Monday, November 20, 2023

दुनिया का पहला मोनोरेल - वुपरटाल (जर्मनी)


कई तरह के साधन है एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए। शायद सबसे पहले जानवरों का उपयोग यहाँ वहां जाने या सामान ढ़ोने के लिए प्रयोग में लाये गए होंगे। 13,000 और 2,500 ईसा पूर्व के बीच मनुष्यों ने अपने जंगली जीवों से कुत्तों, बिल्लियों, मवेशियों, बकरियों, घोड़ों और भेड़ों को पालतू बनाया। हालाँकि पालतू बनाना और पालतू बनाना शब्द अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं, लेकिन वे समान नहीं हैं। मानवों ने धीरे धीरे घोड़ों और बैलों को अपने यात्राओं के साधन के रूप में प्रयोग में लाया। ऊंटों और हाथियों का भी उपयोग भी बाद में होने लगा। रथ , बैलगाड़ी , तांगा टमटम के बाद रेल गाड़ी को भी घोड़ों ने खींचा। बाद में बने साइकिल , कार इत्यादि। रेलगाड़ी तरह तरह के रूप में आने लगे जैसे रेल पर चलने वाली और घोड़ों से खींचने वाले से लेकर स्टीम इंजन , डीजल इंजन से लेकर बिजली के इंजन तक। शहर में चलने वाले ट्राम भी इसी तरह बने होंगे । मेट्रो , अंडरग्रॉउंड , लोकल , बुलेट ट्रेन भी बने और इसी तरह बना मोनोरेल यानि सिर्फ एक रेल पर लटक क्र चलने वाला ट्रेन। मुझे इस तरह के ट्रेन का अनुभव सिर्फ एक बार हुआ और उसके बारे में हैं यह ब्लॉग।

मोनोरेल एक रोड क्रासिंग के ऊपर और दो स्टेशन के बीच (Photo Curtsey Wikipedia )

एक यादगार ट्रिप जो मैंने जर्मनी में 1983 में किया वो था वुपरटाल का। पता लगा एक मोनोरेल चलती है वुपरटाल तक। मैं और केडिया एक रविवार डुसेलडॉर्फ से इस १३ किलोमीटर की मोनोरेल जिसे जर्मन में स्वाबेबान कहते की यात्रा पर निकल पड़े। शायद यह दुनिया के सबसे पुराना मोनोरेल है। स्वाबेबान का निर्माण 1898 में शुरू हुआ, और 24 अक्टूबर 1900 को, सम्राट विल्हेम द्वितीय ने मोनोरेल ट्रायल रन में भाग लिया और 1901 में रेलवे परिचालन में आया।

मोनोरेल डिपो में (Photo Curtsey Wikipedia )

हम ट्रेन का टिकट ले कर चढ़े। मोनोरेल दो डब्बे का था। हमने टिकट को मशीन में डाल कर पंच कर बैठ गए। एकदम भीड़ नहीं थी। रविवार जो था । यहाँ कोई टिकट चेकर नहीं आता लेकिन यदि पकडे गए तो फाइन तब ३० DM था और मैंने कोई देखा की कोई बिना टिकट पंच किये नहीं चढ़ता। करीब बीस स्टेशन आये। वुपर नदी और एक्सप्रेसवे के ऊपर से मोनोरेल दन दानाती चली जा रही थी पर अफ़सोस तब हुआ जब अंतिम स्टेशन सिर्फ ३० मिनट में ही आ गया। हमने सोचा वुपरटाल शहर घूम लेते है। कुछ विंडो शॉपिंग ही कर लेते है। पर रविवार था और सभी दुकाने बंद थी। शहर वुपर नदी के किनारे एक लम्बे स्ट्रिप पर बसा है । हमने सोचा हम वापस पैदल चलते है टिकट के पैसे बच जायेंगे। इतना कम समय लगा था आने में। हमने सोचा दूरी ज्यादा नहीं होगी। वापस पैदल ही चल पड़े। एक जगह एक पब्लिक शौचालय दिखा तो हम उपयोग करने अंदर दाखिल हो गया। हमने एक चकाचक साफ़ टॉयलेट की आशा की थी जैसी एयरपोर्ट, स्टेशन या ऑफिस में दिखते थे। पर हमे निराश होना पड़ा। बहुत तो नहीं पर थोड़ी गन्दगी थी और कुछ दिवाल पर लिखा हुआ भी था, दिवाली से प्लास्टर टूट रहे थे। पब्लिक शौचालय की हालत हर जगह एक जैसी होती है । खैर उस ठन्डे में चलते चलते गर्मी लगने लगी । आखिर दो-तीन स्टॉप चलते चलते थक गये तब हम वापस एक स्टेशन चले गए और डुसेलडॉर्फ के तरफ जाने वाली मोनोरेल में बैठ गए।
अब इस शहर यानि वुपरटाल के विषय में दो शब्द।
वुपर घाटी रूहर से पहले, जर्मनी का पहला अत्यधिक औद्योगिकीकृत क्षेत्र था, जिसके परिणामस्वरूप एल्बरफेल्ड और बार्मेन के तत्कालीन स्वतंत्र शहरों में वुपर्टल सस्पेंशन रेलवे का निर्माण हुआ। वुपरटाल के आस पास के शहरों की कपड़ा मिलो, धातु उद्योग के कारण कोयले की बढ़ती मांग ने पास के रूहर के विस्तार में तेजी ले आया। वुपर्टल अभी भी एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र है, जो कपड़ा, धातु विज्ञान, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, रबर, वाहन और मुद्रण उपकरण जैसे उद्योगों का घर है। एस्पिरिन की उत्पत्ति वुपर्टल से हुई है, जिसका 1897 में Bayer द्वारा पेटेंट कराया गया था।
आज बस इतना ही। और कई यादगार यात्राओं के विषय में फिर कभी।

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