श्री जय प्रकाश नारायण, संपूर्ण क्रांति के जनक जिसके बाद हम उन्हें लोकनायक भी कहने लगे के पास मानसिक बल तो था ही, स्वतंत्रता संग्राम में उनका शारीरिक बल और सहन शक्ति का परिचय भी मिला। मुझे उनके इसका परिचय तब मिला जब 1970 में एक विद्यार्थी आंदोलन के दौरान मैने भी एक जेल भरो आंदोलन में भाग लिया और हजारीबाग केंद्रिय कारा में अतिथि बनने का सौभाग्य मिला, सौभाग्य इसलिए भी क्योंकि हम लोगों को उसी परिसर में रखा गया जहाँ कभी श्री जयप्रकाश नारायण को रखा गया था। मेरा ब्लॉग मेरी उसी तीर्थ यात्रा पर आधारित है।
बिहार की पहली गैर कांग्रेसी सरकार
उस काल में लिखी एक स्वरचित कविता से शुरू करता हूं।
आग सी लगी है शहर में
रास्ते बंद पड़ गए हैं
कलेजे के टुकड़ो को चुनते चुनते
शाम होने को आई है
कॉलेज के दिनों की बात है, छात्रो के "हमारे जिगर के टुकड़े" कहने वालो की सरकार बिहार में आ चुकी थी। महामाया बाबू कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे। ICS त्याग कर स्वतंत्रता संग्राम मे कूदने वाले इस नेता को डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने एक प्रबल वक्ता बताया था। 1960 के दशक के बिहार में कांग्रेस के 3 कद्दावर नेताओ सर्वश्री के बी सहाय, सत्येन्द्र नारायण सिंह और विनेदानंद झा के साथ इनका भी नाम लिया जाता था। 67 के चुनाव के बाद पहली बार कांग्रेस को पुर्ण बहुमत नहीं मिला और पहली बार एक संयुक्त दलीय सरकार जन क्रांति दल के नेतृत्व में बनी महामया बाबू CM और कर्पुरी ठाकुर DyCM बने। यह सरकार एक साल चली फिर सतीश प्र सिंह की सरकार बनी। दल बदल का बोल बाला रहा और 1970 मे फिर कांग्रेस की सरकार बनी और CM बने श्री दरोगा प्रसाद राय।
इसी साल मार्च या शायद एप्रिल में बिहार के अभियांत्रिकी कॉलेज के छात्रों का आंदोलन हुआ बेरोजगारी के विरूद्ध। कार्यक्रम था जेल भरो का। पटना राजधानी है इसलिए इस आंदोलन की कमान मेरे कॉलेज के अंतिम वर्ष के छात्रों पर आन पड़ी। मेरी या हमारी अंतिम परीक्षा में कुछ महीने बाकी थे मेरी बड़ी दीदी इलाज के लिए पटना आई हुई थी और मुझे इस कारण आंदोलन में भाग लेने से छूट दे दी गई थी। फिर भी मै रोज सचिवालय में धरना देकर जेल जाने वाले ग्रुप को विदा करने जाया करता था। पर जब एक ग्रुप में जब हमारे कुछ दोस्त माला लगा धरने पर बैठे तो मै अपने को रोक नहीं नहीं पाया और मैने भी माला पहन लिया। हम लोगों को बस में बैठा कर बांकीपुर जेल ले जाया गया। हमें पहले लोअर ग्रेड राजनितिक कैदी के रूप में अलग वार्ड में हमें रखा गया। Sub standard खाना मिलता, और टायलेट, पानी इत्यादि की limited सुविधा ही मिलती थी। हम लोग घर वालो या दोस्तो (Visitors) से साबुन कंघी, बिस्किट वैगेरह मंगवा लेते। इन छोटी सुविधाओ के लिए आपस में झगड़े होने लगे। फिर ग्रेजुएट कैदियों को मिलने वाली B grade में Upgrade हो गए हम लोग। अब कुछ चीजें सबको मिली जैसे साबुन, ब्रश, टूथ पेस्ट। अब तक जिन चीजें हम छुपा कर रखते कि कोई मित्र मांग न ले, इधर उधर रखे मिलने लगे। खाना हमारे लिए अलग बनने लगे। लाईन लगा कर खाना लेने के बजाय पंगत में बैठ कर खाने लगे। दूध और नन वेज भी हमें मिलने लगे। अच्छे खाने के लोभ में कई कैदी हम लोगों के लिए duty में आने लगे। कूंए पर नहाने के पानी के लिए जहां पहले राशनिंग थी वहां अब कई बाल्टी पानी से हम नहाने लगे। बांड लिख कर जेल से बाहर जाने का सरकारी प्रपोजल संगठन ने ठुकरा दिया। धीरे धीरे हमारी संख्या बढ़ने लगी। फिर एक दिन हमें बसों से हजारीबाग केंद्रिय कारा भेज दिया गया।
हजारीबाग
रास्ते में बरही के आसपास एक नदी के पास बस रोकी गई ताकि हम सुबह के नित्य कार्य कर सकें (Fresh हो सके)। साथ में चल रहे कांस्टेबल इस फिक्र से निश्चिंत थे कि कोई भागेगा । खैर हम केंद्रिय कारा पहुंचे और हमें उसी परिसर में रखा गया जहां स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था। अगले दिन हमारे कपड़े का नाप लिया गया, मै तो डर गया कि कैदियों वाला धारीदार ड्रेस पहनना पड़ेगा। पर अगले दिन एक जोड़ी खादी का सफेद कुर्ता पायजामा, एक पेयर बाटा का जुबली चप्पल, 2 चादर और एक मच्छरदानी सभी को मिले, शायद एक छोटा बैग भी था। अपर क्लास कैदी को मिलने वाले खाने का मेनु कोई ले आया। हमें रोज 1 पाव दूध, एक पाव मटन/मछली/चिकन चावल, दाल, रोटी, अंडे, मिठाई मिलने लगे। सुबह गिनती होती फिर दिन भर हम जेल में घूमते रहते। सिर्फ रात में हमारा हॉल (वार्ड) बंद किया जाता। जमीन पर दरी चादर बिछा कर हम सो जाते। जहाँ तक याद है अंदर बिजली , पंखा नहीं था, ताकि कोई कैदी बिजली पंखे से आत्महत्या न कर ले। एक खुला बिना दरवाजे वाला शौच घर अंदर था रात में उपयोग के लिए। दिन में सिर्फ एक जगह जाने की मनाही रहती जहां फांसी, उम्रकैद की सजा पाने वालों के सेल थे। एक अलग दुनिया ही थी यह। खटाल से ले कर धोबी इत्यादि सब। यानि मजे में जिंदगी चल रही थी।
इतिहास के पन्नौ से
फिर एक दिन हमारे खिदमत में लगे एक कैदी ने बताया कि श्री जयप्रकाश नारायण को भी इसी परिसर में कैद कर रखा गया था। और यहीं से 17 फीट ऊंची दीवार को फांद कर वह भाग भी गए थे। 9 अक्टूबर 1942 को जेल की अभेद्य दीवार को फांद कर भागे थे जयप्रकाश नारायण । यह घटनाक्रम हजारीबाग सेंट्रल जेल को पूरे राष्ट्र में ना सिर्फ चर्चित कर दिया था बल्कि अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था । JP की 17 फीट ऊंची एक प्रतिमा 2021 में लग गई है, उसके पहले तक लोग जेपी को याद करने के लिए उनकी जयंती, पुण्यतिथि और जेपी कारा से भागने की तिथि पर उनके सेल जाकर माल्यार्पण कर याद किया करते थे। उनको यहाँ बहुत यातनाएं भी दी गई थी। बर्फ के सिल्ली पर लेटा कर यातनाएं दी जाती थी, कई कई रात जगा कर रखा जाता।
हम भी JP का वह सेल देखने गए जो एक स्मारक के रूप में तब भी रखा गया था। अन्य क्रांतिकारियों के भी स्मारक है। हमें यह देखने का मौका लगा कि वे कैसे जीवट वाले रहे होगे जो उस ऊंचे अभेद्य दीवार को गार्ड के watch tower के पास से ही न सिर्फ खुद भागे, अपने अन्य साथियों - रामानंद मिश्र, शालीग्राम सिंह, सूरज नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ला और गुलाब चंद गुप्ता को भी भागने में मदद भी की।
शुरुआत में जेपी समेत 10 लोगों का जेल से भागने का प्लान था। हालांकि, बाद में यह तय हुआ कि 6 लोग बाहर जाएंगे। बाकी के 4 गार्डों का ध्यान भटकाने का काम करेंगे। फरार होने वाले 6 क्रांतिकारियों में सबसे फुर्तीले योगेंद्र शुक्ला थे। वह तेजी से दीवारों पर चढ़-उतर लेते थे।उसी दिन दिवाली थी। जेल में ढेरों दििखे जल रहे थे। हिंदू वॉर्डनों को दिवाली की छुट्टी मनाने के लिए ड्यूटी से छुट्टी मिली थी। पूरे जेल में त्योहारी माहौल था। रात 10 बजे 6 लोग जेल के आंगन में पहुंचे। यह समय इसलिए चुना गया था क्योंकि वॉर्डन रात का भोजन करने के बाद अक्सर सिगरेट या पान खाने के लिए जाते थे। डिनर टेबल दीवार के पास रखी गई थी। शुक्ला घुटनों पर झुककर टेबल के ऊपर बैठ गए थे। एक दल वॉर्डनों पर नजर रख रहा था। इसके बाद सूरज नारायण सिंह के पेट के चारों ओर धोती लपेटी गई। 56 धोतियों का इस्तेमाल किया गया। गुलाब चंद, शुक्ला की पीठ पर चढ़े और सूरज गुलाब के कंधों पर चढ़कर दीवार पर चढ़ गए। चंद मिनटों में देखते ही देखते सभी क्रांतिकारी जेल के बाहर थे। ब्रिटिश साम्राज्य की बहुत फजीहत तब हुई जब 2 बटालियन को देखते गोली चलाने का ऑर्डर देने पर भी भागे कैदी पकड़ न आए और गया की ओर चले गए। अब इस जेल का नाम बदल कर जयप्रकाश नारायण के नाम पर कर दिया गया है । 1975 के आपात काल के समय भी JP को इतनी यातनाएं दी गई कि उन्हें ताउम्र डायलिसिस पर depend रहना पड़ा। बस इतनी ही कहनी याद रह गई।
20 दिनों बाद पटना ला कर बिना शर्त एक बांड लिखाकर हमें छोड़ दिया गया आंदोलन विफल हो गया था। नाक बचाने के लिए कुछ छोटी मांगें मानी गई।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अमर रहें। नमन ।
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