चैन्नई
आप शायद सोच रहे होंगे कि ये क्या शीर्षक है? शादी- नाती? नहीं आप जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है। अभी मेरे नाती के शादी का वक़्त नहीं आया है। मुझे एक रिश्तेदार जो बंगलुरु में रहते है के यहाँ शादी में जाना था और मैंने इसी मौके का फायदा उठा कर अपने नाती जो चेन्नई में पढ़ रहा है से मिलने का प्रोग्राम बना लिया । आम के आम गुठली के दाम के तर्ज पर हमें अपनी छोटी बहन जो चेन्नई में ही रहती है से भी मिलने का मौका मिल रहा था । उत्साह से हम सराबोर थे पर चेन्नई तक की यात्रा उतनी मजेदार नहीं रही । दक्षिण भारत में मेरा काफी समय बीता है और अक्सर रांची से चेन्नई तक हम अल्लेप्पी एक्सप्रेस से ही गए है। इसमें AC2 भी है और पैंट्री भी। चेक करने लगे तो इसमें सिर्फ वेटिंग लिस्ट में हो टिकट मिल रहा था। रांची से सिर्फ एक फ्लाइट चेन्नई के लिए है और वह रात में है इसलिए हम फ्लाइट नहीं लेना चाह रहे थे।चेन्नई में एयरपोर्ट से मेरी बहन का घर बहुत दूर है। अभी मोबाइल पर देख ही रहा थे की एक स्पेशल ट्रैन बरौनी पदनूर एक्सप्रेस में सीनियर सिटीजन कोटा में AC3 में दो सीट खली दिख गयी। काफी कम स्टॉपेज वाली इस ट्रैन समय कम लेकर शाम 6 :40 तक पेरामबुर स्टेशन पहुंचने वाल थी । दो बातें मेरे पसंद की नहीं थी - AC3 और पराम्बुर। बहनोई साहब से बात किया तो पता चला सेंट्रल स्टेशन से ४ किलोमीटर ही पेरामबुर स्टेशन (जबकि दूरी वास्तव में 8 KM है )। बस मैंने टिकट बुक कर ली ।
घर बंद कर जाने में बहुत सारी बातों का ध्यान रखना था और मेरी पत्नी थोड़ा ज्यादा ही गंभीरता से लेती है और जाने के दिन तक अपने को पूरी तरह थका लेती है। ऐसी बात नहीं है की मै मदद नहीं करता पर उनको काम से संतुष्ट या प्रसन्न करना संभव नहीं । हुआ यह जाने से एक दिन पहले पत्नी की तबियत ख़राब दिखी । दवा देते देते मैंने दो दिन बाद की फ्लाइट की उपलब्धता देख ली और दो दिन बाद फ्लाइट से जाने क सलाह दे डाली जवाब मिला "मैं और दो दिन का टेंशन नहीं ले सकती - कल ही जायेंगे "।
आखिर २२ तारीख को मैं लगातार ट्रैन का स्टेटस चेक करने लगा। ट्रैन ४-५ घंटे लेट थी । हम आखिर एक लेडी कुली (पिछले ब्लॉग देखे ) के मदद से अपनी बोगी में चढ़ने में कामयाब हो गए । अंदर मेरा दोनों बर्थ पर यात्री सो रहे थे लेकिन उन्होंने तुरंत बर्थ खाली कर दिया। ट्रेन द्वारा इतनी लंबी यात्रा में ट्रेन टाइम मेकअप कर लेने की पूरी संभावना थी। पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें लेटने की सलाह दी। सभी सहयात्री बिहार के बरोनी के पास एक ही गांव के थे और आपस में तरह तरह की बातों में लगे थे। वयस्कों की वयस्क बातों में बच्चे भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। सभी उदीपी के पास टेक्स्टाइल मिल में काम करने वाले श्रमिक और उनके परिवार थे और टिकट न मिलने पर मुंबई होकर जाने के वजाय कोयंबटूर होकर जा रहे थे। जाहिर है काफी शोर हो रहा था। हमारी ट्रेन यात्रा दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस तक ही सीमित है ओर इतनी लंबी ट्रेन यात्रा २००३ के बाद पहली बार कर रहे थे अतः इस माहौल में हम uncomfortable थे। लगभग सभी के मोबाइल मे गाना फिल्म या विडियो फुल वोल्युम पर चल रहा था । मना करने पर पांच मिनट से ज्यादा असर नहीं हो रहा था। एक लड़का भोजपुरी गाने को बार बार बजा कर reel बना रहा था। क्या माहौल था पुछिए मत। मैंने राउरकेला में लंच का आर्डर दिया था लेकिन ट्रेन इतनी लेट थी कि वह हमारा रात का खाना बन गया। पत्नी ने कुछ नहीं खाया केवल फीवर के टैबलेट के लिए ही कुछ खाया। राउरकेला के बाद ट्रेन कहीं रुकी तो हमारे सहयात्री पटरी के किनारे बिक रहे हंड़िया (Rice beer) पी आए। खैर देर रात तक जगने के बाद पता नहीं कब आंख लग गई।
राउरकेला के बाद पीछे चलने वाली अलैप्पी एक्सप्रेस आगे हो गई। क्योंकि उस ट्रेन का स्टापेज ज्यादा थी हमारी ट्रेन भी हर स्टेशन पर रुकने लग गई। पर जब सुबह उठे हमारी ट्रेन कुछ कम लेट थी। विजयनगरम के बाद ट्रेन विशाखापत्तनम को बायपास कर दुव्वडा होते आगे बढ़ी तो लगा अब ट्रेन समय से कुछ ही लेट पेरांबुर पहु़चेगी। राजामुंदरी में नाश्ता आर्डर किया था पर वो लंच बन गया। पत्नी के लिए Curd Rice भी मंगा लिया। मेरे लिए घर से लाया लज़ीज परांठे भी थे। सब मिलाकर मेरा overeating हो गया क्योंकि दो लोगों का खाना सिर्फ मैं खा रहा था। खैर आश दिलाते तोड़ते हमारी ट्रेन रात के १२ बजे पेरांबूर पहुंची। बहन बहनोई ८ बजे ही पहुंच कर ४ घंटे का इंतजार कर थक चुके थे (पर हमें इसका अहसास भी होने नहीं दिया)। ट्रेन में हमें विचार आ रहा था कि उन्हें आने से मना कर दूं , पर अब सोचता हूं यदि वे न आए होते हम अपना सामान तक बाहर न ला पाते। मैंने एक कसम खाली "कभी स्पेशल ट्रेन से सफर नहीं करेंगे, ज्यादा पैसा भी लेते हैं और समय पर चलाने की कोई जिम्मेवारी भी नहीं लेते हैं रेलवे वाले।" कोई व्यवस्था नहीं, गंदगी अलग। हमें बेडरोल भी रेलमदद को ट्वीट करने के बाद ही मिला था।
ISCON Temple , Thiruvanmiyur Beach
चैन्नई में सिर्फ दो मंदिर घूम पाए। समुद्र किनारे ECR रोड स्थित साई मंदिर और उसके सामने नया बना ISCON मंदिर। जब बहन दीपा कौट्टुपुरम में रहती थी तब कई बार हम इस साई मंदिर आया करता था। दीपा का तिरुवनमियूर वाला फ्टैट तब बन ही रहा था। मयलापुर साई मंदिर भी जाते थे पर ये मंदिर शांत मनोरम स्थान में है, एकदम समुद्र के किनारे। तब एक ट्री हाउस रेस्टोरेंट भी नजदीक में था। मैंने उन दिनों की याद ताजा करना चाह रहा था तब बिरू जी ने याद दिलाया "भैया आप अपना कार्ड भी डाल गए हैं।" शायद साईं बुला रहे होंगें इसलिए पुनः जाना हुआ। अच्छा लगा। मां (बिरू जी की ९० वर्षीय माता जी) भी साथ आईं। इस्कॉन मंदिर नया बना है। वहां भी गए। हमारे शिर्डी, पुट्टपर्ती के सह यात्री श्री पाठक जी यहीं स्वयं सेवक हो गए हैं। वे आने का कह गए थे पर जिस दिन हम गए वह उनका सेवा दिवस नहीं था। हम प्रसाद में गर्म खीर की अपेक्षा कर रहे थे, पर गर्म हलवा मिला। एक रेस्टोरेंट में खाना खा कर हम लौट आए। अगले दिन मेरा stomach upset हो गया।
Sai Temple - ECR Road, Phoenix Market City, Chennai
जब मेरी तबियत संभली पत्नी की तबीयत बिगड़ गई। इन्ही कारणों से चैन्नई ज्यादा कुछ घूम नहीं सके। बहन का घर एकदम समुद्र के किनारे है । हमने रोज समुद्र के किनारे morning walk का सोचा था पर सिर्फ एक दिन ही जा पाए।
खैर इसी बीच नाती से मिल आए। और एक पुराने मित्र से भी। नाती लाल भी weekend में आ गया। उसे भी सिर्फ एक सुपर मार्केट (मौल) ले गए। ये सब अनुभव अगले अंक में।
क्रमशः
Wednesday, February 12, 2025
शादी नाती ट्रिप-१
Friday, January 24, 2025
महिला कुली हटिया स्टेशन पर
हम लोग करीब महीने भर से अपने चेन्नई और और जगहों की यात्रा का प्लान बना रहे थे। चैन्नई में मेरी सबसे छोटी बहन रहती है और मेरा नाती भी पढ़ता है। हम उत्सुक थे। पता नहीं क्या था कि हमारे प्रिय धनबाद अलैप्पी एक्सप्रेस में टिकट मिला ही नहीं। आश्चर्यजनक रूप से एक स्पेशल साप्ताहिक ट्रेन
हमारे प्लान में फिट बैठ रहा था। स्टापैज भी कम था। सिर्फ एक कमी थी इसमें हमारे आवश्यकता अनुसार सेकेंड एसी नहीं था। खैर इसके थर्ड एसी में टिकट बुक कर लिया।
राजमुंदरी के पास का एक दृश्य
आगे क्या होने वाला है क्या पता। क्योंकि रांची में बन रहे ससपेंसन ओवर ब्रिज के कारण कई ट्रेनें रद्द हो रही थी मैंने
गांड़ी के प्रारंभिक स्टेशन बरौनी से खुलने की स्थित रात में ही चेक कर रहा था और यह क्या खुली ही डेढ़ घंटे देर से और एक स्टाप तक में ही ढ़ाई घंटे लेट हो गई। मैंने flight टिकट देख डाले। चलने के के दो दिन और पहुंचने के एक दिन बाद का टिकट दिखा। एक तो सिर्फ एक ही फ्लाइट थी वह भी रात का था और पत्नी जी घर को हमारे अनुपस्थिति के लिए तैयार करते करते (सभी समानों को समेटना, ढ़कना, गमलों में पानी डालने की व्यवस्था करना इत्यादि) परेशान थी । उनका जवाब था "दो दिन और का टेंशन नहीं ले सकते !!"
हमारे पास समान थोड़ा ज्यादा था। पर हमने कुछ भी हो जाय इसी ट्रेन से ही जाएंगे का निश्चय कर मैं ट्रेन के स्टेटस को लगातार चेक करने लगा। जब ट्रेन तीन घंटे से ज्यादा लेट चल रही थी तब हम ओला ले कर हटिया स्टेशन पहुंच गए। सामान हम अकेले ट्रेन तक ले जाने को स्थिति में नहीं थे । कुली मिलेगा या नहीं की चिंता थी तभी एक महिला कुली आई। मुझे अब यह बताने में शर्म आ रही है कि मैंने उससे कहा सामान थोड़ा ज्यादा है (मेरा मतलब था महिला हो कर इतना सामान कैसे ले जाओगी ?) । उसने मुझे आश्वस्त किया और बताया उसके पास लगेज ट्राली भी है। मेहनताना भी reasonable मांग रही थी। उसका आत्मविश्वास देख कर मैंने पुरूष कुली जो आ गए थे उसे वापस भेज दिया पर उससे पूछ बैठा हमारी ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएंगी? जवाब आया "अपने कुली से ही पूछिए।"
भारतीय रेल में महिला कुली Photo shared from internet
महिला ने बड़ी आसानी से सारा सामान ले लिया। हमने महिला का बोझ कम करने की गरज से एक एक छोटा समान लेना चाहा लेकिन उसने हमें कुछ ले चलने नहीं दिया।
हमने रांची के बजाय हटिया स्टेशन से टिकट ली थी तांकि ट्रेन प्लेटफार्म नं० 1 पर आए और हमें सुविधा हो। लेकिन ट्रेन शायद 2 पर आने वाली थी। हमारी कुली महोदया
ने इसी कारण हमें लिफ्ट के पास बिठाया और फिर अपने मोबाइल पर चेक कर बताया कि ट्रेन प्दोलेटफार्म नं० 2 पर आएंगी लेकिन बाद में प्लेटफार्म न० बदल भी सकता है । यानि वह एक Hi tech कुली भी थी। अन्ततः ट्रेन 3 No. पर आई। और हम लिफ्ट से गए। ऐसे तो हमारी बोगी ट्रेन के बीच में थी और मैंने सोच रखा था कि गेट के आसपास आएगा पर लिफ्ट प्लेटफार्म के दूसरे ओर था और हमें काफी चलना पड़ा और कुली को तो समान सहित। हमारी या किसीके मदद बिना कुली महोदया ने सारा सामान ट्रेन में चढ़ा कर हमारे बताऐं सीट न० के नीचे ठीक ठाक लगा दिया।
ट्रेन में चढ़ने के बाद जो बात मन में आई वह थी जो खाना दोपहर के लिए आर्डर किया उसका क्या होगा। ट्रेन चार घंटे लेट जो हो गई थी। आगे क्या हुआ अगले ब्लॉग में।
क्रमशः
Sunday, January 19, 2025
हमारी उत्तर पुर्व यात्रा (2018) भाग 5
बोमडिला -धिरिंग-भुटान-गोहाटी
बोमडिला 22-24 April 2018
हमारे उत्तर पूर्व के टूर में अरुणांचल आने का प्रोग्राम था ही नहीं, न ही हमारे पास समय था। पर मैंने फेसबुक पर मित्रों का पोस्ट देखा था तवांग पर। तवांग बहुत लोकप्रिय पर्यटक स्थल में धीरे धीरे तब्दील हो रहा था तब। अब तो बहुतों की मंज़िल तवांग होती है। हमलोग पूरी तरह इतनी ठंडी जगह जाने के लिए तैयारी करके नहीं आए थे, और समय भी कम था। कमसे कम एक दिन और चाहिए था वहां जाने के लिए। कालेज के टूर का प्रोग्राम याद आ गया जब हम दो ट्रेन के बीच के समय मिलते ही कोई एक शहर घुम लेते और कभी बोगी को BG या MG में बदलने के कारण बोरिंग जगहों में ज़्यादा दिन रूकने पड़ते। ऐसे में मैंने दो रात किसी हिल स्टेशन में रूकने की गरज से बोमडिला (8000 फीट) को अपने टूर प्रोग्राम में सामिल कर लिया। 22 April 2018 के देर शाम हम अपने होमस्टे पहुंच गए थे । होमस्टे के तीनों कमरों को हमने बुक किया हुआ था। सभी में अटैच बाथरूम थे। रात में लजीज और simple लोकल खाना खा कर आरामदेह बिस्तर पर मोटे लिहाफ, कंबल के दो लेयर ओढ़ कर हम सो गए।
बोमडिला में हमारा होमस्टे, होमस्टे से एक दृश्य
ट्रैवल एजेंट से धिरांग तक जाने की बात तय हुई थी। पर जब हम अगले दिन कहां जा सकते हैं पर गाड़ी में चर्चा कर रहे थे ड्राइवर ने शे-ला पास जा सकते हैं का सुझाव दिया था। मेरे मन में यह बात घर कर गई थी। अगले दिन 23 April 2018 को सुबह ही नींद खुल गई। अरूणाचल में सुर्योदय जो सबसे पहले होता है। दृश्य कैसे होगा की जिज्ञासा थी। सुबह सुबह ही हम सभी खुले टेरेस पर आ गए। जहां प्राकृतिक दृश्य ने हमारा मन मोह लिया वहीं ठंडक ने हमारा बुरा हाल कर दिया। होमस्टे के किचन गार्डन का टूर किया गया और कई नेपाल में मिलने वाले वनस्पति भी देखें पहचाने गए। अपने होस्ट की मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा कर चाय नाश्ता के बाद हम निकल पड़े।
होमस्टे के परिवार के साथ सबह की चाय ,बोमडिला का मध्य गोम्पा होम स्टे से, होम स्टे से एक और दृश्य
मध्य गोंपा होमस्टे से ही दिखता था इसलिए हम उपर गोंपा देखने चल पड़े। गाड़ी के पार्किंग स्थल से काफी ऊंचाई तक पैदल ही जाना पड़ता इसलिए सर्वसम्मति से हम दूर से ही गोंपा को देख निकल पड़े धिरांग या दिरांग की ओर। करीब तीस km का रास्ता था उतराई वाला । रास्ते का आनंद उठाते चल पड़े और घंटे भर में एक छोटे गोंपा के पास खड़े थे। स्थानीय बच्चे हमारे ओर आकर्षित हो गए और हम उनसे बात करने लगे। प्यारा सा मोनास्ट्री था। फिर हम दिरांग नदी के किनारे गए । दिरांग कामेंग नदी कि एक सहायक नदी है। हमने बहुत मजे किए। नदी में भींगना, पैर भींगाना मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे सिवा सभी ने नदी के ठंडे पानी में पैर भिंगाया फिर पैर में लगे बालू को साफ करने में काफी मशक्कत भी की। ड्राइवर यहीं से वापस जाना चाहता था और मैं शे-ला पास जाने की जिद कर रहा था।
दिरांग नदी में मजा , एक स्तूप
खैर वो हमें दो अति सुन्दर मोनास्ट्री ले गया जो करीब दस km दूर थे। दोनों मोनास्ट्री Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery और LDL monastry बहुत ही सुन्दर थे। शे-ला पास न सही हम वहां से आठ दस km की लांग ड्राइव पर जाना चाहते थे। ड्राइवर यह कह कर टाल गया कुछ देखने को नहीं है सिर्फ टेढ़े-मेढ़े रास्ते है। सेला पास करीब 14000 फीट ऊंचाई पर था और अच्छा हुआ हम सिनियर नहीं गए। खैर ड्राइवर हमें एक Hot Spring ले गया। सिर्फ हाथ धोने के सिवा और कुछ नहीं किया । थोड़ी गंदगी भी थी। थोड़ा समय बिता कर वहां से हम लौट कर सीधे बोमडिला के बाजार गए, कुछ खरीदारी करनी थी और खाना भी खाना था । साबुत (खोल सहित) अखरोट काफी सस्ते थे। यहीं Lower Gompa भी थी हम वहां भी गए और दिया जलाया । शाम हो चली थी। हम होम स्टे लौट आए। सभी उपर नीचे चढ़ते उतरते थक गए थे। नींद अच्छी आई।
LDL Monastery and Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery
अगले दिन 24 April 2018 को करीब 8 बजे हम गोहाटी के लिए निकल पड़े। लंबी यात्रा थी पर इस बार उतराई थी समय कम लगने वाला था और हम मस्ती में चले जा रहे थे। हमें दो स्थान मिले मुन्ना और रूपा। हम हंस पड़े क्योंकि ये मेरे एक साला और एक साली का भी नाम है।
LDL मोनास्ट्री के अंदर और रोड क्रॉस करता एक किंग कोबरा
हम बातों में मशगूल थे कि एक काफी लम्बा सा काला सांप रास्ता पार करता दिखा। ड्राइवर उसे बचाने की कोशिश करने लगा। वह सांप पूरा खड़ा हो गया एकदम खिड़की जो बंद थे के लेवल तक। ड्राइवर बहुत डर गया फिर भी गाड़ी रोक दी। मेरी जरूरत से ज्यादा साहसी पत्नी और मेरे छोटे बहनोई मना करने पर भी गाड़ी से उतर कर मुआयना करने चल दिए। सांप तो झाड़ियों मे गायब हो चुका था। मुझे लगा किंग कोबरा था जो अक्सर दक्षिण भारत में मिलता है। गुगल से पता लगा इन जंगलों में भी किंग कोबरा मिलता है।
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया - रूपा और मुन्ना कैंप गॉव का एक ढाबा
गोहाटी से आते हमे रास्ते में भैरब कुंड का दिशा पट्ट मिला था । लौटते में जाएंगे एसा सोचा था। वहां पहुंचने पर पता चला मंदिर भुटान के अंदर है। ड्राइवर सांप के व्यवहार से डरा था देवों के कुपित होने का डर ! और उसकी मंदिर जाने की प्रबल इच्छा थी। पता चला भुटान के अंदर कुछ दुरी तक हम जा सकते है। हम गए भी दर्शन भी किया और लंच भी। बहनोई द्वय भी सस्ते रम के सेवन से अपने रोक नहीं पाए। यहाँ भूटान से निकलने वाली जम्पनी नदी और भैरबी नदी मिलकर धनसिरी नदी बनाती हैं जो एक प्रमुख सहायक नदी है ब्रह्मपुत्र का। मंदिर को भुटान के एकमात्र शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। असम अरुणाचल और भुटान यहां अपनी सीमा भी बनाते हैं। अति सुन्दर स्थान। पिकनिक बाजों में प्रसिद्ध।
भूटान
का प्रवेश द्वार , भैरब कुंड मंदिर का साइन बोर्ड
हम मंदिर में पूजा कर नदी की तरफ गए। भैरब कुंड के पहले एक छोटे मार्किट मैं हम लोग कई ढाबा नुमा रेस्टोरेंट देख चुके थे और देख रखे थे वाइन शॉप। मंदिर से लौटते समय हमनें एक होटल में रुक कर खाने खाया और बहनोई लोग ने भूटान में बने रम को चखा।
भैरब कुंड मंदिर और होटल जहाँ हमने दोपहर का खाना खाया
हमलोग शाम तक रीवर व्यु गेस्ट हाउस , दिसपुर (गोहाटी) पहुंच गए। हम पिछली बार यहीं रूके थे और अपने लिए अग्रिम बुकिंग कर गए थे। हमें गेस्ट हाउस छोड़ने पर टैक्सी का अनुबंध समाप्त हो गया और हमने उसका बकाया पेमेंट कर दिया। हमने सुन रखा था कामाख्या दर्शन के बाद उमानंद दर्शन आवश्यक है पर संतोष जी ने बताया भुवनेश्वरी मंदिर के दर्शन बिना कामाख्या दर्शन अधूरा है। अगले दिन 25 अप्रैल के सुबह दीपा कमलेश जी की फ्लाइट थी और हमलोग की ट्रेन दोपहर में थी। इसलिए सुबह चेक आउट के बाद भुवनेश्वरी मंदिर होते हुए स्टेशन जाने का प्रोग्राम बन गया। टैक्सी वाले को हमने Extra पेमेंट पर सुबह आने को कहा । उसने जितना बताया वह अधिक था पर हम उसीके शर्त पर जाने को तैयार हो गए। भुवनेश्वरी मंदिर तांत्रिको का केंद्र है। मधुबानी के पास मंगरौनी में भी भुबनेश्वरी मंदिर है और यहां के स्व गुरु महाराज ने इसी मंदिर में तपस्या की और सिद्धि प्राप्त की थी।
रिवर व्यू लॉज से ब्रह्मपुत्र का दृश्य और भुवनेश्वरी मंदिर
भुवनेश्वरी माता का दर्शन बड़ी आसानी से हो गया। कुछ सीढियाँ चढ़ने के सिवा और कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। मंदिर से निकल कर हम स्टेशन की और चल पड़े। हमारा सामान गाड़ी में ही था। अगले दिन यानि २६ अप्रैल को हम पटना पहुंच गए। इस तरह हमारी उत्तर पूर्व की यात्रा बहुत सारी अच्छी यादों के साथ संपन्न हो गया।
भुवनेष्वरी मंदिर की सीढ़ियों पर और भुवनेश्वरी मंदिर पहाड़ी से एक दृश्य
बस इस ब्लॉग में इतना ही। कुछ और यादों के साथ जल्द ही हाज़िर होऊंगा।
Saturday, January 18, 2025
photo
LDL Monastery
Thupsung Dargey Ling Monastry
Diring River
thipsay diring inside
scene from homestay
Our home stay
Stupa
Gyuto Manastery