ग्रेगोरियन या जूलियन कैलेंडर के बारे में मैं एक ब्लॉग पहले लिख चुका हूँ । तरह तरह के कलेण्डर (click to read ) . क्योंकि ये कैलेंडर सिर्फ सूर्य पर निर्भर करते है कैलेंडर में एक साल में आने वाले दिन और सूर्य के परिक्रमा में लगने वाले दिन में बहुत कम अंतर था और लीप डे को इधर उधर कर ग्रेगोरियन कैलेंडर में इस अंतर से आने वाली समस्या का समाधान आसानी से निकल आया लेकिन भारत के हिंदी या हिन्दू कैलेंडर सूर्य और चन्द्रमा दोनों पर आधारित है। और इस लिए इसे समझना थोड़ा जटिल है। अक्सर लोग पंडित जी से पंचांग के बारे में पूछते दिख जायेंगे। आईये इस Lunosolar कलेण्डर की बुनियादी बातें समझे। विस्तार में न तो मै समझा सकता हूँ न हीं वह इस ब्लॉग का विषय है।
चन्द्रमा कि कलाएं और हमारी पृथ्वी एक एनीमेशन (साभार )
अब थोड़ा चन्द्रमा और पृथ्वी कि आपसी स्थिति के बारे में जानने समझने कि कोशिश करता हूँ । जैसा मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिनों में करता है पर अमावस से अमावस के बीच 29.5 दिन लगते है जबकि अपने axis पर भी चांद्रमा करीब 27 दिनों में एक बार चक्कर लगता है। क्योंकि दोनों संख्या इतने करीब है कि हम चन्द्रमा की एक ही हिस्सा हम देख पाते है। जब पूर्णिमा होती है पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य के बीच होता है और सूर्य के रौशनी से रौशन चन्द्रमा को हम पूरा देख पते है। अमावस्या आते आते चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है तबतक अपने धुरी पर चन्द्रमा करीब करीब १८० deg घूम चूका होता है और चाँद का जो हिस्सा पूर्णिमा में हमें रौशन दिख रहा था वही हिस्सा हमे अँधेरा दिखता है । शास्त्रों के अनुसार सूर्य और पृथ्वी के बीच १०८ सूर्य समा सकता है और पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच १०८ चन्द्रमा। सूर्य पृथ्वी से १०८ गुना बड़ा भी है। आधुनिक खगोल विज्ञानं के अनुसार भी ये बातें करीब करीब सत्य है। चन्द्रमा , पृथ्वी का आकार और सूर्य के सन्दर्भ में आपसी दूरिया ऐसे अनुपात में है कि कुछ परिस्थिति में पूर्णिमा में जब पृथ्वी मध्य में होता है तो यह चन्द्रमा तक सूर्य कि रौशनी पूरी तरह या आंशिक रूप में पहुंचने नहीं देता - यह है चंद्रग्रहण। उसी तरह किसी किसी अमावस्या में जब चन्द्रमा मध्य में होती है तब यह भी सूर्य कि पूरी या कुछ किरणे पृथ्वी तक नहीं पहुंचने देती और इसे हम कहते है सूर्य ग्रहण। आगे देखते है चन्द्रमा के परिक्रमा कि यह गति कैसे हमरे हिंदी कैलेंडर जैसे विक्रमी संवत को कैसे प्रभावित करती है।
आईये अब हम हिंदी कैलेंडर या पंचांग के बारे में कुछ चर्चा करें। सर्वविदित है कि चन्द्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा (पुर्णिमा से पुर्णिमा तक) 29.5 दिनों में करता है। हिंदी पंचांग में जबकि महीने में 30 तिथि (तिथि - दिन नहीं ) होती है और एक वर्ष में 12 महीने। यानि वर्ष के 354 दिन। अब LUNOSOLAR पंचांग या कैलेंडर इस लिए जरूरी होता है की महीने और ऋतू का तालमेल बना रहे यानि जेठ में गर्मी और माघ में ठण्ड पड़नी चाहिए। पंचांग में तिथि , महीने और वर्ष को नियमों में इस प्रकार बंधा गया है की यह तालमेल हमेशा बना रहे। अब कुछ प्रश्न हमारे मन में उठते रहते है उस पर चर्चा करने कि चेष्टा मैंने आगे की है।
प्रश्न 1) क्यों एक ही तिथि दो दिन , या दो दो तिथियां एक ही दिन पड़ते है ?
इस बात का जवाब ऊपर दिए दो स्केच से समझना होगा। पृथ्वी को केंद्र मान कर चन्द्रमा और सूर्य की कल्पना करिए । सूर्य घूमता नज़र आएगा एक महीने में 30 deg यानि प्रति दिन 1 deg लेकिन वास्तव में वह स्थिर है और चन्द्रमा एक महीने में 360 deg घूमता है । यानि चन्द्रमा प्रति दिन 12 deg घूम जायेगा। तिथि के लिए सूर्य और पृथ्वी को और चन्द्रमा को मिलाने वाली रेखा से चन्द्रमा के कक्षा को 12 deg, 24 deg, 36 deg, 48 deg इत्यादि पर खींची रेखाओं से 30 भाग में बाँट दी जाय तब चन्द्रमा के हर इस बिंदु पर पहुंचने पर तिथि बदल जाती है चाहे चन्द्रमा दिन रात के किसी समय वह पहुंचे। अब चंद्रोदय से दूसरे दिन के चंद्रोदय तक के बीच औसत समय लगता है 24 घंटे और 48 मिनट। यानि यदि अष्टमी तिथि की शुरुवात शुक्रवार के सूर्योदय से हुयी हो तो भी अगली तिथि सूर्योदय (जो 24 घंटे बाद होगी ) के करीब 48 मिनट बाद ही आएगा , यानि शनिवार के सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि ही रहेगी। यानि एक दिन ही दो दो तिथि। अब चन्द्रमा की कक्षा अंडाकार है और इस लिए इस 12 DEG की दूरी एक समय में नहीं तय करता और इसको भी गणना में सामिल करना पड़ता है। अब चन्द्रमा की परिक्रमा (NEWMOON TO NEWMOON ) 29.5 दिनों में पूरी होती है (अगला पैराग्राफ देखे) और तिथियां 30 होती है और इस अंतर को भी गणना में लेना पड़ता है।
प्रश्न 2) अधिक मास क्या है ? मल मास क्या है ? खर मास क्या है ?
अधिक मास या मल मास
चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण परिक्रमा करने में लगभग 27.3 दिन लगते हैं। पृथ्वी प्रत्येक 365.24 दिन में एक बार सूर्य की परिक्रमा (360 deg) करती है । 27.3 दिनों में पृथ्वी और चंद्रमा एक प्रणाली के रूप में सूर्य के चारों ओर लगभग 1/12 यानि 27 DEG (360 deg/365 x 27.3) घूम चुके होते हैं। हमने ऊपर जाना की तिथि हर 12 DEG पर बदलती है , इसका मतलब यह है कि एक पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा तक, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के वक्र के कारण, चंद्रमा को फिर से पूर्णिमा के रूप में दिखाई देने से पहले 2.2 (27/12) अतिरिक्त दिनों की यात्रा करनी होगी यानि पूर्णिमा से पूर्णिमा तक कुल 29.5 दिन। इससे एक चंद्र वर्ष और एक सौर वर्ष के बीच प्रति वर्ष 11 दिनों का अंतर पैदा होता है। इस अंतर की भरपाई के लिए, औसतन हर 32.5 (30/11 day per year x 12 months) महीने के बाद एक अतिरिक्त महीना (30 दिन) जोड़ा जाता है। और इसे ही कहते है अधिकमास। जो लगभग तीन वर्ष में आता है। ऐसा इसलिए जरूरी है की हिंदी महीने ऋतुओं से मेल करते
रहे। कैसा लगेगा यदि जेठ में जाड़ा लगने लगे और माघ में लू चलने लगे ?
खर मास
हम जानते है की आसमान 12 तारा समूहों यानि राशियों में बांटा है। इन राशियों के नाम इन तारा समूह के आकर के अनुसार रखा गया। पृथ्वी जब सूर्य का परिक्रमा करता है तब सूर्य पृथ्वी से इन राशियों में दीखता है और हर राशि में पुरे 1 महीने के लिए। जब सूर्य धनु राशि में जाता और दिखता है उस महीने को खरमास कहा जाता है जो अंग्रेजी तारीख 16 दिसम्बर से 15 जनवरी के बीच ही अक्सर पड़ता है। खरमास की अवधि हिंदू धर्म में अशुभ माना जाता है और शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि इस महीने में वर्जित है।
प्रश्न 3) पुर्णिमांत और अमांत क्या है ?
भारतीय उपमहाद्वीप में चंद्र महीनों के संबंध में दो परंपराओं का पालन किया गया है: अमांत परंपरा, जो चंद्र महीने को अमावस्या के दिन समाप्त करती है। और पूर्णिमांत परंपरा, जो इसे पूर्णिमा के दिन समाप्त करती है। दोनों परम्पराओं में महीनों के प्रारम्भ में १५ दिनों का अंतर हो जाता है। कुछ राज्य पुर्णिमांत और कुछ राज्य अमांत प्रणाली मानते है। कुछ राज्यों में वैशाखी यानि मेष संक्रांति यानि १३ या १४ अप्रैल से वर्ष की शुरुआत मानते है। जैसे नेपाल , बंगाल और दक्षिण भारत के कई राज्यों में। किस राज्य में कैसा कैलेंडर मान्य है दिए गए मैप में दिखलाया गया है।
आशा है आपकी जिज्ञासा शांत हो चुकी होगी। यदि कुछ त्रुटि रह गयी हो तो क्षमा करे !
शानदार लेख, बहुत सी भ्रांतियां दूर हो गई
ReplyDeleteधन्यवाद, अमिताभ (लेखक)
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