रहा था। रांची से सिर्फ एक फ्लाइट चेन्नई के लिए है और वह रात में है इसलिए हम फ्लाइट नहीं लेना चाह रहे थे।चेन्नई में एयरपोर्ट से मेरी बहन का घर बहुत दूर है। अभी मोबाइल पर देख ही रहा थे की एक स्पेशल ट्रैन बरौनी पदनूर एक्सप्रेस में सीनियर सिटीजन कोटा में AC3 में दो सीट खली दिख गयी। काफी कम स्टॉपेज वाली इस ट्रैन समय कम लेकर शाम 6 :40 तक पेरामबुर स्टेशन पहुंचने वाल थी । दो बातें मेरे पसंद की नहीं थी - AC3 और पराम्बुर। बहनोई साहब से बात किया तो पता चला सेंट्रल स्टेशन से ४ किलोमीटर ही पेरामबुर स्टेशन (जबकि दूरी वास्तव में 8 KM है )। बस मैंने टिकट बुक कर ली ।
घर बंद कर जाने में बहुत सारी बातों का ध्यान रखना था और मेरी पत्नी थोड़ा ज्यादा ही गंभीरता से लेती है और जाने के दिन तक अपने को पूरी तरह थका लेती है। ऐसी बात नहीं है की मै मदद नहीं करता पर उनको काम से संतुष्ट या प्रसन्न करना संभव नहीं । हुआ यह जाने से एक दिन पहले पत्नी की तबियत ख़राब दिखी । दवा देते देते मैंने दो दिन बाद की फ्लाइट की उपलब्धता देख ली और दो दिन बाद फ्लाइट से जाने क सलाह दे डाली जवाब मिला "मैं और दो दिन का टेंशन नहीं ले सकती - कल ही जायेंगे "।
आखिर २२ तारीख को मैं लगातार ट्रैन का स्टेटस चेक करने लगा। ट्रैन ४-५ घंटे लेट थी । हम आखिर एक लेडी कुली (पिछले ब्लॉग देखे ) के मदद से अपनी बोगी में चढ़ने में कामयाब हो गए । अंदर मेरा दोनों बर्थ पर यात्री सो रहे थे लेकिन उन्होंने तुरंत बर्थ खाली कर दिया। ट्रेन द्वारा इतनी लंबी यात्रा में ट्रेन टाइम मेकअप कर लेने की पूरी संभावना थी। पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें लेटने की सलाह दी। सभी सहयात्री बिहार के बरोनी के पास एक ही गांव के थे और आपस में तरह तरह की बातों में लगे थे। वयस्कों की वयस्क बातों में बच्चे भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। सभी उदीपी के पास टेक्स्टाइल मिल में काम करने वाले श्रमिक और उनके परिवार थे और टिकट न मिलने पर मुंबई होकर जाने के वजाय कोयंबटूर होकर जा रहे थे। जाहिर है काफी शोर हो रहा था। हमारी ट्रेन यात्रा दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस तक ही सीमित है ओर इतनी लंबी ट्रेन यात्रा २००३ के बाद पहली बार कर रहे थे अतः इस माहौल में हम uncomfortable थे। लगभग सभी के मोबाइल मे गाना फिल्म या विडियो फुल वोल्युम पर चल रहा था । मना करने पर पांच मिनट से ज्यादा असर नहीं हो रहा था। एक लड़का भोजपुरी गाने को बार बार बजा कर reel बना रहा था। क्या माहौल था पुछिए मत। मैंने राउरकेला में लंच का आर्डर दिया था लेकिन ट्रेन इतनी लेट थी कि वह हमारा रात का खाना बन गया। पत्नी ने कुछ नहीं खाया केवल फीवर के टैबलेट के लिए ही कुछ खाया। राउरकेला के बाद ट्रेन कहीं रुकी तो हमारे सहयात्री पटरी के किनारे बिक रहे हंड़िया (Rice beer) पी आए। खैर देर रात तक जगने के बाद पता नहीं कब आंख लग गई।
राउरकेला के बाद पीछे चलने वाली अलैप्पी एक्सप्रेस आगे हो गई। क्योंकि उस ट्रेन का स्टापेज ज्यादा थी हमारी ट्रेन भी हर स्टेशन पर रुकने लग गई। पर जब सुबह उठे हमारी ट्रेन कुछ कम लेट थी। विजयनगरम के बाद ट्रेन विशाखापत्तनम को बायपास कर दुव्वडा होते आगे बढ़ी तो लगा अब ट्रेन समय से कुछ ही लेट पेरांबुर पहु़चेगी। राजामुंदरी में नाश्ता आर्डर किया था पर वो लंच बन गया। पत्नी के लिए Curd Rice भी मंगा लिया। मेरे लिए घर से लाया लज़ीज परांठे भी थे। सब मिलाकर मेरा overeating हो गया क्योंकि दो लोगों का खाना सिर्फ मैं खा रहा था। खैर आश दिलाते तोड़ते हमारी ट्रेन रात के १२ बजे पेरांबूर पहुंची। बहन बहनोई ८ बजे ही पहुंच कर ४ घंटे का इंतजार कर थक चुके थे (पर हमें इसका अहसास भी होने नहीं दिया)। ट्रेन में हमें विचार आ रहा था कि उन्हें आने से मना कर दूं , पर अब सोचता हूं यदि वे न आए होते हम अपना सामान तक बाहर न ला पाते। मैंने एक कसम खाली "कभी स्पेशल ट्रेन से सफर नहीं करेंगे, ज्यादा पैसा भी लेते हैं और समय पर चलाने की कोई जिम्मेवारी भी नहीं लेते हैं रेलवे वाले।" कोई व्यवस्था नहीं, गंदगी अलग। हमें बेडरोल भी रेलमदद को ट्वीट करने के बाद ही मिला था।
ISCON Temple , Thiruvanmiyur Beach
चैन्नई में सिर्फ दो मंदिर घूम पाए। समुद्र किनारे ECR रोड स्थित साई मंदिर और उसके सामने नया बना ISCON मंदिर। जब बहन दीपा कौट्टुपुरम में रहती थी तब कई बार हम इस साई मंदिर आया करता था। दीपा का तिरुवनमियूर वाला फ्टैट तब बन ही रहा था। मयलापुर साई मंदिर भी जाते थे पर ये मंदिर शांत मनोरम स्थान में है, एकदम समुद्र के किनारे। तब एक ट्री हाउस रेस्टोरेंट भी नजदीक में था। मैंने उन दिनों की याद ताजा करना चाह रहा था तब बिरू जी ने याद दिलाया "भैया आप अपना कार्ड भी डाल गए हैं।" शायद साईं बुला रहे होंगें इसलिए पुनः जाना हुआ। अच्छा लगा। मां (बिरू जी की ९० वर्षीय माता जी) भी साथ आईं। इस्कॉन मंदिर नया बना है। वहां भी गए। हमारे शिर्डी, पुट्टपर्ती के सह यात्री श्री पाठक जी यहीं स्वयं सेवक हो गए हैं। वे आने का कह गए थे पर जिस दिन हम गए वह उनका सेवा दिवस नहीं था। हम प्रसाद में गर्म खीर की अपेक्षा कर रहे थे, पर गर्म हलवा मिला। एक रेस्टोरेंट में खाना खा कर हम लौट आए। अगले दिन मेरा stomach upset हो गया।
Sai Temple - ECR Road, Phoenix Market City, Chennai
जब मेरी तबियत संभली पत्नी की तबीयत बिगड़ गई। इन्ही कारणों से चैन्नई ज्यादा कुछ घूम नहीं सके। बहन का घर एकदम समुद्र के किनारे है । हमने रोज समुद्र के किनारे morning walk का सोचा था पर सिर्फ एक दिन ही जा पाए।
खैर इसी बीच नाती से मिल आए। और एक पुराने मित्र से भी। नाती लाल भी weekend में आ गया। उसे भी सिर्फ एक सुपर मार्केट (मौल) ले गए। ये सब अनुभव अगले अंक में।
क्रमशः
Wednesday, February 12, 2025
शादी नाती ट्रिप-१
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