कुछ दिन पहले एक खबर पढ़ी कि गोमो में रेल के 25 kV लाइन के पास एक खम्बा खड़ा करने के दौरान खम्बा लाइन से सट गया और ८ मजदूर और सुपरवाइजर ज़िंदा जल गए । मेरा पहली प्रतिक्रिया थी की अब जो मारे गए उन्हीं पर ला परवाही का इलज़ाम लगाया जायेगा और उनके परिजन दुर्घटना में मरने वालों को मिलने वाली सरकारी मदद या अन्य सुविधाओं से महरूम रह जाये । अगले दिन अखबार में पढ़ा की रेलवे के एक बड़े अधिकारी ने सारा इलज़ाम उस प्राइवेट कंपनी पर लगा दिया जबकि रेलवे की एक सरकारी कंपनी यह काम करा रही थी । सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देने को एक गंभीर अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए क्योंकि मरने वाले मज़दूर मासूम और बेगुनाह ही होते है और ठीकेदार के लालच और अफसरों की लापरवाही से जान गंवा बैठते है । दुर्घटना के बाद रेलवे के अफसर वह सारी प्रक्रिया जो नहीं लिए गए अख़बारों में बताते नज़र आए की " परमिशन नहीं लिया , शट डाउन नहीं लिया, हॉट वर्क परमिट नहीं था या डाउन लाइन पर शट डाउन लेकर अप लाइन पर काम कर रहे थे ।
जब मैं बोकारो स्टील में कार्यरत थे तब दो तीन घटनाये हुई मैं उन्हें बताना चाहूंगा । मैं HT के कमीशनिंग का काम कर रहा थे तब की कुछ घटनाये है :
जब हॉट स्ट्रिप मिल के १३२/११ kV ट्रांसफार्मर धू धू कर जल उठा तब एमेर्जेंनसी का समय था । और बकौल हमारे SE साहेब ८:०० बजे का मतलब था ७:६० और २ बजे दिन का मतलब था १३:६० । दो ८० MVA ट्रांसफार्मर थे MAIN सबस्टेशन MSDS-II में । उनके बुशिंग्स का आयल का टेस्ट पोस्टिव नहीं हो रहा था और उनका हीटिंग बड़े बड़े फ्लड लाइट से चल रहा था तिरपाल भी लगाया गया थे क्योंकि बारिश का समय था और तिरपाल लगाने से हीटिंग भी ठीक होती । लेकिंन उस दिन जब हम लंच के बाद १३:६० पर पहुंचे पता चला ट्रांसफार्मर में आग लग गयी है । हवा और पानी के कारण गरम बुशिंग्स में क्रैक आ गाय तेल बहार आ गया और बल्ब भी फ़ूट गए । तेल और तिरपाल जलने लगे और आग धीरे धीरे फैलने लगी । जब तक फायर ब्रिगेड की गाड़ी आई हम बाल्टी, डब्बे से पानी फेंक रहे थे । पानी उंचाई पर लगी आग तक पहुँच भी नहीं रहा था पर जिस ट्रांसफार्मर पर पिछले कई महीने से काम कर रहे थे उससे एक लगाव हो गया था और हम लोगों को रोना आ रहा था । तभी कोई चिल्लाया बगल वाला १३२ kV लाइन चार्ज है यदि आग के कारण वो लाइन टूट कर गिर पड़ा तो भयानक हादसा हो जायेगा । अब १३२ kV लाइन दूसरे सबस्टेशन से ही ऑफ किया जा सकता था । उस मैन सबस्टेशन को फ़ोन किया गया तो ऑपरेटर ने कहा बिना चीफ पावर इंजीनियर (CPE ) के परमिशन के वह लाइन ऑफ नहीं कर सकता । अब CPE जूनियर्स को डांटने और गाली तक दे देने के लिए प्रसिद्द थे ।अब उनसे कौन बात करे ? मुझे तुरंत एक बात सूझी । यदि चार्ज ट्रांसफार्मर का फाल्ट सिगनल दिया जा सके तो १३२ kV ब्रेकर ऑफ किया जा सकता है और मैंने एक फाल्ट रिले को हाथ से प्रेस कर दिया । तुरंत चार्ज लाइन बंद हो गयी । मुझे पता था की जिस रिले को मैंने प्रेस किया बिना कारण जाने चेक किये लाइन चार्ज नहीं किया जा सकता । पहले तो मेरे बॉस ने मेरे इस काम के लिए डांटा । CPE को जवाब जो देना पड़ता । लेकिन कुछ ही समय बाद मेरे प्रजेंस ऑफ़ माइंड की तारीफ होने लगी । खैर लाइन के मरम्मत और ट्रांसफार्मर को ठीक करने में एक महीने लग गए जो इमरजेंसी के दौरान एक माइनस पॉइंट था क्योंकि इस मिल का उद्घाटन श्रीमती गाँधी करने वाली थी, पर कोई चारा नहीं था इतना समय तो लगना ही था । एक ENQUIRY हुई पर इसे प्राकृतिक दुर्घटना ही माना गया ठीकेदार या इंजीनियर किसीकी गलती नहीं मानी गयी । तिरपाल बांधने वाले मज़दूर को थोड़ी डांट पड़ी बस । लेकिन खुदा न खास्ते यदि ट्रांसफार्मर रिपेयर न हो पाता तब शायद कुछ सर लुढ़कते ।
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गाली देते रसियन दूसरी स्टोरी जिसमें उच्च वोल्टेज में दुर्घटना हो गयी और जिसमे भाषा ज्ञान मुख्या कारण था वह एक रसियन एक्सपर्ट के साथ हुआ । हुआ यह की मिल में बहुत सारे ११ kV ट्रांसफार्मर के आइसोलेटर लूप में कनेक्टेड थे । ट्रांसफार्मर में काम करने के लिए रूम की चाभी देने के पहले हम पूरे लूप का पावर ऑफ कर देते थे । हमे पता न था की चाबी का एक सेट रूसियों के पास भी था । हम अभी भी उजली चमड़ी को हरफन मौला समझते और मानते है उनसे गलती नहीं हो सकती है । बस क्या था एक रूसी ने ट्रांसफार्मर रूम खोला और चार्ज आइसोलेटर के केबल टाइट है की नहीं पान्हे (SPANNER ) से चेक करने लगा बिलकुल अकेले । स्पार्क हुआ और उसकी दाढ़ी जल गयी पर भागवान की माया वह रसियन में गली देते निकला और बेहोश हो गया । क्योंकि बोकारो में ११ kV UNEARTHED है वह बच गया । चाभी देने का सिस्टम तब ठीक किया गया और सिर्फ सबस्टेशन के शिफ्ट इंजीनियर ही चाभी और shutdown रजिस्टर में लिख कर दे सकते है यह नियम बनाया गया । शट डाउन का पेपर लौटने पर ही लूप चार्ज कर सकते थे । तीसरी घटना शीत बेलन शाला (COLD ROLLING MILL ) की है ।
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जब मेरी आवाज़ भी नहीं निकल रही थी MSDS -V में कई सेक्शनलाइज़र ब्रेकर थे । और ब्रेकर से इसमें यही फर्क थे की ब्रेकर निकल देने पर भी इसके आउट गोइंग में दूसरे सेक्शन से पावर आ सकता थे । हमारा रोज़ का काम था चार्ज सबस्टेशन में ही था । हम ब्रेकर निकालते शटर ऊपर उठा कर आउटगोइंग का इंसुलेशन मेगर से चेक करते और फिर ब्रेकर अंदर डाल कर ऑन कर देते । मेरे साथ इलेक्ट्रीशियन रामबली सिंह ७ साल से जुड़े थे । अनुभवी थे पर HT का अनुभव कम था । रोज की तरह वे शटर उठाने वाले ही वाले थे की मैंने देखा की वे सेक्शनलाइज़र पर काम कर रहे थे । मै चिल्ला कर उन्हें रोकना चाहता था पर मेरी आवाज़ मेरे हलक में ही दब कर रह गई । लेकिन सिंह मेरे हाव भाव से समझ गए कि कुछ गड़बड़ है और शटर उठाते उठाते रह गए । उच्च voltage पर तार के इंसुलेशन भी कंडक्टर की तरह काम करता है और मेगर करना जान लेवा साबित हो सकता है । थोड़ा अलर्ट या सतर्क रहने से दुर्घटना टाली जा सकती है ।
मैं इस ब्लॉग को लिख ही रहा था की एक भयानक दुर्घटना ओड़िसा में हो गई जिसमे तीन ट्रेनें शामिल थी और शायद २००-३०० लोग मारे गए । यदि यह किसीकी लापरवाही से हुआ है तो शायद उसे कई रातों तक नींद नहीं आये ऐसे नींद तो उन्हें भी नहीं आएगी जो बचाव कार्य में लगे थे और उन्हें किसीके हाथ और किसीके पैर चुनने पड़े हो । सभी मृत आत्माओं के और उनके परिवार के प्रति मेरी संवेदनाऐ ।