Showing posts with label बारात. Show all posts
Showing posts with label बारात. Show all posts

Thursday, May 19, 2022

बेबी को बेस पसंद है


बेबी को बेस पसंद है" या "डी जे वाले बाबु मेरा गाना चला दो" मजेदार गाने है और हिंदुस्तान में हर अवसर पर फिल्मी गाने सुनने का रिवाज है या फिर ढ़ोल की धाप। आप पूछेगें "कहना क्या चाहते हो" तो कुछ कहानियाँ सुनाता हूँ।

हमारे जमाने में कोई शुभ अवसर हुआ नहीं कि ढ़ोल वाले पहुंच ही जाते थे। बड़े बड़े मोर पंख लगे ढ़ोल बजाते और ढ़ोल घुमा घुमा कर नाचते। एक खूबसूरत सा समा बंध जाता। बिहार, झारखंड या बंगाल के दुर्गा पूजा पंडाल में ढोल की थाप पर होने वाले आरती नृत्य तो बहुतों ने देखा होगा प्रत्यक्ष या फिल्मो में । दुर्गा पूजा पंडालों मे तो ऐसी आरती की प्रतियोगिता भी होती है। पर यह सब मै क्यो बता रहा हूँ ? लोक कला का ही रूप था बच्चे का जन्म हो या अन्य अवसर पमरिया के ढ़ोलक तो बजते ही थे। इन अवसरों पर होने वाला यह शोर सभी लोग पसंद करते थे क्योंकि तब लाउड स्पीकर्स या तो नहीं थे या इतने पावरफुल नहीं होते थे और सिर्फ छतों मुड़ेरो पर बाधें जाते थे कान के इतने करीब नहीं ।

आइए हम चलते है 2005 जब मै हिसार में था। मेरे एक जूनियर साथी के पहले बच्चे का पहला जन्मदिन था। मुझे भी बुलाया था और पार्टी एक बैक्येट हॉल में था। करीब 75 लोग थे पार्टी में और डी०जे० का भी इंतजाम था। केक कटने के तुरंत बाद लोगो ने डी०जे० से नृत्य संगीत बजाने फरमाईश कर दी। हम स्टेज से थोड़ी दूर बैठे थे लेकिन फुल वोल्युम संगीत से बहरे गूंगे से हो गए। जिस बच्चे के जन्मदिन पर हम जुटे थे वह लगातार रोता जा रहा था हमें पता था उसके रोने का कारण तेज शोर ही था पर उसके माता पिता उसे खिलौनो से बहलाने की बेकार कोशिश कर रहे थे। खैर खैर डिनर सर्व होने लगा और हम खा कर वापस घर पाए।
हाल में मैं एक रिश्तेदार के बिटिया की शादी में गया था । सब ठीक ठाक ही चल रहा था । शादी हो गयी थी और रिसेप्शन की पार्टी चल रही थी । म्यूजिक भी धीरे चाल रहा था इतना की सभी मेहमान आपस में बात कर सके । फिर अचानक किसी ने DJ को वॉल्यूम बढ़ने को कहा क्योंकि डांस फ्लोर पर दूल्हा दुल्हन को लाया जा रहा था । बस फिर क्या था आपस में बातें बंद हो गयी और सब खाने में जुट गए । खाने के काउंटर वाले से ठीक से पूछना भी मुश्किल था । मैं रांची में जहां रहता हूँ वह पास ही दो बैंक्वेट हॉल हैं । शादी के मौसम हो या कोई राजनितिक आयोजनों का काल हो या पर्व त्योहार कोई न कोई आयोजन रोज ही होते है। हमें रोज़ ही तेज़ म्यूजिक, बैंड बजा, आतिशबाजी को देर रात तक झेलना पड़ता हैं । एक सीनियर सिटिज़न के लिए यह सब कितना मुश्किल होता हैं जब वे ढंग से सो भी नहीं पाते । इस तरह के बैक्वेट हाल रिहाईशी ईलाकों में होने नहीं चाहिए, या फिर शोर कम करने का कोई नियम होना चाहिए और पालन भी किया जाना चाहिए। जब जर्मनी में एक एपार्टमेंट मे था तो बगल वाले पड़ोसी के मेरे रेडियो बजाने पर भी आपत्ती थी। शोर पैदा करने वाले रिपेयर भी सिर्फ शनिवार,रविवार को ही allowed था।


मुझे ऐसा लगता है कि हम लोग सिर्फ शोर ही नहीं करते है, हम लोगों को दूसरे को परेशान करने का या यह दिखाने कि हम किसीकी परवाह नहीं करते है का additional kick भी मिलता है। बारात यदि आपके कार के आगे आगे चली जा रही है तो आपको निकलने की जगह नहीं देगें। यू,तो हम खुद ही कहते रहते है पब्लिक रोड पर ये न करो वो न करो encroach न करो, गंदगी न फैलाओ, लेन में चलों इत्यादी, पर खुद पर आती है तो बारात के आगे घंटो नागिन डांस कर रोड ब्लॉक कर देते है। लोग भी आदी हो गए है, इतने कि जब कभी कोई बारात आपको निकलने की जगह दे देता है तो आप कितने आभारी महसूस करते हैं जबकी यह आपका हक है। सोच के देखिए अनेकों ऐसी घटनाएँ आपको भी याद आएगी। फिर भी भरोसा है कि कभी तो तो लोग दूसरों को होने वाली असुविधा को समझेंगे। देखूं कब तक शोर इतना कम होगी कि इसे pollution नहीं माना जाएगा, कभी होगा क्या ? पर तब तक क्या करे ? बेबी को बेस पसंद है और वह DJ वाले बाबू को अपना गाना चलाने को कह जो रही है ।

बस प्रतिक्षा किजिए।