मैंने सोचा था ग्रेगोरियन कैलेंडर के बाद एक ब्लॉग अपने देश के हिंदी केलिन्डर पर लिखूंगा पर 2023 में कितनों की नौकरी गई का एक समाचार टीवी पर देख इस समस्या पर एक ब्लॉग पहले लिख दू ऐसा सोच कर प्रस्तुत है यह ब्लॉग !
ARIFICIAL INTELLIGENCE या AI यानि कृत्रिम बुद्धिमता आज एक BUZZ WORD या चर्चित शब्द है। पर मैंने १९५८-६० में एक कहानी पढ़ी थी जिसका विषय यही था , यदि मशीन मनुष्य के समान बुद्धि वाला ही जाय तो क्या होगा ? आईये मैं वही कहानी अपने स्मृति से और कुछ मसाले लगा कर सुनाने की कोशिश करता हूँ । याद रहे इन्हीं स्मृतियों या memory को चिप में बंद कर ही AI का निर्माण किया गया है।
अब कहानी :
एक वैज्ञानिक जिनका नाम विजय है एक छोटे शहर रामगढ में रहता है। असली नाम या जगह बताने का आजकल फैशन नहीं है अतः अमिताभ बच्चन का सिनेमाई नाम अपने हीरो को दे रहा हूँ। वह आलसी किस्म का मनुष्य है और अपने काम आसान करने के लिए मशीन बनाता रहता है जैसे मोटर में ब्रश लगा कर बर्तन धो लेना , टाइमर लगा कर हीटर पर खिचड़ी पका लेना वैगेरह। अब उसे ऑफिस जाने के लिए रोज़ दाढ़ी बनानी पड़ती थी अन्यथा बास की डांट पड़ जाती। उसका काम ग्राहकों से मिलने का जो था। अब हजामत बनाने कि यह काम उसे नागवार गुजरता था । उसने अपने प्रयोगशाला में एक automatic shaving machine बनाने का निश्चय किया। हर सप्ताहांत मेहनत करने लगा और कुछ महीने बाद उसे आंशिक सफलता मिली जब एक बटन दबाने पर पहले ब्रश पर क्रीम लगता और फिर ब्रश उसके चेहरे पर साबुन लगता और कुछ समय बाद एक अस्तुरा उसकी दाढ़ी बना देता। उसने मशीन में रोज़ कुछ सुधार करता रहता और धीरे धीरे उसका मशीन में ब्रश करने का सही समय और चेहरे का रूप रेखा अनुसार अस्तुरा दाढ़ी बना देता बिना काटे । जाड़ा में पानी भी आटोमेटिक गर्म होने लगा। विजय ने फिर सोचा बटन भी क्यों दबाया जाय ? क्यों न हम इसे उसी तरह बोले जैसे नाई को बोलते है। कुछ दिनों बाद उसे सिर्फ बोलना पड़ता था मेरी दाढ़ी बनाओ और मशीन अपने आप दाढ़ी बनाने लगता। इस तरह करते करते मशीन कुर्शी पर बैठते ही उसकी दाढ़ी बना देता। एक दिन उसके बाल काफी बड़े थे और उस दिन मशीन ने दाढ़ी के साथ उसके बाल भी मुंड डाले। यह दिन था की मशीन खुद सोचने लगा था ।
विजय अपने अविष्कार पर काफी खुश था। वह अब मशीन से अपनी हर बात फीलिंग्स भी शेयर करने लगा। मशीन उसके दिल दिमाग की बातें भी समझनें लगा और जब प्यार में नाकाम विजय आत्महत्या के बारे में सोच रहा था अस्तुरा अपने आप उसके गले की तरफ बढ़ने लगा। विजय को अहसास हो गया क्या होने वाला है और वह किसी तरह कमरे से भाग कर और बाहर से बंद कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा। अगले दिन बिजली को काट कर रूम में गया और मशीन को तोड़ डाला। मेरी बिल्ली और मुझ हीं से म्याऊँ
स्वचालन और AI
अपने इंजीनियरिंग की पढाई में पढ़ा था FEEDBACK कण्ट्रोल के बारे में जो ERROR को फिर से सिस्टम में डाल कर सुधार कर देते थे। फिर आया ADOPTIVE CONTROL जिसमे सिस्टम पहले किये परिवर्तन को याद रख लेते वैसे ही जैसे हम रोजमर्रा के जीवन में रास्ते के गड्ढे से ले कर कहाँ सब्जी सस्ती मिलेगी जैसी कई बातें याद रख लेते है। यानि थोड़ी थोड़ी कृत्रिम होशियारी बहुत सालों से हमारी जिंदगी में है। हम हर कदम सोच सोच कर नहीं रखते कुछ अपने आप भी होता है, जो पिछले अनुभव पर आधारित होता है। गाड़ी चलाते वक़्त कई निर्णय हम अपने अवचेतन मस्तिष्क से लेते है और बहुत ही कम समय में जैसे कोई बच्चा गाड़ी के सामने आया और माइक्रोसैकेण्ड में ब्रेक पर सिर्फ पैर ही नहीं गया कितना जोर (force) लगाना है वह भी दिमाग तुरंत गणना कर लेता है। किसी सही प्रतिक्रिया में मनुष्यों द्वारा लगने वाले इस समय को जब हम मशीनों में प्राप्त करने लगते है तो जन्म होता है आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का। ऐसी ही अवस्था में बनता है चालक विहीन या AI कार !
विकिपीडिया से आभार सहित
आज के युग में हम मशीनों के कृत्रिम होशियारी का रोज़ इस्तेमाल करते है।जब मैं यह ब्लॉग लिखता हूँ तो सबसे पहले एक रोमन लिपि से देवनागरी लिपि के कनवर्टर का उपयोग करता हूँ और यह कनवर्टर मेरी हलकी फुलकी गलतियों को अपने आप सही भी कर देता है और auto correct की १०-१५% गलतियां को छोड़ दे तो यह बहुत बड़ी मदद भी है। कोई भी प्रश्न मन में आये हम अब किताबों , शब्दकोष , विश्वकोश नहीं देखते सिर्फ गूगल करते है। आजकल जब हम FB के किसी मैसेज का जवाब देते है तब हमें जवाब के सुझाव मिल जाते है। यानि किसी ने मैसेज को पढ़ा समझा है और फिर जवाब का सुझाव दिया है। अब कैमरा में भी AI होता है।
AI के दुष्प्रभाव
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI ) तब तक ठीक है जब तक यह विजय के ऑटोमैटिक अस्तुरे की तरह आपका गला काटने की कोशश न करे। लेकिन दुर्भाग्य से वह समय आ गया है। डीप फेक और साहित्यिक चोरी जैसी बातें तो सुन ही रहे थे जो बात ज्यादा चिंताजनक है वो है AI के कारण लोगों को नौकरी चला जाना। गूगल करीब तीस हज़ार लोगों को निकाल रहा है अपना देशी PAYTM भी 1000 लोगों को निकाल रहा है। अमेज़न भी हज़ारों को निकाल रहा है खास कर ALEXA के आवाज़ वाले सेक्शन से । AI तो आवाज़ भी कॉपी कर लेता है । अब बताइये कोई अमिताभ बच्चन साहब की आवाज़ और भिडियो के साथ कोई AD बना दे बिना उनके परमिशन के। इसके लिए उनके ही फिल्म या और KBC के clips से AI को train करना है।
कृत्रिम बुद्धि का भयानक राजनैतिक इस्तेमाल संभव है। डीप फेक न्यूज़ में असली नकली का फ़र्क़ करना मुश्किल है। एक फेक न्यूज़ में यूक्रेन के ज़ेलेन्स्की को सेना को सरेंडर करने को कहता दिखाया गया , पुतिन को सेना को आक्रमण करने को कहते दिखाया गया और बंगला देश के चुनाव को प्रभावित करने के लिए विरोधी लीडर को हमास को नज़र अंदाज़ करने को कहते दिखाया गया। ऐसे फेक AI से बनाये समाचार को पहचानना ही मुश्किल है तो इसे कैसे नियंत्रित कर सकेंगे ?
जिनकी नौकरी जा रही है उनका काम AI करेगा। खैर मशीनों ओर मनुष्यों के बीच होने वाली ये प्रतियोगिता हम दिलीप कुमार कि फिल्म "नया दौर" से ही देखते आ रहे हैं और मनुष्य अपने को बेहतर साबित करता आया है। ऐसे आज कि खबर है कि AI कि मदद से एंटीबायोटिक रेसिस्टैन्सी कि दवा खोजी गई है !
बहुत सारे लोग GENERATIVE AI के विरुद्ध है क्यों ? किसी AI सिस्टम जैसे CHATGPT को प्रशिक्षित करने के लिए लोगों के रचनाओं को पढ़ना पड़ेगा और AI कुछ ऐसा करेगा तांकि साहित्यिक चोरी (plagarism) पकड़ी न जाय । US की टाईम्स मैगजीन अभी ऐसे ही किए plagiarism के विरुद्ध मुकदमा लड़ रहा है। AI को नियंत्रित करने के लिए अभी कुछ ही देश ने कानून बनाये है जिसमे भारत भी एक है। पर अभी कई अवरोध है कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बिना किसी हानि के उपयोग में लाने के लिए। आगे शायद AI ही नई नौकरियां या धंधे पैदा करे।
Nice story
ReplyDeleteधन्यवाद , अमिताभ
ReplyDeleteScary possibilities of AI nicely explained in simple words
ReplyDeleteJust like the science behind the atom bomb has many uses that can benefit us, AI too has both sides to it. Infact like anything, any technology can be both destructive or beneficial. All depends ultimately on the human brain using that tech. Let's not fear. Let's learn how to use it well.
ReplyDeleteindeed
ReplyDeleteब्लॉग के अंतिम लाईन में मैंने भी उम्मीद जताई है कि AI शायद नई नौकरियों का कारण बने। अमिताभ (लेखक)
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