आज फ़िजा में इतना शोर क्यों है?
तमन्नाएं चीख पुकार कर रही
मन शोर सुनने को तैयार क्यों है?
फागुन के आने का सबब लगता है
फागुन में इतना चमत्कार क्यों है?
भवनाओं के ववंडर में फंस गया हूं
पर इसमें फंसने का मलाल क्यों हूं?
अमिताभ कुमार सिन्हा, रांची
Saturday, October 18, 2025
फागुन का शोर
Friday, October 17, 2025
कार के साथ बुरे फंसे
एक घटना जिस पर मैंने अभी तक कोई ब्लॉग नहीं लिखा, AI से पापा के पहले कार का चित्र बनाने से याद हो आया। तब मैं शायद कालेज के दूसरे साल में था।
यानि 1966 की बात है। पापा ने एक कार खरीदी पापा की या हमारे परिवार की पहली कार थी Austin of England, A40 । उस समय जो भी हमारे संयुक्त परिवार के सदस्य थे, यानि जिनका जन्म तब तक हो गया था, ने कभी न कभी इससे यात्रा जरूर की है। हमारे बड़े मौसेरे बच्चन भैया जो हमसे 14 वर्ष बड़े थे उनकी बारात भी इसी कार से लगी थी।
मेरा वाकया तब का है जब मंडल जी धनबाद में कोलियरी की नौकरी छोड़ कर जमुई आ गए थे और हमारे यहां ड्राइवर लग गए थे। हम परिवार सहित किसी शादी में जा रहे थे । मां के साथ दीदी को छोड़ हम पांच भाई बहन, छोटी मां और संगीता, मंझली फुआ, नौकर गुलटेनवा और मंडल जी यानि कुल 11 जन यानि पांच बच्चे और अन्य बड़े थे। सामान में शायद तीन टिन के बक्स उपर बांधे गए थे और अन्य न जाने कितने सामान डिकी में थे। छोटी बहन मुकुल शायद तब तेरह बर्ष की थी और उसे भी मैंने बड़ो में ही गिना है। तीन लोग आगे और 8 पीछे की सीट पर। जाहिर है सभी बच्चे गोद में बैठे। सभी कष्ट के बावजूद कार की यात्रा तब की रेलयात्रा से आरामदेह था।
किस्सा तब शुरू हुआ जब मैं कुछ देर ड्राइवर सीट पर बैठा । मैं शायद 16 या 17 का था और बेसिक गियर क्लच एक्सलेटर का सिन्क्रोनाइजेशन करना सीख चुका था। सिर्फ स्टेयरिंग पर कच्चा था। ठीक ठाक तो मुझे कभी नहीं आया। मैं कुछ दूर जाने के बाद ड्राइवर सीट पर बैठ गया। लेकिन गढ्ढे से भरे रोड पर कार चलाना बच्चों का काम नहीं है यह सबित होने लगा । जिस गढ्ढे से बचना चाहता था अक्सर चक्का उसी में चला जाता। सिर्फ एक बात मेरे हक में था कि रोड पर ट्रैफिक बहुत कम था। तब छोटे शहरो को ट्रेफिक कम ही होते थे।
खैर कुछ दूर चलने के बाद कार टेढ़ी मेढ़ी चलने लगी। मैंने कार तुंरत रोक दी। मंडल जी ने चेक किया तो पता चला पिछले बांया चक्के के नट welded थे और जर्क के कारण weld टूट गए थे। हम किसी बस्ती के बजाय बहियार यानि सुनसान जगह पर थे दोनों तरफ खेत थे दूर कहीं कहीं खलिहान दिख रहे थे। तब खेतों की सिंचाई के लिए पंप का चलन नहीं था ओर खेतों में पंप के रक्षा के लिए रात में रूकने की जरूरत नहीं थी और रात और सुनसान हो जाती थी । मुझे छोड़ सिर्फ मंडल जी मर्द के श्रेणी में थे। हमने निर्णय लिया कि सभी महिलाओं और बच्चों को बस से वापस भेज दिया जाय। मंडल जी भी चक्का और नट बोल्ट खोल कर साथ ही चले गए ताकि घंटे डेढ़ घंटे में ठीक करा कर आ जाएं । अब सामान से लदी कार के पास 17 वर्ष का मैं और 11-12 वर्ष का गुलटेनवा ही रह गए।
अब शुरू हुई हमारी असली आजमाइश । हम लगातार आने वाले रास्ते की ओर नजर गड़ाए थे जब भी कोई गाड़ी, मोटर साइकिल या बस जाती तो आस जग जाती कि मंडल जी शायद इसमें में हों। सभी गाड़ी वाले हमें अजीब सी नज़रों से देखते हुए निकल जाते । आखिर एक मोटर साइकिल वाला रुक कर यह बता गया कि मंडल जी जल्द आएंगे। एक घंटे बाद एक कार वाला हमें नाश्ता दे कर चला गया। फिर ऐसा ही चलता रहा और कोई गाड़ी रुकी नहीं। करीब चार बजे एक मोटर साइकिल वाला एक टिफिन दे गया जिसमें हमारा लंच था। हमारा धीरज जवाब देने लगा। और मंडल जी पर बहुत गुस्सा आने लगा। इतनी देरी लगनी थी तो बता देते, उपर लदे बक्से भी बस से भेज देते। डर भी लगने लगा । हमारी गाड़ी में लदे सामान सबको दिख रहे थे।
धीरे धीरे शाम होने लगी। करीब पांच बजे दो लंबे चौड़े आदमी लाठी लिए हमारे पास आए। अंदर से हम डर रहे थे और बाहर से हिम्मत दिखा रहे थे। उन्होंने कहा "एतना शाम हो गेलों ह अब तक गेल्हो नय"।
कोई और समय होता तो मैं कहता तुमको मतलब? लेकिन मैं शांत रहा और बोला "चकवा पेंचर हो गेले हल। ड्राइवर साहब ले के गेले हथी अब आइबे करता "
"रात होले जाल हो तोहरा सब के चल जाय के चाही दिन दुनिया ठीक नय हो। आगे बहुत छीना झपटी होय ह , जल्दीए इहा से चल जाहो" और उन्होंने एक नज़र कार के उपर लदे बक्सो पर और एक नजर हम पर डाला और वे चले गए।
अब मैं उन्हें क्या बताता कि भाई साहब मुझे तो आप ही डाकू लग रहे हो। तुमने सामान देख लिया रक्षा करते सिपाहियों को भी परख लिया, क्या जाने दो चार धंटे बाद तुम लोग फिर से आ जाओ।
अंधेरा होने लगा था। चांद भी नहीं निकला था। हमने ग्लोव कम्पार्टमेन्ट से दो मोमबत्तियां निकाली और कार के आगे पीछे जला कर चिपका दी ताकि घर से कोई आता हो तो अंधेरे में भी कार दिख जाए। मैं मन ही अपनी स्ट्रेटजी बनाने लगा। हमें अब तक समझ आ गया था हम कार पर लदे सामानों की रक्षा नहीं कर सकते। कार का एक पहिया नहीं था कार वे ले नहीं जा सकते। बैट्री, टायर की चोरी तब शुरू नहीं हुई थी। अब मैं हिसाब लगाता हूं तो तीन बक्सों में रखे थे दुल्हे को देने के लिए 3 अंगूठीयां और तीन महिलाओं के जेवर । कम से कम 60 ग्राम सोना और बनारसी साड़ियां और नए पुराने कपड़े। आज के हिसाब से कम से कम 10 लाख के सामान थे। यानि रात तक कोई न आया तो हमें अपनी सुरक्षा की सोचनी थी। कार में सोना खतरे से खाली न था। क्यों न हम दूर उस पेड़ के नीचे रात बिताए दूर से गाड़ी पर नजर रखेंगे । मन ही मन चोर चोर चिल्लाने का अभ्यास करने लगा। चिल्लाने में गुलटेनवा माहिर था। फिर रात में सियार के आने का खतरा था। आग जलाने के लकड़ी कहा मिलती । मैंने कार में ही सोने का फैसला किया। डाकु आए तो उन्हें सब ले जाने दूंगा और अपनी घड़ी पर्स भी दे दूंगा।
यह सब सोच ही रहा था कि एक कार की लाइट दिखाई दी। हमारी आशा जगी ही थी कि, "घबरहिओ नय भोला बाबु (मेरे छोटा बाबु यानि छोटे चाचा) आवों हथुन" कह कर ड्राइवर आगे निकल गया। अब जाकर चैन आया। थोड़ी देर में अपने एक सहकर्मी के मोटर साइकिल से छोटा बाबु आ गए। अब मैं पुर्णत: निश्चिंत हो गया। दर असल मंडल को चक्के के साथ दो मैकेनिक को भी लाना था। इसलिए कार की जरूरत थी। हमारे पड़ोसी डा० मुखर्जी अपनी कार देने में आनाकानी कर रहे थे। पापा भी घर पर नहीं थे।
डा० मुखर्जी की गाड़ी ऐसी थी
अंत में डा० साहब के दायां हाथ यानि ड्राइवर, कम्पाउन्डर और सहयोगी नीलू बाबू के उन्हें छोड़ कर चले जाने की धमकी ने असर दिखाया और उन्होंने कार दे दी। एक तो रिपेयर में देर लगी फिर हवा भरने के लिए बिजली आने का इंतजार करना पड़ा फिर कार मिलने का यह टंटा। कुछ देर के इंतजार के बाद कार आ गई, मैं मंडल जी पर बिगड़ पड़ा कि जब तक रिपेयर हो रहा था आप यहां आ जाते। खैर करीब आधे घंटे लगे और अपनी कार चल पड़ी । आधे घंटे बाद मुझे देख मां के आखों में आंसू आ गए। घर में सभी ने चैन की सांस ली। और अब हमने भी राहत की सांस ली ।
अब यह न पूछना अगले दिन गए कि नहीं? वो किस्सा फिर कभी।
Tuesday, October 14, 2025
Poetry in motion

ट्रक के पीछे लिखे स्लोगन सच में मजदार तो होते है ड्राइवर के दुखी जीवन के बावजूद उसके हसमुख होने का प्रूफ भी है।
सभी यात्रियों ने सड़क पर पढ़ा हैं मैंने COMPILE किया देखे :
Poetry in motion .. slogans behind trucks.
"मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना
चलती है सड़क पर बन कर हसीना !!"
"मालिक की ज़िंदगी बिस्कुट और केक पर
ड्राइवर की ज़िंदगी एक्सिलेरेटर और ब्रेक पर!!"
"पत्ता हूँ ताश का जोकर न समझना,
आशिक हूँ तेरे प्यार का नौकर न समझना!!"
"या खुदा क्यों बनाया मोटर बनाने वाले को,
घर से बेघर किया मोटर चलाने वाले को!!"
"ड्राईवर की ज़िन्दगी में लाखों इलज़ाम होते हैं,
निगाहें साफ़ होती हैं फिर भी बदनाम होते हैं!!"
"चलती है गाड़ी उड़ती है धूल
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल!!"
"दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये
वो उतर कर चल दिये हम गियर बदलते रह गये !!"
"कभी साइड से आती हो, कभी पीछे से आती हो
मेरी जाँ हार्न दे देकर, मुझे तुम क्यों सताती हो!!"
"रूप की रानी चोरों का राजा,
मिलना है तो सोनिया विहार आ जा!!"
"कीचड़ में पैर रखोगी तो धोना पड़ेगा
गोरी ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा!!"
"लिखा परदेस क़िस्मत में, वतन की याद क्या करना
जहाँ बेदर्द हाकिम हों, वहां फ़रियादक्या करना!!"
"पानी गिरता है पहाड़ से, दीवार से नहीं
दोस्ती है हमसे, हमारे रोज़गार से नही!!"
"बुरी नज़र वालों की तीन दवाई,
जूता, चप्पल और पिटाई!!"
सौ में नब्बे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान ।
काला कुरता, काला चश्मा, काला रंग कढाई का,
एक तो तेरी याद सताए, दूजा सोच कमाई का
दुल्हन वही जो पिया मन भाये,
गाड़ी वही जो नोट कमाए
अपनो ने मुझे लूटा गैरो में कहाँ दम था
मेरी कश्ती वहॉ डूबी जहाँ पानी कम था
टाटा में मै पैदा हुई हावड़ा में श्रृन्गार हुआ
दिन रात सगं रहते रहते ड्राइवर से मुझको प्यार हुआ
जगह मिलने पर पास मिलेगा
हिम्मत हैं तो पास कर वर्ना बरदाश्त कर
अनारकली, लद के चली।
कुछ नए
बुरी नजर वाले । तू सेल्फी ले ले
2G 3G 4G जहाँ मिले बात कर लो जी
जहाँ जहाँ हम है वहाँ वहाँ दम है।
बुरी नजर वाले तेरे बच्चे जिए।
जब तक जिए तेरा खून पिए।
कमा के खा। नजर न लगा।
धीरे चलोगे बार बार मिलेंगें
वर्ना हरिद्वार मिलेंगें।
दो गज की दूरी है बहुत जरूरी।
प्रेम रंग
प्रेम रंग
प्रेम इक अहसास है इसे अहसास ही रहने दो यारों
रंगों छंदों में इसे बांधने की जिद न करो
किसी के आने से जब मन में खनक जग जाए
किसी के जाने से जब मन में कसक जग जाए
जब आंखों को पढ़ने का शउर आ जाए
जब तारीफ सुन अपने पे गुरूर आ जाए
जब किसी के आंसू तूम्हें बरबस तड़पा जाए
जब किसी की बेरूखी न हो काब़िले बर्दास्त
यही इश्क है यही इश्क है यही इश्क है जनाब
जब भयानक ठंड हो और दे दो अपनी कंबल
हो बारिश और तुम दे दो जब अपना छाता
जब ग़मगीन हो रोने को दे दो अपना कांधा
समझो कि तुम्हें प्यार हुआ प्यार हुआ है प्यारे
इसे मर्ज-ए मुहब्बत प्रेम या प्यार कह लो
कौन सा रंग है यह, ये तो बताना मुश्किल है
चाहो तो इसे प्रेम रंग कह लो यारो
बिच्छोह का अलग मिलन का अलग रंग होता है।
कोई भी रंग हो यही तो प्रेम रंग होता है।
अमिताभ, रांची
तीज पर
तीज का आशीर्वाद
हर बोझ नारियों पर डाला
हे राम ! तूने क्या कर डाला
पति का जीवन अछुन्न रहे
इसका व्रत भी करना उसको
पुत्र की आयु अनंत बढ़े
इसका व्रत भी रखना उसको
उनके जीवन के खातिर भी
क्यों कोई व्रत है नहीं बना
पति भी किसी दिन निर्जल सोए
क्यों ऐसा व्रत है नहीं बना
नौ महीने अपने अंदर पाले
पैदा करने का कष्ट सहे
पाले पोसे, वाणी भी दे
डगमग पग को रवानी भी दे
जब नारी पत्नी बन जाय कभी
आशीष भी पति जीवन का मिले !
सौभाग्यवती रहो!
क्या उसका जीवन कुछ भी नहीं?
गर पति है पत्नी का सुहाग
पत्नी भी है पति का सुभाग
किसी एक बिन जग है अंधियारा
संग दोनों चले तो है उजियारा
प्रभु बना रखे दोनों का साथ
यह है इस वृद्ध का आशीर्वाद!
अमिताभ सिन्हा, रांची
Sunday, September 28, 2025
चोभार
काठमांडू के पाटन से आधा किलोमीटर दक्षिण किर्तिपुर के पास बागमती नदी पर प्रसिद्ध चोभर Gorge है, जो अब एक विश्व धरोहर स्थल है । हम हाल ही में वहां गए थे। झुला पुल से बागमती के उस पार गए और घर लौटने के पहले चाय पी। आइए इसके बारे में कुछ जाने ।
काठमांडू घाटी प्राचीन काल में एक झील था। वैज्ञानिकों ने नाम दिया पैलियो-काठमांडू झील, जबकि स्वयंभू पुराण के अनुसार, यह झील नागों (पौराणिक सर्पों) और दिव्य प्राणियों का निवास स्थान थी। मंजुश्री द्वारा घाटी काटकर इस झील का पानी सुखाया गया, जिससे रहने योग्य भूमि का निर्माण हुआ और तौदहा झील जैसी अन्य झीलों का निर्माण हुआ।
भूवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य :
भूवैज्ञानिकों का मानना है कि यह घाटी एक झील थी । चोभर घाटी के पीछे का रहस्य यह है कि इसका निर्माण लम्बे समय तक प्राकृतिक कटाव से हुआ, जो संभवतः एक भूकंप के कारण शुरू हुआ, जिसने धीरे-धीरे प्राचीन पैलियो काठमांडू झील को सुखा दिया, जिससे घाटी और Gorge का निर्माण हुआ, जो जल निकास बिंदु बन गए।
चोभार की पौराणिक कथा
चोभर घाटी की पौराणिक कथा बोधिसत्व मंजुश्री पर केंद्रित है, जिन्होंने अपनी ज्वलन्त तलवार या वज्र से पहाड़ की ढलान को काटा, एक प्राचीन झील को सुखाया और घाटी को काटकर काठमांडू घाटी का निर्माण किया। बौद्ध और हिंदू दोनों परंपराओं में वर्णित इस घटना ने घाटी को रहने योग्य बना दिया और झील पर तैरते एक सुंदर कमल की पूजा करने के लिए ऐसा किया गया था। यह घाटी ऐतिहासिक, भूवैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व का एक महत्वपूर्ण स्थल है, जो काठमांडू की नींव से जुड़ा है।
मंजु श्री श्यंभु महाचैत्य में
कौन है मंजु श्री
मंजुश्री महायान बौद्ध धर्म में ज्ञान के एक पूजनीय बोधिसत्व थे। श्यंभु महाचैत्य में है मंजु श्री की प्रतिमा जिसके एक हाथ में क्षान स्वरूप पुस्तक है और दूसरे हाथ में अज्ञान काटने वाला अग्नि युक्त तलवार या वज्र। हिन्दू मान्यतानुसार चोभार का निर्माण विष्णु जी ने अपने चक्र से किया।
Thursday, August 21, 2025
चालक रहित (Driverless) वाहन
फ़र्ज़ करें आप रास्ते पर चले जा रहे हो और अचानक एक कार आपके सामने से गुजर जाती है और आप देख कर हैरान हो जाते हैं कि कार में ड्राइवर ही नहीं है। आप क्या सोचेगे? खुद से चलने वाली कार बाजार में आ गई हैं या डर जाएंगे कि कोई भूत चला रहा है?
ड्राइवरलेस कार या autonomous कार का प्रयोगिक चलन कई अमेरिकन शहर जैसे फिनिक्स, लास एंजेलिस, सेन फ्रांसिस्को में जारी है । कई शहरों में ऐसी कार का उपयोग टैक्सी के रूप में शुरु भी हो गया है।
आम लोगों के लिए ऐसी कार एक भुतहा कार लग सकती है। एक स्टडी के अनुसार ड्राइवरलेस टैक्सी में सफर करना थोड़ा परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है, कई लोगों के लिए शुरुआत में थोड़ा डर और अनिश्चितता हो सकती है, लेकिन यह यात्रा करने का एक सुरक्षित और कुशल तरीका भी हो सकता है। कुछ लोगों को यह अनुभव वाकई डरावना लगता है, खासकर इसकी नवीनता। वहीं कुछ लोग इसे ज़्यादा पसंद करते हैं और पारंपरिक टैक्सियों की तुलना में इसे बेहतर भी पाते हैं।
अमेरिका के फिनिक्स और औस्टिन शहर में उबर ने Baidu और Waymo जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी का उपयोग करते हुए, चालक रहित कारों को बतौर टैक्सी तैनात भी कर दिया है । इन चालक रहित वाहनों को Uber की राइड-हेलिंग सेवा में एकीकृत किया जा रहा है, जिससे ग्राहकों को स्वचालित टैक्सी बुलाने का विकल्प मिलेगा । ऊबर वाले अन्य शहरों में भी भविष्य में इन चालक रहित टैक्सियों को लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। एक समाचार के अनुसार लोग 20-20 चालक सहित टैक्सी को decline कर रहे हैं ताकि उन्हें चालक रहित टैक्सी में सफर का अनुभव मिल सके।
Waymo Taxi San Francisco, फोटो Wiki के सौजन्य से
कैसे चलता है चालकरहित कार
मैं स्टील रोलिंग मिल के कंट्रोल से वाकिफ हूं। इसमें एक mode होता है optimisation ! इस मोड में कंट्रोल सिस्टम में प्रयोग होने वाले फार्मुला हर बार थोड़ा update होता है और एक समय ऐसा आता है सिस्टम इतना perfect हो जाता है कि सही सही product बनने लगता है। यानि हर बार सिस्टम कुछ सीखता है और याद रख लेता है। यही learning process कृत्रिम बुद्घिमत्ता या arficial intelligence का आधार है। जब हम कार चलाते हैं तो हम रोड के दूसरे उपयोग कर्ता के action को predict कर लेते है और तो और रोड के गड्ढे भी हमें याद हो जाते है। Three C का गुरू मंत्र हमें corner, child and cattle से सावधान रहना अवचेतन अवस्था में भी सिखा देता है। मानव मष्तिस्क का यह optimisation ही चालक रहित वाहन में उपयोग होने वाले artificial intelligence के जड़ में है। आखिर सीखने के बाद कई जानवर भी
सरकस में सायकल चला लेता है तो on board computer क्यों नहीं ? चालक रहित कार में हर तरह के सेंसर लगाने पड़ते हैं, आखिर मानव चालक कार में आंख, कान से देख सुन कर रोड के अवरोध, अन्य वाहन की स्थिति, सिग्नल के रंग, रोड पर के लेन मार्किंग, स्पीड लिमिट, वाहनों के हार्न, एम्बुलेंस के सायरन इत्यादि के अनुसार कार चलाते है। इन inputs को अपने अनुभव (यानि learning prpcess या मस्तिष्क के optimisation-जिसमें अन्य चालको के क्रिया प्रतिक्रिया का पुर्वानुमान भी सामिल है) के अनुसार analyze कर एक्सलेटर ब्रेक या स्टेयरिंग को दबाता या घुमाता है। कहना न होगा कि औटोमेटिक गियर वाली या एलेक्ट्रिक वाहन से क्लच पहले ही हट चुका है। लब्बो-लुआब यह है सब function तो चालक रहित कार में भी आवश्यक है। जिसमें सेंसर inputs को analyze करने और कार चलाने या कृयान्वित करने की जिम्मेदारी कार के optimized AI चलित ओन बोर्ड कंप्यूटर की होगी आगे इस पर और चालक रहित कार के औटोमेशन लेवल पर भी चर्चा करेंगे।
Robo racing car, फोटो Wikipedia के सौजन्य से
चालक रहित कारों में सेंसर:
**
कैमरे: लेन में बने रहने, ट्रैफ़िक संकेतों की पहचान और वस्तुओं का पता लगाने के लिए दृश्य जानकारी प्रदान करते हैं।
** रडार: वस्तुओं की दूरी और गति मापते हैं, विशेष रूप से प्रतिकूल मौसम की स्थिति में उपयोगी। धुंध में जब मानव की आंखें देख नहीं सकती, वैसे मौसम में भी इसके भरोसे चालक रहित कार चल सकती हैं।
** LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग): पर्यावरण का एक 3D मानचित्र बनाता है, जो विशेष रूप से वस्तुओं का पता लगाने और मानचित्रण के लिए उपयोगी है।
** अल्ट्रासोनिक सेंसर: पार्किंग सहायता जैसे नज़दीकी दूरी के पता लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
** इनके सिवा वाहन के आंतरिक स्थिति जैसे कार की स्पीड, acceleration, तापक्रम इत्यादि के लिए भी सेंसर होते है।
चालक रहित कारों के लेवल:
कई औटोमेशन feature मानव चलित कार में आने बहुत पहले से आते हैं जैसे ओटोमेटिक गियर,
क्रूश कंट्रोल, कैमरा और proximity sensor / alarm. पर कई feature आते गए जिससे कार में कई आटोमेशन लेवल हो गए।
सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स (SAE) इंटरनेशनल द्वारा कम कारों को परिभाषित किया गया है, जो स्तर 0 (नो ड्राइविंग ऑटोमेशन) से लेकर, जहाँ चालक का पूर्ण नियंत्रण होता है, स्तर 5 (पूर्ण ड्राइविंग ऑटोमेशन) तक है, जहाँ वाहन बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, किसी भी परिस्थिति में, कहीं भी स्वयं चल सकता है। ये स्तर प्रौद्योगिकी की प्रगति को दर्शाते हैं।
** जहाँ स्तर 1-2 के लिए चालक की निरंतर निगरानी आवश्यक है,
** स्तर 3 के लिए चालक को विशिष्ट परिस्थितियों में पर्यवेक्षक बनने की अनुमति है, और
** स्तर 4-5 के लिए चालक की न्यूनतम या शून्य भागीदारी के साथ उच्च या पूर्ण स्वचालन की आवश्यकता होती है। ऐसे मेरी राय यह है कि मशीन सब कुछ सीख ले पर मानव मन के छठी इंद्री के सोच को नहीं समझ सकता।
लदा फदा ट्रोला
भारत में यदि ऐसी कार आ जाए
अब आप कल्पना कीजिए भारत में सब कंटीनेंट के शहरो में ऐसी कार लांच हो जाय । उन जगहों में जहां लेन ड्राइविंग ठीक ठाक follow की जाती है ऐसी कार तो आराम से चल लेगी पर जब फास्ट लेन में धीमी ट्रक चल रही हो या तीन लेन घेर कर लदी फदी ट्रोला आगे आगे चल रही या मोटर साइकिल लेन कटिंग कर रहे हो तो ऐसी कार कितनी गति से चल पाएगी यह कोई भी अनुमान लगा सकता है। ऐसे बाइकर्स द्वारा लेन कटिंग तो अमेरिका यूरोप में भी होता ही है आजकल। भारत में तो उन एक्सप्रेस वे पर भी बाइकर्स घुस जाते हैं जहां 2 wheelers बैन है। रास्ते पर पानी भरा हो या भयंकर बर्फ पड़ रही हो तो क्या ऐसी कार चल सकेगी ? पता नहीं।
ट्रैफिक सब कन्टीनेंट में
आशा है अब आप जब कभी भी स्वचलित कार देखेंगे तो उसे भूत चलित समझ कर नहीं डरेंगे, happy undriving !