कामाख्या मंदिर- आसम, चर्च- मेघालय, बौद्ध विहार, -अरूणाचल
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गतांग से आगे - 20th and 21st April 2018
मेघालय यानि बादलों का घर। मेघालय पहाड़ों, जंगलों, झरनों और नदियों का भी घर है। मेघालय की एक और विशेषता जो हाल के दिनों में youtube video देख कर जान पाया वह है कि मेघालय
विश्व की कुछ सबसे लम्बी और जटिल गुफा प्रणालियों का घर है - पश्चिम से पूर्व तक, यहां कई भूमिगत सुरंगें और स्थान हैं जो प्राचीन जीवाश्मों ( जिसमें मोसासोरस डायनासोर का जीवाश्म भी शामिल है) से चिह्नित हैं और दुर्लभ प्रजातियों का घर हैं। गुगल करने पर पता चला कि दुनिया की सबसे लंबी गुफा यहीं है। नाम है Krem Liat Prah-Umim-Labit या क्रेमपुरी जो करीब 32 km लंबी है। इसकी खोज हुई थी 2016 में। मेघालय में 1650 गुफा समुह है। एक प्रसिद्ध canyon जिसमें झरने है नदी है और नाव भी चलती है उसे भी कोरोना काल में ही खोजा गया था। नाम है वारी-छोरा जो गारो हिल्स में है। जैसा मैंने
पिछले भाग में मैंने वादा किय था कि बताऊंगा मेघालय के कई प्रसिद्ध जगह हम क्यों नहीं जा पाए। बताता हूं बताता हूं।
जगहे जहां हम नहीं गए, १.वारी-छोरा २.सेवन सिस्टर फाल ३. डबल लिविंग रूट ब्रिज (Wikipedia)
कई प्रसिद्ध जगहें जैसे गुफाएं और canyon 2018 में खास प्रसिद्ध नहीं थे जैसा मैंने उपर बताया, और अगर प्रसिद्ध होते भी और हमारे समय भी होता तो जैसा कठिन रास्ता/trek youtube में दिखाते हैं हम सिनियर कहां जा पाते। डबल डेकर रूट ब्रिज के लिए भी कई km का ट्रेक और 3500 सिढ़ीया है चेरापुंजी से। इसलिए चेरापुंजी (सोहरा) जाकर भी हम यहां नहीं गए और यदि हिम्मत जुटा भी लेते तो चेरापुंजी में जो असली वाली बारिश हो गई कहां जाने देती। बारिश ही कारण बना seven sister फाल नहीं जाने का। इनके सिवा हम सभी प्रसिद्ध जगहें गए और उसका वर्णन आगे है।
खासी हिल काउंसिल, एलिफेंट फाल की सीढ़ियां,
पिछले भाग में हम पहुंचे थे एलीफेंट फाल। वहां से हम पहुंचे रिवाई गांव। एक फुटबॉल ग्राउंड के पास गाड़ी पार्क कर ड्राइवर हमे लिविंग रूट ब्रिज - single वाला का रास्ता दिखा गया। पता चला करीब 1000-1500 सिढ़िया उतरनी पड़ेगी लिविंग रुट ब्रिज के लिए। सिढ़ियों के कही दोनों तरफ कही सिर्फ एक तरफ दुकाने सजी थी खाने पीने, स्थानीय फल, स्थानीय कलाकृति, बांस के सामानों की। स्थानीय खासी दुकानदार जो अपने खेत बगीचे का फल वैगेरह या अपनी हस्त कलाकृति बेचने आए थे । कुछ सीढियां उतरने के बाद हमारी बहन चित्रा बैठ गई "अब आगे नहीं जा पाऊंगी"। मैं भी सोच ही रहा था कि रूक जांऊ और मुझे बहाना मिल गया। मैं भी साथ देने के लिए रूक गया। पानी की बोतल का दाम यहां MRP से ज्यादा था पर पर्यटन स्थल में यह साधारण बात है। हम दोनों कभी कुछ खाया कभी कुछ पीया और बाकी चार लोग अपनी अपनी पानी की बोतल थामें नीचे उतरते चले गए।
एलीफेंट फाल से रिवाई के बीच, रिवाई की लिविंग ब्रिज के रास्ते के दुकान
हम भाई बहन बांकी चार लोगों का इंतजार करने लगे। वापस लौटने पर पता चला नीचे एक चाय की दुकान थी जहां थोड़ी मंहगी पर गरमा गरम चाय मिल गई थी जो थकान मिटाने के लिए अमृत की तरह काम आई। हंसी आ गई जब पता चला जितने पैसे चाय के लगे उतने ही toilet के उपयोग करने के भी लगे।
Steps to single living root bridge and Santosh Babu at the bridge!
हमलोगों को भूख लग रही थी पर आज तो सोहरा या चेरापूंजी पहुचना था। इसलिए हम एशिया के सबसे साफ सुथरे गांव मावल्यान्नॉंग की ओर निकल पड़े। करीब 20 कि०मी० के बाद ही आ गया मावल्यान्नॉंग। गांव की जनसंख्या करीब 400-450 है। खासी मातृसत्तात्मक समाज है यहां। हरे भरे इस गांव में सड़के साफ सुथरी थी और साफ रखने का काम सभी मिलजुल कर करते। हर घर के आगे बांस की टोकरियां रखी थी कचरा फेंकने के लिए। प्लास्टिक का उपयोग यहां बैन है।
माविल्लोंग के कुछ दृश्य।
मेरे मन में कुछ और ही बात चल रही थी। मेरे विचार से इस गांव में पर्यटक भी बैन कर देना चाहिए । कई बस और गाड़ियां लगी थी पार्किंग में जब हम आऐ। इतने सारे लोग और गाड़ियां पर्यावरण को स्वच्छ रहने देते होंगे? जरा सोंचे। खैर कुछ ढाबानुमा रेस्तरां भी थे यहां और एक अच्छी जगह देख कर हमने अपने अपने पसंद का खाना खाया। हमारा अगला स्टाप था दावकी। ये वहीं जगह है जहां नाव हवा में चलती दिखाई जाती हैं उमगोट नदी का शीशे की तरह साफ transparent पानी के कारण।
बोरहिल झरना
दिन का खाना खा कर हम निकल पड़े दावकी की ओर। रास्ता बंगालादेश के बोर्डर के करीब था। खुला बोर्डर था। जगह जगह सफेद झंडे लगे थे । जो वास्तव में बोर्डर था। बहुत खूबसूरत दृश्य मिलते गए और हम फोटो ग्राफी में busy हो गए। कसेली यानि सुपारी के जंगल से भरा था इलाका। रास्ते में कई झरने मिले । हर झरने पर हम रूक जाते और फोटो खींचते। आखिर हम पहुंच गए दावकी । पता चला उंमगोट नदी के बीच से गुजरती है भारत बंगालादेश सीमा। BSF के जवान एक लाईन में खड़े थे और सीमा का काम देख रहे थे। हम नदी में किनारे तट उतर पड़े। जैसी आशा थी पानी उतना क्रिस्टल क्लियर नहीं था। लोगों ने बताया कि उपरी क्षेत्र में बारिश हुई है इसलिए पानी धुमल हो गया है। बंगलादेशी पर्यटक कभी कभी इस तरफ आ जाते और BSF के जवान उन्हें वापस भेज देते। हम लोग भी बंगलादेश की तरफ जा कर आचार खरीद लाए। बहुत मजा आया। एक विदेश यात्रा भी हो गई बिना वीसा के।
दावकी गांव और नदी का किनारा
जब हम फोटो खींचते खींचते थक गए तब हम आगे के लिए निकल पड़े। अगला स्टाप था चेरापूंजी जिसे लोकल जबान में सोहरा बोला जाता है। पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो गया और जिस रिट्रीट में हमने तीन कमरे बुक कर रखा था उसका नाम था JMS RESORT ! और जैसा हर नई जगह को ढ़ूढने में थोड़ा वक्त लगता है यहां भी लगा । हमारा गुगल मैप ठीक काम कर नहीं रहा था। वहां मोबाइल से खींचे कुछ फोटो में दिल्ली के पास के किसी Ocean Pearl Retreat का Location दर्ज है। पकोड़ा चाय तुरंत हाजिर हो गया। रात के ख़ाने का आर्डर पहुंचते ही दे दिया और घंटे भर में गरमा गरम बन भी गया।
Pnoramic view from JMS Resort's porch
सभी ने मिलकर मेरे कमरे में खाना खाया। खाना लजीज था या भूख जोरो की लगी थी ये तो पता नहीं पर रात में नींद अच्छी आई। Cute साफ सुथरा बड़े कमरे थे। सामने खूबसूरत लान । मेन रोड से न तो बहुत दूर न ही बहुत पास। रिसार्ट बहुत पसन्द आया। अगले सुबह जगा तो क्या देखता हूं.... न न क्या हुआ अगले भाग में बताऊंगा।
क्रमशः
Tuesday, December 31, 2024
हमारी उत्तर पुर्व की यात्रा भाग-3 (2018) #yatra
Saturday, December 28, 2024
हमारी उत्तर पुर्व की यात्रा भाग-2 (2018) #yatra
कामाख्या मंदिर- आसाम, चर्च- मेघालय, बौद्ध विहार, -अरूणाचल
गतांग से आगे - 19th and 20th April 2018
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पिछले भाग में वादा किया था कि कैसे iteniary बनी कैसे ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की और होटल बुकिंग कैसे किया। इस ब्लॉग में मैं उसकी चर्चा करूंगा।
History of Shillong
हमारे शिलोंग होम स्टे के पास था यह स्प्रेड ईगल फाल्स (इंटरनेट फोटो टूरिज्म ऑफ़ इंडिया के सौजन्य से सधन्यवाद)
और गारो युगल (wiki)
पहले पहल हम लोगों ने कहां कहां जाना है या जा सकते उसे चुना। और गुगल मैप से यात्रा समय का अंदाजा लगाया। टूर आपरेटरों के पास कोई टूर पैकेज हर राज्य का 6 से 9 दिन से कम का नहीं था। और महगें भी। हम तीन। राज्य घूमना चाहते थे यानि 20 दिन और कम खर्च के लिए तो सारा इंतज़ाम खुद करना पड़ सकता है। अब जगह जगह
ट्रांसपोर्ट करना मुश्किल होता हमारे पास थे सिर्फ छ: दिन। मैंने तीन राज्यों के लिए 2-2 दिन बांट दिए और बना लिया एक असंभव सी itinerary । और कई टूर आपरेटर से सिर्फ ट्रांसपोर्ट के लिए संपर्क साधा।
info@koyalitravels.in ने 6 लोगों के लिए इनोवा या टेम्पो ट्रेवलर का प्रस्ताव भेजा ₹ 40,000/- और 73,000/-का। अब 2018 में यह ज्यादा था और गाड़ी भी हमारी जरूरत से बड़ी थी, उस पर उन्हें कुछ रूट को भी असंभव बताया और मना कर दिया। और सामान गाड़ी के छत पर रखने की मनाही भी थी। फिर मैंने aprup@myvoyage.co.in के आपरूप सैकिया से संपर्क साधा। कई मेल भेजे और और फिर बनी हमारी final iteniary कुछ अपनी की, कुछ उनकी मानी। ट्रांसपोर्ट के लिए टाटा सुमो गोल्ड के लिए उन्होंने मांगा ₹ 32,000/- और हमने एडवांस के तौर पर ₹ 5000/- ट्रांसफर कर दिए। अरूणांचल के inner line permit के लिए सबके आधार और पैसे भी भेज दिए। Booking.com और airbnb पर चार जगहों पर accommodation भी बुक कर लिए।सब सेट होने पर हम निकल पड़े थे तीन जगहों से।
अर्ल होलीडे होम शादी में आने वाले मेहमानो का होटल, शिलांग होलीडे होम हमारा होटल और हॉलिडे होम के छत पर से दृश्य
पिछले भाग में मैंने बताया कि गोहाटी पहुंचने पर हमलोग रिटायरिंग रूम में रूके थे और कुछ जगहें घुम कर हम शिलांग पहुंच गए थे। अब आगे।
शिलांग के पहले डॉन बोस्को म्युजियम का टिकट लेने में कुछ देर-दिक्कत हुई पर हम हर फ्लोर पर घूमें किसी किसी फ्लोर पर भीड़ थी और रूकना भी पड़ा। सबसे उपर पांचवें तल्ले से शिलांग शहर का दृश्य अत्यंत मनभावन था। हमारा बुकिंग शिलांग होलीडे होम में था और जिस शादी में जा रहे थे वह था अर्ल होलीडे होम में। ड्राइवर पूरे रास्ते बता रहा था कि उसे हमारे होटल का location पता है। हम भी निश्चितं थे पर वह हमें शादी वाले होटल में ले आया। फिर हमें गुगल ने बहुत घुमाया। होटल किसी स्प्रेड इगल फाल के पास था पर हम उसके इर्द-गिर्द घूमते रहे।
शादी का कार्यक्रम स्थल , डॉन बोस्को संग्रहालय के पांचवे तल्ले से शिलांग का दृश्य
फिर किसी तरह लोगों से पूछ पाछ कर हम पहुंचे। नया होटल था और इस नाम से मिलते जुलते कई होम स्टे भी मिले। होटल का approach में एक मोड़ के बाद अचानक डराने वाली तीखी ढ़लाई आई जो कुछ ओवर हैंग के साथ कंक्रीट से ढ़ाल कर बनाई गई थी। ड्राइवर ने जिस तरह गाड़ी चलाई हम उसके expertise का लोहा मानने से अपने को रोक न सके। होटल साफ सुथरा और आरामदेह था। खाना नाश्ता आर्डर देने पर बना देते थे।
शाम को तैयार होकर हम शादी में शरीक होने निकल पड़े। आखिर हमलोंग यहां आए इसी मकसद के लिए थे। सजावट खाने का इंतजाम बहुत उम्दा था, हम बस लिफाफा देने का इंतजार करने लगे। खाना हमने पहले ही खा लिया था। हमें न यहां कोई जानता था न ही हमें भाषा समझ आ रही थी।
हम शादी में शामिल हो कर देर रात तक आ गए और बहुत देर तक आपस में बातें करते रहे। स्प्रेड ईगल फाल का कलकल झरझर ध्वनि लगातार आ रहा था पर अगले दिन बहुत कोशिश कर भी हम फाल देख नहीं पाए।
सुबह नहा-धोकर चाय नाश्ता कर और चेक आउट कर हम निकल पड़े। लिविंग ब्रिज के लिए। सबसे पहले हम लोरेटो के पास एक चर्च देखा फिर वार्ड्स लेक, लेडी हैदरी पार्क पहुंचे। एक छोटा जू भी था यहां।
वार्ड्स लेक, लेडी हैदरी पार्क के बाहर
करीब दो घंटे यहां रुकने के बाद हम चल पड़े एलिफेंट फाल की ओर। खासी हिल काउंसिल होते हम झरने तक पहुंच गए। एलीफेंट फाल एक तीन चरणों में गिरने वाले फाल है। झरने का मूल खासी नाम का क्शैद लाई पातेंग खोहसिव है। लेकिन अंग्रेजों ने हाथी के शक्ल वाले एक पत्थर के कारण झरने का नाम रख दिया एलिफेंट फाल। काफी समय लगा झरने के तीनों चरण को देखने में क्यों कि कमलेश बाबु को तीनों चरण देखे बिना चैन नहीं था।
एलीफैंट फॉल के पास नोटिस बोर्ड, फॉल का पहला चरण, एलीफेंट फाल मार्केट
एक छोटा बाजार सा लगा था एलीफैंट फॉल के पास और हम चाय पीने से अपने को रोक न पाए। कई लोग खासी ड्रेस में फोटो खींचा रहे थे , हमारे पास समय नहीं थे इन सबों के लिए और हम आगे बढ़ गए।
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मेघालय में कई जगहें है जहां पर्यटक जाते है और यू tube वाले हर रोज नई नई जगह दिखा भी देते है। जब मैं यात्रा कार्यक्रम बना रहा थे तब कई जगहों के बारे में पता भी था जैसे बैम्बू ब्रिज ट्रेक , डबल डेकर लिविंग रुट ब्रिज , सेवन सिस्टर्स फॉल। हमने कुछ जगहों का कार्यक्रम ही नहीं बनाया और कुछ जगह जा नहीं पाए। इनके विषय में मैं अगले भाग में लिखूंगा ।
इसके बाद हम इसी दिन Living root bridge, मावल्यान्नॉंग, और दावकी भी गए पर वह कहानी अगले भाग में।
Wednesday, December 25, 2024
हमारी उत्तर पुर्व की यात्रा भाग-1 (2018) #yatra
अरुणांचल में , ग्रुप गाड़ी के अंदर, भुटान में
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17-19 अप्रैल 2018
मेरी घुमक्कड़ी के लिए 2018 एक बेहतरीन साल था। पटना और उत्तर पुर्व की यात्रा से शुरू हुआ ये वर्ष रजरप्पा-हजारीबाग, अंगराबारी, मधुबनी- उच्चैट- कपिलेश्वर, जमुई और आसपास, शिर्डी सप्तश्रृंगी के बाद उदयपुर -कुंभलगढ़ की यात्रा से समाप्त हुआ और फिर शुरू हुआ कोरोना के वे तीन वर्ष।
सप्तश्रृंगी , उदयपुर और जमुई यात्रा पर मैं पहले लिख चुका हूं। आज प्रस्तुत है उत्तर पुर्व की यात्रा पर एक ब्लॉग।
पाटलिपुत्र ज० और गौहाटी स्टेशन
२०१८ का शायद मार्च महीना था जब मेरे सबसे छोटे बहनोई कमलेश जी ने पूछा "भैया शिलॉन्ग चलिएगा ?" मै अकचका सा गया और बोल पड़ा "क्यों ?" दिमाग में आया ही नहीं कि वे पूर्वोत्तर घूमने का प्लान बना रहे है। पर उनका जवाब आया एक शादी में आमंत्रण है और आपलोग भी आमंत्रित है। उनके मित्र के पुत्री की शादी थी शिलांग में । हमलोग पहले भी अपने भांजी के सहेली की शादी में केरल जा चुके थे जब मुन्नार घूमने का मौका मिला था। बेगानी शादी में भी रहने खाने का इंतेज़ाम स्वयं कर लेने से कोई अपराध बोध नहीं होता इसलिए मैं ये प्रस्ताव ठुकरा न सका और तो और मैं अपनी दूसरी छोटी बहन और बहनोई संतोष जी को भी ट्रिप में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर लिया। तीन युगलों का यानि छह लोग का एक ग्रुप बन गया जो एक SUV के लिए आदर्श समूह का आकार था। कमलेश जी ने बताया कि उन्होंने RETURN हवाई टिकट ले लिया है और सिर्फ पांच दिन थे हमारे पास । मैं यात्रा कार्यक्रम बनाने में जुट गया ।
Seven Sisters, Tripura, Asam
मैं पहले कुछ आवश्यक जानकारी जुटाने में लग गया। क्योंकि हम सबसे पहले गुवाहाटी जाने वाले थे तो कामख्या मंदिर, उमानंद द्वीप और ब्रह्मपुत्र नद के बारे में पता था पर क्षेत्र के बारे में और जानकारी इकठ्ठा करने लगे। कालेज में दो मणिपुरी लड़के सहपाठी थे तो पता था लोग मंगोलियन प्रजाति के भी होंगे और बौद्ध या ईसाई भो होंगे। पूर्वोत्तर भारत का सबसे पूर्वी क्षेत्र है। इसमें आठ राज्य शामिल हैं- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा जिन्हे आमतौर पर "सात बहनों" के रूप में जाना जाता है), और सिक्किम बनता है आठवां राज्य या इन सात बहनो का भाई। पूर्वोत्तर भारत के ये राज्य चीन , नेपाल , भूटान , म्यांमार और बंगलादेश से साथ सीमा भी शेयर करतीं हैं।
भारत की सारी नदियों को स्त्री या माता रूप में माना पूजा जाता है। गंगा माता , माँ नर्मदा इत्यादि। ब्रह्मपुत्र को इससे इतर एक नद या पुरुष माना जाता हैं। ब्रह्मपुत्र तीन देशो में बहने वाला नद है जो दक्षिण-पश्चिमी चीन, पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र कैलाश मानसरोवर से निकलती है। इसे असमिया में ब्रह्मपुत्र या लुइत, तिब्बती में यारलुंग त्संगपो, अरुणाचली में सियांग/दिहांग नदी और बंगालादेश में जमुना नदी के नाम से जाना जाता है। अपने आप में, यह प्रवाह के हिसाब से दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी नदी है, और 15वीं सबसे लंबी नदी है। स्रोत से समुद्र तक के हिसाब से यह भारत की सबसे लम्बी नदी हैं ।
काजिरंगा में गैंडा, डोरा सादिया या भुपेन हाजारिका सेतु जहां हम नहीं गए(curtsey Wikipedia)
इस क्षेत्र के कई रूप है। बर्फीली चोटियां, खूबसूरत झरने, तैरते टापू वाला झील, सबसे ज्यादा बारिश वाली जगहे, सबसे बड़ा नदी स्थित द्वीप माजुली है यहां। काई तरह के जंगली जानवर जैसे एक सींग वाले गैंडे ! और कई अभरण्य भी हैं यहाँ। रॉयल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, हूलॉक गिब्बन, नाचने वाला हिरण, असमिया बन्दर , रीसस बन्दर, स्टंप-टेल्ड मकाक, नेवला, भारतीय विशाल गिलहरी, तेंदुआ, लाल पांडा,जंगली भैंसे , मिथुन, और चीनी पैंगोलिन और कई अन्य जानवर हैं इन क्षेत्र के जंगलों में बसते हैं। कई मंदिर भी हैं यहाँ। फिर जगह जगह का खाना। मैं इस उधेर बिन में था कि पांच देने में क्या देखे और क्या छोड़े ?
ब्रह्मपुत्र शाम के वक्त, ब्रह्मपुत्र के उस पार
हम लोगों ने निश्चय किया कि वाइल्डलाइफ नहीं देखेंगे क्योंकि इसमें ही दो से तीन दिन लग जाते। हमने मंदिर और प्राकृतिक दृश्यों पर ध्यान केंद्रित करने लगे । गुवाहटी के सिवा असम का कोई और शहर नहीं जा पाएंगे अतः कामख्या , उमानंद , भुबनेश्वरी देवी के अलावा ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित कुछ और मंदिर देखना और असम का मछली भात खाने के अलावा यहाँ हमें एक रिश्तेदार के यहाँ भी जाना था। दो दिन गुवाहाटी , दो दिन मेघालय के अलावा आधा दिन था हमारे पास। मै अरुणांचल प्रदेश भी ट्रिप में शामिल करना चाहता था। बहुत कहने पर कमलेश जी एक दिन RETURN फ्लाइट स्थगित करने पर राजी हो गए । कुछ मेहनत कर मैंने एक ITINERARY बना डाला।
भुपेन हजारिका स्मारक, उजन बजार फेरी घाट, उमानंद द्वीप
17 अप्रैल को हम नए बने पाटलिपुत्र स्टेशन पहुंचे दस बजे रात की ट्रेन थी। नए स्टेशन जाने के लिए अभी कोई साधन नहीं मिल रहा था पर आखिर एक औटो वाला राजी हो गया और हम राजीवनगर से पाटलिपुत्र स्टेशन जा पहुंचे।
18 अप्रैल के शाम तक हम चार लोग गौहाटी पहुंच गए। मैंने रिटायरिंग रूम बुक कर रखा था ओर क्योंकि अगले दिन कमलेश जी और दीपा चैन्नई से फ्लाइट से आने वाले थे मैंने उनके नाम से भी ट्रेन का टिकट लेकर रिटायरिंग रूम बुक कर रखा था। उपर तल्ले पर पर रिटायरिंग रूम था इसलिए स्टेशन की चिल्ल पों से महफूज था और हम आराम से सो पाऐ । गोहाटी स्टेशन ऐसा पहला स्टेशन है जो १००% सोलर पावर पर निर्भर है। ता अगले दिन सुबह हमने उमानंद जाने का प्रोग्राम बनाया। यह मंदिर एक टापू पर है और ब्रह्मपुत्र के किनारे से स्टीमर से जाना पड़ता था। जेट्टी के पास दो खूबसूरत मंदिर में गए। एक का नाम था शुक्रेश्वर महादेव मंदिर।
शुक्रेश्वर महादेव मंदिर, दोल गोविंद मंदिर
अगले दिन सभी के साथ फिर आए थे यहां। हम एक फेरी की टिकट लेकर बैठ गए। क्या पता था ये फेरी ब्रह्मपुत्र के उसपार ले जाएगी। हम तो समझे उमानंद ही पहुंचे है और मंदिर की खोज में निकल पड़े। चलते चलते हम एक विष्णु मंदिर पहुंचे हमे पता चल चुका था कि गलत जगह आ गए हैं। हम उसी मंदिर में रुक गए। मंदिर का नाम असमिया में लिखा था दोल गोविंद मंदिर। बहुत ही सुन्दर मंदिर और सात्विक भावना पुर्ण दर्शन हुए। गाढ़े दूध में बना खीर प्रसाद बड़े चाव से हमने ग्रहण किए और घूमती बकरी को भी खिलाया। लौटते बहुत शाम हो गई और अंतिम फेरी जा चुकी थी। बामुश्किल एक प्राईवेट फेरी से हम गोहाटी लौट पाए। कमलेश जी लोग भी आ चुके थे और हम स्टेशन के दूसरी और मछली भात का डिनर करने निकल पड़े। पर होनी को कौन टाल सका है मेरी बहन चित्रा एक तार से फंस कर गिर पड़ी और फिर पूरे ट्रिप लंगड़ाती रही। डिनर बहुत स्वादिष्ट था।
जिवा वेज रेस्तरां, उमियम लेक, डॉन बोस्को म्युजिअम
हमने पूरे ट्रिप के लिए एक टाटा सुमो बुक कर रखा था। और अगले दिन शुक्रेश्वर मंदिर दुबारा देखते शिलौंग के लिए निकल पड़े। आश्चर्य हुआ की इस हाईवे पर के एक तरफ असम और दूसरी ओर मेघालय था। हम रास्ते में ड्राइवर के सुझाए जिवा वेज रेस्तरां में नाश्ता करते हुए शिलांग के ओर निकल पड़े। नाश्ता लजीज था और सर्विस भी अच्छी थी। उमियम लेक (जो असल में एक डैम है) देखने के बाद हम पहुंच गए डान बोस्को म्युजियम। डान बास्को एक इसाई preacher थे । उन्होंने उत्तर पुर्व के परंपरा , कला संस्कृति का गहन अध्ययन किया और बनाया एक अनूठा संग्राहालय। डॉन बॉस्को संग्रहालय में उत्तर-पूर्व संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान के दृश्य है , क्षेत्र की असंख्य जनजातियों के रूपांकनों, कलाकृतियों और चित्रणों के विशाल संग्रह है और है शिलांग के शानदार दृश्य।
अभी इतना ही। गोहाटी हम दो बार और आने वाले थे इस ट्रिप में और फिर और बताएंगे गोहाटी के बारे में। और बताएंगे किस ट्रेवल एजेंट से गाड़ी ली, होटल का क्या किया, अरूणांचल का परमिट कैसे बनाया, और भी काम की बातें। अगले ब्लॉग में मेघालय का भ्रमण गाथा।
क्रमशः