Thursday, July 23, 2020

मेरा पहला इंटरव्यू और मेरी पहली नौकरी

Title of the document क्रम-सूची
भूमिका मेरी दिल्ली यात्रा मेरा पहला इंटरव्यू दिल्ली का खाना मेरी पहली नौकरी


भूमिका
हफ्ते भर पहले बोकारो से मेरे एक पुर्व सहयोगी का फ़ोन आया। बोकारो सिंटर प्लांट के बारे में कुछ तकनीकी बातें हुई और मैं अपनी पुरानीं यादों में खोता चला गया। सिटंर प्लान्ट मेरे पेशेवर औद्योगिक जीवन का पहला पड़ाव था । खैर मैं शुरू से शुरू करता हूँ। 1970 में इंजीनियरिंग करने के बाद मैं नौकरी की खोज में था। सबसे पहला इंटरव्यू HAL का आया। BARC का इन्टरव्यु किसी कारण वश जा नहीं पाया। बाद में पता चला काफी कठिन इन्टरव्यु था। HAL का इंटरव्यू दिल्ली में था।दिल्ली के उस ट्रिप में कई मजेदार घटनाये घटी। मेरे फुफेरे भाई रमन भैया जिन्होंने ISM (now an IIT) धनबादप् से applied जिओलॉजी की पढ़ाई की थी और उस समय दिल्ली में एटॉमिक एनर्जी कमिशन में साइंटिस्ट थे। उनके यहाँ ही रुकना था
रमन भैया -अब
मेरी दिल्ली यात्रा
दिल्ली इसके पहले एक बार ही आया था। कॉलेज ट्रिप में। तब मोती बाग़ दिल्ली शहर से बाहर की जगह लगती थी। औटो वाले काफी ना नुकुर के बाद जाने को राजी हुए। नई दिल्ली स्टेशन से ऑटो से हम मोती बाग़ आ गए, दूरी ज्यादा  थी और मैं आशंकित था कि कही ऑटो वाला बेवजह घुमा तो नहीं रहा। थोड़ा ढूढ़ने पर रमन भैया का घर मिल गया। उनकी शादी नहीं हुई थी और अकेले ही रहते थे। कॉलोनी में चारो तरफ तीन तल्ले फ्लैट वाले मकान थे और बीच में आंगन जैसा मैदान था बच्चो के खेलने या महिलाओं के मीटिंग्स के लिए अच्छी जगह थी । शाम को काफी चहल पहल हो जाती थी। सुबह-सुबह अजीब अजीब-सी आवाज़ों से नींद खुल गयी। बालकनी में आ कर देखा तो केरोसिन और ब्रेड वाले थे। तेल वाला बोल रहा था "तेअ" "तेअ" । ब्रेड वाला थोड़ी-थोड़ी देर में एक सिटी बजा रहा था। सभी कॉलोनी वाले इसका मतलब समझते होंगे। क्योकि कुछ देर में ही भीड़ लग गई। केरोसिन एक राशन कार्ड में मिलने वाला सामान था, भीड़ लगना लाज़मी था। तब क्या पता था भविष्य में बोकरो में फिर ऐसी आवाज़ों को सुनने का संयोग बन रहा था।

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मेरा पहला इंटरव्यू
सुबह ब्रेड बटर का नास्ता कर के मैं इंटरव्यू के लिए निकल पड़ा। कॉलेज में हर साल शैक्षिक यात्रा करते करते बड़े शहरों का मुझमें कोई खौफ नहीं था । यूनिवर्सिटी जाना था और एक रूट की बस जाती भी थी। मोती बाग़ इस बस के लिए लास्ट स्टॉप ही था। बस के लिए लाइन में लग गया। जब बस आई तो स्टॉप से काफी आगे जा कर रुकी। सभी लोग लाइन छोड़ दौड़ पड़े । मुझे देर हो गयी। दूसरी बस जब आई तो फिर  ऐसा ही कुछ हुआ। पर जब तीसरी बस मेरे सामने रुकी और मुझे चढ़ने का मौका मिला तब एक हृष्ट पुष्ट महिला मुझे धक्का देते हुए चढ़ गई।

दिल्ली यूनिवर्सिटी
स्टैन्ड पर औटो वाले सब देख रहे थे। मीटर से जाने को राज़ी ही नहीं हुए और ज़्यादा किराया देना पड़ा। खैर तीन दिन जाना था और अगले दिनों में मैंने बस लेने की कोशिश ही नहीं की और ऑटो वाले मीटर से ही ले गए। बिहार में मेरे कॉलेज को छोड़ इंजीनियरिंग एग्जाम देर से हुआ था और बिहार से सिर्फ़ दो लोग ही इंटरव्यू के लिए आये थे। written टेस्ट पास करने पर डिज़ाइन का एग्जाम हुआ। एक प्रश्न था व्हील बैरौ डिज़ाइन करे। मैं ट्रांसफॉर्मर और मोटर डिज़ाइन करने को पढ कर अया था। खैर समूहिक चर्चा (Group Discussion) के बाद first 20 में आने के बावजूद और आगे नहीं बढ़ पाया जीवन में पहली बार असफल हुआ था। मूड ख़राब हो गया। रमन भैया ने काफी हिम्मत बढ़ाई।

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दिल्ली का खाना
अगले दिन घर में अकेला था भैया ऑफिस गए थे। खाने के लिए पास के एक झोपड़ी नुमा होटल में गया। मैंने चावल दाल और सब्जी माँगा। फिर मैंने पाया की सभी मुझे ही घूर रहे हैं। शायद यहाँ लोग चावल नहीं खाते होंगे फिर देखा तो चावल मेनु में लिखा ही नहीं था। मैं तंदूरी रोटी और पनीर की सब्जी खा कर वापस आ गया। शाम को भैया ने कनॉट प्लास जाने का प्रग्राम बनाया। शायद मेरा मूड ठीक कारना चाहते होंगे। खाना खाने के लिए पहले हम एक अच्छे रेस्टोरेंट में घुसे। घुसते ही हम समझ गए की यह कुछ एक महंगा रेस्टोरेंट है। खैर बैठ गए। मेनू पढ़ते ही समझ आ गया की कुछ ज्यादा ही महँगा है । वेटर आया तो हमने काफी या चाय मंगाना ही उचित समझा। कॉफी भी काफी  महंगी थी। जिस टेबल पर बैठा था वह डिनर के लिए सजा था। "Will you mind sitting over there?" वेटर एक छोटे टेबल की और दिखा कर बोला। रमन भैया "We will definitely mind" कहते हुए बाहर आ गये। जरूरत से ज्यादा खर्च करने से बच गए।

फिर पालिका बाजर के पास एक ढाबा दिखा। नाम थी "काके दा होटल।" एक झोपड़ी नुमा रेस्टॉरेन्ट के बाहर खुले में कुर्सी टेबल लगे हुए थे। हमने टेबल खाली होने का ईतंज़ार किया और एक टेबल खाली होते ही बैठ गये। रेट कार्ड एक ब्लैक बोर्ड पर लिखा था। हमने रोटी चिकन खाने का निर्णय लिया। बस छ: रूपये में हमारा चिकन रोटी और एक स्वीट्स का डिनर होगया। यह होटल अब काफी प्रसिद्ध हैं, और इसके Franchise पूरे हिन्दुस्तान में फैले है, पर वो स्वाद और वो सफाई अब कहाँ? याद नहीं उस ट्रिप में  दिल्ली में कहीं और घूमने गये थे या नहीं। पर उस दिन पालिका बजार और जनपथ से कुछ चीजें जिसमें  एक बेल बॉटम पैन्ट और आधी दर्जन टाईया शामिल था, खरीदी ।१९६५ में जब कॉलेज में एडमिशन लिया था तब १३-१४ ईन्च मोहरी वाली और बिना प्लीट वाले ड्रेन पाइप पैंट का फैशन था। पांच साल बाद जब पास हुए चौडी मोहरी वाली बेल बॉटम पैंट का फैशन आ गया था और मैं Latest पोशाक ही पहनता था । टाईया भी थोड़ी महंगी हो गयी थे। १९६८ में जब कॉलेज ट्रिप पर आये थे तब ९ रु के एक दर्जन के अविश्वसनीय मूल्य पर हम सबों ने खरीदी थी। इस बार आधे दर्जन के कुल अट्ठारह रु लगे। लाल किला, कुतुब मीनार वैगरह कॉलेज ट्रिप में ही घूम चुके थे। अतः हम अधिक रात होने के पहले घर वापस आ गए।
उस समय ट्रेनों में तीन क्लास होते थे। आए थे फर्स्ट क्लास में। लौटे III क्लास से। आने जाने का फर्स्ट का पैसा मिल ही गया था। AC क्लास होता ही नहीं था ।

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मेरी पहली नौकरी
लौटने के बाद BIT, सिन्द्री  के M.Tech कोर्स  में एडमिशन ले लिया उन दिनों पी जी में पढ़ने के लिए महिने का रू 250 स्टाईपेन्ड मिलता था जो कि नौकरी में मिलने वाले रू 400 की तनख्वाह से थोड़ा ही कम। सिन्द्री, धनबाद के उस ट्रिप में झरिया के बिहार टॉकीज में  सिनेमा  देखा और बोकारो तक जा कर नियोजन दफ्तर में निबंधन भी कर आया। वापस आने के बाद पटना गया और HSL (हिन्दुस्तान स्टील) का written टेस्ट दे आया। बहुत आसान सा पेपर था। ईन्टरव्यु कॉल का ईतंजार कर रहा था कि पटना युनिवर्सिटी से leave vacancy के लिए लेक्चरर का एपॉईन्टमेन्ट लेटर आ गया। तीन वैकेंसी थी विद्युत् विभाग में। दो यांत्रिकी विभाग में।पटना युनिवेर्सिटी के प्रथम और द्वितीय टॉपर को लिया जाना तय था और विद्युत् विभाग में द्वितीय टॉपर होने के कारण मेरा नंबर आ गया। सत्य प्रकाश नारायण टॉपर था। हम दोनो के अलावा एक बी एच यु के टॉपर  'वर्मा' ने भी हमलोगों के साथ ज्वाईन किया। अब आगे जो लिखने जा रहा हूँ वो सारी कहानियां मैंने अपने करीबियों को कई बार बता चुका हूँ। फिर भी लिखता हूँ।
मैं कदम कुआँ अपनी बड़ी मौसी के यहाँ रहता था। स्कूल की पढाई भी मैंने यही रह कर पूरी की थी। कॉलेज कंपाउंड में स्टाफ के लिए कुछ कमरे थे. पहले सोचा था एक कमरा मिल ही जायेगा। बाद में पता चला छुट्टी पर गए टीचर्स ने कमरा खली ही नहीं किया है। कदम कुआँ से कॉलेज करीब ४ किलोमीटर दूर था। पहले दिन मैने बस लेने का सोचा। हम लोग कॉलेज में नए लेक्चरर लगे हैं छात्र लोग जान गए थे। वो हमें पहचानते भी थे। कॉलेज में काफी डे स्कॉलर्स  थे, और कई लड़के बस से ही जाते थे। बस में चढ़ते ही देखा कुछ लड़को ने टी स्कायर ले रखा था। ये सब मेरे कॉलेज के ही छात्र थे। वे सब काफी असहज दिखे। अचानक से मै एक चिन्ता रहित छात्र से आदरणीय शिक्षक हो गया जिसे गंभीर रहना चाहिए। बिना इधर उधर देखे मैने छोटी सी बस यात्रा तय की। बस स्टाप पर कुछ खरीदने का अभिनय करते हुए तब तक रुका रहा जब तक सभी छात्र चले नहीं गए। फिर धीरे धीरे चलते हुए कॉलेज गया। बस निश्चय कर लिया कि कल से रिक्शा से ही कॉलेज जाउंगा चाहे रोज के 4-5 रु देने ही पड़ जाय। नए लेक्चरर होने के नाते हमें 3rd year का लैब क्लास का काम मिला। महिने भर चाय के लिए टी क्लब में पैसे देने पड़े।सत्य प्रकाश चाय पीता नहीं था। मै कभी कभी पी लेता था और पैसा मै ही वसूल कर पाता था लैब में घटी दो घटनाए याद है। हमारा एक सहपाठी था कन्हैया। मोटा हँसमुख लड़का था। दो बार फेल होने के कारण वह अभी भी 3rd year में ही था। एक दिन उसे क्लास आने में देर हो गई। 75% उपस्थिति आवश्यक होती थी। लड़को के लिए उपस्थिति बनवाने के लिए प्रोक्सी भी करते थे पर लैब क्लास में यह सम्भव नहीं था। कन्हैया मेरे पास हिचकिचाते हुए उपस्थिति बनवाने आया। मै कुछ मज़ाक करने वाला था मेरा मुंह खुले उससे पहले उसके मुंह से निकला "सर"! वह कुछ और कहता उसके पहले ही मैने अटैन्डेन्स दे दी। मेरा काम था घूम कर लैब में छात्रों द्वारा किए जाने वाले प्रयोग की प्रगति को देखना। वर्मा ने जुनियर मोस्ट था, सारे कठिन प्रयोगो की जिम्मेवारी उसे सौंप ब्रिज मेगर का प्रयोग मैनें अपनी लिए रखा था। कई ग्रुप अपना मेगर का प्रयोग कर चुके थे और कॉपी में मुझसे हस्ताक्षर भी करवा लिए । सबको मैने ब्रिज बैलेन्स के लिए सुई को मेगर के बीच में रखने को कहा था। एक दिन दो लड़को के एक ग्रुप कई बार कहने पर भी मेगर के शुन्य पर ही बैलेन्स करते दिखे।मैने देखा तो डॉटने के स्वर में पूछा " ये क्या कर रहे हो?" लड़के ने डरते डरते बताया सर जीरो के पास ही Increase-0-decrease लिखा है। बैलेन्स यही पर करना है सर। मै तुरंत समझ गया मैने ध्यान नहीं दिया था और मैं गलत था । मैने उन्हें शाबाशी दी। फिर मैने उन दोनों कों कहाँ पहले जिसने भी इस प्रयोग को किया है उसको सुधार लेने बोल देना।

मै प्रतिदिन कुछ सीख रहा था। शिक्षण कार्य आसान नहीं है यह अहसास हो चला था। दोपहर का खाना मेस में खा नहीं सकता था। टिफिन लाते थे। एक दिन टिफिन नहीं ला पाए। इसलिए मोड़ पर राम जी के ढ़ाबानुमा नास्ते की दुकान में चले गए। ये वही दुकान थी जहाँ हम हॉस्टल से यदाकदा नास्ता करने आया करता था। छोटी सी दुकान थी। दोनो तरफ बेंच और टेबल लगे थे। राम जी ने हमें पहचान लिया और बैठने को कहाँ और क्या खाएगें पूछने लगे। वहाँ एक दुसरे से रगड़ाते ही बेंच में बैठने के लिए घुसना पड़ता था। दुकान छात्रो से भरा था। सब खड़े हो गए और बैठने का निमन्त्रण देने लगे। कुछ धीरे से खिसक भी लिए। मैं दुकानदार के तरफ देखने लगा। मानों वह भी कह रहा हो "आप यहाँ आए किस लिए।" मैने ने एक चाय पिया और जल्दी निकल लिए। फिर पिन्टू होटल तक गए और पर्स ढ़ीले कर खाना खाया। और पिन्टू का रसगुल्ला भी छोड़ते नहीं बना।
रविवार आया तो एक फिल्म देखने के लिए रिजेन्ट सिनेमा चला गया ठीक ठीक याद नहीं पर फिल्म का नाम शायद 'तलाश' था। मै आदतन रु 1.75 जो स्टुडेन्ड क्लास प्रसिद्ध था के लाईन में टिकट लेने लग गया। थोड़े देर में दो लड़के आए और उनके लिए दो टिकट भी लेने का अनुरोध करने लगे। मैने उनको लाईन में लग कर टिकट लेने दिया। लड़कों ने अक्ल लगाई और मेरा टिकट दुसरे ROW का लिया।
रीजेंट सिनेमा अब
देखते देखते दुर्गा पुजा की छुट्टी शुरू होने को हुआ। एकदिन  मै अपनी तनख्वाह के लिए  कालेज आफिस चला गया। उन्होनें बताया हमें यूनिवर्सिटी के नामित बैंक के चिन्हित ब्रांच में एकाऊन्ट खोलना होगा और एक बिल भी बनाना होगा तभी मेरे एकाउन्ट में पैसा जाएगा । मै फॉर्म ले ही रहा था कि किसीने मेरा पैैन्ट का पायचा पकड़ लिया। मै चौंक पड़ा। वो मेरा सहपाठी था। अरे अमिताभ ये सब नहीं चलेगा, वह मेरा दिल्ली वाले बेल बाटम पैन्ट को पकड़ कर बोल रहा था। मै चारो तरफ देखने लगी कि कोई छात्र देख तो नहीं रहा हैं। मैने निश्चय किया कि अब बेल बाटम पहन कर कॉलेज नहीं आऊंगा। राज कपूर ने सिर्फ तीन ही कसम खाई थी पर यह थी मेरी पाचंवी कसम।
खैर दुर्गा पुजा के लम्बी छुट्टी शुरू हो गई। मै घर चला गया। तभी बोकारो से कॉल आ गया। एक आसान से साक्षात्कार के बाद तुरंत नौकरी ज्याईन करने का पत्र मिल गया। परसनल विभाग ने बताया यदि हम अपने लेक्चरर की नौकरी को सेवा पंजिका (Service Record) में डालना चाहते है तो अनापत्ति प्रमाण पत्र ले कर आईए। मेरी मत तब मारी गई थी और मैं पटना चला गया। इतनी लम्बी चौड़ी प्रक्रिया बताया गया कि मेरे पास बैरंग लौटने के आलावा कोई चारा नहीं बचा। लौटने के पहले मैने ऑफिस के स्टाफ को एक चिठ्ठी लिख कर दे दी कि मेरा जो भी तनख्वाह बाकी होगी वह स्टाफ फंड के लिए दान करता हूँ । बोकारो जल्द वापस आ कर मैने ज्वाईन कर लिया। एक हफ्ते जूनियर होने से कोई और दिक्कत नहीं हुई पर तीन साल बाद जब क्वार्टर मिला तो   सेक्टर 3 में नहीं मिला और मिलने में देर हुई सो अलग।  जैैसा मैनें प्रारम्भ में ही लिख चुका हूँ,  बोकारो में मेरा प्रथम कार्यस्थल था सिंटर प्लांट। कई रोचक घटनाए वहाँ भी घटी। वो फिर कभी।

क्रम-सूची

1 comment:

  1. Very interesting story ... First job is always special.

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