Friday, January 12, 2024

जब गोवा जाते जाते रह गया

लोग कहते हैं कि एक बार जीवन में गोवा जरूर जाना चाहिए क्यो ?

कुछ लोग गोवा की खूबसूरती प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तटों, और जीवंत संस्कृति के लिए पसंद करते है। कुछ लोग इसके रहस्यमयता के लिए और कुछ सिर्फ फेनी के लिए। यह विदेशियों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है यहां तक की एक बीच को रसियन बीच कहा जाता है। इंटरनेट क्या कहता है गोवा के बारे में ? "गोवा दौरे के दौरान प्राचीन किला अगुआड़ा, किला चापोरा और श्री मंगेश मंदिर की यात्रा करना आनंदमय रहेगा। बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस एंड सी कैथेड्रल और ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर जाकर 4 दिनों के लिए अपनी गोवा ट्रिप पर जा सकते है। गोवा का सबसे बड़ा आकर्षण निस्संदेह इसकी सुनहरी-रेत के समुद्री तट है। " पर इन सबों के सिवा भी कई अच्छी चीज़े है इस छोटे से राज्य में। मैं भी उत्सुक था गोवा जाने के लिए और ५-६ बार गए भी लेकिन सबसे दिलचस्प किस्सा मेरे पहले उस ट्रिप की है जब मै गोवा जाते जाते रह गया।

१९६९ में हमारा कॉलेज ट्रिप दक्षिण पश्चिम भारत का था। हम अपनी रिजर्व बोगी से सफर कर रहे थे । दक्षिण भारत और दक्कन के तब बहुत जगहों पर मीटर गेज रेल लाइन थी और इस लिए कई जगह हमें नयी साइज की नयी बोगी में हमे शिफ्ट करना होता। हम GT (जनरल थर्ड क्लास ) बोगी में आमने सामने के सीट के बीच स्टील वाले कैंप कोट का टॉप डाल देते , साइड सीट के बीच रस्सी से खाट के तरह बीन देते और इस तरह सभी के लिए सोने की जगह बन जाती । नए बोगी में इन स्टील कैंप काउट के साथ SHIFT करना एक बहुत मेहनत और मुश्किल काम था जो कैंप अटेंडेंट कर देते। और सबसे मुश्किल हुआ थे चेन्नई (तब मद्रास) में। हमारी BG बोगी मद्रास बीच स्टेशन पर पार्क थी पर MG बोगी मद्रास एग्मोर स्टेशन पर थी और यह काफी बड़ी दूरी थी। जब हम बंगलोर से चले तो गुंटकल-लोढ़ा-वास्को - लोढ़ा - पुणे तक मीटर गेज ही था तब। मीटर गेज बोगी में साइड वाला सीट नहीं होता था। और हमें सोने के लिए जगह कम हो जाती थी ।

उस पुरेु ट्रिप के बारे में फिर लिखूंगा पर ट्रिप के उस छोटे भाग पर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा जब गोवा जाते जाते रह गए। कॉलेज ट्रिप में हम एक पूरी बोगी बुक कर घूमने निकले थे और उसी बोगी में सोते, रहते भी थे। हमलोग तमिलनाडु - केरल के बाद पहुंचे बगलोर (अब बैंगलुरु )। बैंगलोर और मैसूर घूमने के बाद हमारा अगला स्टॉप था गोवा। हम लोग गोवा को १९६५ की फिल्म "जौहर महमूद इन गोवा " से ही जानते थे। सुना था बियर सस्ती है। बीच देखने का ज्यादा शौक तो नहीं था पर गोवा एक उत्सुकता जरूर पैदा करता था पर आज की जैसा क्रेज नहीं था। बैंगलोर से हमारी ट्रैन लोंडा जक्शन तक का था जहां १० घंटे बाद हमारी बोगी वास्को डा गमा स्टेशन जाने वाली ट्रैन में जोड़ी जानी थी।



हमारे पहले मैकेनिकल विभाग के छात्रों की ट्रिप गोवा जाने वाली थी। अब मोबाइल होता तो उनसे कुछ बातें करते। लोंडा जैसे स्टेशन पर हमें कुछ करने का था नहीं , प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर तक करीब 30 लोग चक्कर लगाए जा रहे थे। आज मॉर्निग वाक में एक आदमी को मोटर साइकिल पर चलते चलते एक हाथ से चाय पीते देखा । मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। चाय तो लोग रिलैक्स होने के लिए या समय बिताने के लिए पीते है न की समय बचाने के लिए। और हम यहाँ पता नहीं कितने कप चाय ४८ घंटे की अपनी इस लाचार स्थिति में पिया होगा। यात्री स्टेशन पर न के बराबर थी। पता नहीं क्यों हमने डायरेक्ट गोवा वाली ट्रेन क्यों नहीं चुनी । वास्तव में हमारी रेलवे बोगी किसी फ़ास्ट या मुख्य ट्रेन में नहीं जोड़ी जाती और रेलवे अपने परिचालन के सुविधानुसार ट्रेन में हमारी बोगी जोड़ती थी ।
ट्रेन आती थी तो हम झांक लेते। ऐसे घूमते घूमते किसी को स्टेशन मास्टर के ऑफिस के बाहर लगे बोर्ड पर एक टेलीग्राम दिखा। उसने देखा की यह टेलीग्राम कॉलेज प्रिंसिपल का था बस उसने टेलीग्राम को बोर्ड से उखाड़ा और प्रोफसर इन चार्ज को दे दिया। अब उस टेलीग्राम में लिखा था "Mechanical boys had trouble in Goa. Donot go to Goa" अब ग्रुप को आगे ले जाने की हिम्मत प्रोफेसर साहेब को नहीं पड़ी। इन प्रोफेसर को हम पिछले दो साल भी झेल चुके थे । उन्होंने तुरंत फुरंत स्टेशन मास्टर से अनुरोध किया की बोगी वास्कोडिगामा के बजाय अगले पड़ाव पूना (अब पुणे) के ट्रैन में ही जोड़ दिया जाय । तब गोवा जाने के लिए ट्रैन रूट लोंढ़ा jn होकर ही था। बैंगलोर गुंटकल लोंढ़ा वास्को लाईन एक मीटर गेज लाइन था। पूना भी लोंढ़ा ज० मिराज ज० होकर मीटर गेज लाइन ही था। हमारा बोगी कई बार BG से MG में बदला जा चुका था। और कोंकण रेलवे तब था नहीं । खैर लोंढा ज० के स्टेशन मास्टर ने कहा दो दिन बाद जिस ट्रेन में बोगी जुटनी थी उसी में जोड़ी जाएगी । उसके पहले संभव नहीं है। ‌यानि ऐसी जगह पर ४८ घंटे बिताने को हम मजबूर हो गए। वापस लौटने पर पता चला मैकेनिकल के लड़को ने मछुआरों को अपने बोगी में चढ़ने नहीं दिया था और मार पीट हो गयी। किसी का माथा फूटा और किसी का कैमरा टूटा। सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और किसी तरह पर्सनल बांड भर कर वे छूट पाए।

अब 48 घंट हमें बिताना था इस स्टेशन पर। कुछ लोग बाहर झांक कर आ गए। शहर कुछ खास नहीं। हम भी लगातार घूमते घूमते थक चुके थे। यदि गुगल होता तो यह पता कर लेते कि फकत २५ किलो मीटर पर ही है castle rock स्टेशन जहां से दूधसागर फाल देखा जा सकता था। ऐसे भी दूधसागर के विषय में बहुत बाद में पता चला। तब तक दो तीन बार की गोवा की ट्रिप हो चुकी थी।और हम अभी तक दूध सागर नहीं जा पाए। काश हमारी वास्कोडिगामा की रेलयात्रा तब हो जाती तो दूध सागर फाल भी देख लेते।





कैस्ल राक स्टेशन और कुलेम स्टेशन के बीच - जहां हम नहीं गए आभार सहित

इस failed गोवा ट्रिप के 20 साल बाद एक बहुत शार्ट टूर गोवा की लगी थी। 1998 में। तब हम ऑफिस के काम से गए थे और घूमने घामने का समय ही नहीं मिला था। एक पुराने Copper mill का काम था। हवाई जहाज से पहुंचे थे। बोगामेलो बीच के पास कंपनी का एक गेस्ट हाउस में रूका था। बगल में ही नेवी का AVIATION म्यूजियम था पर वहां भी नहीं जा सके। एक शाम बोगामेलो बीच के शैक में बीयर के साथ डिनर खाने के सिवा और कोई मस्ती न कर पाया।

गोवा के कुछ प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं:



पंजिम चर्च हमारे २०१० के ट्रिप से

समुद्र तट: गोवा के समुद्र तट भारत के कुछ सबसे खूबसूरत समुद्र तटों में से हैं। इनमें से कुछ लोकप्रिय समुद्र तटों में अंजुना, वागाटोर, बागा, और कलंगुट शामिल हैं। पुराने गोवा के चर्च, अगुआडा फोर्ट और कुछ प्रसिद्ध मंदिर भी है यहां का आकर्षण। लेकिन हमारी अगली गोवा ट्रिप 12 साल बाद 2010 में ही लगी। अगली चार गोवा ट्रिप अगले ब्लॉग में।

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