Monday, July 13, 2020

ভুল হলে দয়া করে ক্ষমা করুন। हिंदी अनुवाद के साथ


कई मित्रों ने हिंदी अनुवाद का आग्रह किया हैं और मैं उसे नीचे दे रहा हूँ


কিছু দিন আগে আমার মোবাইলে আমার স্ত্রীর জন্য একটি কল এসেছিল। তার বন্ধু মিসেস শিল্পী গুহার ফোন ছিল। আমি তার বাংলোতে লেখা ফেসবুক পোস্টে কমেন্ট করেছিলাম। সেই সময় তিনি জিজ্ঞাসা করেছেন কি আমি লোকডাউনে বাংলা পড়তে শিখেছি ? আমি বললাম বাংলা পড়তে আগে থেকে জানতাম। এখন মোবাইলে বাংলা টাইপ করা শিখছি । তিনি কিছুটা অবাক হয়েছেন।

আমি সিদ্ধান্ত নিলাম বাংলায় একটি ব্লগ লিখব।

তারপরে ভাবতে শুরু করলাম কেন এবং কখন বাংলা শিখেছি। কেন তো জানিনা কিন্তু কবে মনে আছ। বেশি সময় আমার এই প্রশ্নের উত্তর হয় “আমি আমার বেঙ্গালি ফ্রিইন্ডস থেকে বোকারোতে শিখেছি । তবে আমার স্কুল টাইম থেকে এই ভাষাটি শেখার স্বাভাবিক ইচ্ছা ছিল। আমার শৈশবকালে একজন ডাঃ মুখার্জি আমাদের কাছে ছিলেন। উনি LMP (Licensed Medical Practitioner) ডাক্তার ছিলেন আর দেশ বিভাগের সময় তিনি আমাদের শহরে এসেছিলে। আমাদের এরিয়া তে কোনো ডাক্তার ছিলেনন। আমাদের জায়গাটি এমন ডাক্তার জন্য ভাল জায়গা ছিল প্রাকটিস করা জন্য। আমার বাবা তখন এরিয়ার এক মাত্র প্রাইভেট MBBS ডাক্তার ছিলেন। ডাক্তার মুখার্জী কাছে ছিল এক্টৌ Vouxhall কার । যার বাম বা ডান আলো সিগন্যালের জন্য উপরে উঠবে। হাত দেওয়া সংকেত মত। এটি বাচ্চাদের জন্য একটি কৌতূহল পূর্ণ বিন্যাস ছিল। তার ড্রাইভারের নাম ছিল নীলু। নীলু দা ছিলেন ওনার 'আল ইন বন' কম্পউণ্ডার, ড্রাইভর এবং সহায়ক। নীলু বাবুও বাঙালি ছিলেন । বেঙ্গালি সুরটি তাঁর হিন্দিতে স্পষ্ট ছিল। আমি উনাকে প্রায়ঃ কারে ঘোরাতে অনুরোধ করতাম। তিনি সাধারণত ঘুরিয়ে দিতেন। আমার বাংলা আলাপ মাঝে মাঝে হয়ে যেত। আমার বাংলা শেখা শুরু হয়ে গেছিলো।



ডাঃ মুখোপাধ্যায়ের গাড়িটি এরকম ছিল
আমি বোকারোর বাঙ্গালী ফ্রেইন্ডদের আভাড়ি আছি কি ওনাদের আমাকে বাগালী বলার চান্স দিলো । তারা আমার ভুলগুলিও মনে করেনি। এটা আমার আত্মবিশ্বাস টি বাড়িয়ে দিলো। উত্তর বিহারের কয়েকটি Dialect বাংলার সাথে খুব একই রকম । আমাদের মায়ের বাড়িতে বেগূসরায তে " 'कहाँ जा रहे है " জন্য আমরা বলব " कत जायछी " বাংলায় আমরা বলি " কোথায় যাচ্ছো " আগে মৈথিলির লিপিটিও ছিল বাংলা। বাংলা শেখা আমার জন্য স্বাভাবিক ছিল। অনেকে মনে করেন কিশোর বাংলার প্রেমের আগ্রহ হতে পারে। আমি নিশ্চিত করে বলছি যে এর মতো কিছুই ছিল না।
পরে আমি আস্তে আস্তে বাংলোটি পড়া শিখতে শুরু করেছি । দেবনাগরী একটি বৈজ্ঞানিক লিপি। যা লেখা আছে তা বলুন। ইংরেজীতে কিছু লিখুন অন্য কিছু পড়ুন!to=চূ do=ডূ go=গো But= বট put= পূট । বেশি ভারতীয় লিপি দেবনাগরীর মত। বাংলাও। আমার জন্য এই কারণে বংলা লিপি সহজ হয়েছে। বোকারোতে কয়েকটি বাংলা পত্রিকা পড়ার চেষ্টা করার সুযোগ পেয়েছি। আনন্দলোক মত ফিল্মের মাগ্জিনে পড়তে মজা লাগতো। দেশের মতো মূলধারার ম্যাগাজিন পাওয়া যেত। যে শব্দগুলি আমি পড়তে পারতাম না তখন প্রসঙ্গের সাথে বুঝিয়ে নিতাম। আস্তে আস্তে, এখন আমি শিরোনাম এবং ছোট কবিতা পড়তে পারি। কোমেন্টস জোকে আর পোস্ট গুলো পড়তে পারি দীর্ঘ গল্প বা কবিতা পড়ার ধৈর্য নেই। অমার বন্ধু দেবল দাশগুপ্তের দীর্ঘ কবিতাটি পড়তে পারেনি। "আকাশ ভরা সূর্য তারা, এখন আকাশ মেঘে ভরা" থেকে আগে যেতে পাই না। আমি হাতে লেখা বাংলো পড়তে পারি না। মুদ্রিত বাংলো 80-90% পড়তে পারি। এখন মোবাইলে বাংলা কীবোর্ডও রয়েছে। হিন্দি মতোই টাইপ করতে হয় । এখন আমি বাংলায় কিছু লিখতেও পারি। প্ররম্ভে আমি বাংলায কথা বলতে দ্বিধাগ্রস্ত হোতাম। ট্রেনে কিংবা ট্রামে কেই কিছু পূছলে আমি অনেকবার বাংলায উত্তর দিয়েছি যে আমি বাংলা জানি না। জিজ্ঞাসা করা লোক বিরক্ত হোতো ক্রোধ করতো। অন্যদের মজা নেতো। তমিলনাডু তেউ আমি তাই করতাম, "তমিল তেরিযদ" = তমিল জানিন । আম্তে আস্তে আমি ট্রেন ট্রাম ভীতরেউ বংলা বোলতে শূরূ করেছিলাম। তবুও আমার বাংলো পড়ার গতি কম। সম্প্রতি রাঁচিতে আমার প্রতিবেশী মিসেস মুস্তাফি কিছু নিবন্ধ পড়ার জন্য আমাকে অনেক বাংলা ম্যাগাজিন দিয়েছেন।একটি পৃষ্ঠা পড়তে আধ ঘন্টা সময় লাগে। তারপরেউ আমি 5 টি পৃষ্ঠা পড়েছি। তারপর আমার ধৈর্য হারিয়েছে। তবে অন্য যে কোনোউ ভাষায দীর্ঘ পাঠের সংগে এটা হয়।আমি কোনও উপন্যাস পড়তে পারি না। দিল্লী তে আমি এক বছরে বাংলায় একটি শব্দও কথা বলি নি। শেষ বছর আমি ফিজিওথেরেপিস্ট শ্রেওসী যে আমাদের সোসাইটীতে থাকে সংগে বংগলায কথা বোলতাম। তবে আমি এখন সুস্থ আছি তার ক্লিনিকে যাওয়ার দরকার নেই।আমি তার ছেলের সাথে বাংলায় কথা বলার চেষ্টা করেছি। তার ছেলে বাংলা জানে না।আমি জানতে পারলাম যে ছেলে টা বাংলা কথা বলে না। আমি জিজ্ঞাসা করলাম কেন তিনি বাংলায় কথা বলে না? শ্রেওসী বলল তার বাবা একজন হিন্দুস্তানি।আমি হাসে পড়েছি । হিন্দুস্তানি দ্বারা তিনি হিন্দিতে কথা বলার অর্থ করেছিলেন। সাধারণত হিন্দুস্তানির অর্থ হয ভারতীয়।
ব্লগ এখন খুব দীর্ঘ হয়ে উঠছে।আর পারহছিন। কিন্তূ মাঝে মাঝে বংহলায ব্লাহ লেখব। হিন্দী মাতৃভাষা হেলেউ বংলা আমার মাসী মাঁর ভাষা আছে।

আমার জন্য বাংলায় ব্লগ লেখার চেয়ে বড় আর কী হবে ? ভুল হলে দয়া করে ক্ষমা করবেন।



कुछ दिनों पहले मेरे मोबाइल पर मेरी पत्नी के लिए एक कॉल आया। उनकी मित्र श्रीमती शिल्पी गुहा का कॉल था। कुछ दिन पहले मैंने उनके बंगला में लिखे फेसबुक के पोस्ट पर टिप्पणी की थी। उस समय उन्होंने पूछा था कि क्या मैंने लॉकडाउन में बंगला पढ़ना सीखा है? मैंने जवाब में कहा नहीं, मैं पहले से ही बंगली पढ़ना जानता हूँ। और अब मैं मोबाइल पर बांग्ला लिखना सीख रहा हूं। वह थोड़ा आश्चर्यचकित हुई । तभी मैंने फैसला लिया कि बंगला में एक ब्लॉग लिखूंगा ।फिर मैं सोचने लगा कि क्यों और कब मैंने बंगला सीखना शुरू किया था। “क्यों” तो मुझे नहीं पता लेकिन कब याद है। इस सवाल का ज्यादातर मेरा जवाब होता है , "मैंने बोकारो में अपने बंगाली दोस्तों से सीखा।" लेकिन मुझे पता है कि स्कूल के समय से ही इस भाषा को सीखने की स्वाभाविक इच्छा थी। बचपन की बात हैं, हमारे एक पडोसी थे डॉ मुखर्जी । वह एक LMP (लाइसेंस प्राप्त मेडिकल प्रैक्टिशनर) डॉक्टर थे  और विभाजन के समय वह हमारे शहर में आये थे । हमारे इलाके में तब (अस्पताल को छोड़ कर) कोई डॉक्टर नहीं थे । ऐसे में प्राइवेट डॉक्टर के Practice के लिए हमारा शहर एक अच्छी जगह थी । मेरे पिता उस समय इलाके के एकमात्र प्राइवेट एमबीबीएस डॉक्टर थे। डॉ। मुखर्जी के पास एक Vouxhall कार थी। जिसके बाएं या दाएं Signal lights संकेत के लिए ऊपर की ओर उठता था । हाथ के संकेत की तरह। यह बच्चों के लिए एक कौतुहल का विषय था। उनके ड्राइवर का नाम नीलू था। नीलू दा उनके 'ऑल इन वन' कंपाउंडर, ड्राइवर और सहायक थे। नीलू बाबू भी बंगाली थे। उनकी हिंदी में बंगला का पुट स्पष्ट था । मैं अक्सर उन्हें कार से घूमा देने का आग्रह करता । वह ज्यादातर मुझे और अन्य बच्चों को कार में घूमा भी देते । उस समय अनजाने में ही मेरी उनसे बंगला में अक्सर छोटी बात समय-समय पर हो जाती । अब सोचता हूँ तो लगता है मैंने तब से ही बंगला सीखना शुरू कर दिया । मैं बोकारो के अपने बंगाली दोस्तों का आभारी हूं, क्योकि उन्होंने मुझे बंगला में बात करने का मौका दिया । उन्होंने मेरी गलतियों को भी नज़र अंदाज़ किया । इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया । उत्तर बिहार की कुछ बोलियाँ बंगला से बहुत मिलती-जुलती हैं। बेगूसराय में  यानि मेरे ननिहाल   में, ''आप कहाँ जा रहे हैं '' के लिए, हम कहते थे "कत जायछी" या "कहा जय छहो", जबकि बंगला में कहेंगे "कोथाय जच्छो" । बंगाली सीखना मेरे लिए एक सामान्य सी स्वाभाविक बात थी । बाद में मैंने धीरे-धीरे बंगला पढ़ना भी शुरू किया। देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। वही बोलते है जो लिखा है । अंग्रेजी में लिखो कुछ ! और पढ़ो कुछ ! To= टु do= डु पर Go= गो Put= पुट पर But= बट । ज्यादातर भारतीय लिपि देवनागरी जैसी है । बांग्ला भी। इस कारण से, बांग्ला स्क्रिप्ट मेरे लिए आसान थी । मुझे बोकारो में कुछ बंगाली पत्रिकाओं को पढ़ने का मौका मिला। आनंदलोक जैसी फिल्मी पत्रिकाओं में पढ़ना मजेदार था। देश जैसी मुख्यधारा की पत्रिकाएँ भी मिल जाती थीं। जिन शब्दों को मैं पढ़ नहीं सकता, उन्हें मैं संदर्भ के साथ मिला कर समझ लेता । धीरे-धीरे, अब मैं शीर्षक और छोटी कविता पढ़ सकता हूं। मैं टिप्पणियों को, पोस्ट को और जोक को ठीक ठाक पढ़ सकता हूं । पर लंबी कहानियों या कविताओं को पढ़ने के लिए मेरे पास धैर्य नहीं है। अपने मित्र देबल दासगुप्ता की लंबी कविता पूरी नहीं पढ़ सकता । मैं पहली लाइन " अकाश भरा सूर्य तारा । एखान अकाश मेघे भरा " से आगे नहीं जा सकता । मैं हस्तलिखित बांग्ला पढ़ नहीं सकता। अब मैं 80-90% मुद्रित बांग्ला को पढ़ सकता हूँ । अब मोबाइल में बांग्ला कीबोर्ड भी है। जिसमे हिंदी की तरह ही टाइप करना होता हैं । अब मैं बांग्ला में कुछ लिख भी सकता हूं। पहले पहल मैं बंगला बोलने में हिचकिचाता था। ट्रेन या ट्राम में कुछ पूछे जाने पर, मैंने कई बार बंगला में जवाब दिया कि “आमि बांग्ला जनि न”। पूछने वाला व्यक्ति नाराज हो जाता । और दूसरे लोग मज़ा लेते । थोड़ा तमिल भी सीखा था पर तमिलनाडु में भी तब मैं ऐसा करता था, कुछ पूछने पर मेरा जवाब होता "तमिल तेरियाद या " "तमिल तेरि इल्ले " = तमिल नहीं जानता। धीरे-धीरे मैंने ट्रेन ट्राम के अंदर भी बंगला बोलना शुरू कर दिया। फिर भी मेरे बांग्ला में पढ़ने की गति कम है। हाल ही में रांची में मेरे पड़ोसी श्रीमती मुस्तफ़ी ने मुझे कुछ लेख पढ़ने के लिए कई बंगला पत्रिकाएँ दीं। एक पृष्ठ को पढ़ने में आधा घंटा लगा । तब भी मैंने 5 पेज पढ़े । फिर मैंने अपना धैर्य खो दिया। लेकिन यह मेरे साथ किसी भी अन्य भाषा में लिखे लंबे पाठ के साथ होता है चाहे वो हिंदी में ही क्यों न हो। मैं कोई उपन्यास नहीं पढ़ सकता। दिल्ली में हूँ और मैंने एक साल में बंगला का एक शब्द भी नहीं बोला। पिछले साल मैं बंगली फिजियोथेरेपिस्ट श्रीमती श्रेयषी, जो हमारे सोसाइटी में ही रहती है के साथ बंगला में बात कर लेता था । लेकिन अब मैं स्वस्थ हूं, उनके क्लिनिक में जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने उनके बेटे के साथ बंगला में बोलने की कोशिश की थी । पता चला उनका बेटा बंगला नहीं जानता। मैंने आश्चर्य के साथ उनसे पूछा कि वह बंगला में बात क्यों नहीं करता हैं ? श्रेयोसी ने कहा कि मेरा पति एक हिंदुस्तानी हैं। मैं हंसा। हिंदुस्तानी से उनका मतलब हिंदी बोलने वाला । जबकि हिंदुस्तानी का मतलब आमतौर पर भारतीय होता है। ब्लॉग अब बहुत लंबा होता जा रहा है। भविष्य में कभी-कभी बंगला में लिखूंगा इस वादा के साथ समाप्त कर रहा हूँ । हिंदी मातृभाषा तो है पर बंगला भी मेरी मौसी भाषा जैसी है। बंगला में ब्लॉग लिखने से बड़ा मेरे लिए क्या हो सकता है? यदि कोई गलती हुई हो तो प्रथम प्रयास सोच कर, कृपया मुझे क्षमा करें ।

2 comments:

  1. Nice.The effort is commendable .A language is always a window into a new world Bihar and Bengal are neighbouring states and were one till the Pala dynasty. So language and customs are very similar. Bengali is derived from Maithili and
    early Bengali literature is common with Maithili

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  2. Very interesting post. Papa, you have always been a linguist, easily picking up languages and it has inspired me to some extent, although I am not as good you. I remember learning the Tamil numbers from you and also some German.

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