Wednesday, November 27, 2024

दक्षिण अफ्रीका 1996


जैसा एक ब्लॉग में मैंने एक ब्लॉग में पहले लिखा था कि प्रिटोरिया के ISCOR Steel Plant के पुराने बेकार पड़े Wire Rod Mill को उखाड़ कर भारत लाने के लिए मेरे तब के नियोक्ता कंपनी की ओर से कुल 4 अभियंताओ को 1996 में दक्षिण अफ्रीका भेजा गया था और हम मलेशिया हो कर गए थे।‌ ग्राहक के दो अभियंताओं के साथ हमारी टीम 6 लोंगो की थी। कुआलालंपुर पर मैंने ब्लॉग पहले ही लिखा था जिस यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है।


Sun City

अब दक्षिण अफ्रीका में बिताए छ: महीनों की स्मृतियां क्षीण हो गई है पर फोटो कई है। और मैं उन स्मृतियों को इस ब्लॉग में समेंट लेना चाहता हूं।
मलेशियन एयर लाइनस से हम लोग चैन्नई से कुआलालंपुर होते हुए जोहानिसबर्ग पहुंच गये। जोबर्ग हवाई अड्डे के उपर जब जहाज उड़ रहा था तब नीचे हर घर में तलाब दिख रहे थे । यह तो बाद में पता चला कि वे सब स्वीमिंगपूल थे। खैर जोबर्ग हमें लेने वैन ले कर एक गोरा आया था जिसका नाम था चार्ल्स वह एक चेक बंदा था । हम घंटे भर में प्रिटोरिया पहुंच गए । रोड बहुत अच्छा था जर्मनी की तरह। चार्ल्स जो हमारा कोर्डिनेटर होने वाला था, ने कार का शीशा नीचे करने से मना कर दिया खास कर ट्रैफिक लाइट पर। छीन झपट का खतरा था। हमलोगों के साथ आए कस्टमर के सिनियर रामास्वामी हमें सीधे बैंक ले गए और हमारे ट्रेवलर चेक को ZAR यानि वहां की मुद्रा रैंड में बदलने के लिए। तब विदेशी मुद्रा मिलना आसान नहीं थी। विदेश जाने वाले यात्रियों Max US$ 250/- प्रति दिन के हिसाब से ले जा सकते थे। मेरी कंपनी को इसमें से US$ 150/- प्रति दिन के हिसाब से मिलना था। कस्टमर को 100 USD प्रतिदिन के हिसाब से वापस लेना था यानि तीन महीने के कुल US$ 1,35,000/-, तांकि स्थानीय खर्च निकल सके। और हमें प्रतिदिन कितना मिलना था मैं नहीं बताऊंगा। यह तब भी एक बड़ी राशि थी और अभी के हिसाब से से तो यह बनता है कुल ₹ 1.15 Cr ! दक्षिण अफ्रीका में तब crime rate बहुत अधिक था और बैंक मैनेजर तनाव में आ गया। उसने हमें बैंक के पीछे के दरवाजे से निकाला‌ । हम भी डरे हुए थे अतः जब तक कस्टमर के सिनियर को पैसे दे नहीं दिए हम किसी अनहोनी की आशंका से परेशान थे और क्योंकि मैं अपने ग्रुप के लीडर की हैसियत में था मेरे साथी इस घटना के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराने लगे। हम लोगों को रमा्स्वामी वहां से होलिडे होम ले गए लंच के लिए।

लंच के बाद हम गए डॉन अपार्टमेंट (अब ग्लोरिया अपार्टमेंट्स), अर्काडिया, प्रीटोरिया, जो एक सर्विस अपार्टमेंट था। वहां एक 3 कमरे वाला एक यूनिट हमारे लिए रिजर्व किया गया था। इसमें एक किचेन और लिविंग रूम cum डाईनिंग रूम भी था। ये अपार्राटमेंट Union Building के सामने था। उस रात का डिनर भी होलिडे होम में ही हुआ। कुछ अनाज सब्जी इत्यादि भी हम खरीद लाए। कल से खाना हमें खुद ही बनाना था। सुबह तो सभी ने अपना अपना नाश्ता ब्रेड आमलेट और दूध बनाया खाया और वैन आने का इंतजार करने लगे। अगले दिन हम एक चाईनीज रेस्टोरेंट गए और उन्हें लंच के लिए हर रोज सुबह सुबह एग राईस देने के लिए राजी कर लिया। इस सूखे लंच का सिलसिला करीब महीने भर तब तक चला, जबतक हमें यह पता नहीं चला कि प्लांट स्थिति कैंटीन से हमें भी खाना मिल सकता है। हमारा टेम्पोंररी आफिस से कैंटीन दूर था अतः हम छ: में से एक गाड़ी से जा कर सभी के लिए खाना ले आता। जल्दी ही काउंटर की महिला से दोस्ती हो गई और चिकन या मछली बनने पर वो हमारे लिए छुपा कर रख दिया करती और एक बार लोकल कर्मचारी से से उसे बहस भी हो गई थी।

हम छह लोग थे मै, BN Singh , Mohanraj , Adhikary मेरी कंपनी से और रमन और रेड्डी हमारे ग्राहक कंपनी बालाजी स्टील से। रात का खाना हमें खुद बनाना होता और मेरे घरवालों को विश्वास नहीं होगा कि मैं रोटी बनाने का एक्सपर्ट माना जाता था। अधिकारी हमेशा दशहरे में मिलने वाले भोग जैसी खिचड़ी बनाते थे। रमन हमेशा चावल सांभर बनाता ओर माइक्रोवेव में पापड़ सेंकना उसकी विशेषता थी। रेड्डी और मोहनराज को बर्तन धोना पसंद था।


Union Building and Don Apartments

सप्ताह के हर दिन प्लांट जाना पड़ता पर रविवार को‌ छुट्टी होती। रविवार को हम खाना नहीं बनाते। आस पास कहीं न कहीं घूमने जाते। प्रेटोरिया जोबर्ग से काफी SAFE जगह थी और पैदल भी घूम सकते थे । अक्सर हम पास के Shoprite मॉल जाते थे और एक गुजराती लेडी के स्टाल से समोसे खाते। एक पिज्जा हट और एक KFC भी हमारा लंच स्पाट था। रात के लिए पीठा ब्रेड ले आते जिसे मक्खन से साथ सेंकने से पराठे जैसा स्वाद आता । मई का महीना था यहां के लिए ठंड का मौसम था मैंने एक फुटपाथ से एक मोटा जैकेट 16 रैंड में खरीद भी लिया। गजब तो तब हुआ जब एक दिन यहां स्नो फाल भी हो गया। लोगों ने बताया करीब बीस साल बाद ऐसा हुआ है। साईट पर बहुत ठंड लगती। एक तो बंद प्लांट और हीटिंग का कोई प्रबंध नहीं था।


Location of DON apartment/ Union Building and Shoprite- our Sunday pasttime !

APARTHIED AND INDIANS

हम लोग अपार्थीड के हटने से सिर्फ दो साल बाद साउथ अफ्रीका आये थे । पुरानी व्यवस्थाएं तो हट चूँकि थी पर उस अपार्थीड का असर शायद आज भी दिखता है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका अपार्थीड को इस प्रकार define करता है :

कानून द्वारा स्वीकृत नस्लीय अलगाव, 1948 से पहले दक्षिण अफ्रीका में व्यापक रूप से प्रचलित था। लेकिन जब डेनियल एफ. मालन के नेतृत्व वाली नेशनल पार्टी ने उस वर्ष सत्ता हासिल की, तो उसने नीति को आगे बढ़ाया और इसे रंगभेद नाम दिया। रंगभेद का कार्यान्वयन, जिसे अक्सर 1960 के दशक से "पृथक विकास" कहा जाता है, 1950 के जनसंख्या पंजीकरण अधिनियम के माध्यम से संभव हुआ, जिसने सभी दक्षिण अफ्रीकियों को या तो बंटू (सभी काले अफ्रीकी), रंगीन (मिश्रित नस्ल के), या सफेद के रूप में वर्गीकृत किया। . एक चौथी श्रेणी-एशियाई (भारतीय और पाकिस्तानी)-बाद में जोड़ी गई। रंगभेद प्रणाली का आधार बनाने के संदर्भ में अन्य सबसे महत्वपूर्ण कृत्यों में से एक 1950 का समूह क्षेत्र अधिनियम था। इसने प्रत्येक जाति के लिए शहरी क्षेत्रों में आवासीय और व्यावसायिक अनुभाग स्थापित किए, और अन्य जातियों के सदस्यों को रहने, व्यवसाय संचालित करने से रोक दिया गया। , या उनमें ज़मीन का मालिक होना - जिसके कारण हज़ारों रंगीन, अश्वेतों और भारतीयों को श्वेत कब्जे के लिए वर्गीकृत क्षेत्रों से हटा दिया गया। व्यवहार में, इस अधिनियम और 1954 और 1955 में दो अन्य, जिन्हें सामूहिक रूप से भूमि अधिनियम के रूप में जाना जाता है, ने उस प्रक्रिया को पूरा किया जो 1913 और 1936 में अपनाए गए समान भूमि अधिनियमों के साथ शुरू हुई थी: अंतिम परिणाम 80 प्रतिशत से अधिक को अलग करना था। श्वेत अल्पसंख्यकों के लिए दक्षिण अफ़्रीका की भूमि। नस्लों के पृथक्करण को लागू करने और अश्वेतों को श्वेत क्षेत्रों पर अतिक्रमण करने से रोकने में मदद करने के लिए, सरकार ने मौजूदा "पास" कानूनों को मजबूत किया, जिसके लिए गैर-श्वेतों को प्रतिबंधित क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को अधिकृत करने वाले दस्तावेज़ ले जाने की आवश्यकता थी।

ब्लैक और ब्राउन रंग के लोग सभी वाइट एरिया में नहीं जा सकते थे । उन्ही वाइट एरिया में जा सकते जहां का पास मिला हुआ हो। ब्लैक लोग अपनी जमीन में ही स्क्वाटर (अड्डा जमाने वाला) हो गए। साउथ अफ्रीका में 81.4% के साथ काले अफ्रीकी लोग सबसे प्रमुख समूह बने हुए हैं, इसके बाद रंगीन आबादी 8.2% है। श्वेत जनसंख्या प्रतिशत का 7.3% है , जबकि भारतीयों/एशियाइयों का प्रतिशत 2.7% है । जो भी जगह गोरे लोगों को पसंद आ जाती वो जगह ख़ाली करनी पड़ती। काले, ब्राऊन लोग घर बार छोड़ दूसरी जगह झुग्गी झोपड़ी बना कर रहना पड़ता। उन जगहों में साफ सफाई का कोई प्रबंध न होता और वे गंदगी में रहने को मजबूर हो जाते। जो भी जगह, मोहल्ला, रेस्तरां, मार्केट, क्लब गोरों के लिए होता वहां काले, मिक्स्ड, ब्राउन लोग नहीं जा सकते।


Whole group in Sun City, Some snaps in Pretoria, center Don Apartment reception

भारतीय मूल के लोग कभी यहां कान्टैक्ट या गिरमिटिया मजदूर की हैसियत अंग्रेजों द्वारा लाए थे। गन्ने की खेती के लिए। धीरे धीरे वे यहीं के होकर रह गए अपनी भाषा तो भूल गए पर यहां के संस्कार, रीति रिवाज, तीज त्यौहार नहीं भूले। अलबत्ता उनके नाम तक बदल गए। सागरन मुडलियार, सागरेन मुडली हो गए दिनेश‌ पिल्लई डियोन पिल्लई हो गए पर दिवाली, होली मनाना नहीं छूटा। अब तो कुछ भारतीय कुछ न कुछ तिकड़म लगा कर आ रहे है और यहीं बस भी जा रहे है। जोहानिसबर्ग में एक ओरियंटल प्लाजा मार्केट है जहां सारी दुकानें भारतीयों की हैं। यहीं मैंने अपने जीवन का सबसे स्वादिष्ट नान खाया था दिल्ली दरबार रेस्तरां में। हम हंस पड़े थे जब मेनु कार्ड में चिकन दो प्याजा को अंग्रेजी में "Chicken two Onions" लिखा देखा। हमारे काम में ठीकेदार, इंस्योरेंस, शिपिंग के लोगों की जरूरत थी। ठीकेदार लोकल या पोर्तुगीज लोग थे। जबकि इंस्योरेंस और शिपिंग वाले भारतीय मूल के थे। और हमारी उन लोगों से अच्छी दोस्ती हो गई थी। डियोन पिल्लई तो हर शनिवार रविवार नाटाल निकल जाता अपने प्रेमिका से मिलने जबकि हम अक्सर सागरेन‌ मुडली का आथित्य का लाभ उठाते। दिवाली उसके यहां ही मनाई । उसके घर में स्विमिंग पूल था जिसके पास ही हमारा खाना पीना होता। सागरेन अक्सर हमलोग को किसी न किसी रेस्टोरेंट में खाने पर ले जाता और हमने कई प्रकार के स्काच, रेड या व्हाइट वाइन का आनंद उठाया। एक बार जोबर्ग के एक वैसे रेस्तरां में ले गया जो पहले सिर्फ गोरों के लिए था। मुडली ने बताया पहले वह अपने एक गोरे मित्र का नौकर बन कर आया था और उसके कुर्सी के पीछे खड़े रहने को मजबूर था और आज गोरे वेटर को खाने का आर्डर दे रहा है। मुडली जान बुझ कर पुरानी बातों का बदला लेने ऐसे जगहों पर हमें ले जाते और पुराने समय की कहानिया बताते , वो जगहे जहां से आगे काले, भूरे ड्राइवर / नौकरों का जाना मना था। गोरे लोग रंगीन काले लोगों से साथ बैठना उठाना एक दम पसंद नहीं था। आपस में शादी करना कानूनन मना था। हम अक्टूबर में एक बियर फेस्टिवल में भी गए। पुरे विश्व भर के बियर यहाँ मिल रहा था। मूडली ने बताया था मेक्सिकन बियर आजमाने को। मैंने लिया भी - मेले का सबसे महंगा यह बियर 8 रैंड का यह बियर मुझे एकदम पसंद नहीं आया। मुडलि के श्वसुर जयराम नारायणसामी रेड्डी (24 अक्टूबर 1925 - 5 जुलाई 2019) जेएन रेड्डी के नाम से लोकप्रिय, एक दक्षिण अफ्रीकी राजनेता थे, जो सॉलिडेरिटी पार्टी के नेता थे, जिसका प्रतिनिधित्व हाउस ऑफ डेलीगेट्स में किया गया था, रंगभेदी त्रिसदनीय संसद के भीतर यह निकाय भारतीयों के लिए आरक्षित था।

जोबर्ग में हम कार्लसन सेंटर देखने भी गए थे जो तब वहां की सबसे ऊंची इमारत थी।

कार्लसन सेंटर , ओरियंटल प्लाजा , जोहानिसबर्ग

चार्ल्स भी हमें कई बार घुमाने ले गया। एक बार औरेंज स्टेट में एक मिल देखने और एक बार सन सिटी। एक बार क्रुगर नेशनल पार्क भी , पर मैं वहां नहीं जा पाया क्योंकि कार में जगह नहीं बची थी। सन सिटी वहीं जगह है जहां ऐश्वर्या राय को Miss World घोषित किया गया था।


Sun City

सन सिटी शहर बस्ती से दूर बसाया एक नखलिस्तान है जिसे लास वेगास के तर्ज पर विकसित किया एक कैसीनों और नाइट क्लब शहर है। मुझे लास वेगास (2010) और एटलांटिक सिटी (2007) भी जाने का अवसर मिला पर सन सिटी मेरा पहला अनुभव था। मैंने स्लाट मशीन पर पैसे भी लगाए और हारने के पहले ही खेल बंद कर दिया।

दिसंबर आते आते हमारे करीब करीब सभी साथी भारत लौट गए सिर्फ मै और श्री सिंह जो बाद में आए थे प्रीटिरिआ में रह गए। हम दोनों एक छोटे अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गए थे। मूडली हमें यदा कदा रेस्टोरेंट ले जाते और प्रीमियम स्कॉच पिला पिला कर मुझे OUT करने की कोशिश करते। एक ऐसी ही पार्टी के बाद जब मै रात में सोया था तब सिंह ने रात में मुझे बाथरूम के बजाय किचन के तरफ जाने लगा था। शायद अपार्टमेंट चेंज करने से ऐसा हुआ होगा पर सिंह डर गया की वापसी के पहले यदि मेरी तबियत ख़राब हो गयी तो जा भी नहीं पांएंगे। वापसी का टिकट भी नहीं मिल रहा था और हमारे कस्टमर कंपनी ने हमारे लिए अपग्रेड कर बिज़नेस क्लास का टिकट लिया था। ऐसे में हमें प्रसाद जो हमारे प्रजेक्ट के इन्शुरन्स कंपनी के थे ने हमें खाने पर बुलाया और सिंह ने हमें व्हिस्की पीने ही नहीं दिया और मैं सिर्फ रेड वाइन पी कर आ गया।

श्री प्रसाद जो उस एरिया के मेयर था और घर क्या था भई स्विमिंग पूल, बिलियर्ड रूम और अन्य चीजें जिनसे अमीरी टपक रहीं थी। भारतीय यहां बहुत अमीर है यहां तक कि साईफ पर एक गोरा कंसल्टेंट Indians से ईर्ष्या तक करता था।

हमारे पोर्तुगीज ठीकेदार ने हमें फेयर वेल डिनर के लिए अपने निवास पर बुलाया और हमारे आगे परोस दिया भात और खरगोश का मांस। मैंने कभी खरगोश खाया न था और बेमन से खाना शुरू किया। पर खाते ही पसंद आने लगा। चिकन जैसा था और भारतीय मसाले और मिर्च का उपयोग किया गया था। शायद हमारे स्वाद के हिसाब से किसी ने पकाया था।

हम वापस जाने के पहले गए जोबर्ग के एक थोक वाले इलेक्ट्रॉनिक मार्किट जो वास्तव में वेयर हाउस था लास्ट मिनट खरीदारी के लिए। मेरी इच्छा कुछ इलेक्ट्रिक TOY और माइक्रोवेव खरीदने की थी। हमें पता चला यहां इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बहुत सस्ता है और मैंने कुछ खरीदारी भी की जैसे एक GOLD STAR (जो बाद में LG के नाम से प्रसिद्द हुआ) का १७ लीटर वाला माइक्रो वेव ख़रीदा। मूडली जो हमारा शिपिंग एजेंट थे ने यह विश्वास दिलाया था की इसे वह CAPTAIN लगेज के रूप में इंडिया भेज देंगे । मैंने भी माक्रोवेव के अंदर अपना जैकेट को गोल कर डाल कर पैक कर दिए। क्यूंकि दिसंबर में साउथ अफ्रीका में गर्मी हो गयी थे और मै जैकेट पहनकर यात्रा करना नहीं चाहता था। यह हमारी बदनसीबी थी की यह हमें नहीं मिला। बहुत दिनों बाद मूडली का मैसेज आया की थे शिप नॉर्वे चला गया , मैंने जवाब में लिखा कोई बात नहीं वापस RSA आ जाये तो आप ही उसे use कर लेना । वापसी में भी हम कुआलालुम्पुर हो कर लौटे जिसका वर्णन मैंने एक ब्लॉग के किया है जिसका लिंक इस ब्लॉग के प्रारम्भ में दिया गया है। मैं इस ब्लॉग को यही समाप्त करता हूँ।

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