हमने दिवाली को राम के अयोध्या लौटने और यमुना को भाई यम को भोजनहमने दिवाली को राम के अयोध्या लौटने और यमुना को भाई यम को भोजन खिलाने से संबंधित कथा तो सुनी है, अब एक और कथा।
महर्षि कश्यप सभी प्राणियों के पुर्वज माने जाते हैं। उनकी पत्नियां दिती और अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थी। दिति दैत्यों की माता थी अदिति देवों की। दिति के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। हिरण्याक्ष को अवतार और हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार ने मारा। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। इन्हीं प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बालि । तीनों लोक के स्वामी राजा बलि बहुत पराक्रमी थे और प्रजा वत्सल भी। इंद्र के प्रर्थना और देवों को देवलोक वापस दिलाने के लिए श्री विष्णु ५२ अंगुल के बौने वामन का रूप धर राजा बलि ९९ वें यज्ञ में पहुचें। इस यज्ञ के बाद बलि का इंद्र होना निश्चित था।

तिहार के दूसरे दिन कुकुर पुजा
वामन ने दानवीर बलि से तीन पग धरती के दान की कामना की। वामन के छोटे पैरों को देख तीन पग धरती का दान बलि को अपने यश के अनुरूप नहीं लगा और उन्होंने बहुत सारी गाएं और धरती के साथ धन का दान का प्रस्ताव रखा पर वामन ब्राह्मण अपनी तीन पग वाली बात पर अडिग रहे। बलि ने गंगा जल हाथ में लेकर तीन पग धरती दान कर दिए। तब श्री विष्णु अपने विशाल रूप में प्रकट हुए और दो पग में स्वर्ग और धरती दोनों नाप लिए। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सर प्रस्तुत कर दिया। विष्णु ने उसे सदा के लिए उसे पाताल भेज दिया जहां वह अब भी राज करता है।
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बलि सात चिरंजीवियों में से एक है। विष्णु ने बलि को वर्ष में एक बार अपने राज्य की प्रिय प्रजा के बीच वापस धरती पर आने का वरदान दिया। नेपाल में माना जाता है कि राजा बलि यमपंचक यानि तिहार (दिवाली) में धरती पर पांच दिनों के लिए आते हैं। उनके आने की खुशी में त्योहार मनाया जाता है और पारंपरिक गीत देवशी में राजा बलि से संबंधित लाइने भी होती है।
Monday, October 20, 2025
राजा बलि और नेपाल का तिहार
Saturday, October 18, 2025
फागुन का शोर
आज फ़िजा में इतना शोर क्यों है?
तमन्नाएं चीख पुकार कर रही
मन शोर सुनने को तैयार क्यों है?
फागुन के आने का सबब लगता है
फागुन में इतना चमत्कार क्यों है?
भवनाओं के ववंडर में फंस गया हूं
पर इसमें फंसने का मलाल क्यों हूं?
अमिताभ कुमार सिन्हा, रांची
Friday, October 17, 2025
कार के साथ बुरे फंसे
एक घटना जिस पर मैंने अभी तक कोई ब्लॉग नहीं लिखा, AI से पापा के पहले कार का चित्र बनाने से याद हो आया। तब मैं शायद कालेज के दूसरे साल में था।
यानि 1966 की बात है। पापा ने एक कार खरीदी पापा की या हमारे परिवार की पहली कार थी Austin of England, A40 । उस समय जो भी हमारे संयुक्त परिवार के सदस्य थे, यानि जिनका जन्म तब तक हो गया था, ने कभी न कभी इससे यात्रा जरूर की है। हमारे बड़े मौसेरे बच्चन भैया जो हमसे 14 वर्ष बड़े थे उनकी बारात भी इसी कार से लगी थी।

मेरा वाकया तब का है जब मंडल जी धनबाद में कोलियरी की नौकरी छोड़ कर जमुई आ गए थे और हमारे यहां ड्राइवर लग गए थे। हम परिवार सहित किसी शादी में जा रहे थे । मां के साथ दीदी को छोड़ हम पांच भाई बहन, छोटी मां और संगीता, मंझली फुआ, नौकर गुलटेनवा और मंडल जी यानि कुल 11 जन यानि पांच बच्चे और अन्य बड़े थे। सामान में शायद तीन टिन के बक्स उपर बांधे गए थे और अन्य न जाने कितने सामान डिकी में थे। छोटी बहन मुकुल शायद तब तेरह बर्ष की थी और उसे भी मैंने बड़ो में ही गिना है। तीन लोग आगे और 8 पीछे की सीट पर। जाहिर है सभी बच्चे गोद में बैठे। सभी कष्ट के बावजूद कार की यात्रा तब की रेलयात्रा से आरामदेह था।
किस्सा तब शुरू हुआ जब मैं कुछ देर ड्राइवर सीट पर बैठा । मैं शायद 16 या 17 का था और बेसिक गियर क्लच एक्सलेटर का सिन्क्रोनाइजेशन करना सीख चुका था। सिर्फ स्टेयरिंग पर कच्चा था। ठीक ठाक तो मुझे कभी नहीं आया। मैं कुछ दूर जाने के बाद ड्राइवर सीट पर बैठ गया। लेकिन गढ्ढे से भरे रोड पर कार चलाना बच्चों का काम नहीं है यह सबित होने लगा । जिस गढ्ढे से बचना चाहता था अक्सर चक्का उसी में चला जाता। सिर्फ एक बात मेरे हक में था कि रोड पर ट्रैफिक बहुत कम था। तब छोटे शहरो को ट्रेफिक कम ही होते थे।
खैर कुछ दूर चलने के बाद कार टेढ़ी मेढ़ी चलने लगी। मैंने कार तुंरत रोक दी। मंडल जी ने चेक किया तो पता चला पिछले बांया चक्के के नट welded थे और जर्क के कारण weld टूट गए थे। हम किसी बस्ती के बजाय बहियार यानि सुनसान जगह पर थे दोनों तरफ खेत थे दूर कहीं कहीं खलिहान दिख रहे थे। तब खेतों की सिंचाई के लिए पंप का चलन नहीं था ओर खेतों में पंप के रक्षा के लिए रात में रूकने की जरूरत नहीं थी और रात और सुनसान हो जाती थी । मुझे छोड़ सिर्फ मंडल जी मर्द के श्रेणी में थे। हमने निर्णय लिया कि सभी महिलाओं और बच्चों को बस से वापस भेज दिया जाय। मंडल जी भी चक्का और नट बोल्ट खोल कर साथ ही चले गए ताकि घंटे डेढ़ घंटे में ठीक करा कर आ जाएं । अब सामान से लदी कार के पास 17 वर्ष का मैं और 11-12 वर्ष का गुलटेनवा ही रह गए।
अब शुरू हुई हमारी असली आजमाइश । हम लगातार आने वाले रास्ते की ओर नजर गड़ाए थे जब भी कोई गाड़ी, मोटर साइकिल या बस जाती तो आस जग जाती कि मंडल जी शायद इसमें में हों। सभी गाड़ी वाले हमें अजीब सी नज़रों से देखते हुए निकल जाते । आखिर एक मोटर साइकिल वाला रुक कर यह बता गया कि मंडल जी जल्द आएंगे। एक घंटे बाद एक कार वाला हमें नाश्ता दे कर चला गया। फिर ऐसा ही चलता रहा और कोई गाड़ी रुकी नहीं। करीब चार बजे एक मोटर साइकिल वाला एक टिफिन दे गया जिसमें हमारा लंच था। हमारा धीरज जवाब देने लगा। और मंडल जी पर बहुत गुस्सा आने लगा। इतनी देरी लगनी थी तो बता देते, उपर लदे बक्से भी बस से भेज देते। डर भी लगने लगा । हमारी गाड़ी में लदे सामान सबको दिख रहे थे।
धीरे धीरे शाम होने लगी। करीब पांच बजे दो लंबे चौड़े आदमी लाठी लिए हमारे पास आए। अंदर से हम डर रहे थे और बाहर से हिम्मत दिखा रहे थे। उन्होंने कहा "एतना शाम हो गेलों ह अब तक गेल्हो नय"।
कोई और समय होता तो मैं कहता तुमको मतलब? लेकिन मैं शांत रहा और बोला "चकवा पेंचर हो गेले हल। ड्राइवर साहब ले के गेले हथी अब आइबे करता "
"रात होले जाल हो तोहरा सब के चल जाय के चाही दिन दुनिया ठीक नय हो। आगे बहुत छीना झपटी होय ह , जल्दीए इहा से चल जाहो" और उन्होंने एक नज़र कार के उपर लदे बक्सो पर और एक नजर हम पर डाला और वे चले गए।
अब मैं उन्हें क्या बताता कि भाई साहब मुझे तो आप ही डाकू लग रहे हो। तुमने सामान देख लिया रक्षा करते सिपाहियों को भी परख लिया, क्या जाने दो चार धंटे बाद तुम लोग फिर से आ जाओ।
अंधेरा होने लगा था। चांद भी नहीं निकला था। हमने ग्लोव कम्पार्टमेन्ट से दो मोमबत्तियां निकाली और कार के आगे पीछे जला कर चिपका दी ताकि घर से कोई आता हो तो अंधेरे में भी कार दिख जाए। मैं मन ही अपनी स्ट्रेटजी बनाने लगा। हमें अब तक समझ आ गया था हम कार पर लदे सामानों की रक्षा नहीं कर सकते। कार का एक पहिया नहीं था कार वे ले नहीं जा सकते। बैट्री, टायर की चोरी तब शुरू नहीं हुई थी। अब मैं हिसाब लगाता हूं तो तीन बक्सों में रखे थे दुल्हे को देने के लिए 3 अंगूठीयां और तीन महिलाओं के जेवर । कम से कम 60 ग्राम सोना और बनारसी साड़ियां और नए पुराने कपड़े। आज के हिसाब से कम से कम 10 लाख के सामान थे। यानि रात तक कोई न आया तो हमें अपनी सुरक्षा की सोचनी थी। कार में सोना खतरे से खाली न था। क्यों न हम दूर उस पेड़ के नीचे रात बिताए दूर से गाड़ी पर नजर रखेंगे । मन ही मन चोर चोर चिल्लाने का अभ्यास करने लगा। चिल्लाने में गुलटेनवा माहिर था। फिर रात में सियार के आने का खतरा था। आग जलाने के लकड़ी कहा मिलती । मैंने कार में ही सोने का फैसला किया। डाकु आए तो उन्हें सब ले जाने दूंगा और अपनी घड़ी पर्स भी दे दूंगा।
यह सब सोच ही रहा था कि एक कार की लाइट दिखाई दी। हमारी आशा जगी ही थी कि, "घबरहिओ नय भोला बाबु (मेरे छोटा बाबु यानि छोटे चाचा) आवों हथुन" कह कर ड्राइवर आगे निकल गया। अब जाकर चैन आया। थोड़ी देर में अपने एक सहकर्मी के मोटर साइकिल से छोटा बाबु आ गए। अब मैं पुर्णत: निश्चिंत हो गया। दर असल मंडल को चक्के के साथ दो मैकेनिक को भी लाना था। इसलिए कार की जरूरत थी। हमारे पड़ोसी डा० मुखर्जी अपनी कार देने में आनाकानी कर रहे थे। पापा भी घर पर नहीं थे।

डा० मुखर्जी की गाड़ी ऐसी थी
अंत में डा० साहब के दायां हाथ यानि ड्राइवर, कम्पाउन्डर और सहयोगी नीलू बाबू के उन्हें छोड़ कर चले जाने की धमकी ने असर दिखाया और उन्होंने कार दे दी। एक तो रिपेयर में देर लगी फिर हवा भरने के लिए बिजली आने का इंतजार करना पड़ा फिर कार मिलने का यह टंटा। कुछ देर के इंतजार के बाद कार आ गई, मैं मंडल जी पर बिगड़ पड़ा कि जब तक रिपेयर हो रहा था आप यहां आ जाते। खैर करीब आधे घंटे लगे और अपनी कार चल पड़ी । आधे घंटे बाद मुझे देख मां के आखों में आंसू आ गए। घर में सभी ने चैन की सांस ली। और अब हमने भी राहत की सांस ली ।
अब यह न पूछना अगले दिन गए कि नहीं? वो किस्सा फिर कभी।
Tuesday, October 14, 2025
Poetry in motion
ट्रक के पीछे लिखे स्लोगन सच में मजदार तो होते है ड्राइवर के दुखी जीवन के बावजूद उसके हसमुख होने का प्रूफ भी है।
सभी यात्रियों ने सड़क पर पढ़ा हैं मैंने COMPILE किया देखे :
Poetry in motion .. slogans behind trucks.
"मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना
चलती है सड़क पर बन कर हसीना !!"
"मालिक की ज़िंदगी बिस्कुट और केक पर
ड्राइवर की ज़िंदगी एक्सिलेरेटर और ब्रेक पर!!"
"पत्ता हूँ ताश का जोकर न समझना,
आशिक हूँ तेरे प्यार का नौकर न समझना!!"
"या खुदा क्यों बनाया मोटर बनाने वाले को,
घर से बेघर किया मोटर चलाने वाले को!!"
"ड्राईवर की ज़िन्दगी में लाखों इलज़ाम होते हैं,
निगाहें साफ़ होती हैं फिर भी बदनाम होते हैं!!"
"चलती है गाड़ी उड़ती है धूल
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल!!"
"दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये
वो उतर कर चल दिये हम गियर बदलते रह गये !!"
"कभी साइड से आती हो, कभी पीछे से आती हो
मेरी जाँ हार्न दे देकर, मुझे तुम क्यों सताती हो!!"
"रूप की रानी चोरों का राजा,
मिलना है तो सोनिया विहार आ जा!!"
"कीचड़ में पैर रखोगी तो धोना पड़ेगा
गोरी ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा!!"
"लिखा परदेस क़िस्मत में, वतन की याद क्या करना
जहाँ बेदर्द हाकिम हों, वहां फ़रियादक्या करना!!"
"पानी गिरता है पहाड़ से, दीवार से नहीं
दोस्ती है हमसे, हमारे रोज़गार से नही!!"
"बुरी नज़र वालों की तीन दवाई,
जूता, चप्पल और पिटाई!!"
सौ में नब्बे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान ।
काला कुरता, काला चश्मा, काला रंग कढाई का,
एक तो तेरी याद सताए, दूजा सोच कमाई का
दुल्हन वही जो पिया मन भाये,
गाड़ी वही जो नोट कमाए
अपनो ने मुझे लूटा गैरो में कहाँ दम था
मेरी कश्ती वहॉ डूबी जहाँ पानी कम था
टाटा में मै पैदा हुई हावड़ा में श्रृन्गार हुआ
दिन रात सगं रहते रहते ड्राइवर से मुझको प्यार हुआ
जगह मिलने पर पास मिलेगा
हिम्मत हैं तो पास कर वर्ना बरदाश्त कर
अनारकली, लद के चली।
कुछ नए
बुरी नजर वाले । तू सेल्फी ले ले
2G 3G 4G जहाँ मिले बात कर लो जी
जहाँ जहाँ हम है वहाँ वहाँ दम है।
बुरी नजर वाले तेरे बच्चे जिए।
जब तक जिए तेरा खून पिए।
कमा के खा। नजर न लगा।
धीरे चलोगे बार बार मिलेंगें
वर्ना हरिद्वार मिलेंगें।
दो गज की दूरी है बहुत जरूरी।
प्रेम रंग
प्रेम रंग
प्रेम इक अहसास है इसे अहसास ही रहने दो यारों
रंगों छंदों में इसे बांधने की जिद न करो
किसी के आने से जब मन में खनक जग जाए
किसी के जाने से जब मन में कसक जग जाए
जब आंखों को पढ़ने का शउर आ जाए
जब तारीफ सुन अपने पे गुरूर आ जाए
जब किसी के आंसू तूम्हें बरबस तड़पा जाए
जब किसी की बेरूखी न हो काब़िले बर्दास्त
यही इश्क है यही इश्क है यही इश्क है जनाब
जब भयानक ठंड हो और दे दो अपनी कंबल
हो बारिश और तुम दे दो जब अपना छाता
जब ग़मगीन हो रोने को दे दो अपना कांधा
समझो कि तुम्हें प्यार हुआ प्यार हुआ है प्यारे
इसे मर्ज-ए मुहब्बत प्रेम या प्यार कह लो
कौन सा रंग है यह, ये तो बताना मुश्किल है
चाहो तो इसे प्रेम रंग कह लो यारो
बिच्छोह का अलग मिलन का अलग रंग होता है।
कोई भी रंग हो यही तो प्रेम रंग होता है।
अमिताभ, रांची
तीज पर
तीज का आशीर्वाद
हर बोझ नारियों पर डाला
हे राम ! तूने क्या कर डाला
पति का जीवन अछुन्न रहे
इसका व्रत भी करना उसको
पुत्र की आयु अनंत बढ़े
इसका व्रत भी रखना उसको
उनके जीवन के खातिर भी
क्यों कोई व्रत है नहीं बना
पति भी किसी दिन निर्जल सोए
क्यों ऐसा व्रत है नहीं बना
नौ महीने अपने अंदर पाले
पैदा करने का कष्ट सहे
पाले पोसे, वाणी भी दे
डगमग पग को रवानी भी दे
जब नारी पत्नी बन जाय कभी
आशीष भी पति जीवन का मिले !
सौभाग्यवती रहो!
क्या उसका जीवन कुछ भी नहीं?
गर पति है पत्नी का सुहाग
पत्नी भी है पति का सुभाग
किसी एक बिन जग है अंधियारा
संग दोनों चले तो है उजियारा
प्रभु बना रखे दोनों का साथ
यह है इस वृद्ध का आशीर्वाद!
अमिताभ सिन्हा, रांची