सबने या काफी लोगों ने वो सात दिन फिल्म देखी होगी, एक सुन्दर सुखान्त फिल्म थी। पर मेरे लिए वो आठ दिन एक कैद जैसी थी। मैंने वो आठ दिन बिताये थे अस्पताल के क्रिटिकल केयर यूनिट या CCU में। ICU और CCU अस्पताल का कैदखाना होता है। आप न कही जा सकते है न आपके चाहने वाले आपके पास रुक सकते है। सिर्फ दो या तीन लोग 24 घंटे में सिर्फ दो बार आधे घंटे के लिए बारी बारी से मिल सकते है यानि एक के साथ सिर्फ दस मिनट। उसमें भी आप अपने कम उम्र नाती-पोता-पोती से भी नहीं मिल पाते चाहे उनमे आपका प्राण बसता हों। और वही तो चिंता होती है, CCU में रखा है, प्राण बचे न बचे। प्राण बचे तो ठीक यदि नहीं बचे तो ? सबको बिना देखे और बिना मिले निकल लेना पड़ेगा। प्राण जाने और वैराग्य का अनुभव भी कही लिखूंगा। अभी अपने आठ दिनों के कारावास पर ही कुछ लिखूंगा।
ऐसे जब जो भी शुभचिंतक मेरा ब्लॉग पढ़ेंगे उनको यह बता दू, यह घटना दो महीने पुरानी है और अब मैं स्वस्थ्य हूं, चिंता की कोई बात बिल्कुल नहीं है।

एक ICU का दृश्य, विकीपीडिया के सौजन्य से
अच्छा भला चला था काठमांडू से दिल्ली के लिए। पर दिल्ली एयरपोर्ट चलने में थकान हो रही थी। पेट में गैस की शिकायत तो काफी दिनों से थी ही। दिल्ली में मैं पहले एक पेट के डाक्टर के पास गया, ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड में कुछ खास पता नहीं चलने पर नजदीक के अस्पताल में भर्ती हो गया। वहां ICU में में ले गए। आक्सीजन और ड्रिप से मैं शाम तक लगभग ठीक हो गया। मेरा माथा तब ठनका जब घर ले जाने के वजाय हमें ambulance में सुला कर आक्सीजन लगा ले जाने लगे। तब मुझे पता चला कि मैं बड़े अस्पताल Max Vaishali ले जाया जा रहा हूं और दिल की कुछ बीमारी है मुझे। इमरजेंसी में admit कर दिया इतना भी समय नहीं दिया कि मैं अपने पत्नी या बिटिया को बता सकूं कि मेरा insurance में दिल की बीमारी excluded है और मेरा आयुष्मान कार्ड के हिसाब से, एप्रुव्ड अस्पताल ही ले जाना था। बाद में जब बताया तो Max वालों आयुष्मान कार्ड से ईलाज करने से मना कर दिया जबकि बाद में देखा pmjay अस्पताल के लिस्ट में था उनका नाम।
CCU में मुझे अजीब अजीब अनुभव हुआ। तीन shift में चलता है अस्पताल का काम पर विशेष यह है कि मौर्निंग और इवनिंग सिफ्ट 6 घंटे का होता है रात का सिफ्ट 12 घंटे का। सभी को महीने में 10 रोज रात्रि की पाली करनी ही पड़ती है। रात में मुख्य डाक्टर भी नहीं होते और सिस्टर लोगों के उपर ही होती है सारी जिम्मेदारी। सिफ्ट बदलने पर दृश्य कुछ देर chaotic होती है। किसी एक नर्स की ड्युटी रोटेशन से एक घंटे अधिक होती है ताकि वह जाने वाली नर्स से सभी बेड के मरीजों का लेकर आने वाली नर्स को समझा सके। टेक ओवर और हैंड ओवर की तरह। नई आई हर नर्स तीन बेड के मरीजों की देख भाल करती है, पर उन्हें एक बड़े से sheet पर कुछ भरना पड़ता फिर वे लैपटॉप पर कुछ डाटा डालती। उनके लिए ये काम शायद मरीजों के देखभाल से ज्यादा आवश्यक होगा, मैंने लैपटॉप पर काम करती नर्स से पानी मांग कर देख लिया था, अव्वल तो वे किसी और को कहेगी या झुंझला कर पानी देगी यह कहते हुए कि आपको ज्यादा पानी पीना मना है। यानि सिस्टम तो ठीक ही बनाया, पर मरीजों के देखभाल को कम अहमियत दी गई है, शायद कुछ और लोगों की जरूरत है जो डेटा इंट्री का ही काम करे। रात में आने वाली नर्स ज्यादातर ज्यादा धैर्यहीन और झुंझलाहट भरी होती थी, खास कर जो पिछले आठ दस रातों से नहीं सो पाई हो। शायद नर्स की संख्या बढ़ाने की जरूरत है ताकि कुछ नर्स बीच के एक दो रात की ड्यूटी करें ताकि 10 रातों की थकाने वाले सिड्युल से एक दो रातों का राहत मिलता। 8-8 घंटों का 6-2,2-10, 10-6 का सिफ्ट शायद सही होता पर तब सुबह सवेरे आना और रात देर से लौटना महिलाओं के लिए यहां सेफ नहीं होता होगा।

विदेश का एक अस्पताल, विकीपीडिया के सौजन्य से
पहले दिन मेरी देखभाल को आई नर्स ने अपना परिचय दिया, मेरा नाम प्रिया है और कोई जरूरत होने पर आप बुला लेना। मै चलने में तब असमर्थ था, ऐसे भी कैनुला ड्रिप लगा मरीज कैसे उठ कर जा सकता हैं। मेरी आवाज़ मे ताकत भी कम थी, और प्रिया, ड्रिप लगाने, दवाई खिलाने और खून निकलने तो आई पर बुलाने पर कभी नहीं। एक और प्रकार के सेवक होते हैं यहां जीडी भैया और दीदी- यह कर के ही बुलाते हैं उन्हें, चाहे वे बच्चे ही क्यों न हो। यह सारे वो काम करते जिसको करने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं चाहिए, जैसे ब्लड सैंपल लैब में ले जाना, मरीजों को वाश रूम ले जाना, पोर्टेबल टायलट ला देना, खाना खिलाना, पानी पिलाना इत्यादि। क्योंकि पूरे वार्ड में सिर्फ एक होते, आप अक्सर सिस्टर्स का चिल्लाना सुनेंगे "जीडी भैया" या "जीडी दीदी"। और वे सारे समय इधर उधर भागते नजर आएंगे। कभी जब लैब जाते या कोई इक्युपमेंट लाने लौटाने जाते तब दूसरी नर्सें इनके लिए चिल्लाती रहती। मुझे तीन जीडी याद रह गए एक प्रौढ़ मर्द जो शादीशुदा और दो पुत्रों के पिता थे और रात के शिफ्ट में थे। क्योंकि इन्हें दिन में सोने का मौका कम मिलता होगा ये कभी कभी मेरे क्युबिकल में बने बेंच पर छिपकर सोने आ जाया करते। और दो जो सुबह की शिफ्ट में आते और जिनका मैं इंतजार भी करता वे थे, मोहित जो B.A. की पढ़ाई के लिए ये नौकरी कर रहे हैं और दुसरी थी सना जिसके अब्बा दर्जी है तीन बहनों में बड़ी सना यह नौकरी अपने परिवार के लिए कर रही थी। बारहवीं की पढ़ाई के बाद सना ट्रेन्ड नर्स बनना चाहती है। दोनों 19-20 वर्ष के थे और उनकी यह पहली नौकरी थी। सना को मैंने अपने काम और वरदी पर गर्व करने वाला पाया। दोनों मेरे काम बड़ी प्यार से करते और आने जाने पर हाय या बाय करना न भुलते। मै भी उनके परिवार के बारे में पूछता और अपना आशीर्वाद भी देता रहता। जब मैं कमरे वाले वार्ड में शिफ्ट हो रहा था, सना मुझे wheel chair से खुद ले जाना चाहती थीं पर नर्स दीदी ने कुछ काम दे कर उसे रोक लिया। भगवान इनकी इच्छा पूरी करे। मेरे देख भाल में आई हर नर्स का मै नाम अवश्य पूछता। और कुछ के नाम याद रह गए, रश्मी, साधना और वंदना। जब साधना को मैंने बताया कि साधना मेरी फेवरिट हिरोइन थी तो पहले वो क्षेप गई पर बाद में इसका मजा भी लेने लग गई। जब मेरी पत्नी मुझसे मिल कर गई तब उसने पूछा अपनी मिसेज को अपने मेरे बारे में बताया, और मैंने उससे कहा "मैंने उसे बताया कि मैंने आज साधना के हाथ से खाना खाया"। इस पर वह हंस पड़ी। बता दूं मैं 76 वर्ष का हूं और सभी नर्स मेरी बेटियों समान थी
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भारत का एक सरकारी जिला अस्पताल
एक दिन का वाकया मै बताना चाहूंगा। मेरे बगल वाले क्युबिकल में एक मरीज आए जिनको पेस मेकर लगा था। वे बार बार अपनी पोती का नाम लेकर पुकार या चिल्ला रहे थे। उन्हें एक हाथ और पैर नहीं हिलाना था। वे बार बार मना करने पर भी हाथ खींच रहे थे। एक बार कैनुला निकाल फेंका। एक रात किसी तरह संभाला पर अगली रात उन्हें कंट्रोल करना मुश्किल हो गया। उठ कर भाग जाने की कोशिश करने लगे। वंदना जिसके रात के शिफ्ट का दसवां दिन था वो थी उस रात। आज वो धैर्यहीन और खराब मूड में थी, उस पर ऐसा मरीज। कैनुला निकाल फेंकने पर में वो मरीज को धमका बैठी "आपको पता नहीं हम कहां कहां कैनूला लगा सकते हैं।" अब मरींज हत्थे से बाहर हो गया। उठ कर भागने की कोशिश करने लगा, दिल्ली वाली गालियां देने लगा और चैलेंज करने लगा "बहन.. (बहन की गाली) ममता (जबकि नाम वंदना था) आ जा देखे कौन कैनुला लगाता है"। सभी चुप हो गए। पुरूष नर्स बुलाए गए, रात वाले डाक्टर, जो सो रहे होंगे, भी बे मन से आए। किसी तरह उन्हें कुछ दवा दे कर सुलाया गया। फिर सुबह में वरिष्ठ डाक्टर आए और उसे उठा कर उसे दिन है कि रात का प्रश्न करने लगे। दो रात मै सो ही नहीं पाया। खैर सुबह एक सिनियर मलयाली नर्स आई शीला मैडम। उसने बड़ी चतुराई से उसे संभाला। पहले भगवान की कसम दी हाथ नहीं हिलाने की फिर रूल के विरुद्ध जा कर इस मत ख़ब्त आदमी के पत्नी को बुला लाई और उसको बैठा कर यह देखने का जिम्मा सौंपा कि देखिए दायां हाथ हिलाने पर इनके जान पर बन आएगी । इसके बाद वह नहीं चिल्लाया । हाथ हिलाने पर उसे ही डांट मिलने लगी ।
अब यदि आप जानना चाहे अस्पताल का बिल कैसे प्रतिदिन का 30-50 हजार हो जाते हैं तो यह देखिए:
० हर खाने के पहले सुगर टेस्ट करते हैं जबकि आपको डाईबेटीज था ही नहीं, उस पर चाहे सुगर कुछ भी आए, खाना वहीं आएगा। बेस्वाद।
० सुबह शाम ब्लड टेस्ट करते करते आपका हाथ काला कर देंगे जैसे हर दिन खिलाए दवा का असर देखना चाहते हो। आप एक गिनी पिग बन जाते हो।
० आपको वार्ड में जगह नहीं मिल रही हो या शायद मिल भी रही तो भी CCU -ICU में एडमिट कर देना जहा छोटे-छोटे क्युबिकल का अधिक किराया वसूल सकें।
० आठ दिनों में मेरा तीन बार चेस्ट एक्स रे हुआ (जिसका फिल्म रिपोर्ट भी नहीं देते। )
० ECG-ECHO बार बार करना
० फार्मेसी बिल MRP पर लेना जबकि सभी दुकानों में आसानी से कुछ रिबेट अवश्य देते हैं।
० जो डाक्टर आपका इलाज नहीं कर रहा वह भी देख जाएंगे। उनके visit का भी चार्ज आपके बिल में होगा
इत्यादि इत्यादि।
बस आज का ब्लॉग थोड़ा बड़ा हो गया। क्षमा करें।