Friday, September 8, 2023

पतरातू - झील

पतरातू थर्मल पावर प्लांट के लिए प्रसिद्ध है अब तो जिंदल का इस्पात कारखाना भी है यहां । शहर क़स्बाई है और छोटा सा मार्किट एरिया है। थर्मल पावर प्केलांट का मध्यम साइज की कॉलोनी भी है। हम कॉलोनी एरिया भी गए और एक पुराने मंदिर में दर्शन भी किये। नलकार्नी नदी पर बना हुआ पतरातू डैम सर मोक्षगुंडम विश्वसरैय्या का बनवाया हुआ है और इससे बने लेक में ही बोटिंग होती है। बच्चों के लिए पार्क और लेक के पास JTDC का सरोवर विहार लेक रिसोर्ट है। लेक के एरिया में जाने के लिए टिकट लगता है । पर यदि आप रिसोर्ट के गेस्ट है तो एंट्री फ्री है - रिसोर्ट साइड गेट से ।



हमारा पतरातू विजिट

ऐसे तो हम पहले भी पतरातू दो बार जा चुके थे। एक बार ओवरलोडेड बस से (तब रातू रोड बस स्टैंड से ) और एक बार खुद की गाड़ी चला के। तब रोड सिंगल और सकरा था और बस जब हर यु बेंड लेती जान हलक में आ जाती। अपनी गाड़ी में डर तो नहीं लगा पर ध्यान लगातार रोड पर रखना पड़ता था और ऐसे में वैली की खूबसूरती देखने का फ़िक्र किसको होता ? अब जब ४ लेन हाई वे है तो इस वैली की बला की खूबसूरती देखते ही बनती है।



कोरोना के कारण हम दो साल कहीं जा ही नहीं पाए थे। फिर हमारा बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ २०२१ में रांची आये । अभी भी मास्क , सेनिटाइज़र प्रयोग में थे। कोरोना के कारण कहीं भीड़ भाड़ में जाना खतरे से खाली न था। कोरोना के कारण रेस्टोरेंट , सिनेमा हॉल सभी बंद ही थे । बच्चे भी घर में बैठे बैठे बोर हो गए थे । ऐसे में पतरातू वैली और लेक जाने का फैसला लिया गया। मास्क पहन कर और सांइटिज़ेर के बोतल वैगेरह ले कर हम पतरातू घूमने निकल पड़े। सरकारी बोटिंग बंद थी । लौटते वक़्त एक प्राइवेट बोट वाले से बात की और लेक में बोटिंग भी की। अलबत्ता हम समझ गए थे कि वह ठग रहा था। रिसोर्ट चालू न था। लेक के पास एक प्राइवेट होटल में खाना खा कर हम रांची के पहाड़ी मंदिर होते हुए घर लौट आये।



अगले साल यानि २०२२ तक कोरोना का खतरा ख़त्म हो गया था । लोग बाग तो घूमने भी निकल पड़े थे । हम भी इटखोरी जो करीब १५० कि०मि० दूर है घूम आये थे तभी हमारे एक भूतपूर्व सहकर्मी अपने परिवार और एक पोती के साथ आ पहुंचे। उनके इसरार पर अचानक हमलोग का प्रोग्राम फिर से पतरातू घूम आने का बन गया। मैं मना न कर सका और हम छह लोग एक SUV को ले कर पतरातू चल पड़े। छोटी लड़की ने नाश्ते में कुछ बदपरहेज़ी कर दी इस लिए उसे लगातार वोमिट होने लगा। दवा देने से भी रुक नहीं रहा था। एक वही थी जिसे बोटिंग में इंटरेस्ट था इसलिए कोई बोटिंग भी नहीं हुई। हम बच्चो के पार्क एरिया में बैठ गए। एक दम जुहू चौपाटी के जैसे मेला लेक के किनारे लगा था। पाव भाजी , भेल पूरी, वड़ा पाव, चाट, फुचका, डोसा , चाऊमीन के अलावा आइस क्रीम भी बिक रहा था। हम लोगों ने आइस क्रीम खाई पर अफसोस बच्ची को आईस क्रीम भी नहीं दिया गया। लेक के किनारे किनारे चलते हम पहुंच गए JTDC के सरोवर विहार लेक रिसोर्ट में। हम यही से खाना खा कर लौट आये। वहां भी खाते ही बच्ची को उलटी हो गयी। रास्ते में उसे नींद आ गयी और हमे गाड़ी बार बार नहीं रोकना पड़ा। उस रात में बच्चे को अस्पताल ले जाना पड़ा।


अभी पतरातू जल्दी जल्दी दूसरी बार घूम कर आये बस एक महीना ही हुआ था की हमारे ससुराल का एक ग्रुप आ पंहुचा , साले सालियों को कैसे टाला जा सकता था, न हीं टालना चाहता था, और जून के महीने में हमारा एक और ट्रिप पतरातू के बन गया। रास्ते में view point पर नारियल पानी पी कर आइस्क्रीम खा कर हम पतरातु लेक पहुंच गए। इस बार भी किसी कारणवश फिर बोटिंग नहीं हुई। कुछ लोग स्पीड बोड देख कर किसी पुरानी याद के कारण कुछ अन्य कारणो से। सरकारी बोट क्लब में बुकिंग नहीं हो रही थी और सिर्फ प्राइवेट वाले ही थे। हमलोगों ने JDTC के सरोवर विहार लेक रिसोर्ट में रात बिताया । पिछली बार की गई दोस्ती / जान पहचान काम आई और सभी छह जनों के लिए छह बेड वाली डॉरमिटरी मिल गई। हम तीन रूम मांग रहे थे जो अवेलेबल नहीं थे । अच्छा हो हुआ अलग अलग रुकने में वह मज़ा कहा आता जो डॉरमिटरी में हंसी मज़ाक करते आया। लेक के पास एक पेडस्टल बनाया है और हमने वही पर डिनर लिया - बड़ा कूल था यह अनुभव।


अगले दिन हम नाश्ता कर नज़दीक का एक झरना - पालनि फॉल देखने गए, रास्ता पूछते पूछते जाना पड़ा। गांव के सकरे रास्ते पर बड़ी गाड़ी ले जाना मुश्किल था फिर भी हम गए पर झरना सूखा था, लोगों ने बताया बारिश होने पर बहुत अच्छा दिखता है । ऊपर एक बांध बनाया हुआ है जिससे पानी कम आता है। अगला पड़ाव था पतरातू डैम। एक फाटक थोड़ा खुला था और उससे पानी आ रहा था अच्छा लग रहा था । हर बार हम एक वैली व्यू पॉइंट पर रुक कर फोटोग्राफी कर चुके थे , इस बार भी की । एक साल के भीतर हम तीसरी बार हम पतरातू में एक रात बिता कर लौट कर आये।

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