Sunday, January 28, 2024

राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-१ (बाल लीला )

मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा राम , रामकथा और राम लाला (पढ़ने के लिए क्लिक करे )। उसी क्रम में मैं अपना यह आलेख गणेश वंदना से शुरू करता हूँ । गीता प्रेस के राम चरित मानस की सहायता मैंने ली है इस आलेख के लिए। इस भाग में धनुष भंजन तक



जो सुमिरत सुधि होइ गन नायक करिबर वदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि राशि सुभ गुन सदन।।
मूक होही वाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन ।
जांसू कृपा हो दयाल द्रवहु सकल कलिमल दहन ।।


जिनके स्मरण मात्र से सभी कार्य सिद्ध हो जाते है उन्ही हाथी के मुंह वाले गणों के स्वामी राशि और बुद्धि के गुणों के धाम (गणेश जी ) कृपा करे। जिनके कृपा से गूंगे अच्छा बोलने लगे, लंगड़े कठिन पहाड़ चढ़ने लगें, इस कलयुग में उनकी कृपा हो ।
अब मैं कुछ लोकप्रिय दोहे चौपाई के विषय में कुछ लिखता हूं ।

बाल कांड

नौमी तिथि मधु मास पुनीता।
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा।
पावन काल लोक बिश्रामा ॥


राम के जन्म का वर्णन है। न ज्यादा गरम न ज्यादा ठंडा जैसे (चैत्र) मधुमास की नवमी तिथि । फिर एक छंद देखे। प्रभु के जन्म को संत तुलसीदास कैसे वर्णित करते है।

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥


दीनो पर दया करने वाले, कौशल्या को खुशी देने वाले, अद्भुत रूप, आंखों को आनन्द देने वाले श्याम वर्ण, विशेष अस्त्रो , आभुषण, बड़े बड़े नयनों वाले, शोभा के समुद्र और खर राक्षस को मारने वाले प्रगट हुए है। प्रभु का अवतार जान माता स्तुति करने लगती है पर मातृत्व के आनंद के लिए यह चौपाई।

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥


माता की मति बदल जाती है वह कहती है तात अत्यन्त प्रिय बाललीला करो,यह सुख परम अनुपम होगा। माता का यह वचन सुनकर भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया।

सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी।
संभ्रम चलि आईं सब रानी॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी।
आनँद मगन सकल पुरबासी॥


बच्चे के रोने पर भी रानियां आनंदित हो चली आती है, और महल में सभी धाई दासी और पुरवासी आनन्द मगन हो जाते है।
जब राज कुमार ठुमक ठुमक चलने लगे।

कौसल्या जब बोलन जाई।
ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
निगम नेति सिव अंत न पावा।
ताहि धरै जननी हठि धावा॥


दशरथ के यहाँ चार राजकुमार का जन्म हो चुका है। सभी रानियां खुश है। बालकों के बालसुलभ चुलबुलापन और चपलता से सभी हर्षित है। जब माताएं उन्हें बुलाने जाती है तो वे जान बुझ कर दूर भाग जाते है जैसे लुका छिपी खेल रहे हों। इस दृश्य को कल्पना में ला कर देखिये कैसा मनोरम दृश्य है। जिसका अंत शिव को भी नहीं पता माता उसीको पकड़ने की जिद कर रही है।

बालकों की शिक्षा दीक्षा समाप्त हो गई,तब ऋषि विश्वामित्र अयोध्या पधारे‌ । ताड़का और अन्य राक्षसों से आश्रम और यज्ञशालाओं की रक्षा के लिए राजकुमारों को ले जाने के लिए।

असुर समूह सतावहिं मोही।
मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥
अनुज समेत देहु रघुनाथा।
निसिचर बध मैं होब सनाथा॥


असुर समुह हमें सताते हैं, मैं कुछ मांगने आया हूं। राजा दशरथ से उन्होंने छोटे भाई समेत राम को अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की। राजा दशरथ उनकी इस मांग से घबरा गए। राम से वियोग वो भी राक्षसों से युद्ध के लिए वो तैय्यार न थे।

मागहु भूमि धेनु धन कोसा।
सर्बस देउँ आजु सहरोसा॥
देह प्रान तें प्रिय कछु नाहीं।
सोउ मुनि देउँ निमिष एक माहीं॥


राजा कहते है पृथ्वी, गो, धन और खजाना माँग लीजिए, मैं आज बड़े हर्ष के साथ अपना सर्वस्व दे दूँगा। देह और प्राण से अधिक प्यारा कुछ भी नहीं होता, मैं उसे भी एक पल में दे दूँगा ।

ऋषि के समझाने पर दशरथ राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेज देते है। राम और लक्ष्मण तारका और अन्य राक्षसों का नाश कर देते है, अहिल्या का उद्धार भी राम करते है। । बाद में ऋषि के साथ दोनों राजकुमार जनकपुर जाते है।



जनकपुर में

देखि अनूप एक अँवराई।
सब सुपास सब भाँति सुहाई।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना।
इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥


आमों का एक अनुपम बाग देखकर, जहाँ सब प्रकार के सुभीते थे और जो सब तरह से सुहावना था, विश्वामित्रजी ने कहा- हे रघुवीर! मेरा मन कहता है कि यहीं रहा जाए। इसके बाद राम लक्ष्मण के चर्चे पूरे जनकपुर में फ़ैल जाती है। दोनों भाई जनकपुर के महल , बाग इत्यादि देख कर चकित है। फिर सीता और राम की मुलाकत इसी बाग में होती है।

राम और सीता का प्रथम मिलन

चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन।
लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
तेहि अवसर सीता तहँ आई।
गिरिजा पूजन जननि पठाई॥


राम और लक्ष्मण चारों ओर दृष्टि डालकर और मालियों से पूछकर वे प्रसन्न मन से पत्ता-पुष्प लेने लगे। संयोग से उसी समय सीता अपनी माता के आज्ञानुसार पार्वती पूजन के लिए वहाँ आईं। राम - लखन को कुछ सखियों ने देखा और उनके रूप का वर्णन सीता से किया।

तासु बचन अति सियाही सोहने।
दरस लागि लोचन अकुलाने ॥
चली अग्र करि प्रिय सखी सोई।
प्रीति पुरातन लखि न कोइ ॥


सखी के वचन सुनकर सीता जी की आंखे राम जी को देखने के लिए अकुलाने लगी। अपने सखी तो आगे कर सीता चल पड़ी , पुराने प्रीत को कोई देख नहीं पाता। राम ने सीता और सखियों को देखा और उनके रूप की चर्चा लक्ष्मण जी से भी की ।

अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा।
सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥
भए बिलोचन चारु अचंचल।
मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल॥


ऐसा कहकर राम ने फिर उस ओर देखा। सीता के मुखरूपी चंद्रमा के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए। उनकी टकटकी लग गई । मानो निमि (जनक के पूर्वज) ने (जिनका सबकी पलकों में निवास माना गया है, लड़की-दामाद के मिलन-प्रसंग को देखना उचित नहीं, इस भाव से) सकुचाकर पलकें छोड़ दीं, (यानि निमि ने पलकों में रहना छोड़ दिया, जिससे राम की पलके झपक गई (बंद हो गई) ।
सीता जी शोभा का ह्रदय में वर्णन कर और कुछ सोच राम जी लक्ष्मण से कहते है।

तात जनकतनया यह सोई।
धनुषजग्य जेहि कारन होई॥
पूजन गौरि सखीं लै आईं।
करत प्रकासु फिरइ फुलवाईं॥


हे तात! यह वही जनक की कन्या है, जिसके लिए धनुषयज्ञ हो रहा है। सखियाँ इसे गौरी पूजन के लिए ले आई हैं। यह फुलवारी में प्रकाश करती हुई फिर रही है।
सतानंद (जनक जी के पुरोहित) विश्वामित्र से मिलते है और जनक का आमंत्रण उन्हें दिया। विश्वामित्र दोनों भाईयों को लेकर रंग भूमि जाते है। नगर वासी दोनों भाइयों को देखने उत्सुक हो कर आये तो बड़ी भीड़ हो गयी। जनक की ने ऐसा देख अपने विश्वास पात्र सेवको से सबको उचित आसान देकर बैठाने को कहा ।

राज समाज बिराजत रूरे।
उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥
जिन्ह कें रही भावना जैसी।
प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥


बहुत सारे राजे , महाराजे रंगभूमि में आये हुए थे पर दोनों राजकुमार राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो तारागणों के बीच दो पूर्ण चंद्रमा हों। जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही दिखती है।
स्वयंवर के लिए सभी अथति आसान ले चुके थे। सब सुअवसर जानकर जनक जी ने सीता को बुलवा भेजा। और सखियां उन्हें आदर पूर्वक लिवा ले गयी।

सिय सोभा नहिं जाइ बखानी।
जगदंबिका रूप गुन खानी॥
उपमा सकल मोहि लघु लागीं।
प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥


सीता की शोभा की बखान नहीं किया जा सकता। जगत जननी तो रुप गुण की खान है। कोई उपमा छोटी ही होगी। पर सभी राजा लोग दोनों राजकुमारों को देख कर हतोत्साहित हो जाते है।

प्रभुहि देखि सब नृप हियँ हारे।
जनु राकेश उदय भएँ तारे॥
असि प्रतीति सब के मन माहीं।
राम चाप तोरब सक नाहीं॥


प्रभु को देखकर सब राजा हृदय में ऐसे हार गए (निराश एवं उत्साहहीन हो गए) जैसे पूर्ण चंद्रमा के उदय होने पर तारे प्रकाशहीन हो जाते हैं। (उनके तेज को देखकर) सबके मन में ऐसा विश्वास हो गया कि राम ही धनुष को तोड़ेंगे, इसमें संदेह नहीं। सवयंवर में आये राजा शिव धनुष को उठाने तोड़ने की कोशिश करते है।

तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं।
उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं॥
जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं।
चाप समीप महीप न जाहीं॥


सभी राजा तमककर (बड़े ताव से) शिव के धनुष की ओर देखते हैं और फिर निगाह जमाकर उसे पकड़ते हैं, करोड़ों भाँति से जोर लगाते हैं, पर वह उठता ही नहीं। जिन राजाओं के मन में कुछ विवेक है, वे तो धनुष के पास ही नहीं जाते। जब शिव धनुष को कोई राजा उठा तक नहीं सका तब जनक दुखी हो गए।

दीप दीप के भूपति नाना।
आए सुनि हम जो पनु ठाना॥
देव दनुज धरि मनुज सरीरा।
बिपुल बीर आए रनधीरा॥


जनक तब बोले , मैंने जो प्रण ठाना था, उसे सुनकर द्वीप-द्वीप के अनेकों राजा आए। देवता और दैत्य भी मनुष्य का शरीर धारण करके आए तथा और भी बहुत-से रणधीर वीर आए। पर धनुष तोड़कर मनोहर कन्या, बड़ी विजय और कीर्ति को पाने वाला ब्रह्मा ने रचा ही नहीं।

सुकृतु जाइ जौं पनु परिहरऊँ।
कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ॥
जौं जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई।
तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई॥


दुखित जनक बोले यदि प्रण छोड़ता हूँ, तो पुण्य जाता है, इसलिए क्या करूँ, कन्या कुँआरी ही रहे। यदि मैं जानता कि पृथ्वी वीरों से शून्य है, तो प्रण करके उपहास का पात्र न बनता।
जनक के वचन सुन कर सभी दुखी हो गए सिर्फ लक्ष्मण को यह बात खल गयी की रघुवंशियों के रहते पृथ्वी को वीरों से शुन्य कह दिया। उन्होंने कहा की यदि मै चाहूँ तो पृथ्वी को गेंद की तरह उठा डालू और फोड़ डालू। चाहू तो इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा कर १०० कोस की दौड़ लगा लू। ज्यों ही लक्ष्मण ने यह बात कहीं पृत्वी डगमगा उठी। तब गुरु विश्वामित्र ने राम को धनुष तोड़ने को कहा।

सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा।
हरषु बिषादु न कछु उर आवा॥
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ।
ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ॥


गुरु के वचन सुनकर राम ने चरणों में सिर नवाया। उनके मन में न हर्ष हुआ, न विषाद और वे खडे हुए उनकी शान देख जवान सिंह को भी लजाते हुए सहज स्वभाव से ही उठ खड़े हुए।राम को धनुष को तोड़ने के लिए उठता देख सीता प्रार्थना करने लगी की राम सफल हो सके।

मनहीं मन मनाव अकुलानी।
होहु प्रसन्न महेस भवानी॥
करहु सफल आपनि सेवकाई।
करि हितु हरहु चाप गरुआई॥


वे व्याकुल होकर मन ही मन प्रार्थना कर रही हैं - हे महेश-भवानी! मुझ पर प्रसन्न होइए, मैंने आपकी जो सेवा की है, उसे सुफल कीजिए और मुझ पर स्नेह करके धनुष के भारीपन को कम कर दीजिए ।श्री राम ने देखा सीता जी अति व्याकुल हो रही थी ।

का बरषा सब कृषी सुखानें।
समय चुकें पुनि का पछितानें॥
अस जियँ जानि जानकी देखी।
प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥


राम जी ने सोचा सारी खेती के सूख जाने पर वर्षा किस काम की? समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ? जी में ऐसा समझकर राम ने जानकी की ओर देखा और उनका विशेष प्रेम देख वे पुलकित हो गए।

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा।
अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ।
पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥


राम धनुष तोड़ने के लिए उठे और मन-ही-मन उन्होंने गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुष को उठा लिया। जब उसे (हाथ में) लिया, तब वह धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश में मंडल-जैसा (मंडलाकार) हो गया।

इस भाग में बस इतना ही। बाकि रामायण फिर कभी।

Thursday, January 25, 2024

राम, रामकथा और राम लला

ॐ गणेशाय नमः
मैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के विषय में कुछ चर्चा करने की हिम्मत कर रहा हूँ और श्री गणेश को इस लिए साक्षी मान रहा हूँ क्योकि वे ऋषि व्यास रचित महाभारत और गीता को सही सही लिपिबद्ध कर पाए। मुझसे कुछ गलती हो जाय तो क्षमा मांगता हूँ।



राम का अर्थ
कहीं पढ़ा था राम तीन अक्षरों से बना है र आ म । र का मतलब है रसातल , आ यानि आकाश म का मतलब है मृत्यु लोक यानि राम में तीनो लोक समाया है। क्योंकि वे त्रिलोकीनाथ है।
अभी अभी राम लला अपने नए भवन में विराजमान हुए है और ख़ुश हू़ कि भारत के अलावा भी 40 देशो में खुशियां मनाई गयी। कुछ समाचार के हेडलाइंस यूँ दिखे :
MEXICO GETS ITS FIRST RAM MANDIR. ...
MAURITIUS ORGANISED A BIG CAR RALLY. ...
SAN FRANCISCO'S TESLA MUSIC SHOW. ...
CALIFORNIANS WAVING SAFFRON FLAGS. ...
Taiwan organises 'Keertan-Bhajan' ...
KENYA ORGANISE RALLY.
Times Square New York Echo with Jai Shri Ram

मन में प्रश्न उठता है क्या है श्री राम ? उत्तर खुद ही सूझ जाता है : राम एक लोक आस्था है। जन मानस में रचा बसा। कई आधुनिक धर्म से भी प्राचीन आस्था। यह कोई संयोग नहीं है कि हमारे रोज कि बोलचाल कि भाषा में राम शब्द का प्रयोग बहुत प्रचलित है कुछ उदाहरण देता हूँ :
राम राम जी - अभिवादन अन्य अभिवादन जैसे राधे राधे या जय श्री कृष्ण
हे राम : जब भी मुश्किल में हो (महात्मा गाँधी के भी अंतिम शब्द )
राम राम : राम राम कर हम पहुँच ही गए
छी छी राम राम : कोई गन्दी वास्तु देख कर
हाय राम : शर्म लज्जा
राम नाम सत्य है : मृत्यु होने पर
अवश्य आपके पास भी कुछ और उदहारण होंगे।

इतना ही काफी नहीं भारत में करीब १२०० शहर ऐसे है जिनके नाम में राम आता है। निष्कर्ष यह है राम हमारे जीवन में रचा बसा है जैसे वह आत्मा हो हमारे समाज का। एक रामगढ़ तो मेरे शहर से सिर्फ ४० कि० मि० पर ही है।



राम के नाम से मेरा और मेरी अंजू दीदी का परिचय बहुत छोटी उम्र में हो गया था। १९५३ में यानि जब मै तीन वर्ष का था। हमलोग तब अपने ननिहाल बेगूसराय (बिहार) में रहते थे और हमारे मौसेरे भाई बहनों के साथ थे कुल १४ बच्चे । कुछ अवश्य बड़े थे और मेट्रिक या ISc में पढ़ते थे। शाम को सिर्फ ३ लालटेन जलाए जाते थे एक रसोई में बाबाजी के पास एक नाना के पास और एक के आस पास हम सभी भाई बहन। पढ़ाने को एक मास्टर साहब आते थे जिनकी छड़ी कुछ भाई बहनो को अवश्य बड़े होने तक याद रह गई होगी। उनके आने पर ही तीसरी लालटेन जलाई जाती बाहर बरामदे में जहां एक बड़ी दरी बिछाई जाती। हमारी स्व मसेरी बहन डा पुष्पा प्रसाद का एक वीडियो मैं एक बार FB पर डाल चूका हूँ की कैसे तब मास्टर साहेब को परेशान करते थे उनके छात्र और इस काम में हमारे छोटे चाचा जी भी शामिल रहते । मास्टर जी के चले जाने के बाद हममे सबसे बड़ी शांति दीदी रामायण का पाठ शुरू करती । सस्वर पाठ होता। हम दोनों (मैं और अंजू दीदी) को सिर्फ मंगल भवन वाला याद रहता। यह मेरा राम और रामायण से पहला साक्षात्कार था। फिर जब जमुई आ गए हमारी छोटी बहन मुकुल के जन्म के बाद तो दादू से सुनाने को मिला "राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट अंत काल पछतायेगा प्राण जब जायेंगे छूट "।

प्रभु से बड़ा प्रभु का नाम

जहाँ अन्य धर्मों में भगवान के दूत , पुत्र या गुरु पूजे या याद किये जाते है हिन्दू धर्म इश्वर के धरती पर जन्म लेने को मानता है और उसे अवतार कहा जाता है । दशावतार में से नौ का धरती पर जन्म हो चुका है । माना जाता है और सिर्फ एक अवतार कल्कि की प्रतीक्षा है। राम विष्णु के सातवें अवतार माने जाते है जिनका जन्म त्रेता युग में हुआ माना जाता है। वे एक सूर्य वंशी राजकुमार थे। इनके वंश में ही गंगा तो धरती पर लाने को विवश करने वाले भगीरथ और सत्यवादी राजा हरिचन्द्र भी हुए । राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार थे। इन्होने मर्यादा का साथ कभी न छोड़ा। गुरु की आज्ञा पर उपद्रवी (यज्ञों का नाश करने वाला ) राक्षसों का वध किया , गुरु आज्ञा पर शिव धनुष तोड़ सीता से विवाह किया , पिता की आज्ञा पर राजगद्दी त्याग चौदह वर्ष की वनवास पर चले गए और एक साधारण मनुष्य के जैसे पत्नी के वियोग में जगह जगह भटके। पत्नी को खोजने में उन्होंने किसी देवता, राजा महाराजा की मदद नहीं ली। मदद ली सुग्रीव की जो खुद सताया हुआ था और बालि से छिपता फिर रहा था। देवत्व सिर्फ तब जाहिर होता है जब समुद्र के पार श्री लंका तक जाने के लिए पर पुल बनाना पड़ा। उसके नाम लिखते ही पत्थर समद्र में तैरने लग गए। जब श्री राम ने ऐसा देखा तो उन्होंने भी एक पत्थर समुद्र में छोड़ दिया और वो डूब गया। राम ने इधर उधर देखा की किसीने देखा तो नहीं, लेकिन हनुमान देख रहे थे। उन्होंने कहा प्रभु आपने जिसे छोड़ दिया वो तो डूबेगा ही। पर राम लिखते ही वे पत्थर भी तैरने लगे । इसने उस कथन को जन्म दिया "प्रभु से बड़ा प्रभु का नाम" ।

रामायण के कई रूप

सुना ही होगा

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता।
कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता ।।

लेकिन प्रभु राम की कथा लिखी किसने। इस संसार में रामायण के 300 से भी अधिक प्रकार है। शायद पहली राम कथा हनुमान ने लिखी फिर महर्षि वाल्मीकि ने और कलमबद्ध देवर्षि नारद ने किया। महर्षि वाल्मीकि राम के समकक्ष थे और उनकी कथा प्रमाणिक मानी जाती है और अन्य सभी रामायण या रामकथा कुछ अंतर को छोड़ इसी रामायण पर आधारित है। मैंने एक बार इस रामायण के अनुवाद के कुछ अंशों को पढ़ा भी था। थोड़ा लय में नहीं पढ़ पाया। २४००० श्लोको वाला यह काव्य सात कांड में बटा हुआ है क्योंकि इसमें उत्तर कांड नहीं है।

रामायण का इतिहास

वाल्मीकि की रामकथा सिर्फ उनके लिखे रामायण तक सीमित नही रही। महर्षि व्यास रचित महाभारत में भी 'रामोपाख्यान' के रूप में आरण्यकपर्व में यह कथा वर्णित हुई है। पवनपुत्र भीम और हनुमान जी वन पर्व में मिलते है और उनका संवाद भी इसी पर्व में है। इसके अतिरिक्त 'द्रोण पर्व' तथा 'शांतिपर्व' में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध हैं। महाभारत के बाद बौद्ध और जैन परम्पराओं में भी राम कथा का वर्णन मिलता है। परमार राजा भोज ने चम्पू रामायण लिखी थी। जो ११ वीं शताब्दी में लिखी गयी।
रामायण कई भारतीय और विदेशी भाषाओँ में लिखी गई। विकिपीडिया के अनुसार हिन्दी में कम से कम 11, मराठी में 8, बाङ्ला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायणें मिलती हैं। हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस ने उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया। इसके अतिरिक्त भी संस्कृत,गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में राम कथा लिखी गयी। थाईलैंड में एक जगह है अयूथया जिसे वे अयोध्या ही मानते है और यहां के रामायण का नाम है रामकियेन। कम्बोडिया के रामायण का नाम है रामकर , जावा, इंडोनेशिया में तो चार रामायण है सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा। नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण है।

आईये इसे एक टेबल के रूप में देखें
देश देश का रामायण

नेपाल भानुभक्तकृत रामायण, सुन्दरानन्द रामायण, आदर्श राघव
कंबोडियारामकर
तिब्बततिब्बती रामायण
पूर्वी तुर्किस्तानखोतानी रामायण
इंडोनेशिया ककबिनरामायण
जावासेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा
इण्डोचायनारामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैर रामायण
बर्मा (म्यांम्मार)यूतोकी रामयागन
थाईलैंड रामकियेन

भारतीय भाषाओँ में रामायण

कम से कम 2,000 वर्षों से, भारत और श्रीलंका में रामायण के विभिन्न संस्करण बताए गए है और मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में 1,000 से अधिक वर्षों से; और अब पश्चिम में भी तेजी से बढ़ रहा है और कई विदेशी भाषाओ में अनुवाद हुआ है या लिखे गए हैं। वाल्मीकि कृत रामायण के बाद संस्कृत भाषा में कई रामायण लिखे गए। अध्यात्म रामयण जो संभवतः ऋषि व्यास द्वारा लिखा गया तुलसी दास लिखित रामचरित मानस का आधार माना जाता है। संस्कृत भाषा में कई रामायण लिखे गए और भावविभूति कृत उत्तर राम चरित्र में ही राम के राज्याभिषेक के बाद कि कहानी मिलती है यानि वाल्मीकि के आश्रम में राम और सीता के जुड़वे पुत्रों का जन्म और राम का अश्वमेघ यज्ञ। राजा भोज लिखित चम्पू नारायण के बाद १२ वीं शताब्दी में लिखी गयी तमिल भाषा कि रामायण कम्ब रामायण। गूगल के अनुसार अन्य संस्करणों में कृतिवासी रामायण शामिल है, जो 15वीं शताब्दी में कृतिबास ओझा द्वारा लिखित एक बंगाली संस्करण है; 15वीं सदी के कवि सरला दास द्वारा विलंका रामायण और 16वीं सदी के कवि बलराम दास द्वारा जगमोहन रामायण (जिसे दांडी रामायण भी कहा जाता है), दोनों उड़िया में; 16वीं सदी के कवि नरहरि द्वारा कन्नड़ में तोरवे रामायण; अध्यात्मरामायणम, 16वीं शताब्दी में थुंचत्थु रामानुजन एज़ुथाचन द्वारा लिखित एक मलयालम संस्करण; 18वीं शताब्दी में श्रीधर द्वारा मराठी में; 19वीं सदी में चंदा झा द्वारा मैथिली में; और 20वीं सदी में, कन्नड़ में राष्ट्रकवि कुवेम्पु की श्री रामायण दर्शनम और तेलुगु में विश्वनाथ सत्यनारायण की श्रीमद्रामयण कल्पवृक्षमु, जिन्हें इस काम के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। झारखण्ड में रामायण का एक संस्करण फादर कामिल बुल्के ने लिखा है जिसका नाम है रामकथा उत्पत्ति और विकास। उनके अनुसार रामकथा अंतर्राष्ट्रीय कथा है जो वियतनाम से लेकर इंडोनेशिया तक फैली है ।

रामायण कि बात हो और तुलसी दास कृत राम चरित मानस के बारे में चर्चा न करूँ ? उत्तर भारत में यह सबसे लोकप्रिय रामायण है। एक तो यह लोकभाषा में लिखा ग्रन्थ है दूसरा यह मीटर में लिखा ग्रन्थ है और सभी चौपईया सुर में गाई जा सकती है। अक्सर इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ लोग घर में रखते है खास कर हनुमान जी की भक्ति में। मैं यह दावा नहीं करता कि पूरे ग्रन्थ को कभी पढ़ा है पर यह बहुत सुर में गाया जा सकता है यह मुझे पता है। राम पर भजन तो बचपन में बहुत बार गाया था हमारे नज़दीक के शिव मंदिर में। मंदिर तो शिव जी का था पर भजन राम का ही गाते थे हम लोग।

अब मैं राम के नाम वाले कहावतें लिखता हूँ । आपको कोई याद आ रहा है तो बताये।

  • मुंह में राम बगल में छूरी
  • राम नाम जपना पराया माल अपना
  • जिसका राम धनी उसको कौन कमी
  • आया राम गया राम
  • दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम
  • राम मिलाय जोड़ी एक अँधा और एक कोढ़ी
  • राम जी कि माया कहीं धूप कहीं छाया

कुछ विशेषण भी राम या रामायण से हमारे बोलचाल में आ गई है। जैसे
राम जैसा राजा
भरत सा भाई
लखन सा देवर
राम लखन सी जोड़ी
हनुमान सा भक्त
रावण सा ज्ञानी
और अंत में घर का भेदी लंका ढ़ाहे

राम के विषय में कितना भी लिखा पढ़ा जा सकता है लेकिन मेरा सीमित राम ज्ञान से अभी बस इतना ही।

Friday, January 19, 2024

चौधुरी होशियारपुरी एंड संस

एक रिटायर्ड आदमी आखिर क्या करें ? वो तो वेल्ला होता है। कोई काम न काज । पत्नी भी उसे बेमतलब बाजार भेजती रहती है तांकि कुछ तो कर ले और मुझे भी थोड़ा चैन मिले। फिर भी काफी समय बच जाता है। क्या वह TV देखे , या राजनीति पर वाद - विवाद या बहस करे ? किससे बहस करे ? दोस्त भी दूर दूर हो जाते है। क्या कहा ? पत्नी से ? मज़ाक कर रहे हो भई । या शायद उसे कोई रचनात्मक काम करना चाहिए । कुछ एक्स्ट्रा काम कर पैसे कमाए , कोई व्यापार करे , या समाज के लिए कुछ करें। विज्ञानं कहता है आप बात करे किताब पढ़े दिमाग का काम लेते रहे नहीं तो डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर का खतरा रहता है। अब आप पूछेंगे भई तुम भी तो रिटायर्ड हो तुम क्या करते हो ? मैं यह दावा नहीं करता कि मैं अपना सारा समय ब्लॉग लिखने में लगाता हूँ। कई बार हारने के लिए बहस करता हूँ - पत्नी से , और टीवी भी देखता हूँ। मैं टीवी में दुनिया के समाचार के अलावा OTT प्लेटफार्म पर सीरियल भी देखता हूँ । इनमे हमें सबसे अच्छा "पंचायत" "गुल्लक" और "महारानी" लगे और महारानी के तीसरे भाग का इंतज़ार हम कर रहे है। थ्रिलर में अनदेखी, क्रिमिनल जस्टिस और टब्बर बहुत पसंद आया। बुरी बात यह है कि पसंद वाले सभी सीरियल जल्द ख़त्म हो जाते है। अब कितने OTT PLATFORM कि सदस्यता ले। अच्छे सीरियल की कमी के कारण कुछ और करना पड़ा। यूट्यूब में हम कंटेंट ढूढ़ने लगे। ट्रेवल व्लॉगस कई देखे फिर कोई सीरियल खोजने लगे / इसमें पाए जाने वाले कंटेंट में ज्यादातर तो हमको या मेरे हमसफ़र को पसंद नहीं आता।

अब हमसफ़र से एक बात याद हो आई। हमसफ़र फवाद खान और माहिरा खान का पाकिस्तानी ड्रामा है जो पाकिस्तान का दूसरा सबसे लोकप्रिय TV ड्रामा है। पाकिस्तानी ड्रामा में हम अपना मुकम्मल हिदुस्तान ढूढ़ने लगे - जब हम एक थे। लाहौर , करांची के लिए या मरी, हुंजा वैली के लिए कोई वीसा नहीं लेना पड़ता। इन ड्रामों के कथानक में अक्सर सास बहु , नन्द - भौजाई या जेठानी देवरानी, अमीर - गरीब, Joint family वाली कहानियां होती है और उनमे से कुछ अच्छी भी होती है। हो एक फर्क दिखता वह होता है इंस्टेंट तलाक जिसपर आधारित है सीरियल "हमसफ़र " जिसमे गर्भवती माहिरा खान को उसकी सास बदचलनी का आरोप लगा घर से रात में निकल देती है और वह बड़ी मुश्किल में दिन काटती है। फवाद खान तलाक नहीं देता है। अंत में फवाद खान को सब पता चलता है और परिवार फिर से एक हो जाता है। पाकिस्तानी सेरिअल्स में शादी के लोक गीत ढोलकी दिखाते ही है कुछ भी ख़ुशी हुई लोग भंगड़ा भी पा लेते है । 1947 की भयानक त्रासदी के बाद भी बहुत कुछ दोनों तरफ एक जैसा है। उस पर बॉलीवुड फिल्म की लोकप्रियता भी दिख जाती है इन ड्रामा में गाने अक्सर हिंदी फिल्म के गुनगुनाये जाते है। पंजाबी लोकगीत तो ऎसी की शायद ओरिजिनल इन्हीं में गा रहे हो । कई संवाद भी हमारी फिल्मों के होते है। पाक ड्रामा में अच्छी बात है की कोई वायलेंस , शराबखोरी अशिष्ट भाषा और वल्गरिटी नहीं होती किसी किसी सीरियल में धूम्रपान जरूर देखा है। शायद भारत को ध्यान में रख कर ही बनाये जाते है ये सेरिअल्स। अब क्यूंकि मैं पुराने ड्रामा देखते हूँ सभी एपिसोड उपलब्ध रहते और आपको सप्ताह के किसी खास दिन की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।

हमसफर से हमें अपनी दूसरी पास्टाईम याद हो आया। अच्छे मनोरंजक पाकिस्तानी ड्रामा जी जिंदगी या यूट्यूब पर देखना। जी ज़िंदगी चैनल जब शुरू हुआ था तब पहला सिरियल था औन ज़ारा यह एक कामेडी था। औन की दादी, बुआ और होने वाले ससुर ने बहुत अच्छी एक्टिंग की। कहानी औन और ज़ारा के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। औन, अपने परिवार में एकमात्र पुरुष होने के कारण, हर कोई उसका बहुत लाड़-प्यार करता है। औन अपने अत्यधिक सुरक्षात्मक और दबंग परिवार के सदस्यों की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए मर रहा है। ज़ारा एक जिद्दी और जिंदादिल लड़की है। औन के विपरीत, वह एक ऐसे घर में रहती है जहाँ वह अपने परिवार की एकमात्र महिला सदस्य है। ज़ारा अपने पिता और दादा के साथ रहती है। उसके पिता, जमशेद, एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी, चाहते हैं कि ज़ारा वायु सेना में शामिल हो। हालाँकि, ज़ारा पारिवारिक जीवन जीना चाहती है

दूसरा सिरियल था ज़िन्दगी गुलज़ार है । कहानी कशफ़ मुर्तज़ा (सनम सईद ) और ज़ारून जुनैद (फवाद खान ) के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। कशफ़ एक निम्न-मध्यम वर्गीय पारिवारिक पृष्ठभूमि से आती है और अपनी माँ, राफिया और अपनी दो बहनों, सिदरा और शहनीला के साथ रहती है। राफिया के पति मुर्तजा ने राफिया को छोड़ दिया था क्योंकि उसने बेटे को जन्म नहीं दिया था। मुर्तजा ने एक अन्य महिला से शादी की, जिसने अंततः उसके बेटे हम्माद को जन्म दिया। परिवार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे कशफ को पुरुषों के प्रति शर्मिंदा, असुरक्षित और अविश्वास हो जाता है। राफिया एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल के रूप में काम करती है और घर चलाने के लिए शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है। उनकी बेटियाँ भी बुनियादी जीवन जीने के लिए कई तरह के त्याग करती हैं।

जारून जुनैद के परिवार में उनके पिता जुनैद हैं, जो शांत और परिपक्व हैं। उनकी मां ग़ज़ाला जुनैद एक स्वतंत्र कामकाजी महिला हैं। ज़ारून की बहन, सारा, जीवन के बारे में अपनी माँ के समान ही विचार रखती है। ज़ारून के करीबी दोस्तों में अस्मारा और ओसामा शामिल हैं। वह इस बात से अनजान रहता है कि अस्मारा उससे प्यार करती है। उनके परिवार वालों ने उनकी सगाई कर दी, लेकिन जीवनशैली में असंगत मतभेदों के कारण उन्होंने सगाई तोड़ दी। इस बीच, उसकी बहन की शादी विफल हो जाती है। ज़ारून ने अपनी आदर्श पत्नी के बारे में कुछ धारणाएँ विकसित कीं।


कशफ़ को एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति मिलती है। उसकी मुलाकात जारून जुनैद से होती है, जो उससे बिल्कुल अलग जिंदगी जीता है। ज़ारून का समृद्ध अहंकार कशफ़ को गहराई से परेशान करता है। पुरुषों के प्रति उसके अविश्वास और वर्ग भेद के बारे में विचारों के कारण, वह अन्य छात्रों के साथ घुल-मिल नहीं पाती है। उसकी और ज़ारून की आपस में नहीं बनती है, जिसका मुख्य कारण ज़ारून का चुलबुला स्वभाव और अकादमिक रूप से उससे बेहतर प्रदर्शन करने की ईर्ष्या है। इसके बावजूद, जारून उसके साथ मेल-मिलाप करने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी कोशिशों को बार-बार असफलता मिलती है। एक दिन उसने ज़ारून को यह कहते हुए सुना कि वह केवल एक चुनौती के रूप में मित्रता करने और कशफ को फंसाने और उसकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहा था। लाइब्रेरी में उनके बीच भारी लड़ाई होती है और कशफ उससे पूरी तरह नफरत करने लगता है। ओसामा, ज़ारून का सबसे अच्छा दोस्त, कशफ़ को बहुत सम्मान देता है और उसके बचाव में आता है। सीरियल का अंत बड़ा सुखपूर्ण हुआ है जारून और कशफ शादी कर लेते है एक बच्चा भी होता है और दोनों एक साथ सुखी सुखी रहते है। यह सीरियल भारतीय उपमहाद्वीप - भारत सहित में बहुत लोकप्रिय हुआ।

"ज़ी ज़िन्दगी" के सारे सीरियल देख डाले टीवी पर भी और OTT पर भी । कुछ जो पसंद आये - मात , थकन ( नायिका सबा कमर जिसने हिंदी मीडियम में भी काम किया ) मेहविश हयात और सजल अली का "मेरे कातिल मेरे दिलदार" । फवाद खान , माहिरा खान , सबा कमर और सजल अली हिंदी फिल्मों में भी आ चुकी है। हम अब खोज खोज कर पाक ड्रामा यूट्यूब पर देखते है और पसंद वाली पूरी देख लेते है। अक्सर पाक ड्रामा परिवार के आस पास घूमता है और हीरो हीरोइन अक्सर कजिन होते है। जब बच्चो कि शादी कि बात आती है तब माँ को अपने ननद के बच्चे पसंद नहीं आते और बाप को साली या साले के बच्चे पसंद नहीं आते। इन सबसे बचने के लिए हम कॉमेडी खोज खोज कर देखते है। कुछ के नाम दे रहा हूँ - सुनो चंदा , कला डोरिया , चुपके-चुपके , प्रेम गली , परिस्तान, अहदे - वफ़ा , यकीन का सफर, चाँद तारा इत्यादि। हर पाकी सीरियल में किसी न किसी बॉलीवुड फिल्म का गीत के मुखड़े , डायलाग इत्यादि रहती है। सुन्दर स्त्री की तुलना ऐश्वर्या रॉय से और हीरो की तुलना शाहरुख खान से करना मामूली बात है। अमिताभ के डायलॉग "रिश्ते में हम " "जहां मैं खड़ा होता हूँ - लाइन वहीँ" भी सुनने को मिल जाती है। पंजाबी गाने और लोकगीत में भारतीयता की पुट होती है। हाल में जो सीरियल अच्छा लगा वो था। चौधुरी एंड संस।




चौधुरी एंड संस। चौधुरी परिवार होशिआरपुर से पाकिस्तान गया है ऐसा प्रतीत होता है और उनके करीबी अब भी भारतीय हैदराबाद में रहते है। इस ड्रामा में पाकिस्तान के हैदराबाद और हिंदुस्तान के हैदराबाद के CONFUSION को प्रयोग में लाया गया है। परी की माँ ने अपने खानदान से बाहर भाग कर शादी कर ली थी और इसलिए परी के नना और उनका प्रिय पोता- बिल्लू परी की माँ से बहुत नफरत करते है। वास्तव में परी के माँ बाप उसे लेकर परिवार से माफ़ी मांगने आ रहे थे जब एक दुर्घटना में उनका देहांत ही गया। दादी ने परी को पला पर उम्र होने पर वो चिंतित है और हैदराबाद - दक्कन से आये है कह कर पारी के साथ उसके ननिहाल रहने आ जाती , बिना उसे बताये है । दादी जानती है की राज खुलने पर परी के माँ के कारण सब नफरत करेंगे वो राज को राज रखना चाहती है पर जब परी के समझ में आता है की वह अपने ननिहाल में है तो वह सभी को बताना चाहती है। इसी बीच परी और बिल्लू की शादी कर दी जाती है और कई भावपूर्ण दृश्यों के बाद सीरियल ख़त्म होती है। यह सिर्फ कॉमेडी ही नहीं बहुत कुछ है।

मैंने तो अपने काम काज न रहने पर किस तरह समय बिताएँ पर अपनी राय रखी। बहुतों को ये अच्छा नहीं लगे की मेरा एक व्यसन पाक ड्रामा देखने है , पर आप क्या करते है ?

Monday, January 15, 2024

मकर सक्रांति

मकर सक्रांति - क्या है ? क्यों हर साल १४ या १५ जनवरी को ही मनाया जाता है ?

मकर सक्रांति - पूरे भारत और नेपाल में भिन्न भिन्न नाम से और भिन्न भिन्न तरीके से मनाया जाता है। कुछ बातें पहले बता दू फिर इसके कई नामों और रूप की बात करेंगे। हमारा आसमान के तारे १२ राशियों के तारा समूह में बंटा है । और सूरज हर महीने इसमें से किसी एक राशि में रहता है या पृथ्वी से उसी राशि में दिखता है। जब सूरज किसी एक राशि से दूसरे राशि में जाता है तो उसे संक्रांति कहते है और मकर संक्रांति के दिन सूरज धनु राशि से मकर राशि में जाता है।क्योकि संक्रांति पृथ्वी की सूर्य के परिक्रमा पर निर्भर है यह ग्रेगोरियन कैलेंडर जो एक सोलर कैलेंडर है से हर वर्ष मैच करता है। अब अंग्रेजी कलैंडर को सही सही रखने के लिए लीप ईयर के कई नियम (CLICK TO SEE) बनाये गए है और इसके कारण संक्रांति के तारीख में एक दिन का फर्क किसी किसी वर्ष हो जाता है।

गुजरात में पतंग बाजी, वेंन पोंगल

इस वर्ष संक्रांति किस किस तारीख पर पड़ता है ? किसी किसी वर्ष एक दिन का फर्क हो सकता है।
१४ जनवरी - मकर संक्रांति , पोंगाल
१३ फरवरी - कुम्भ संक्रांति
१४ मार्च - मीन संक्रांति
१३ अप्रैल - मेष संक्रांति - वैशाख , पोइला वैशाख , सतुआनी , बिहू , पण संक्रांति
१५ मई - वृषभ संक्रांति
१५ जून - मिथुन संक्रांति
१६ जुलाई - कर्क संक्रांति
१६ अगस्त - सिंह संक्रांति
१६ सितम्बर -कन्या संक्रांति -विश्वकर्मा पूजा
१७ अक्टूबर -तुला संक्रांति
१५ नवम्बर -वृश्चिक संक्रांति
१५ दिसम्बर -धनु संक्रांति

हर संक्रांति पर सूर्य पूजा किया जा सकता क्योंकि सूर्य का ही भ्रमण एक राशि से दूसरी राशि में होता है। तीन प्रमुख संक्राति मकर संक्रांति , मेष संक्रांति और कन्या संक्रांति या विश्वकर्मा पूजा तो प्रसिद्द है पर कुछ संक्रांति के लिए कुछ नियम भी बनाये गए है जैसे मिथुन संक्रांति के दिन गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में अम्बुवाची मेला लगता था। सिंह संक्रांति के दिन चंद्रभागा नदी (हिमांचल में चेनाब नदी ) की पूजा की जाती है। कर्क संक्रांति उत्तरायण जो मकर संक्रांति को शुरू होता है का अंत होता है। धनु संक्रांति के दिन नेपाल और भूटान में जंगली आलू खाने का रिवाज़ है और इसी दिन शुरू होता है खरमास जो मकर संक्रांति के दिन ख़त्म होता है। जिस तरह मकर संक्रांति में तिल गुड़ कहते है मेष संक्रांति में सत्तू खाने का रिवाज़ बिहार में है।

अब देखे हर प्रदेश या देश में मकर संक्राति का अभिवादन कैसे करते है।

*Happy Makara Sankranti* -_(AP , Karnataka, Kerala, Goa, Maharashtra)
*Happy Pongal* --(TN & Pondicherry)
*Happy Lohri* --(Punjab & Haryana)
*Sakraat & Makraat* -- (Bihar, UP, Uttarakhand)
*Happy Uttarayan* -- (Gujarat, Diu, Daman)
*Happy Suggi* -- (Karnataka)
*Happy Magh Saaji* --(HP)
*Happy Ghughuti* --(Kumaon)
*Happy Makara Chaula* -(Odhisha
) *Happy Kicheri* ---(Poorvanchal East UP)
*Happy Pousha Sankranti* -- (Bengal & NE)
*Happy Magh Bihu* --(Assam & NE)
*Happy Shishur Sankraat* --(Kashmir )
*Happy Maaghe Sankrant* -- Nepal
*Happy Tirmoori* -- Sindh Pakistan
*Happy Songkran* -- Thailand
*Happy Pi Ms Lao* -- Laos
*Happy Thingyan* --Myanmar
*Happy Mohan Songkran* -- Cambodia



नेपाली माघे संक्रांति पर विशेष खाना , माघ बिहू पर असम में भैसों की लड़ाई

अब आईये देखे मकर संक्रांति मानते कैसे है।
नदियों में स्नान करने की परंपरा है पर सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है गंगासागर जहां मकर संक्रांति पर मेला लगता है। सभी तीर्थ बार बार, गंगासागर एक बार कहावत प्रचलित है। बचपन में मां कहती आज बिना तेल लगाए नहा लो नहीं तो दूल्हन/ दुल्हा काला मिलेगा। बिहार में चूड़ा,दही तिलकुट खाने का रिवाज है। आलू मटर की सब्जी भी बनती है। मां काला तिल के साथ गुड़ देती और कहती तिले तिले बह दिहे। नदियों में स्नान करने की परंपरा है पर सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है गंगासागर जहां मकर संक्रांति पर मेला लगता है। सभी तीर्थ बार बार, गंगासागर एक बार कहावत प्रचलित है। बचपन में मां कहती आज बिना तेल लगाए नहा लो नहीं तो दूल्हन/ दुल्हा काला मिलेगा। बिहार में चूड़ा,दही तिलकुट खाने का रिवाज है। आलू मटर की सब्जी भी बनती है। मां काला तिल के साथ गुड़ देती और कहती तिले तिले बह दिहे। मराठी लोग ऐसा ही कुछ बोलते है "तिल गुड़ खया गुड़ गुड़ बोला"। जब दक्षिण भारत में था तब पोंगल एक बड़ा उत्साह वाला त्योहार लगा। चार दिनों में मनाया जाने वाला यह त्यौहार लोहरी के दिन यानि १३ जनवरी के दिन भोगी पोंगल से शुरू होता है देवराज इन्द्र के पूजा के साथ । बड़ी बड़ी सुन्दर अल्पना लोग बनाते है। खाने में पोंगल होता है जो नए चावल से बनी एक प्रकार की खिचड़ी है। क्या इत्तेफ़ाक़ है की UP में मकर संक्रांति को खिचड़ी ही कहते है। पंजाब में लोहरी जला कर और नाच गा कर मानते है जबकि झारखण्ड में टुसु पर्व या सोहराय पर्व में मनाया जाता है मकर संक्रांति। गुजरात में इसे उत्तरायण कहते है। थोड़ा सा गलत लगता है क्योंकि २१-२२ दिसंबर से ही जब साल की सबसे लम्बी रात होती है के बाद सूर्य मकर रेखा से उत्तर के तरफ जाने के लगता है और जून २१ - २२ तक उत्तर जाने के बाद पुनः दक्षिण की तरफ जाता है। गुजरात में खास कर पतंग उड़ाने का रिवाज़ है और थाईलैंड को इसे सॉन्कर्ण कहते और इस दिन पतंग उड़ाया जाता है। श्रीलंका में इसे थिरनल और पोंगल कहते है। बर्मा में भी इसका नाम थिरनल के जैसा है थिनज्ञान। नेपाल में माघे संक्रांति में कुछ seasonal चीज़े जैसे सकरकंद , तिरल और गुड़ तिल, मुरही से बने पकवान खाते है। तराई के थारू लोग घोघा और खेतों के चूहे को भी खाते है इस अवसर पर। जहां जहां भारतीय बसे गए वहां वहां किसी न किसी रूप में ये तोयहर बनाया जाता है। इतने विशाल क्षेत्र में तरह तरह के नाम से मनाये जाने वाले पर्व की विशेषताएं एक ही ब्लॉग में बता देना बहुत मुश्किल है। अभी बस - बांकी अगले ब्लॉग में।

Friday, January 12, 2024

जब गोवा जाते जाते रह गया

लोग कहते हैं कि एक बार जीवन में गोवा जरूर जाना चाहिए क्यो ?

कुछ लोग गोवा की खूबसूरती प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तटों, और जीवंत संस्कृति के लिए पसंद करते है। कुछ लोग इसके रहस्यमयता के लिए और कुछ सिर्फ फेनी के लिए। यह विदेशियों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है यहां तक की एक बीच को रसियन बीच कहा जाता है। इंटरनेट क्या कहता है गोवा के बारे में ? "गोवा दौरे के दौरान प्राचीन किला अगुआड़ा, किला चापोरा और श्री मंगेश मंदिर की यात्रा करना आनंदमय रहेगा। बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस एंड सी कैथेड्रल और ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर जाकर 4 दिनों के लिए अपनी गोवा ट्रिप पर जा सकते है। गोवा का सबसे बड़ा आकर्षण निस्संदेह इसकी सुनहरी-रेत के समुद्री तट है। " पर इन सबों के सिवा भी कई अच्छी चीज़े है इस छोटे से राज्य में। मैं भी उत्सुक था गोवा जाने के लिए और ५-६ बार गए भी लेकिन सबसे दिलचस्प किस्सा मेरे पहले उस ट्रिप की है जब मै गोवा जाते जाते रह गया।

१९६९ में हमारा कॉलेज ट्रिप दक्षिण पश्चिम भारत का था। हम अपनी रिजर्व बोगी से सफर कर रहे थे । दक्षिण भारत और दक्कन के तब बहुत जगहों पर मीटर गेज रेल लाइन थी और इस लिए कई जगह हमें नयी साइज की नयी बोगी में हमे शिफ्ट करना होता। हम GT (जनरल थर्ड क्लास ) बोगी में आमने सामने के सीट के बीच स्टील वाले कैंप कोट का टॉप डाल देते , साइड सीट के बीच रस्सी से खाट के तरह बीन देते और इस तरह सभी के लिए सोने की जगह बन जाती । नए बोगी में इन स्टील कैंप काउट के साथ SHIFT करना एक बहुत मेहनत और मुश्किल काम था जो कैंप अटेंडेंट कर देते। और सबसे मुश्किल हुआ थे चेन्नई (तब मद्रास) में। हमारी BG बोगी मद्रास बीच स्टेशन पर पार्क थी पर MG बोगी मद्रास एग्मोर स्टेशन पर थी और यह काफी बड़ी दूरी थी। जब हम बंगलोर से चले तो गुंटकल-लोढ़ा-वास्को - लोढ़ा - पुणे तक मीटर गेज ही था तब। मीटर गेज बोगी में साइड वाला सीट नहीं होता था। और हमें सोने के लिए जगह कम हो जाती थी ।

उस पुरेु ट्रिप के बारे में फिर लिखूंगा पर ट्रिप के उस छोटे भाग पर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा जब गोवा जाते जाते रह गए। कॉलेज ट्रिप में हम एक पूरी बोगी बुक कर घूमने निकले थे और उसी बोगी में सोते, रहते भी थे। हमलोग तमिलनाडु - केरल के बाद पहुंचे बगलोर (अब बैंगलुरु )। बैंगलोर और मैसूर घूमने के बाद हमारा अगला स्टॉप था गोवा। हम लोग गोवा को १९६५ की फिल्म "जौहर महमूद इन गोवा " से ही जानते थे। सुना था बियर सस्ती है। बीच देखने का ज्यादा शौक तो नहीं था पर गोवा एक उत्सुकता जरूर पैदा करता था पर आज की जैसा क्रेज नहीं था। बैंगलोर से हमारी ट्रैन लोंडा जक्शन तक का था जहां १० घंटे बाद हमारी बोगी वास्को डा गमा स्टेशन जाने वाली ट्रैन में जोड़ी जानी थी।



हमारे पहले मैकेनिकल विभाग के छात्रों की ट्रिप गोवा जाने वाली थी। अब मोबाइल होता तो उनसे कुछ बातें करते। लोंडा जैसे स्टेशन पर हमें कुछ करने का था नहीं , प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर तक करीब 30 लोग चक्कर लगाए जा रहे थे। आज मॉर्निग वाक में एक आदमी को मोटर साइकिल पर चलते चलते एक हाथ से चाय पीते देखा । मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। चाय तो लोग रिलैक्स होने के लिए या समय बिताने के लिए पीते है न की समय बचाने के लिए। और हम यहाँ पता नहीं कितने कप चाय ४८ घंटे की अपनी इस लाचार स्थिति में पिया होगा। यात्री स्टेशन पर न के बराबर थी। पता नहीं क्यों हमने डायरेक्ट गोवा वाली ट्रेन क्यों नहीं चुनी । वास्तव में हमारी रेलवे बोगी किसी फ़ास्ट या मुख्य ट्रेन में नहीं जोड़ी जाती और रेलवे अपने परिचालन के सुविधानुसार ट्रेन में हमारी बोगी जोड़ती थी ।
ट्रेन आती थी तो हम झांक लेते। ऐसे घूमते घूमते किसी को स्टेशन मास्टर के ऑफिस के बाहर लगे बोर्ड पर एक टेलीग्राम दिखा। उसने देखा की यह टेलीग्राम कॉलेज प्रिंसिपल का था बस उसने टेलीग्राम को बोर्ड से उखाड़ा और प्रोफसर इन चार्ज को दे दिया। अब उस टेलीग्राम में लिखा था "Mechanical boys had trouble in Goa. Donot go to Goa" अब ग्रुप को आगे ले जाने की हिम्मत प्रोफेसर साहेब को नहीं पड़ी। इन प्रोफेसर को हम पिछले दो साल भी झेल चुके थे । उन्होंने तुरंत फुरंत स्टेशन मास्टर से अनुरोध किया की बोगी वास्कोडिगामा के बजाय अगले पड़ाव पूना (अब पुणे) के ट्रैन में ही जोड़ दिया जाय । तब गोवा जाने के लिए ट्रैन रूट लोंढ़ा jn होकर ही था। बैंगलोर गुंटकल लोंढ़ा वास्को लाईन एक मीटर गेज लाइन था। पूना भी लोंढ़ा ज० मिराज ज० होकर मीटर गेज लाइन ही था। हमारा बोगी कई बार BG से MG में बदला जा चुका था। और कोंकण रेलवे तब था नहीं । खैर लोंढा ज० के स्टेशन मास्टर ने कहा दो दिन बाद जिस ट्रेन में बोगी जुटनी थी उसी में जोड़ी जाएगी । उसके पहले संभव नहीं है। ‌यानि ऐसी जगह पर ४८ घंटे बिताने को हम मजबूर हो गए। वापस लौटने पर पता चला मैकेनिकल के लड़को ने मछुआरों को अपने बोगी में चढ़ने नहीं दिया था और मार पीट हो गयी। किसी का माथा फूटा और किसी का कैमरा टूटा। सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और किसी तरह पर्सनल बांड भर कर वे छूट पाए।

अब 48 घंट हमें बिताना था इस स्टेशन पर। कुछ लोग बाहर झांक कर आ गए। शहर कुछ खास नहीं। हम भी लगातार घूमते घूमते थक चुके थे। यदि गुगल होता तो यह पता कर लेते कि फकत २५ किलो मीटर पर ही है castle rock स्टेशन जहां से दूधसागर फाल देखा जा सकता था। ऐसे भी दूधसागर के विषय में बहुत बाद में पता चला। तब तक दो तीन बार की गोवा की ट्रिप हो चुकी थी।और हम अभी तक दूध सागर नहीं जा पाए। काश हमारी वास्कोडिगामा की रेलयात्रा तब हो जाती तो दूध सागर फाल भी देख लेते।





कैस्ल राक स्टेशन और कुलेम स्टेशन के बीच - जहां हम नहीं गए आभार सहित

इस failed गोवा ट्रिप के 20 साल बाद एक बहुत शार्ट टूर गोवा की लगी थी। 1998 में। तब हम ऑफिस के काम से गए थे और घूमने घामने का समय ही नहीं मिला था। एक पुराने Copper mill का काम था। हवाई जहाज से पहुंचे थे। बोगामेलो बीच के पास कंपनी का एक गेस्ट हाउस में रूका था। बगल में ही नेवी का AVIATION म्यूजियम था पर वहां भी नहीं जा सके। एक शाम बोगामेलो बीच के शैक में बीयर के साथ डिनर खाने के सिवा और कोई मस्ती न कर पाया।

गोवा के कुछ प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं:



पंजिम चर्च हमारे २०१० के ट्रिप से

समुद्र तट: गोवा के समुद्र तट भारत के कुछ सबसे खूबसूरत समुद्र तटों में से हैं। इनमें से कुछ लोकप्रिय समुद्र तटों में अंजुना, वागाटोर, बागा, और कलंगुट शामिल हैं। पुराने गोवा के चर्च, अगुआडा फोर्ट और कुछ प्रसिद्ध मंदिर भी है यहां का आकर्षण। लेकिन हमारी अगली गोवा ट्रिप 12 साल बाद 2010 में ही लगी। अगली चार गोवा ट्रिप अगले ब्लॉग में।

Tuesday, January 9, 2024

वो दो डरावनी हवाई यात्रा

हाल में जापान दोहरी आपदाओं का शिकार हुआ। नए साल के शुरू में हुए भयानक भूकंप फिर दो हवाई जहाज का हवाई अड्डे पर टकरा कर स्वाहा हो जाना। एक जापानी एयर लाइन (JAL ) की फ्लाइट टोक्यो लैंड कर रही थी और यह एक कोस्ट गार्ड की प्लेन, जो रनवे पर थी, से टकरा गयी। कोस्ट गार्ड वाले प्लेन के सभी 6 कर्मी दल मारे गए पर JAL के सभी 367 यात्री और कर्मी दल बचा लिए गए । धू धू कर जलते जहाज से इतने सारे यात्रियों के बचाने के यु ट्यूब वीडियो देख कर हमें दो ऐसी घटनाएं याद हो आई जो मेरे साथ घटित हुई थी। मैंने अपनी पहली हवाई यात्रा 1973 में की थी एक ट्वीनओटर जहाज से और वह छोटा हवाई जहाज कभी उपर कभी एयर पाकेट मिलने पर नीचे , मेरा पूरा समय हनुमान चालीसा पढ़ते बीता जबकि यह एक आम सी साधारण बात है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में कभी बहुत ज्यादा टरबुलेंस से पाला नहीं पड़ा । शायद बड़े जहाज और बादलों से बहुत उपर उड़ने के कारण। पर मै उन‌ दो उड़ा नो की बात ‌करने वाला हूं जो देश‌ के भीतर की उड़ाने थी।

90 के दशक में मुझे कई बार चेन्नई और विशाखापटनम जाना पड़ता था साइट, आफिस के काम के लिए । हम रांची से कलकत्ता हो कर जाते थे। तब 737 बोईंग के पुराने माडल वाले जहाज होते थे इंडियन एयरलाइन्स के पास और तब और कोई एयरलाइन्स था भी नहीं। हवाई विच्छोभ (AIR TURBULENCE ) से डर बहुत लगता था - अब भी लगता है। हनुमान चालीसा का ही सहारा होता था। चेन्नई की कई यात्राओं के बाद हमने नोटिस किया की जब जब डिनर दिया जाता उसी समय TURBULENCE होता था। मैंने हवाईयात्रा में नॉन वेज खाना छोड़ दिया क्योंकि हनुमान चालीसा पढ़ना के नौबत अक्सर आ जाती थी। मैंने चाय भी लेना छोड़ दिया था क्योंकि कहीं turbulence में चाय बदन पर गिर ही न जाय और एक दिन चाय गिर ही गई सारे यात्रियों के ऊपर ।


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हमरी फ्लाइट चेन्नई (तब मद्रास MAA ) से पांच बजे शाम के आसपास उड़ी थी । करीब अढ़ाई घंटे की फ्लाइट थी कलकत्ता तक की। अन्य दिनों के तुलना में फ्लाइट ठीक ठाक थी और टर्बुलेन्स न के बराबर था। डिनर खाने के बाद चाय आने ही वाली ही थी की जहाज बादलों के अंदर जा घुसा। अँधेरा हो गया था और बिजली का चमकना काफी नज़दीक दिख रहा था । समय बता रहा था कि हम कलकत्ता पहुचने ही वाले थे। मैं निचिंत बैठा था की कुछ देर बाद हम कलकत्ता उतर जायेंगे। तभी जहाज ऊपर नीचे के साथ साथ घूमने भी लगा कभी दायें झुके कभी बाएं। मैंने चाय मंगाई नहीं थी लेकिन हमारे आस पास लोगों के चाय के कप (तब असली होते थे पेपर कप नहीं ) नीचे गिर पड़े थे। पायलट ने टर्बुलेन्स की सुचना भी नहीं दी थी और कई लोगों ने सीट बेल्ट लगाए भी नहीं थे कईयों के सामने टेबल खुले ही थे। मैंने और शायद सभी लोगों ने पहले सीट बेल्ट बांधे। एयर होस्टेस भी डर कर खाली सीटों पर बैठ गयी थी उन्हें घोषणा करने और अपने सीट पर बिना गिरे जाने की संभावना कम थी। सभी यात्री चुप हो गए। थोड़ी देर पहले लोगों की हंसी और बातें से जो खुशनुमा माहौल था वह एकदम "अब आगे क्या होगा ?" की चिंता में डूब कर शांत हो गया। मैं हनुमान चालीसा पढ़ने लगा और भी कई बातें सोचने लगा। चालीसा बीच बीच में भूल भी जा रहा था।


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ऐसी हालत में जहाज शायद १५-२० मिनट चली होगी। जहाज का गलियारा (Aisle) खाने के ट्रे , प्लेट , खाने के सामान , पानी , चाय वैगेरह से पट गया था। थोड़ी देर बाद पेटी बांधने की घोषणा की गयी। प्लेन को बादलों के नीचे लाने में कामयाबी मिल गयी थी। एयर होस्टेस ने अब ट्रे इत्यादि उठाने का कार्य शुरू किया। किस्मत से ऊपर का कोई लगेज रैक नहीं खुला पर कुछ ऑक्सीजन मास्क जरूर नीचे गिर गए थे। जब प्लेन स्थिर हुआ और नीचे धरती दिखने लगी तो धीरे धीरे लोग आपस में बातें करने लगे। सभी डर गए थे और प्लेन के पहुंचने की घोषणा और लैंड करने के बाद ही जान में जान आयी। सभी एक दूसरे को अपना अनुभव बताना चाह रहे थे। प्लेन रुकने पर देखा एम्बुलेंस और स्ट्रेचर के साथ लोग तैयार थे। इतनी ख़राब यात्रा फिर कभी नहीं की। अक्सर मानसून से ज्यादा गर्मी में हवाई विच्छोभ होता है। मैंने इसके बाद कई यात्राएं ट्रेन से ही करना उचित समझा।


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दूसरी डरावनी घटना जो ज्यादा खतरनाक हो सकती थी वह जापान के हाल के दुर्घटना के ऐसी ही थी। इस बार दिन का समय था और मैं कलकत्ता से विशाखापट्नम जा रहा था। बोर्डिंग पास ले कर जब प्लेन में बैठा तो एकदम कल्पना नहीं की थी की आज नहीं जा पाऊंगा। मेरी सीट बाये तरफ था आपात द्वार के पीछे वाले लाइन में । प्लेन चल पड़ी। अभी उड़ने वाली ही था की अचानक जहाज की गति धीमी हो गयी जैसे तेज़ ब्रेक लगाया गया हो। जहाज ऊपर उठते उठते रह गया। बाये साइड से धुँआ निकलने लगा। ईंजन में आग लग गई थी। किसी घोषणा का जरूरत नहीं थी पर घोषणा हुई अपने सीट पर बैठे रहे। लोग तो देख ही रहे थे। चीख पुकार भी मचने लगी। मैं आग धुआँ देख पा रहा था क्योंकि यह मेरे तरफ लगा था। तभी घोषणा हुई अपने शू चप्पल खोल कर दाए तरफ वाले च्युट (बैलून की तरह वाली सीढ़ी ) से उतरें । अब अफरा तफरी में मैंने महिलाओं और बच्चों को पहले जाने दिया। कुछ लोग ऊपर से अपना हैंड लगैज भी उतारने लगे थे। बहुत मुश्किल से एयर होस्टेस उन्हें मना कर पा रही थी। फिर घोषणा हुयी पहले अपना जान बचाये , सामान फिर आपको मिल जायेगा। हम भी करीब करीब सबसे बाद च्युट से फिसल कर नीचे उतर पड़ा। तब जाना फ्लाइट में शू लेश वाले जूते नहीं पहनना चाहिए। उतारने में समय लगता है। आपात स्थिति से निपटने का पूरा इंतज़ाम इतनी देर में ही हो गया था। हमें जल्द से जल्द जहाज से दूर बहुत दूर चले जाने को कहा गया। मैं तो दौड़ पड़ा पर एक आदमी के लिए एम्बुलेंस की जरूरत पड़ ही गयी। वह जल्दबाजी में अपाद द्वार को खोल जहाज के डैने पर से कूद गया था और उसकी टांग टूट गयी थी। बाद में मेरे बॉस ने कहा की हो सकता है बचने वाला वो ही अकेला आदमी होता। भगवान की कृपा से और कभी ऐसी यात्रा नहीं की।

मै डराना नहीं चाहता। ठोकर खाने के बाद क्या लोग चलना छोड़ दे ? दुर्घटना तो होती है क्या गाड़िया , ट्रेने या जहाज चलने बंद हो जाते है ? चलते रहे , चलाते रहे , उड़ते रहे , शुभ यात्रा की कामना के साथ आपका मित्र। अगले ब्लॉग तक इंतज़ार करें।

Saturday, January 6, 2024

हिन्दी कैलेंडर और जिज्ञासाएं

ग्रेगोरियन या जूलियन कैलेंडर के बारे में मैं एक ब्लॉग पहले लिख चुका हूँ । तरह तरह के कलेण्डर (click to read ) . क्योंकि ये कैलेंडर सिर्फ सूर्य पर निर्भर करते है कैलेंडर में एक साल में आने वाले दिन और सूर्य के परिक्रमा में लगने वाले दिन में बहुत कम अंतर था और लीप डे को इधर उधर कर ग्रेगोरियन कैलेंडर में इस अंतर से आने वाली समस्या का समाधान आसानी से निकल आया लेकिन भारत के हिंदी या हिन्दू कैलेंडर सूर्य और चन्द्रमा दोनों पर आधारित है। और इस लिए इसे समझना थोड़ा जटिल है। अक्सर लोग पंडित जी से पंचांग के बारे में पूछते दिख जायेंगे। आईये इस Lunosolar कलेण्डर की बुनियादी बातें समझे। विस्तार में न तो मै समझा सकता हूँ न हीं वह इस ब्लॉग का विषय है।


चन्द्रमा कि कलाएं और हमारी पृथ्वी एक एनीमेशन (साभार )

अब थोड़ा चन्द्रमा और पृथ्वी कि आपसी स्थिति के बारे में जानने समझने कि कोशिश करता हूँ । जैसा मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिनों में करता है पर अमावस से अमावस के बीच 29.5 दिन लगते है जबकि अपने axis पर भी चांद्रमा करीब 27 दिनों में एक बार चक्कर लगता है। क्योंकि दोनों संख्या इतने करीब है कि हम चन्द्रमा की एक ही हिस्सा हम देख पाते है। जब पूर्णिमा होती है पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य के बीच होता है और सूर्य के रौशनी से रौशन चन्द्रमा को हम पूरा देख पते है। अमावस्या आते आते चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है तबतक अपने धुरी पर चन्द्रमा करीब करीब १८० deg घूम चूका होता है और चाँद का जो हिस्सा पूर्णिमा में हमें रौशन दिख रहा था वही हिस्सा हमे अँधेरा दिखता है । शास्त्रों के अनुसार सूर्य और पृथ्वी के बीच १०८ सूर्य समा सकता है और पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच १०८ चन्द्रमा। सूर्य पृथ्वी से १०८ गुना बड़ा भी है। आधुनिक खगोल विज्ञानं के अनुसार भी ये बातें करीब करीब सत्य है। चन्द्रमा , पृथ्वी का आकार और सूर्य के सन्दर्भ में आपसी दूरिया ऐसे अनुपात में है कि कुछ परिस्थिति में पूर्णिमा में जब पृथ्वी मध्य में होता है तो यह चन्द्रमा तक सूर्य कि रौशनी पूरी तरह या आंशिक रूप में पहुंचने नहीं देता - यह है चंद्रग्रहण। उसी तरह किसी किसी अमावस्या में जब चन्द्रमा मध्य में होती है तब यह भी सूर्य कि पूरी या कुछ किरणे पृथ्वी तक नहीं पहुंचने देती और इसे हम कहते है सूर्य ग्रहण। आगे देखते है चन्द्रमा के परिक्रमा कि यह गति कैसे हमरे हिंदी कैलेंडर जैसे विक्रमी संवत को कैसे प्रभावित करती है।
आईये अब हम हिंदी कैलेंडर या पंचांग के बारे में कुछ चर्चा करें। सर्वविदित है कि चन्द्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा (पुर्णिमा से पुर्णिमा तक) 29.5 दिनों में करता है। हिंदी पंचांग में जबकि महीने में 30 तिथि (तिथि - दिन नहीं ) होती है और एक वर्ष में 12 महीने। यानि वर्ष के 354 दिन। अब LUNOSOLAR पंचांग या कैलेंडर इस लिए जरूरी होता है की महीने और ऋतू का तालमेल बना रहे यानि जेठ में गर्मी और माघ में ठण्ड पड़नी चाहिए। पंचांग में तिथि , महीने और वर्ष को नियमों में इस प्रकार बंधा गया है की यह तालमेल हमेशा बना रहे। अब कुछ प्रश्न हमारे मन में उठते रहते है उस पर चर्चा करने कि चेष्टा मैंने आगे की है।

प्रश्न 1) क्यों एक ही तिथि दो दिन , या दो दो तिथियां एक ही दिन पड़ते है ?



इस बात का जवाब ऊपर दिए दो स्केच से समझना होगा। पृथ्वी को केंद्र मान कर चन्द्रमा और सूर्य की कल्पना करिए । सूर्य घूमता नज़र आएगा एक महीने में 30 deg यानि प्रति दिन 1 deg लेकिन वास्तव में वह स्थिर है और चन्द्रमा एक महीने में 360 deg घूमता है । यानि चन्द्रमा प्रति दिन 12 deg घूम जायेगा। तिथि के लिए सूर्य और पृथ्वी को और चन्द्रमा को मिलाने वाली रेखा से चन्द्रमा के कक्षा को 12 deg, 24 deg, 36 deg, 48 deg इत्यादि पर खींची रेखाओं से 30 भाग में बाँट दी जाय तब चन्द्रमा के हर इस बिंदु पर पहुंचने पर तिथि बदल जाती है चाहे चन्द्रमा दिन रात के किसी समय वह पहुंचे। अब चंद्रोदय से दूसरे दिन के चंद्रोदय तक के बीच औसत समय लगता है 24 घंटे और 48 मिनट। यानि यदि अष्टमी तिथि की शुरुवात शुक्रवार के सूर्योदय से हुयी हो तो भी अगली तिथि सूर्योदय (जो 24 घंटे बाद होगी ) के करीब 48 मिनट बाद ही आएगा , यानि शनिवार के सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि ही रहेगी। यानि एक दिन ही दो दो तिथि। अब चन्द्रमा की कक्षा अंडाकार है और इस लिए इस 12 DEG की दूरी एक समय में नहीं तय करता और इसको भी गणना में सामिल करना पड़ता है। अब चन्द्रमा की परिक्रमा (NEWMOON TO NEWMOON ) 29.5 दिनों में पूरी होती है (अगला पैराग्राफ देखे) और तिथियां 30 होती है और इस अंतर को भी गणना में लेना पड़ता है।

प्रश्न 2) अधिक मास क्या है ? मल मास क्या है ? खर मास क्या है ?

अधिक मास या मल मास

चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण परिक्रमा करने में लगभग 27.3 दिन लगते हैं। पृथ्वी प्रत्येक 365.24 दिन में एक बार सूर्य की परिक्रमा (360 deg) करती है । 27.3 दिनों में पृथ्वी और चंद्रमा एक प्रणाली के रूप में सूर्य के चारों ओर लगभग 1/12 यानि 27 DEG (360 deg/365 x 27.3) घूम चुके होते हैं। हमने ऊपर जाना की तिथि हर 12 DEG पर बदलती है , इसका मतलब यह है कि एक पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा तक, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के वक्र के कारण, चंद्रमा को फिर से पूर्णिमा के रूप में दिखाई देने से पहले 2.2 (27/12) अतिरिक्त दिनों की यात्रा करनी होगी यानि पूर्णिमा से पूर्णिमा तक कुल 29.5 दिन। इससे एक चंद्र वर्ष और एक सौर वर्ष के बीच प्रति वर्ष 11 दिनों का अंतर पैदा होता है। इस अंतर की भरपाई के लिए, औसतन हर 32.5 (30/11 day per year x 12 months) महीने के बाद एक अतिरिक्त महीना (30 दिन) जोड़ा जाता है। और इसे ही कहते है अधिकमास। जो लगभग तीन वर्ष में आता है। ऐसा इसलिए जरूरी है की हिंदी महीने ऋतुओं से मेल करते रहे। कैसा लगेगा यदि जेठ में जाड़ा लगने लगे और माघ में लू चलने लगे ?

खर मास

हम जानते है की आसमान 12 तारा समूहों यानि राशियों में बांटा है। इन राशियों के नाम इन तारा समूह के आकर के अनुसार रखा गया। पृथ्वी जब सूर्य का परिक्रमा करता है तब सूर्य पृथ्वी से इन राशियों में दीखता है और हर राशि में पुरे 1 महीने के लिए। जब सूर्य धनु राशि में जाता और दिखता है उस महीने को खरमास कहा जाता है जो अंग्रेजी तारीख 16 दिसम्बर से 15 जनवरी के बीच ही अक्सर पड़ता है। खरमास की अवधि हिंदू धर्म में अशुभ माना जाता है और शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि इस महीने में वर्जित है।

प्रश्न 3) पुर्णिमांत और अमांत क्या है ?



भारतीय उपमहाद्वीप में चंद्र महीनों के संबंध में दो परंपराओं का पालन किया गया है: अमांत परंपरा, जो चंद्र महीने को अमावस्या के दिन समाप्त करती है। और पूर्णिमांत परंपरा, जो इसे पूर्णिमा के दिन समाप्त करती है। दोनों परम्पराओं में महीनों के प्रारम्भ में १५ दिनों का अंतर हो जाता है। कुछ राज्य पुर्णिमांत और कुछ राज्य अमांत प्रणाली मानते है। कुछ राज्यों में वैशाखी यानि मेष संक्रांति यानि १३ या १४ अप्रैल से वर्ष की शुरुआत मानते है। जैसे नेपाल , बंगाल और दक्षिण भारत के कई राज्यों में। किस राज्य में कैसा कैलेंडर मान्य है दिए गए मैप में दिखलाया गया है।
आशा है आपकी जिज्ञासा शांत हो चुकी होगी। यदि कुछ त्रुटि रह गयी हो तो क्षमा करे !

Thursday, January 4, 2024

Artificial intelligence (कृत्रिम बुद्धि) - मेरी बिल्ली और मुझ हीं से म्याऊँ

मैंने सोचा था ग्रेगोरियन कैलेंडर के बाद एक ब्लॉग अपने देश के हिंदी केलिन्डर पर लिखूंगा पर 2023 में कितनों की नौकरी गई का एक समाचार टीवी पर देख इस समस्या पर एक ब्लॉग पहले लिख दू ऐसा सोच कर प्रस्तुत है यह ब्लॉग !

ARIFICIAL INTELLIGENCE या AI यानि कृत्रिम बुद्धिमता आज एक BUZZ WORD या चर्चित शब्द है। पर मैंने १९५८-६० में एक कहानी पढ़ी थी जिसका विषय यही था , यदि मशीन मनुष्य के समान बुद्धि वाला ही जाय तो क्या होगा ? आईये मैं वही कहानी अपने स्मृति से और कुछ मसाले लगा कर सुनाने की कोशिश करता हूँ । याद रहे इन्हीं स्मृतियों या memory को चिप में बंद कर ही AI का निर्माण किया गया है।



अब कहानी :
एक वैज्ञानिक जिनका नाम विजय है एक छोटे शहर रामगढ में रहता है। असली नाम या जगह बताने का आजकल फैशन नहीं है अतः अमिताभ बच्चन का सिनेमाई नाम अपने हीरो को दे रहा हूँ। वह आलसी किस्म का मनुष्य है और अपने काम आसान करने के लिए मशीन बनाता रहता है जैसे मोटर में ब्रश लगा कर बर्तन धो लेना , टाइमर लगा कर हीटर पर खिचड़ी पका लेना वैगेरह। अब उसे ऑफिस जाने के लिए रोज़ दाढ़ी बनानी पड़ती थी अन्यथा बास की डांट पड़ जाती। उसका काम ग्राहकों से मिलने का जो था। अब हजामत बनाने कि यह काम उसे नागवार गुजरता था । उसने अपने प्रयोगशाला में एक automatic shaving machine बनाने का निश्चय किया। हर सप्ताहांत मेहनत करने लगा और कुछ महीने बाद उसे आंशिक सफलता मिली जब एक बटन दबाने पर पहले ब्रश पर क्रीम लगता और फिर ब्रश उसके चेहरे पर साबुन लगता और कुछ समय बाद एक अस्तुरा उसकी दाढ़ी बना देता। उसने मशीन में रोज़ कुछ सुधार करता रहता और धीरे धीरे उसका मशीन में ब्रश करने का सही समय और चेहरे का रूप रेखा अनुसार अस्तुरा दाढ़ी बना देता बिना काटे । जाड़ा में पानी भी आटोमेटिक गर्म होने लगा। विजय ने फिर सोचा बटन भी क्यों दबाया जाय ? क्यों न हम इसे उसी तरह बोले जैसे नाई को बोलते है। कुछ दिनों बाद उसे सिर्फ बोलना पड़ता था मेरी दाढ़ी बनाओ और मशीन अपने आप दाढ़ी बनाने लगता। इस तरह करते करते मशीन कुर्शी पर बैठते ही उसकी दाढ़ी बना देता। एक दिन उसके बाल काफी बड़े थे और उस दिन मशीन ने दाढ़ी के साथ उसके बाल भी मुंड डाले। यह दिन था की मशीन खुद सोचने लगा था ।


विजय अपने अविष्कार पर काफी खुश था। वह अब मशीन से अपनी हर बात फीलिंग्स भी शेयर करने लगा। मशीन उसके दिल दिमाग की बातें भी समझनें लगा और जब प्यार में नाकाम विजय आत्महत्या के बारे में सोच रहा था अस्तुरा अपने आप उसके गले की तरफ बढ़ने लगा। विजय को अहसास हो गया क्या होने वाला है और वह किसी तरह कमरे से भाग कर और बाहर से बंद कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा। अगले दिन बिजली को काट कर रूम में गया और मशीन को तोड़ डाला। मेरी बिल्ली और मुझ हीं से म्याऊँ

स्वचालन और AI
अपने इंजीनियरिंग की पढाई में पढ़ा था FEEDBACK कण्ट्रोल के बारे में जो ERROR को फिर से सिस्टम में डाल कर सुधार कर देते थे। फिर आया ADOPTIVE CONTROL जिसमे सिस्टम पहले किये परिवर्तन को याद रख लेते वैसे ही जैसे हम रोजमर्रा के जीवन में रास्ते के गड्ढे से ले कर कहाँ सब्जी सस्ती मिलेगी जैसी कई बातें याद रख लेते है। यानि थोड़ी थोड़ी कृत्रिम होशियारी बहुत सालों से हमारी जिंदगी में है। हम हर कदम सोच सोच कर नहीं रखते कुछ अपने आप भी होता है, जो पिछले अनुभव पर आधारित होता है। गाड़ी चलाते वक़्त कई निर्णय हम अपने अवचेतन मस्तिष्क से लेते है और बहुत ही कम समय में जैसे कोई बच्चा गाड़ी के सामने आया और माइक्रोसैकेण्ड में ब्रेक पर सिर्फ पैर ही नहीं गया कितना जोर (force) लगाना है वह भी दिमाग तुरंत गणना कर लेता है। किसी सही प्रतिक्रिया में मनुष्यों द्वारा लगने वाले इस समय को जब हम मशीनों में प्राप्त करने लगते है तो जन्म होता है आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का। ऐसी ही अवस्था में बनता है चालक विहीन या AI कार !


विकिपीडिया से आभार सहित

आज के युग में हम मशीनों के कृत्रिम होशियारी का रोज़ इस्तेमाल करते है।जब मैं यह ब्लॉग लिखता हूँ तो सबसे पहले एक रोमन लिपि से देवनागरी लिपि के कनवर्टर का उपयोग करता हूँ और यह कनवर्टर मेरी हलकी फुलकी गलतियों को अपने आप सही भी कर देता है और auto correct की १०-१५% गलतियां को छोड़ दे तो यह बहुत बड़ी मदद भी है। कोई भी प्रश्न मन में आये हम अब किताबों , शब्दकोष , विश्वकोश नहीं देखते सिर्फ गूगल करते है। आजकल जब हम FB के किसी मैसेज का जवाब देते है तब हमें जवाब के सुझाव मिल जाते है। यानि किसी ने मैसेज को पढ़ा समझा है और फिर जवाब का सुझाव दिया है। अब कैमरा में भी AI होता है।

AI के दुष्प्रभाव

आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI ) तब तक ठीक है जब तक यह विजय के ऑटोमैटिक अस्तुरे की तरह आपका गला काटने की कोशश न करे। लेकिन दुर्भाग्य से वह समय आ गया है। डीप फेक और साहित्यिक चोरी जैसी बातें तो सुन ही रहे थे जो बात ज्यादा चिंताजनक है वो है AI के कारण लोगों को नौकरी चला जाना। गूगल करीब तीस हज़ार लोगों को निकाल रहा है अपना देशी PAYTM भी 1000 लोगों को निकाल रहा है। अमेज़न भी हज़ारों को निकाल रहा है खास कर ALEXA के आवाज़ वाले सेक्शन से । AI तो आवाज़ भी कॉपी कर लेता है । अब बताइये कोई अमिताभ बच्चन साहब की आवाज़ और भिडियो के साथ कोई AD बना दे बिना उनके परमिशन के। इसके लिए उनके ही फिल्म या और KBC के clips से AI को train करना है।
कृत्रिम बुद्धि का भयानक राजनैतिक इस्तेमाल संभव है। डीप फेक न्यूज़ में असली नकली का फ़र्क़ करना मुश्किल है। एक फेक न्यूज़ में यूक्रेन के ज़ेलेन्स्की को सेना को सरेंडर करने को कहता दिखाया गया , पुतिन को सेना को आक्रमण करने को कहते दिखाया गया और बंगला देश के चुनाव को प्रभावित करने के लिए विरोधी लीडर को हमास को नज़र अंदाज़ करने को कहते दिखाया गया। ऐसे फेक AI से बनाये समाचार को पहचानना ही मुश्किल है तो इसे कैसे नियंत्रित कर सकेंगे ?
जिनकी नौकरी जा रही है उनका काम AI करेगा। खैर मशीनों ओर मनुष्यों के बीच होने वाली ये प्रतियोगिता हम दिलीप कुमार कि फिल्म "नया दौर" से ही देखते आ रहे हैं और मनुष्य अपने को बेहतर साबित करता आया है। ऐसे आज कि खबर है कि AI कि मदद से एंटीबायोटिक रेसिस्टैन्सी कि दवा खोजी गई है !

बहुत सारे लोग GENERATIVE AI के विरुद्ध है क्यों ? किसी AI सिस्टम जैसे CHATGPT को प्रशिक्षित करने के लिए लोगों के रचनाओं को पढ़ना पड़ेगा और AI कुछ ऐसा करेगा तांकि साहित्यिक चोरी (plagarism) पकड़ी न जाय । US की टाईम्स मैगजीन अभी ऐसे ही किए plagiarism के विरुद्ध मुकदमा लड़ रहा है। AI को नियंत्रित करने के लिए अभी कुछ ही देश ने कानून बनाये है जिसमे भारत भी एक है। पर अभी कई अवरोध है कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बिना किसी हानि के उपयोग में लाने के लिए। आगे शायद AI ही नई नौकरियां या धंधे पैदा करे।

Tuesday, January 2, 2024

तरह तरह के कैलेंडर



हिंदी कैलेंडर पर मेरा ब्लॉग - क्लिक करे और पढ़े।

नया साल मुबारक हो ! यह जुमला कल सबकी जुबान पे था। व्हाटअप और फेसबुक के हर मैसेज पर यही जुमला। पर किस कैलेंडर से हम आज कह रहे होते है happy new year ? ग्रेगोरियन कैलेंडर ! यह कैलेंडर दुनिया भर में चलता है और कुछ मुल्कों (जैसे नेपाल ) को छोड़ कर यह हर सरकारों का आधिकारिक कैलेंडर होता आया है। जूलियस सीजर ने जिस कैलेंडर को मान्यता दे रखी थी उसे जूलियन कैलेंडर कहा जाता था। ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इस्तेमाल किया जाने वाला कैलेंडर है। यह अक्टूबर 1582 में पोप ग्रेगरी XIII द्वारा जारी किए गए पोप "बुल इंटर ग्रेविसिमस" के बाद प्रभावी हुआ, जिसने इसे जूलियन कैलेंडर के संशोधन और प्रतिस्थापन के रूप में पेश किया। पर हाल में पता चला रूस , यूक्रेन जैसे कुछ देश अब भी जूलियन कैलेंडर के हिसाब से ही क्रिसमस मानते आ रहे है यानि १० जनवरी को। कई वर्षो पूर्व १९८७-९० के बीच हमने कंप्यूटर पर BASIC प्रोगामिंग सीखा था। और उस पर एन्कक्लोपीडिआ से पढ़ पढ़ कर एक ऐसा कैलेंडर बनाया जिसमे साल एंटर करने से पूरे साल का कैलेंडर मॉनिटर पर दिखता था। BC के लिए माइनस लगाना पड़ता था। तब ही पता चला की जूलियन कैलेंडर भी धरती के सूर्य की की जाने वाली परिक्रमा पर ही बेस्ड था और लीप ईयर भी होते थे पर सैकड़ो सालों के बाद ये कैलेंडर ACCURATE नहीं रहा और विषुव (EQUINOX ) सूर्य के स्थिति से मेल नहीं खा रहा। आये देखे ऐसा क्यों जरूरी हुआ।

1582 अक्टूबर के कैलेंडर में 4 अक्टूबर के बाद आता है 15 अक्टूबर। यानि १० दिन गायब।

मुख्य परिवर्तन LEAP वर्षों को अलग-अलग करना था ताकि औसत कैलेंडर वर्ष को 365.2425 दिन लंबा बनाया जा सके, जो कि 365.2422-दिवसीय 'उष्णकटिबंधीय' या 'सौर' वर्ष का अधिक करीब से अनुमान लगाता है जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा द्वारा निर्धारित होता है। जूलियन कलैण्डर में औसत वर्ष 365.25 यानि तीन वर्ष ३६५ दिन का और एक ३६६ दिन का औसत। जिसे कारण १०० वर्षों में 0.78 दिन यानि करीब एक दिन का अंतर आ जाता इसके लिए हर १०० वां वर्ष लीप वर्ष नहीं माना गया फिर भी कुछ अंतर रह गया यानि 0.78-1=-0.22 दिन की क्षतिपूर्ति के लिए हर ४०० वां वर्ष को लीप ईयर इस प्रकार ४०० वर्ष का औसत निकले तो वो आएगा 365.2425 दिन। यानि जहां १७००,१८०० या १९०० लीप ईयर नहीं था, १६०० , २००० लीप ईयर था। पहले लीप ईयर में फरवरी में २९ दिन के वजाय २४ फरवरी दो दिन होता था। है न INTERESTING बात।


हमारे देश में कुछ अन्य कैलेंडर भी चलते है। विक्रम सम्वत , शक संवत उनमे प्रमुख है। शक संवत आधिकारिक कैलेंडर भी है। नेपाल में विक्रम सम्वत को संशोधित कर जो कैलेंडर प्रचलित है उसे गते कहते है। शक सम्वत कुषाण वंश के कनिष्क द्वारा 78 AD (CE ) में चलाया माना nnजाता है क्योंकि कुषाण वंश विदेशी शक जाति या वंश के थे इसलिए इसे शक संवत कहते है , ग्रेगोरियन वर्ष से करीब ७८ घटाने पर हमे करीब करीब शक सम्वत मिलता। वही विक्रम सम्वत ५७ BC (BCE ) में राजा विक्रमादित्य द्वारा चलाया माना जाता है इस लिए ग्रेगोरियन वर्ष में ५७ जोड़ने पर हमें विक्रम सम्वत मिलता है।चन्द्रगुप्त - विक्रमादित्य गुप्त वंश के प्रतापी राजा थे और उन्होंने हूणों को हारने पर विक्रम सम्वत चलाया ऐसा मानते तो है पर गुप्ता वंश ४थी और पांचवी शताब्दी में उज्जैन से शाषन करते थे तब ५७ BC में उन्होंने यह कैलेंडर कैसे चलाया इस पर रिसर्च बनता है।


विक्रम संवत एक ऐसा कैलेंडर है जिसके महीने चन्द्रमा के कलाओं पर आधारित है पर वर्ष को सूर्य परिक्रमा पर भी आधारित होता है। अब क्योंकि चन्द्रमा 29.5 दिनों में एक चक्कर लगता है। १२ महीने में सिर्फ ३५४ दिन होते है यानि अंग्रेजी वर्ष से करीब ११ दिन कम। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए हर तीन साल पर एक अधिक मास जोड़ा जाता है। हमारा नया साल या तो वसंत - जैसे होली में या शरद (autumn ) ऋतू जैसे दीपावली में शुरू होता है जो उमंग का और फसलों के पकने का काल होता है। इस पर हमारे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की यह कविता बहुत कुछ कह जाती है।

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से

आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं

हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही

क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं

ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो

प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा

युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं

–राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर