हरिहरनाथ मन्दिर, गन्डक गन्गा सन्गम | गज ग्राह मुर्ति चौराहा , सोनपुर |
हमारा हरिहरनाथ मंदिर का रुट
हरिहरनाथ मंदिर यात्रा और दर्शन
पिछले ब्लॉग में मैंने वैशाली यात्रा के बारे में लिखा था और कहा था की हमने अपनी यात्रा सोनपुर के हरिहर नाथ मंदिर से प्रारम्भ की थी । मैं आज का ब्लॉग उसी मंदिर और हरिहर क्षेत्र के बारे में लिखूंगा । जैसा मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था मैं हाजीपर में था एक पारिवारिक कार्यक्रम में । हमारे पास एक दिन था और हमने वैशाली घूम लेने का फैसला लिया । एक और फैसला लिया गया की हम सुबह सिर्फ चाय पी कर चलेंगे .. सबसे पहले प्रसिद्द हरिहरनाथ मंदिर , वह पूजा करेंगे नाश्ता करेंगे और फिर निकल चलेंगे वैशाली के भग्नावशेष देखने ।
हम लोग चौरसिया चौक के पास कन्हेरी घाट रोड की तरफ से मुड़ गए और गूगल मैप के सहारे चल पड़े । रास्ते में एक संकरा पुल पड़ा जो गंडक नदी के उपर था । इतना संकरा की दो गाड़िया मुश्किल से ही निकले । दोनों तरफ साइकिल और मोटर साइकिल के लिए भी पुल बने थे पर सभी साइकिल वाले बीच से ही चलते । हम लोग गाड़ी के अंदर ये बाते कर ही रहे थे की एक मोटर साइकिल वाले ने इशारा किया की हमे दूसरी नए पुल से से क्यों नहीं गए । हम पर तुम , तुम पर खुदा वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी । जैसे ही पुल पार हुआ वो चौक आ गया जहाँ गज ग्राह की खूबसरत सी प्रतिमा लगी थी । हमने गाड़ी रुकवाई और एक दो फोटो खींच लिए । वहां से हरिहरनाथ मंदिर नज़दीक ही था । हम लोग गंडक के किनारे किनारे बढ़े ही जा रहे की पता चला मंदिर था गेट और रास्ता पीछे ही रह गया । हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ा । छोटा सा बाजार था । मिठाईयों की दुकान , पूजा से सामानों की दूकान , खिलोने वैगेरह की दूकान थी , एक मिनी देवघर।
हम लोग एक दूकान पर रुक कर पूजा की डलिया, फूल, नारियल, सिंदूर, धुप बत्ती ले रहे थे और दुकानदार जोर दे रहा था माता की चुनरी भी ले ले । तभी एक पंडा जी पधारे और हमने बासुकीनाथ के अनुभव के अनुसार पंडा को हाँ कर दिए । पंडा जी ने कुछ मंत्र पढ़े और साल भर के कुछ पूजा के नाम से कुछ ११००/- की मांग के खैर हमने कुछ मोल भाव कर उसे दान दक्षिणा दिया और मंदिर को और चल दिए, सोचा था दक्षिणा पहले ही ले लिए अंदर की पूजा भी करा ही देंगे , पर पंडा जी साथ नहीं आये । यानि अंदर दूसरे पंडा जी होंगे । खैर , जब आ ही गए थे तो जो भी बाधा हो पूजा तो करनी ही थी । मुझे वे पुजारी एकदम पसंद नहीं जो जजमान को लूट ही लेना चाहते है । बासुकीनाथ में मिले पंडा जी याद आ गए , जिनके व्यव्हार से खुश हो कर के मांगे दक्षिणा से कुछ ज्यादा ही दे दिया और उनसे मोबाइल नम्बर का आदान प्रदान भी कर लिया ।
जैसे ही मंदिर के अंदर गया एक पंडा ने बताया की चुनरी एक ग्रिल में बांधना जरूरी है । अब उस पंडा जी ने बताया की वो एक पाव घी का दिया रोज जलाएंगे हमारे तरफ से उसके लिए ५००१ रूपये देने होंगे । खैर मैंने उन्हें ५०० रूपये दिए । और गर्भ गृह में चले गए । यहाँ विष्णु की काले पत्थर की प्रतिमा और शिव लिंग दोनों ही स्थापित थे । पंडा जी द्वारा सालाना पूजा की बातें यहाँ भी हुईं पर हम कुछ दे दिला कर मंदिर से बाहर आ गए । बाहर एक और मंदिर से एक पंडा जी बुलाने लगे सिंदूर वैगेरह चढाने । हमने कुछ फोटोग्राफी की और मंदिर के बाहर आ गया ।
हम वहां से चल पड़े वैशाली की और । रास्ते में एक नाश्ते के दूकान के पास गाड़ी पार्क करने की जगह मिल गाई और हमने वहां गाढ़ी लस्सी और छोले भठूरे नाश्ता करके आगे बढ़ गया । भठूरे के साथ छोले देने में दुकानदार कंजूसी कर रहा था । नाश्ते के बाद हम आगे बढ़ गए और वैशाली पर ब्लॉग मै पहले ही लिख चुका हूँ ।
हरि और हर सरजू जी में जल क्रीड़ा करने गए और सरजू -शारदा-घाघरा- गंगा होते हुए गंडक (नारायणी) - गंगा संगम तक पहुंचे। लाल तीर को देखे |
हरिहर नाथ का इतिहास
हरिहर क्षेत्र के महत्व को लेकर ग्रंथों में भगवान विष्णु व भगवान शिव के जल क्रीड़ा का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार महर्षि गौतम के आश्रम में वाणासुर अपने कुल गुरु शुक्राचार्य, भक्त शिरोमणि प्रह्लाद एवं दैत्य राज वृषपर्वा के साथ पहुंचे और सामान्य अतिथि के रूप में रहने लगे।
वृषपर्वा भगवान शंकर के पुजारी थे। एक दिन प्रात: काल में वृषपर्वा भगवान शंकर की पूजा कर रहे थे। इसी बीच गौतम मुनि के प्रिय शिष्य शंकरात्मा वृषपर्वा और भगवान शंकर की मूर्ति के बीच खड़े हो गये। और इससे वृषपर्वा क्रोधित हो गये। और उन्होंने तलवार से वार कर शंकरात्मा का सिर धर से अलग कर दिया। जब महर्षि गौतम को इसकी सूचना मिली वे अपने आपको संभाल नहीं सके और योग बल से अपना शरीर त्याग दिये। अतिथियों ने भी इस घटना को एक कलंक समझा। इस घटना से दुखित शुक्राचार्य ने भी अपना शरीर त्याग दिया। देखते-देखते महर्षि गौतम के आश्रम में शिव भक्तों के शव की ढे़र लग गयी। गौतम पत्नी अहिल्या विलाप कर भगवान शिव को पुकारने लगी। अहिल्या की पुकार पर भगवान शिव आश्रम में पहुंच गये। भगवान शंकर ने अपनी कृपा से महर्षि गौतम व अन्य सभी लोगों को जीवित कर दिया। सभी लोग भगवान शिव की अराधना करने लगे। इसी बीच आश्रम में मौजूद भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की अराधना किये। भक्त की अराधना सुन भगवान विष्णु भी आश्रम में पहुंच गये। भगवान विष्णु और शिव को आश्रम में देख अहिल्या ने उन्हे अतिथ्य को स्वीकार कर प्रसाद ग्रहण करने की बात कही। यह कहकर अहिल्या प्रभु के लिए भोजन बनाने चलीं गयीं। भोजन में विलम्ब देख भगवान शिव व भगवान विष्णु सरयू नदी में स्नान करने गये सरयू नदी में जल क्रीड़ा करते हुए भगवान शिव और भगवान विष्णु नारायणी नदी(गंडक) में पहुंच गये। प्रभु की इस लीला के मनोहर दृश्य को देख ब्रह्मा भी वहां पहुंच गये और देखते-देखते अन्य देवता भी नारायणी नदी के तट पर पहुंचे। जल क्रीड़ा के दौरान ही भगवान शिव ने कहा कि भगवान विष्णु मुझे पार्वती से भी प्रिय हैं। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित होकर वहां पहुंची। बाद में भगवान शिव ने अपनी बातों से माता के क्रोध को शांत किया। ग्रंथ के अनुसार यही कारण है कि नारायणी नदी के तट पर भगवान विष्णु व शिव के साथ-साथ माता पार्वती भी स्थापित है जिनकी पूजा अर्चना वहां की जाती है। इसी कारण सोनपुर का पूरा इलाका हरिहर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यहां भगवान विष्णु व शिव ने जलक्रीड़ा किया इसलिए यह क्षेत्र हरिहर क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
इसीलिए यह इलाका शैव व वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसी हरिहर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा से एक माह का मेला लगता है। पहले तो यह पशु मेला के रूप में विश्वविख्यात था। लेकिन अब इसे और आकर्षक बनाया गया है।
अशोक धाम
जब लक्खीसराय के पास बड़ा सा शिवलिंग मिला और खोजने वाले के नाम पर इस धाम का नाम रक्खा गया अशोक धाम । उस समय ये बातें अख़बार में आ रही थी की यही जगह असली हरिहर क्षेत्र है । ऐसा इसलिए कि यहाँ एक नदी बहती है जिसका नाम है हरोहर जो यहीं गंगा जी में मिल जाती है । मेरा एक ब्लॉग अशोक धाम पर है । क्लिक करे और पढ़े ।
गज ग्राह की कहानी तो आपको पता ही होगा । जब गज की पुकार पर हरि दौड़े आये ग्राह यानि मगरमच्छ से गज की जान बचाई । पुराणों के अनुसार, श्री विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी ( गज ) व मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई वर्षों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया। जिन्होंने प्रकट हो कर मगरमच्छ से गज को बचाया ।
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