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नया साल मुबारक हो ! यह जुमला कल सबकी जुबान पे था। व्हाटअप और फेसबुक के हर मैसेज पर यही जुमला। पर किस कैलेंडर से हम आज कह रहे होते है happy new year ? ग्रेगोरियन कैलेंडर ! यह कैलेंडर दुनिया भर में चलता है और कुछ मुल्कों (जैसे नेपाल ) को छोड़ कर यह हर सरकारों का आधिकारिक कैलेंडर होता आया है। जूलियस सीजर ने जिस कैलेंडर को मान्यता दे रखी थी उसे जूलियन कैलेंडर कहा जाता था। ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इस्तेमाल किया जाने वाला कैलेंडर है। यह अक्टूबर 1582 में पोप ग्रेगरी XIII द्वारा जारी किए गए पोप "बुल इंटर ग्रेविसिमस" के बाद प्रभावी हुआ, जिसने इसे जूलियन कैलेंडर के संशोधन और प्रतिस्थापन के रूप में पेश किया। पर हाल में पता चला रूस , यूक्रेन जैसे कुछ देश अब भी जूलियन कैलेंडर के हिसाब से ही क्रिसमस मानते आ रहे है यानि १० जनवरी को। कई वर्षो पूर्व १९८७-९० के बीच हमने कंप्यूटर पर BASIC प्रोगामिंग सीखा था। और उस पर एन्कक्लोपीडिआ से पढ़ पढ़ कर एक ऐसा कैलेंडर बनाया जिसमे साल एंटर करने से पूरे साल का कैलेंडर मॉनिटर पर दिखता था। BC के लिए माइनस लगाना पड़ता था। तब ही पता चला की जूलियन कैलेंडर भी धरती के सूर्य की की जाने वाली परिक्रमा पर ही बेस्ड था और लीप ईयर भी होते थे पर सैकड़ो सालों के बाद ये कैलेंडर ACCURATE नहीं रहा और विषुव (EQUINOX ) सूर्य के स्थिति से मेल नहीं खा रहा। आये देखे ऐसा क्यों जरूरी हुआ।
1582 अक्टूबर के कैलेंडर में 4 अक्टूबर के बाद आता है 15 अक्टूबर। यानि १० दिन गायब।
मुख्य परिवर्तन LEAP वर्षों को अलग-अलग करना था ताकि औसत कैलेंडर वर्ष को 365.2425 दिन लंबा बनाया जा सके, जो कि 365.2422-दिवसीय 'उष्णकटिबंधीय' या 'सौर' वर्ष का अधिक करीब से अनुमान लगाता है जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा द्वारा निर्धारित होता है। जूलियन कलैण्डर में औसत वर्ष 365.25 यानि तीन वर्ष ३६५ दिन का और एक ३६६ दिन का औसत। जिसे कारण १०० वर्षों में 0.78 दिन यानि करीब एक दिन का अंतर आ जाता इसके लिए हर १०० वां वर्ष लीप वर्ष नहीं माना गया फिर भी कुछ अंतर रह गया यानि 0.78-1=-0.22 दिन की क्षतिपूर्ति के लिए हर ४०० वां वर्ष को लीप ईयर इस प्रकार ४०० वर्ष का औसत निकले तो वो आएगा 365.2425 दिन। यानि जहां १७००,१८०० या १९०० लीप ईयर नहीं था, १६०० , २००० लीप ईयर था। पहले लीप ईयर में फरवरी में २९ दिन के वजाय २४ फरवरी दो दिन होता था। है न INTERESTING बात।
हमारे देश में कुछ अन्य कैलेंडर भी चलते है। विक्रम सम्वत , शक संवत उनमे प्रमुख है। शक संवत आधिकारिक कैलेंडर भी है। नेपाल में विक्रम सम्वत को संशोधित कर जो कैलेंडर प्रचलित है उसे गते कहते है। शक सम्वत कुषाण वंश के कनिष्क द्वारा 78 AD (CE ) में चलाया माना nnजाता है क्योंकि कुषाण वंश विदेशी शक जाति या वंश के थे इसलिए इसे शक संवत कहते है , ग्रेगोरियन वर्ष से करीब ७८ घटाने पर हमे करीब करीब शक सम्वत मिलता। वही विक्रम सम्वत ५७ BC (BCE ) में राजा विक्रमादित्य द्वारा चलाया माना जाता है इस लिए ग्रेगोरियन वर्ष में ५७ जोड़ने पर हमें विक्रम सम्वत मिलता है।चन्द्रगुप्त - विक्रमादित्य गुप्त वंश के प्रतापी राजा थे और उन्होंने हूणों को हारने पर विक्रम सम्वत चलाया ऐसा मानते तो है पर गुप्ता वंश ४थी और पांचवी शताब्दी में उज्जैन से शाषन करते थे तब ५७ BC में उन्होंने यह कैलेंडर कैसे चलाया इस पर रिसर्च बनता है।
विक्रम संवत एक ऐसा कैलेंडर है जिसके महीने चन्द्रमा के कलाओं पर आधारित है पर वर्ष को सूर्य परिक्रमा पर भी आधारित होता है। अब क्योंकि चन्द्रमा 29.5 दिनों में एक चक्कर लगता है। १२ महीने में सिर्फ ३५४ दिन होते है यानि अंग्रेजी वर्ष से करीब ११ दिन कम। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए हर तीन साल पर एक अधिक मास जोड़ा जाता है। हमारा नया साल या तो वसंत - जैसे होली में या शरद (autumn ) ऋतू जैसे दीपावली में शुरू होता है जो उमंग का और फसलों के पकने का काल होता है। इस पर हमारे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की यह कविता बहुत कुछ कह जाती है।
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
–राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर
You still have very sharp memory, hats off sir
ReplyDeletethank you !
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