मेरे पहले नेपाल प्रवास में दो तरह की रोचक घटनांए हुई। पहली प्रकार की घटना मेरे छोटे और बहुत छोटे साले सालियों के साथ बिताया वक्त था। मेरा उनसे वास्तविक परिचय वहाँ पहुचने के दूसरे सुबह से ही प्रारम्भ हो गया। जब मेरे साले सालियों की फौज आ पहुंची। बड़े मामा स्व जस्टिस कृष्ण कुमार वर्मा की उस समय तीन संताने थी बबली, मिन्टू और गुड्डी। सबसे छोटी सुदीपा का जन्म काफी बाद में हुआ । गुड्डी तब एक साल की थी। मामी ने उसे मेरे गोद में डालते हुए कहा था। "मेहमान (ज्वाई, या दामाद) ये है आपकी सबसे छोटी साली। यहां बर्णित कुछ घटनाए,मेरे बाद की नेपाल यात्रांओ की भी है।
बुढ़ी माई के साथ | बुवा के साथ |
मिन्टू जो अब एक संजीदा ईन्सान है सबसे छोटा था और हाथ पैर बहुत चलाता था। उसका खेल हाथ पैर चलाना धक्कम धुक्का करना ही था। हाथ भी कड़े कड़े थे,यह तब पता जब उसने खेल खेल में मुझे एक मुक्का जड़ दिया था। बबली का ससुराल तो अब मेरे ही शहर राँची में है और वह अपने पति संग मेरा Solid Support System है। उसके बचपन की मासुमियत में एक बार मैने उसे रुला ही दिया था। हम लोग जब काठमाण्डु से पटना हो कर लौट रहा था तब बबली हमें वापस जाने से मना कर रही थी। पत्नी जी ने कहा सासू जी की सेवा के लिए जाना जरूरी है। उसने बालपन की जिद में कहा उसे भी सासू जी (मेरी माँ) की सेवा के लिए जाना है। मना करने पर जीजा जी मेरी बात नहीं मान रहे है कह कर रूठ गई और रोने भी लगी। उसे तत्काल शांत करने के लिए मैंने कह दिया ठीक है तुम भी हम लोग के साथ चलना Indian Airlines का एक पुराना Booklet टिकट भी दिखा कर बोला यह तुम्हारा टिकट है। जब हम लोग टैक्सी में बैठने लगे तब बबली मायूस हो गई शायद लोगों ने उसे समझा बुझा कर मना लिया था। छोटे मामा बिजय मामा के बारे में पत्नी जी ने कई बाते बताई थी। कैसे एक छोटी बिमारी (टेटनस) के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। मामी ने अपने आप को और नवीन को अकेले संभाला था। वो एक बैंक में कार्यरत थी। नवीन अब एक Witty लॉ प्रोफेशनल है तब एक शांत बच्चा था। बच्चे जो भी ग्रुप में करते वह उसमें भाग अवश्य लेता था। सबसे छोटी मौसी (सास), ईन्दु मौसी,और मौसा तब काठमाण्डु में ही रहते थे। मौसा तब भारतीय बीमा निगम के काठमाण्डु कार्यालय में कार्यरत थे। वे लोग एक किराये के मकान में गैरीधीरा चौक के पास रहते थे। सुबह ही मेरे तीनों मौसेरे साले सालियाँ (बबलू, रूपा मुन्ना) आ जाते। सबसे छोटी डिम्पी का जन्म बहुत बाद का है। इस तरह सुबह ही 6 छोटे साले सालियों से मै घिर जाता और तब तक उनके मनोरंजन का प्रयास करता या उनकी कहानियाँ या गप सुनता जब तक खाने का समय न हो जाता। पुनः शाम से रात तक बैठक जमती ।
मेरी पत्नी बहन भाईयों में सबसे बड़ी हैं। बिमल तो चेन्नई में मेडिकल पढ़ रहे थे, उनसे पिछली मुलाकात जमुई में ही हुई थी। उनसे छोटे किशोर ने कॉलेज जाना शुरु किया था, उससे कुछ बातें होती जिसमें मेरा भी कुछ interest होता था। एक पुराना रिकार्ड चेन्जर घर में था जिसके मरम्मत की बात हम लोग करते। उसे भरोसा था की जीजाजी तो इंजीनियर है अवश्य ठीक कर देंगे । पूरी तरह मरम्मत तो नहीं कर पाए पर रिकार्ड बजाने लायक हो गया था। नेपाली लोक संगीत के रिकार्ड में मेरी अभिरुचि इसी रिकॉर्ड changer में बजे रिकॉर्ड से जगी थी । कुमार बस्नेत, अरूणा लामा और नारायण गोपाल के नेपाली रिकॉर्ड हर बार मै बोकारो ले जाने लगा था। कई पुराने अंग्रेजी गानों का रिकार्ड भी हमने बाद में कबाड़ में से खोज निकाला था। बुवा (नाना जी) को फोटोग्राफी में काफी रुचि थी और फोटो की डेवलपिंग प्रिन्टिंग घर पर ही कर लेते थे। श्वेत श्याम फोटो को रंग कर रंगीन फोटो भी बना देते। फोटो रंगने की यह कला किशोर ने भी सीख ली थी । विशेष रंग वाले पेपर ब्रश किशोर के पास था और मैने उससे यह कला न सिर्फ सीखी अपितु रंगो की बुकलेट और ब्रश भी उससे ले लिया।
अनिल जो अब नेपाल उच्चतम न्यायलय में जज हैं उस समय स्कूल जाते थे। तब आसपास घूमने में वही मेरे साथी थे। लैनचौर में डेरी था। वहाँ चीज़ (Cheeze) लाने जाते थे जो मेरे नन्हें दोस्तों की फरमाइश होती थी। चीज़ और दुर्खा (Yak Cheese) की महक और स्वाद मुझे बिल्कुल पसंद न था पर खाना पड़ता था। न्यु रोड अक्सर पैदल और कभी कभी रिक्शा से चले जाते थे। एक बार पेयर फोटो खिचाने एक बार रंजना में फिल्म देखने और एक बार जुजु भाई टेलर मास्टर के यहाँ सूट का नाप देने न्यू रोड गए थे। बाबुजी के साथ उनका शुक्र पथ स्थित आफिस भी गए थेा। अनिल के साथ भी कई बार न्यू रोड गए थे शायद गुदपाक (मिल्क केक के जैसा नेपाली मिठाई) लाने। मुझे,याद है एक बार अनिल के कुछ साथी दूर से आते दिखे तो अनिल ने मुझे हिदायत दी जीजा जी आप सिर्फ अंग्रेजी में बोलिएगा। थोड़ी नेपाली हर ट्रिप में सीख रहा था। एक बार मैने अपनी नेपाली टेस्ट करने के लिए एक दुकान में जाने से पहले यह शर्त रखी की मै ही नेपाली में बोलूंगा। मैने दुकान वाले से कहा "दाई, डॉट पेन छ ?" यनि भइया डॉट पेन है ? दुकान दार नेवार था जिसका नेपाली उच्चारण समझने में कठिनाई होती है। उसने कहा "राटो माट्रे छ"। मैं तो फ्यूज हो गया और बात बिलकुल नहीं समझ सका और बिना ख़रीदे ही लौट गया। बाद में पता चला वह कह रहा था "रातो मात्रे छ"। यानी सिर्फ़ लाल है। सबको हँसने के लिए यह वाकिया काफ़ी था। और यह एक मजा़क की बात हो गई।
अनिल से छोटा गुड्डू बाकि सभी बहन भाईयों से बड़ा था और उनका लीडर भी। इन बच्चो के लिए तब मै एकलौता जीजाजी था । एक दोस्त या मनोरजंन का साधन।उन्हें मेरे साथ खेलना था और मुझे उनके लिए छोटे गिफ्ट जैसे पुष्टकारी (नेपाली होम मेड चॉकलेट), तितौरा (एक खट्टे स्वादवाला चीज़) दुर्खा (याक चीज़) या और कुछ लाना पड़ता था। मै भी अपने नन्हें दोस्तो के साथ समय बिताना पसंद करता था।
काठमांडू में हमारा रूम | मेरी पत्नी अपने दोस्तों के साथ |
बिहार में तब कम उम्र में शादी हो जाती थी। मेरी शादी तो दो साल नौकरी करने के बाद हुई थी पर मेरे सहपाठियों मे कइयों की शादी कॉलेज के दिनों में ही हो गई थी और उनके बच्चे भी थे। साले सालियों के संग चुहल बाज़ी की कहानियाँ इन दोस्तों से सुन चुका था। मेरा अनुभव एक दम अलग था। मेरे साले सालियों में से कुछ एक से बड़े तो मेरे इन सहपाठियों के बच्चे थे।
कई मन्दिरों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पशुपति नाथ तो गए ही,शोभा भगवती, श्यम्भु (स्तूप) भी घूम आए। बालाज्यू 22 धारा उद्यान सभी लोग गए। बहुत सारी रोहू कतला मछलियाँ यहाँ छोटे छोटे कृत्रिम तलाबों में रखे गए थे। पत्नी जी ने एक कहानी तुरंत फुरंत सुना दी। कभी एक पहचान का एक माड़वाड़ी परिवार काठमाण्डू घूमने आया था। एक बुजुर्ग महिला ने अपनी बहू को मछली दिखाते हुए कहा था देखो कीड़े कैसे कुलबुला रहे है। अब चूंकि हम लोग मछलियाँ खाते है यह टिप्पणी लोगों को दुखी कर गई।
एक दिन मै गुड्डू के साथ टहलने निकला रास्ते में फुटपाथ पर ही लोग कुछ कुछ छोटे मोटे सामान जैसे भटमास, मूगंफली, विदेशी पेन वैगेरह बेच रहे थे। एक जगह 555, Marcopolo और दूसरे विदेशी सिगरेट बिक रहे थे। मैैने ट्राई करने के लिए एक 555 सिगरेट ले कर सुलगा ली। अब तो गुड्डू बाबू फायर हो गये। चलिए बाबुजी से पिटाई लगवाते है कि धमकी पूरे रास्ते देते आए। घर पहुंच कर हंगमा भी कर दिए कि जीजाजी चुरुट खा कर आए है। एक बार गुड्डू बाबू ने जीजा जी को चाय पिलाने का सोची और बड़े मनोयोग से चाय बनाई जिसमें चाय से ज्यादा ईलायची अदरख वैगेरह थे। चाय तीखी गले में लगने वाली बन गई फिर भी मैने उसका दिल नहीं तोड़ा और कहा अच्छी बनी है। पता चला नेपाली में यहाँ पर "चिया राम्रो छ" के बजाय "चिया मिठो छ" ज्यादा appropriate है। मिठो यानि स्वादिष्ट। राम्रै माने सुन्दर। कई ऐसी घटनाए, मजेदार बातें हुई। जैसा मुझे भिनाज्यू पुकारना। भिनाज्यू माने सेव का बीज वाला बेकार हिस्सा।
कई रिश्तेदार और जान पहचान वाले भी मिलने आए। कईयों के यहाँ मिलने भी गए। लक्ष्मी मामू (गाँव के रिश्ते से) से मिलना याद है। वे आँखों के डाक्टर थे। वे पैलेश के भी डाक्टर थे। उनके परिवार से बहुत ही नजदीक का रिश्ता था और अभी भी है। जितने भी लोग तराई से थे उन सबसे सिन्हा परिवार को प्राय: पहचान थी। एक और विशेष व्यक्ति से भी मिले लाला भैय्या से। अब ने नहीं है पर उनका परिवार सिन्हा परिवार से काफी करीब है। घर के हर प्रयोजन में बुजुर्ग भाभी का होना आवश्यक है। उनके सुपुत्र जयन्त और हेमन्त और परिवार से अन्य सदस्यो से अक्सर अब भी भेंट हो जाती है। लाला भैय्या का घर शायद कोई पुराना दरबार का एक हिस्सा था। उनके पिताजी कभी राणा के सलाहकार थे। रहन सहन राजसी था, उनके बात करने के लहजे और खातिर दारी से भी मै प्रभावित था।
पत्नी जी ने बताया की उनकी सहेलियाँ मिलने आएंगी, मै तो उत्सुक था अब किसी हम उम्र साली जी से मुलाकात होगी। सरिता इनकी सबसे करीब सहपाठी थी और प्रमिला पड़ोस में ही रहती थी। सरिता एक राणा राज परिवार से है और पत्नी जी की सहपाठी थी। खैर जब वे आई भाषा बीच में आ गई, मै नेपाली में सिफर, और व हिन्दी में नासमझ। इन सहेलियों से अब भी मिलता हूँ पर आपस में बातचीत Hi, bye में ही सिमट कर रह जाती है। रजंना में सिनेमा देखने हम दोनों के साथ सरिता भी गयीं थी। ससुराल वाले हमें हर जगह घुमा देना चाहते थे। इसी कड़ी में एक पिकनिक का प्रोग्राम बना। गोकर्ण एक रमणीय जगह थी। राज परिवार के आखेट की जगह। वहीं पिकनिक पर जाना था। हम दोनों, पूरे परिवार और सरिता के साथ पिकनिक जाने वाले थे।
लैंड रोवर | हम दोनों |
हम दोनों और सरिता | पिकनिक का ग्रुप फोटो |
बुवा की एक लैंड रोवर गाड़ी थी। उसे गेराज से निकला गया। चेक करने के बाद पानी पेट्रोल डाला गया। स्टार्ट करने के लिए धक्के की ज़रूरत पड़ी। पर फिर पूरे रास्ते ठीक ही चली। गाड़ी इतनी बड़ी थी की पूरा परिवार ठीक ठाक आ गए। मुझे जमुई की पुरानी बात याद आ गयी। शायद 1967 की जब हम लोग अपने परिवार की पहली कार 1949 ऑस्टिन A-40 से बेगुसराय किसी शादी में जा रहे थे। बच्चे बड़े मिला कर 11-12 लोग आ गए थे उस छोटी गाड़ी में। गाड़ी शायद यह अत्याचार सह न सका। फिर जो हुआ वह किसी और कहानी का विषय है। पिकनिक स्पॉट करीब 10 की. मि. दूर था। मुझे पहले ही बता दिया गया था कि देखते रहिएगा। बहुत सारे हिरण दिखेंगे। सच में बहुत सारे थे। शाम को लौटते समय ज़्यादा नज़दीक आ रहे थे। आँखे भी तब हेडलाइट में चमक रही थी। अब इस जगह पर रिसोर्ट और गोल्फ कोर्स बन गया है।
जब तक खाना बन रहा था हम लोग इधर उधर घूम रहे थे। मनोरम जगह थी। खैर थोड़ी देर लगी पर खाना तैय्यार हो गया। भूख सभी को लग रही थी। बच्चे जाहिर भी कर रहे थे। पर मैं तो दामाद था कैसे कहता भूख लगी जल्दी करो। लोगों ने भोजन तैय्यार होने पर लोगों ने ढ़ेर सारा खिला भी डाला। याद नहीं पर शायद कोई गेम खेले। शाम की चाय बिस्कुट के बाद हम लौट आये। सरिता और हम, पत्नी जी को दुभाषिया बना कर थोड़ी बहुत बात कर पाए। मैने realize किया कि हम एक दूसरे की बातें समझ पा रहे थे पर दूसरे की भाषा के अल्प ज्ञान के complex के चलते बात करने में झिझक रहे थे ।
दो तीन फ़िल्में हमने काठमांडू में देखी है। रंजना में शायद हिन्दी फ़िल्म ही देखी थी। नेपाली फ़िल्म्स कम ही आते थे। माला सिन्हा (हिंदी फ़िल्म अभनेत्री) अभिनीत "माईती घर" और उदित नारायण झा (अब हिन्दी फ़िल्म के प्रसिद्ध गायक) अभिनीत "कुसुमे रुमाल" दो नेपाली फ़िल्म्स मैंने वहाँ देखी है। एक और सिनेमा हाल विश्वज्योति में फ़िल्म देखेने गए । पुराना हॉल था। कभी पत्नी जी इन्दु मौसी के साथ इस हॉल में फिल्म देखने गई थी जब सीलिंग फैन का पत्नी जी के बगल के खाली सीट पर गिर गया था। पूरे समय मेरा ध्यान पंखे पर ही लगा रहा ।
नेपाली गाना सुनने में एक त्यौहार सा फील होता है। पता चला नेपाल में मुख्य त्योहारों के साथ इंद्रा जात्रा, मछेन्द्र नाथ यात्रा वैगेरह होता है। दोहर गीतों में लड़को के ग्रुप और लड़कियों के ग्रुप के बीच छेड़ छाड़ चलती है। अब यु-टयुब पर देखने पर पता चला यह नृत्य बहुत ग्रेस के साथ होता है। पहाड़ की संस्कृति मुझे पहले से ही काफ़ी अच्छी लगती थी। शादी के बाद और अधिक अच्छी लगने लगी थी। तीज में काठमांडू लाल रंग से रंग जाता है। सभी औरते लाल साड़ी और हरे पोते (मोती की माला) में सजती हैं। दशैं (दाशहरा) में बड़ों से छोटें आशीर्वाद लेने आते है और बड़ें आशीष (टीका) के साथ पैसे भी देते है, सबसे मजेदार नेपाली प्रथा तिहार (दिवाली) में देखने को मिलता है। भैलो और देउसी जिसे नेपाल के अलावा दार्जिलिंग, सिक्किम, असम और भारत के कुछ हिस्सों में तिहार (दीवाली) के दौरान गाया जाता है। बच्चे और किशोर इन गीतों को गाते हैं और नृत्य करते हैं क्योंकि वे अपने समुदाय के विभिन्न घरों में जाते हैं, धन इकट्ठा करते हैं, मिठाइयाँ खाते हैं और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देते हैं। भैलो को आमतौर पर लड़कियों गाती है, जबकि देउसी को लड़कों द्वारा गाया जाता है। गाय पूजा तो हिंदुस्तान में भी करते है पर यहाँ कौआ और कुकुर (कुत्ता) पूजा भी होती है।
अब बस करता हूँ । फिर मिलेंगे ! फेरी भेटाउला ।
Mazedaar
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