Thursday, May 11, 2023

वैशाली गणराज्य ( #यात्रा )

मैं हाल में एक पारिवारिक समारोह में भाग लेने हाजीपुर - (पटना के पास एक शहर जो वैशाली जिले का सदर मुकाम भी है) गया था। समारोह के बाद अगले दिन रात में मेरी ट्रेन पटना से थी । यानि मेरे पास एक दिन था वैशाली को explore करने के लिए । हमारा ठिकाना गाँधी सेतु जो पटना को उत्तर बिहार से जोड़ता है के पास था । हमने रात बिताने के लिए होटल खोज अभियान शरू किया और नज़दीक के चौरसिया चौक के पास स्थित होटल फन पॉइंट में दो कमरे ले लिए । यह होटल Covid के दौरान बंद ही था और सारे कमरे खाली ही पड़े थे । हमने दो सबसे बेहतर कमरे छांट लिए । हमारी रात अच्छी गुजारी । साफ़ सुथरे रूम और उजली साफ चादर । बस मज़ा आ गया ।

हमने अपनी यात्रा के लिए एक गाड़ी होटल से बुक करनी चाही पर बात नहीं बनी । हमें तो शाम तक पटना भी पहुंचना था इसलिए हमने पटना से ही गाड़ी मंगवा ली। दो बच्चे भी थे और थी उनकी अनगिनत जिज्ञासा । सब की राय हुईं की सबसे पहले हरिहर नाथ मंदिर जा कर पूजा कर ली जाये । हम सबसे पहले सोनपुर के प्रसिद्ध हरिहर नाथ मंदिर गए । इस क्षेत्र और मंदिर पर एक अलग ब्लॉग लिखने का इरादा है मेरा । पर मंदिर में काफी समय लग गया और इस कारण हमारी यात्रा बवंडर यात्रा (Whirlwind trip ) में तब्दील हो गयी । उसपर मेरे साथ जाने वाले मेरे छोटे भाई की एक ऑनलाइन मीटिंग का प्रोग्राम आ गया और हमारा घूमने का समय और भी कम हो गया । आगे वैशाली या वैशालीगढ़ की यात्रा विवरण लिख रहा हूँ ।

पहले कुछ इतिहास । आचार्य चतुरसेन के उपन्यास ने वैशाली को नगरवधु से जोड़ दिया और प्रसिद्ध भी कर दिया। हाल में एक राजनितिज्ञ ने इस बात का बेजा इस्तेमाल भी कर डाला। आम्रपाली को इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला कहा जाता है. आम्रपाली की खूबसूरती की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है। लेकिन आम्रपाली की खूबसूरती ही उसके और वैशाली के दुर्भाग्य का कारण बना ।

वियतनामी मंदिर - वैशाली बुद्ध / महावीर काल के राज्य (dharmwire.com से आभार सहित )विश्व शांति स्तूप वैशाली

वज्जि संघ और वैशाली
नाम में क्या रक्खा है पर ऐसा माना जाता है कि वैशाली के प्राचीन शहर का नाम राजा विशाल से मिला है। प्रारंभ में, इसका नाम था विशालपुरी जो बाद में बदलकर विशाली या वैशाली हो गया।वज्जिका संघ सात आठ जनजातीय राज्यों का एक संघ था जो लिच्छवियो के नेतृत्व में दुनिया से सबसे पहले प्रजातंत्र था ।संघ की राजधानी थी वैशाली । इस प्रकार, लिच्छविका, मल्लका, वैदेह, और नायिका, शाक्य आदि जनजाति वज्जिका संघ के भीतर, क्षत्रिय जनजाति थे, और उनके राजा थे सेतक ...वैशाली शहर के आसपास केंद्रित लिच्छवियों के नेतृत्व में यह गणतंत्र दुनिया का पहला प्रजातंत्र या गणतंत्र था । संघ के अन्य सदस्य मिथिला क्षेत्र में वैदेह थे, कुण्डपुर के नायिका , और वज्जी जनजाति थे, जो लिच्छविकों के आश्रित थे । कुलीन पुरुषो से मत के आधार पर राजा चुना जाता । यानि राजा का बेटा ही राजा बने ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी । मल्लका, जो दो अलग-अलग गणराज्यों में संगठित थे भी वज्जिका संघ का हिस्सा थे, हालांकि वे लिच्छवियों की निर्भर नहीं थे और इसलिए संघ के भीतर अपनी स्वतंत्रता और संप्रभु अधिकारों को बनाए रखते थे , जैन सूत्रों के अनुसार मल्लकों जो वज्जि संघ का हिस्सा थी पर वे स्वतंत्र रूप में कुशीनारा और पावा कासी-कोशल के गणतंत्र राज्य के हिस्सा भी थे । लच्छवियो और मल्लों का शासन कभी न कभी नेपाल और काठमांडू उपत्यका में भी रहा है । 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान गंगा घाटी में तीन प्रमुख शक्तियों का उदय हुआ, अर्थात् राजा बिम्बिसार के अधीन मगध साम्राज्य (हरयंका वंश), सेतक के अधीन वज्जिका संघ और प्रसेनजीत के अधीन कोशल साम्राज्य। ये सभी राजा गौतम बुद्ध और भगवान महावीर के समकालीन थे ।

आम्रपाली की कहानी
कहानी यह है की वैशाली नगर के एक गरीब दंपति को आम के पेड़ के नीचे एक नवजात बच्ची मिली। नवजात बच्ची को इस तरह से देखकर उस दंपति ने उसे उठा लिया और आम के पेड़ के नीचे पड़े होने के कारण उसका नाम रखा आम्रपाली। घर में धन अत्यधिक कमी थे फिर भी उसके माता-पिता ने उसके लालन में कोई कमी नहीं कीआम्रपाली जब तक 11-12 साल की हुई तब तक उसके रूप की चर्चा शुरू हो गई थी। आम्रपाली को देखते ही लोग उसकी खूबसूरती के दीवाने हो जाते थे। ये वो दौर था जब लोग उसकी एक झलक पाने के लिए दीवाने हो जाते थे। आम्रपाली की उम्र जैसे-जैसे बढ़ने लगी वैसे-वैसे उसके चाहने वाले बढ़ने लगे। सभीको उसका साथ चाहिए था सेठ, साहुकार, दरबारी, राजे, महाराजे सभी को। मता पिता के परेशानी का कारण बना आम्रपाली का रूप। उसका हाथ किसी एक के हाथ में देने का मतलब था औरों को नाराज़ करना, यानी गृह युद्ध। बात इतनी बढ़ी कि सभी बातों में दक्ष आम्रपाली बन गई नगर वधु। आम्रपाली ना अब शादी कर सकती थी और ना ही किसी एक व्यक्ति के साथ जिंदगी बिता सकती थी। उसे वो इंसान चुनने की इजाजत थी जिसके साथ वो संबंध बनाए, लेकिन वो किसी एक की नहीं हो सकती थी। आम्रपाली को ७ साल तक नगरवधू की पदवी रखनी थी । उसे रहने को महल और सभी अन्य सुख सुविधा दी गई । आम्रपाली एक आम नागरिक से प्यार भी करती थी जिसे राजा से मरवा डाला ।

आम्रपाली के बिम्बिसार और अजातशत्रु से सम्बन्ध
आम्रपाली की जिंदगी में प्यार दोबारा आया मगध के वयोवृद्ध राजा बिंबिसार के रूप में। बिंबिसार ने वैशाली राज्य पर हमला कर दिया और रूप बदलकर आम्रपाली के महल में शरण ले ली। बिंबिसार को आम्रपाली ने जगह दी तब उसे नहीं पता था कि वैशाली का राज्य खतरे में है। तब तक दोनों प्यार में पड़ गए थे और आम्रपाली को सच्चाई का पता चलते ही उसने बिंबिसार को युद्ध रोकने को कहा।
बिंबिसार भी आम्रपाली से प्यार कर बैठे थे कि उन्होंने युद्ध रोक दिया । आम्रपाली इसके बाद बिंबिसार के बेटे विमल कोंडाना की माँ भी बनी । कुछ समय बाद बिंबिसार को उसके बेटे अजातशत्रु के द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। बिंबिसार के मरने के बाद अजातशत्रु ने वैशाली पर फिर से आक्रमण कर दिया। जब अजातशत्रु वैशाली पहुंचा तो उसकी मुलाकात आम्रपाली से हुई। उसे देखते ही अजातशत्रु उसके प्यार में पड़ गया। आम्रपाली को भी वो पसंद आया पर उसे ये नहीं पता था कि ये बिंबिसार का बेटा है या बिंबिसार को मारने में इसका हाथ है। आम्रपाली को अजातशत्रु पसंद आ गया, लेकिन वैशाली के लोगों को ये बात पसंद नहीं आई और इस कारण उन्हें कारावास में डाल दिया गया । अजातशत्रु को यह नागबार गुजारी और उसने पूरे वैशाली में आग लगा दी। आम्रपाली को जब पता चला तो वो बहुत नाराज़ हो गईं। इसके बाद अजातशत्रु से उन्होंने नाता तोड़ लिया। अजातशत्रु ने वज्जि संघ को तहस नहस कर डाला और पूरा वज्जि संघ मगध साम्राज्य के अधीन आ गया ।

आम्रपाली का संघम शरणम् गच्छामि
इसके बाद आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षु के तरफ आकर्षित ही । लेकिन बौद्ध भिक्षु के धार्मिक ज्ञान के आगे आम्रपाली नतमस्तक हो गईं और खुद बौद्ध भिक्षुणी बनने का फैसला लिया। एक महिला का बौद्ध विहार में प्रवेश का प्रारम्भ में विरोध हुआ । आम्रपाली पहली महिला बौद्ध भिक्षुणी थीं जिनके बाद अन्य महिलाओं ने भिक्षुणी बनने का फैसला लिया और इस तरह आम्रपाली को आखिर में जाकर शांति प्राप्त हुई।

आनंद स्तूप - वैशाली अशोक स्तम्भ वैशाली

बुद्ध, सम्राट अशोक और वैशाली
भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के कुछ वर्षों बाद वैशाली पहुंचे थे। ऐसा माना जाता है कि उनके आगमन पर भारी बारिश हुई जिसने सूखे और बीमारी के शहर को साफ कर दिया। भगवान बुद्ध ने अपने सबसे उत्साही शिष्य आनंद को रतन सुत्त सुनाया और उनसे सुरक्षा और समृद्धि के लिए शहर के चारों ओर उसी का जाप करने का अनुरोध किया। इसने निश्चित रूप से वैशाली के भाग्य को बदल दिया क्योंकि 84000 लोगों ने बाद में राजाओं और राजकुमारों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। अगले कुछ वर्षों के दौरान गौतम बुद्ध इस स्थान पर बार-बार रुके, कुटगरसला विहार में, जिसके खंडहर ट्रेडमार्क अशोक स्तंभ के बगल में स्थित हैं, जिसमें सिंह शीर्ष पर है। भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश वैशाली में दिया, अपने शिष्यों को अपने आसन्न महापरिनिर्वाण और कुशीनगर (जहाँ बुद्ध ने प्राण त्यागा ) जाने की इच्छा के बारे में बताया।
मूल रूप से बुद्ध के अवशेष केवल शाक्य वंश को जाने वाली थी, जिससे बुद्ध संबंधित थे। हालांकि, छह अन्य कुलों और एक राजा ने बुद्ध की राख की मांग की। इस विवाद को सुलझाने के लिए द्रोण नाम के एक ब्राह्मण ने बुद्ध की राख को आठ भागों में बांट दिया। और भगवान बुद्ध के नश्वर अवशेषों के आठ भागों में से एक लिच्छवियों के भी प्राप्त हुआ जिसे वैशाली में स्थापित किया गया । जहां यह अवशेष स्थापित है वह एक स्तूप है जिसे आनंद स्तूप कहाँ जाता है । इस स्तूप के चारो तरफ बुद्ध के अन्य शिष्यों के स्तूप भी है । बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तीन शताब्दियों बाद सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को कई हज़ार भागों में बाँट कर पूरी दुनिया में जगह जगह स्तूप बनवाये । सम्राट अशोक ने कोल्हुआ, वैशाली में सिंह स्तंभ का निर्माण करवाया था। यह लाल बलुआ पत्थर के अत्यधिक पॉलिश किए गए एकल टुकड़े से बना है, जो 18.3 मीटर ऊंचे घंटी के आकार के शीर्ष से घिरा है। खंभे के शीर्ष पर एक शेर की आकृति रखी गई है।

और अंत में हमारी यात्रा
जैसा ऊपर मैंने लिखा हमारे पास वैशाली में बिताने के लिए बहुत कम समय था । और हमारे लिस्ट में था विश्व शांति स्तूप , नेपाल और अन्य देशो के बनाये मंदिर, महावीर जन्म स्थान, अभिषेक पुष्कर (सरोवर), आनंद स्तूप, अशोक सिंह स्तंभ । धीरे धीरे हमें सिर्फ दो स्थानों को देखने में सिमट गए । विश्व शांति स्तूप , अशोक स्तंभ जिसके पास आनंद स्तूप और अन्य स्तूप भी स्थित थे । इन सब जगहों को ढूढ़ने और देखने फोटो खींचने में ही तीन बज गए । हमारे साथ हमारे छोटे भाई थे जो एक न्यायिक अधिकारी है और उसका एक महत्वपूर्ण ऑनलाइन मीटिंग ४:३० बजे शाम से था । पहले प्लान था की यह मीटिंग वह पटना पहुँच कर करेगा क्योंकि वहीं लैपटॉप मिलने की संभावना था । पर अशोक स्तंभ देखने के बाद हमने वापस लौटना ही उचित समझा । लेकिन मर्फी का नियम बुरी तरह पीछे पर गया, हमारी गाड़ी ख़राब हो गयी । एक पेट्रोल पम्प के सामने ही । ड्राइवर बार बार बोलता रहा की गाड़ी में डीजल काफी है पर हमलोग ने डीजल ले लेने के लिए जोर दिया । उसने फिर एक बोतल में डीजल ला कर गाड़ी में डाला और गाड़ी स्टार्ट हो गयी किसी तरफ सामने पेट्रोल पम्प तक गाड़ी जा सकी और हमने डीजल भरवा लिया । हमारे पास डेढ़ घंटे थे जो पटना पहुंचने के लिए काफी थे । पर हाय री किस्मत अभी १०-१२ किलोमीटर गए हे थे की एक एक्सीडेंट जिसमे एक आदमी के मौत भी हो गयी थे और लोगों ने रोड ब्लॉक कर दिया । किसी तरह गाड़ी पीछे घूमा कर हम एक गांव के रोड पर गाड़ी डाल दी । गूगल ने हमें एक रेल लाइन तक ले गयी । उसके बाद खेतों के बीच से रास्ता था जो एक रेलवे लेवल क्रासिंग तक लेजाता था । हम पीछे लौट कर दूसरे रास्ते से उसी क्रासिंग तक गए उसके बाद भी कई जगह सिंगल रास्ते पर सामने से आने वाली गाड़ी और कभी कभी बस और ट्रक भी, मुश्किल पैदा कर रही थी और समय बीतता जा रहा था । खैर करीब घंटे भर बाद हम मैं रोड पर आ ही गए और क्योंकि रोड जाम था हमारे लेन में गाड़िया नहीं थी । ड्राइवर अब तेजी से गाड़ी भगा रहा था । खैर ४:३० बजते बजते हम हाजीपुर में अपने छोटी बहन के घर पहुँच ही गए और मेरे भाई ने मोबाइल पर ही ऑनलाइन मीटिंग कर लेना ठीक समझा । हम उसके बाद पटना जंक्शन के लिए निकल दिए और ट्रैन से अगले दिन रांची पहुँच गया ।

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