Sunday, September 28, 2025

चोभार

काठमांडू के पाटन से आधा किलोमीटर दक्षिण किर्तिपुर के पास बागमती नदी पर प्रसिद्ध चोभर Gorge है, जो अब एक विश्व धरोहर स्थल है । हम हार ही में वहां गए थे। झुला पुल से बागमती के उस पार गए और लौटने के पहले चाय पी। आइए इसके बारे में कुछ जाने ‌।

कहा जाता है कि काठमांडू वैली कभी एक विशाल झील थी क्योंकि चारो ओर पहाड़ों से घिरे होने से पानी को उपत्यका से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। एक दैवी कृपा से चोभार में पहाड़ो में चीरा लगा और पानी उपत्यका से बागमती के रूप में निकल सका और काठमांडू वैली रहने और खेती के लिए उपयुक्त हो पाई।


भूवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य :
भूवैज्ञानिकों का मानना है कि यह घाटी एक झील थी । चोभर घाटी के पीछे का रहस्य यह है कि इसका निर्माण लम्बे समय तक प्राकृतिक कटाव से हुआ, जो संभवतः एक भूकंप के कारण शुरू हुआ, जिसने धीरे-धीरे प्राचीन पैलियो काठमांडू झील को सुखा दिया, जिससे घाटी और Gorge का निर्माण हुआ, जो जल निकास बिंदु बन गए।

चोभार की पौराणिक कथा
चोभर घाटी की पौराणिक कथा बोधिसत्व मंजुश्री पर केंद्रित है, जिन्होंने अपनी ज्वलन्त तलवार या वज्र से पहाड़ की ढलान को काटा, एक प्राचीन झील को सुखाया और घाटी को काटकर काठमांडू घाटी का निर्माण किया। बौद्ध और हिंदू दोनों परंपराओं में वर्णित इस घटना ने घाटी को रहने योग्य बना दिया और झील पर तैरते एक सुंदर कमल की पूजा करने के लिए ऐसा किया गया था। यह घाटी ऐतिहासिक, भूवैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व का एक महत्वपूर्ण स्थल है, जो काठमांडू की नींव से जुड़ा है।


मंजु श्री श्यंभु महाचैत्य में
कौन है मंजु श्री
मंजुश्री महायान बौद्ध धर्म में ज्ञान के एक पूजनीय बोधिसत्व थे। श्यंभु महाचैत्य में है मंजु श्री की प्रतिमा जिसके एक हाथ में क्षान स्वरूप पुस्तक है और दूसरे हाथ में अज्ञान काटने वाला अग्नि युक्त तलवार या वज्र। हिन्दू मान्यतानुसार चोभार का निर्माण विष्णु जी ने अपने चक्र से किया।

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