Saturday, May 25, 2024

बैठे ठाले-4 तुझे क्या सुनाऊं मैं दिलरूबा



आज एक गाना सुन रहा था

"तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा,
तेरे सामने मेरा हाल है।
तेरी इक निगाह की बात है
मेरी ज़िंदगी का सवाल है।
मेरे दिल जिगर में समा भी जा,
रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला ।
के तेरे बग़ैर ओ जान-ए-जां
मुझे ज़िंदगी भी मुहाल है ।"

इस गाने में नूतन के साथ एक ऐसे हीरो दिखे जिन्हें शायद पहले कभी न देखा था । गूगल किया तो पता चला ये गाना १९५८ की फिल्म " आखिरी दांव " का था और हीरो का नाम था शेखर । कई अन्य पुरानी गीतों की तरह ये गीत भी काफी अच्छा था । मजरूह सुल्तानपुरी (जिनकी कल २४ मई को ही पुण्यतिथि थी) के गीत को संगीतबद्ध किया था सुरो के जादुगर मदन मोहन ने। गुगल से डाऊनलोड किया लिरिक्स दे रहा हूँ ।

तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
तेरे सामने मेरा हाल है
तेरी इक निगाह की बात है
मेरी ज़िंदगी का सवाल है

मेरी हर ख़ुशी तेरे दम से है
मेरी ज़िंदगी तेरे ग़म से है
तेरे दर्द से रहे बेख़बर
मेरे दिल की कब ये मज़ाल है
तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र
मुझे सुबह शाम की क्या ख़बर
मेरी शाम है तेरी जुस्तजू
मेरी सुबह तेरा ख़याल है

मेरे दिल जिगर में समा भी जा
रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला
के तेरे बग़ैर ओ जान-ए-जां
मुझे ज़िंदगी भी मुहाल है।

शेखर जी के बारे में दो शब्द

शेखर 50 's के हिंदी फिल्म अभिनेता थे । (1950) में शेखर को नलिनी जयवंत के साथ पेश किया गया था। उनकी अन्य फिल्मों थी आस (1953), हमदर्द (1953), नया घर (1953), आखिरी दाव (१९५८), बैंक प्रबंधक (1959) आदि शामिल हैं।
एक अभिनेता के रूप में शेखर का करियर अचानक छोटा हो गया, क्योंकि उन्होंने फिल्म निर्माता बनने का फैसला किया। उन्होंने छोटे बाबू (1957, आखिरी दाव (1958) और बैंक मैनेजर (1959) का निर्माण किया।

बाद में, उन्होंने फणी मजूमदार के साथ निर्देशक और एन. दत्ता के साथ संगीत निर्देशक के रूप में एक फिल्म 'प्यास' शुरू की। बीना राय को उनके अपोजिट हीरोइन के तौर पर साइन किया गया था। इस फिल्म के लिए वित्त की व्यवस्था करने के लिए, उन्होंने सी ग्रेड फिल्मों को स्वीकार किया, जैसे दिल्ली का दादा शेख मुख्तार और हम मतवाले नौजवान, दोनों 1962 फिल्में। शेखर ने बड़ी मुश्किल से फिल्म को पूरा किया। फिल्म अंततः 1968 में एक नए शीर्षक 'अपना घर अपनी कहानी' के साथ रिलीज हुई। जैसा कि अनुमान था, फिल्म ने दर्शकों को आकर्षित नहीं किया। आर्थिक रूप से बर्बाद, शेखर कनाडा चले गए और बहुत समय पहले वहीं उनकी मृत्यु हो गई।

बैठे ठाले में आज बस इतना ही ।
अमिताभ सिन्हा, रांची

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