करीब एक साल बाद हमलोगों का दिल्ली NCR आना हुआ। छोटे नाती नें राँची से चलने से बहुत पहले कह रखा था इसबार मामा के बजाय मेरे घर ही आना है सामान के साथ। पिछली बार बेटे के यहाँ रूका था और बीच बीच में दो चार दिन के लिए 11 कि० मी० दूर रह रहे बेटी के यहाँ चला जाता था। इस बार पोते के जन्मदिन पर ही आने का प्रोग्राम बना अतः बेटे के यहाँ ही आ गया। हम दोनों कहाँ रुके यह मेरी नन्ही पोती और उससे बस एक साल बड़े छोटे नाती के बीच बहस का मसला हमेशा से रहा है। बड़े वाले teenager नाती और पोता अब इस सब के लिए बड़े हो गए है और मोबाईल लैप टॉप पर पढ़ाई या चैटिंग में बिजी रहने लगे है।
इसी बीच कुछ दिनों बाद हमलोगों ने बेटी के यहाँ जाने का प्रोग्राम बनाया और चले गए। वहाँ अपने स्वर्गीय समधन मंजरी जी के कमरे में ही हमारे रुकने का बंदोबस्त बिटिया ने किया हुआ था। और जो बात मेरी नोटिस में तुरंत आ गई वह थी यहाँ वहाँ लगे मंजरी के फोटो जिन पर माला चढ़ी थी। एक ब एक उनके न होने का अहसास ने मुझे उदास करने लगा, जैसे एक अजीब सा सुनापन हो। कमरे मे रखे मंजरी जी और नारायण साहब के शादी के समय का एक युगल चित्र पर पहली बार ही मेरी नजर गई तो मै इतने सुंदर युगल जोड़ी की मन ही मन प्रशंसा करने लगा। एक मित्रवत व्यक्ति की कमी तो महसूस होती ही है पर अपनी बिटिया को जिनके स्नेह की छत्रछाया में देख कर अच्छा लगता था उनकी कमी सालने लगी है । बेटी हमेशा उन्हें हँसाती थी और हँसी मजाक भी चलता। इस बार महसूस किया कि अब उसका ज्यादा ध्यान नारायण साहब के स्वास्थ्य और खाने पीने पर लगा है। मेरी बिटिया के बच्चे तो दादी के न होने के दुःख से उबर चुके है लेकिन गाहे बगाहे किसी बहाने दादी की चर्चा आ ही जाती है। दादी को कुछ काम नहीं करने देना है छोटे नवाब का ध्येय हुआ करता था । जब कोरोना काल में काम करने वाली का आना वर्जित था तब बहू को (यानि मेरी बिटिया) हमेशा घर के काम में बिजी देख पोते की नजर बचा कर जैसे ही मंजरी जी अपनी थाली धोने के लिए उद्धत होती पोता कहीं से आ ही जाता आपको नहीं करना है आप बैठिए। बहू को अकेले खटते देख मंजरी जी की चिंता होती और वो हमसे कहती "आप कहिए न हमे भी थोड़ा कुछ करने दिया करे"। और मुझे कहना पड़ता आपने जिंदगी भर तो किया ही है अब आराम करिए। उनकी ऐसी चिंता हमें बेटी के तरफ से हमें निश्चिंत करती। उनकी मेरे साथ हुई अंतिम टेलीफोन की बात चीत में आधे समय मेरी बेटी की और उसके दिए हमारे संस्कार की ईतनी तारीफ करती रही कि मै असहज महसूस करने लगा। कहती "खुद बीमार है बच्चे बीमार है पर मेरी सेवा में कोई कमी नहीं । उपर नीचे दौड़ती रहती है। पर उसकी सेवा से ही मै स्वस्थ्य हुई हूँ। " लोगों का दुनिया से आना जाना प्रकृति का सामान्य नियम है। पर उनकी कमी महसूस करना भी सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है।
Miss you Manjari ji, you are such noble soul. May you be in peace and bestow your ashis on all.
अमिताभ जी! रावा भोजपुरी त सम्हाझते होखब।
ReplyDeleteराउर सरल भाषा में आपन तरह तरह के अनुभूति के लीखल पढ़ के खूब नीक लागल।
पिछला साल हमार पत्नि के चलते फिरते देहावसान हो गइल, नीमन से खात पीयत।
उनकर जीवनी के लोग "For Happy, healthy, enjoyable long life" के रूप में लोग पढ़तारन।
शायद रऊओ कुछ नीमन लागे!!
देवदत्त: संपूर्णानंद:.