हाल में जापान दोहरी आपदाओं का शिकार हुआ। नए साल के शुरू में हुए भयानक भूकंप फिर दो हवाई जहाज का हवाई अड्डे पर टकरा कर स्वाहा हो जाना। एक जापानी एयर लाइन (JAL ) की फ्लाइट टोक्यो लैंड कर रही थी और यह एक कोस्ट गार्ड की प्लेन, जो रनवे पर थी, से टकरा गयी। कोस्ट गार्ड वाले प्लेन के सभी 6 कर्मी दल मारे गए पर JAL के सभी 367 यात्री और कर्मी दल बचा लिए गए । धू धू कर जलते जहाज से इतने सारे यात्रियों के बचाने के यु ट्यूब वीडियो देख कर हमें दो ऐसी घटनाएं याद हो आई जो मेरे साथ घटित हुई थी। मैंने अपनी पहली हवाई यात्रा 1973 में की थी एक ट्वीनओटर जहाज से और वह छोटा हवाई जहाज कभी उपर कभी एयर पाकेट मिलने पर नीचे , मेरा पूरा समय हनुमान चालीसा पढ़ते बीता जबकि यह एक आम सी साधारण बात है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में कभी बहुत ज्यादा टरबुलेंस से पाला नहीं पड़ा । शायद बड़े जहाज और बादलों से बहुत उपर उड़ने के कारण। पर मै उन दो उड़ा
नो की बात करने वाला हूं जो देश के भीतर की उड़ाने थी।
90 के दशक में मुझे कई बार चेन्नई और विशाखापटनम जाना पड़ता था साइट, आफिस के काम के लिए । हम रांची से कलकत्ता हो कर जाते थे। तब 737 बोईंग के पुराने माडल वाले जहाज होते थे इंडियन एयरलाइन्स के पास और तब और कोई एयरलाइन्स था भी नहीं। हवाई विच्छोभ (AIR TURBULENCE ) से डर बहुत लगता था - अब भी लगता है। हनुमान चालीसा का ही सहारा होता था। चेन्नई की कई यात्राओं के बाद हमने नोटिस किया की जब जब डिनर दिया जाता उसी समय TURBULENCE होता था। मैंने हवाईयात्रा में नॉन वेज खाना छोड़ दिया क्योंकि हनुमान चालीसा पढ़ना के नौबत अक्सर आ जाती थी। मैंने चाय भी लेना छोड़ दिया था क्योंकि कहीं turbulence में चाय बदन पर गिर ही न जाय और एक दिन चाय गिर ही गई सारे यात्रियों के ऊपर ।
PHOTO FOR REPRESENTARION ONLY
हमरी फ्लाइट चेन्नई (तब मद्रास MAA ) से पांच बजे शाम के आसपास उड़ी थी । करीब अढ़ाई घंटे की फ्लाइट थी कलकत्ता तक की। अन्य दिनों के तुलना में फ्लाइट ठीक ठाक थी और टर्बुलेन्स न के बराबर था। डिनर खाने के बाद चाय आने ही वाली ही थी की जहाज बादलों के अंदर जा घुसा। अँधेरा हो गया था और बिजली का चमकना काफी नज़दीक दिख रहा था । समय बता रहा था कि हम कलकत्ता पहुचने ही वाले थे। मैं निचिंत बैठा था की कुछ देर बाद हम कलकत्ता उतर जायेंगे। तभी जहाज ऊपर नीचे के साथ साथ घूमने भी लगा कभी दायें झुके कभी बाएं। मैंने चाय मंगाई नहीं थी लेकिन हमारे आस पास लोगों के चाय के कप (तब असली होते थे पेपर कप नहीं ) नीचे गिर पड़े थे। पायलट ने टर्बुलेन्स की सुचना भी नहीं दी थी और कई लोगों ने सीट बेल्ट लगाए भी नहीं थे कईयों के सामने टेबल खुले ही थे। मैंने और शायद सभी लोगों ने पहले सीट बेल्ट बांधे। एयर होस्टेस भी डर कर खाली सीटों पर बैठ गयी थी उन्हें घोषणा करने और अपने सीट पर बिना गिरे जाने की संभावना कम थी। सभी यात्री चुप हो गए। थोड़ी देर पहले लोगों की हंसी और बातें से जो खुशनुमा माहौल था वह एकदम "अब आगे क्या होगा ?" की चिंता में डूब कर शांत हो गया। मैं हनुमान चालीसा पढ़ने लगा और भी कई बातें सोचने लगा। चालीसा बीच बीच में भूल भी जा रहा था।
PHOTO FOR REPRESENTARION ONLY
ऐसी हालत में जहाज शायद १५-२० मिनट चली होगी। जहाज का गलियारा (Aisle) खाने के ट्रे , प्लेट , खाने के सामान , पानी , चाय वैगेरह से पट गया था। थोड़ी देर बाद पेटी बांधने की घोषणा की गयी। प्लेन को बादलों के नीचे लाने में कामयाबी मिल गयी थी। एयर होस्टेस ने अब ट्रे इत्यादि उठाने का कार्य शुरू किया। किस्मत से ऊपर का कोई लगेज रैक नहीं खुला पर कुछ ऑक्सीजन मास्क जरूर नीचे गिर गए थे। जब प्लेन स्थिर हुआ और नीचे धरती दिखने लगी तो धीरे धीरे लोग आपस में बातें करने लगे। सभी डर गए थे और प्लेन के पहुंचने की घोषणा और लैंड करने के बाद ही जान में जान आयी। सभी एक दूसरे को अपना अनुभव बताना चाह रहे थे। प्लेन रुकने पर देखा एम्बुलेंस और स्ट्रेचर के साथ लोग तैयार थे। इतनी ख़राब यात्रा फिर कभी नहीं की। अक्सर मानसून से ज्यादा गर्मी में हवाई विच्छोभ होता है। मैंने इसके बाद कई यात्राएं ट्रेन से ही करना उचित समझा।
PHOTO FOR REPRESENTARION ONLY
दूसरी डरावनी घटना जो ज्यादा खतरनाक हो सकती थी वह जापान के हाल के दुर्घटना के ऐसी ही थी। इस बार दिन का समय था और मैं कलकत्ता से विशाखापट्नम जा रहा था। बोर्डिंग पास ले कर जब प्लेन में बैठा तो एकदम कल्पना नहीं की थी की आज नहीं जा पाऊंगा। मेरी सीट बाये तरफ था आपात द्वार के पीछे वाले लाइन में । प्लेन चल पड़ी। अभी उड़ने वाली ही था की अचानक जहाज की गति धीमी हो गयी जैसे तेज़ ब्रेक लगाया गया हो। जहाज ऊपर उठते उठते रह गया। बाये साइड से धुँआ निकलने लगा। ईंजन में आग लग गई थी। किसी घोषणा का जरूरत नहीं थी पर घोषणा हुई अपने सीट पर बैठे रहे। लोग तो देख ही रहे थे। चीख पुकार भी मचने लगी। मैं आग धुआँ देख पा रहा था क्योंकि यह मेरे तरफ लगा था। तभी घोषणा हुई अपने शू चप्पल खोल कर दाए तरफ वाले च्युट (बैलून की तरह वाली सीढ़ी ) से उतरें । अब अफरा तफरी में मैंने महिलाओं और बच्चों को पहले जाने दिया। कुछ लोग ऊपर से अपना हैंड लगैज भी उतारने लगे थे। बहुत मुश्किल से एयर होस्टेस उन्हें मना कर पा रही थी। फिर घोषणा हुयी पहले अपना जान बचाये , सामान फिर आपको मिल जायेगा। हम भी करीब करीब सबसे बाद च्युट से फिसल कर नीचे उतर पड़ा। तब जाना फ्लाइट में शू लेश वाले जूते नहीं पहनना चाहिए। उतारने में समय लगता है। आपात स्थिति से निपटने का पूरा इंतज़ाम इतनी देर में ही हो गया था। हमें जल्द से जल्द जहाज से दूर बहुत दूर चले जाने को कहा गया। मैं तो दौड़ पड़ा पर एक आदमी के लिए एम्बुलेंस की जरूरत पड़ ही गयी। वह जल्दबाजी में अपाद द्वार को खोल जहाज के डैने पर से कूद गया था और उसकी टांग टूट गयी थी। बाद में मेरे बॉस ने कहा की हो सकता है बचने वाला वो ही अकेला आदमी होता। भगवान की कृपा से और कभी ऐसी यात्रा नहीं की।
मै डराना नहीं चाहता। ठोकर खाने के बाद क्या लोग चलना छोड़ दे ? दुर्घटना तो होती है क्या गाड़िया , ट्रेने या जहाज चलने बंद हो जाते है ? चलते रहे , चलाते रहे , उड़ते रहे , शुभ यात्रा की कामना के साथ आपका मित्र। अगले ब्लॉग तक इंतज़ार करें।
U r good in description
ReplyDeleteI remember the second incident well. Although I was quite young then and I don't think I realised how dangerous it was. Thank God, all was safe in the end.
ReplyDeletethanks Sanu
ReplyDelete