अगला ब्लॉग पटना में घूमक्कड़ी?
बहुत दिनों से इच्छा थी की वन्दे भारत एक्सप्रेस ट्रेन से यात्रा करूँ। जून 2023 में आनंद विहार टर्मिनल से हरिद्वार का टिकट भी ले लिया था पर बाद में टैक्सी ले कर जाने का प्रोग्राम बना और टिकट कैंसिल करना पड़ा। पर पिछले दिनों (22-11-2023) रांची से पटना और पटना से रांची वन्दे भारत के चेयर कार से यात्रा करने का अवसर मिला। छठ और दिवाली के आस पास किसी ट्रेन में जगह नहीं मिली। तब वन्दे भारत में भी कोशिश की थी। छठ के बाद पटना के लिए वन्दे भारत से जाने का निर्णय किया और टिकट भी ले लिया। बहुत सी अपेक्षाएं थी और रांची पटना की यात्रा से मै थोड़ा निराश हो गया। सबसे पहले हमारी सीट पर पहले से यात्री बैठे थे जब तक वे उठते भीड़ बढ़ती गयी और मुझे सामान ऊपर रखने के लिए जितनी जगह और सुकून चाहिए वह चला गया । मैं सीट के नीचे ही सामान रख दू ऐसा सोच एक सूटकेस सीट के नीचे रख भी दिया। दूसरे सूटकेस को ऊपर रखने में सीट से उठने वाले यात्री ने सहायता कर दी। भारतियों की औसत लम्बाई साढ़े पांच फ़ीट होती है पर सभी यंत्र (जिसमे ये लगेज रेक भी है छह फूटे के लिए डिज़ाइन किये जाते है पता नहीं क्यूँ ? सीट के सामने खुलने वाले टेबल भी शताब्दी से छोटे लगे। पहले लैपटॉप आराम से रख कर काम कर सकते थे। पैर फ़ैलाने की जगह भी कम लगी।
खैर ज्यादातर यात्री मेरी तरह त्यौहार के बाद यात्रा कर रहे थे। भीड़ में बहुत सारे बच्चे थे जो त्यौहार में हुई थकन और परेशानी के बाद लौट रहे थे और ज्यादातर irritated बच्चे थे। कुछ रो रहे थे कुछ अपने माँ - बाप को चैन से बैठने भी नहीं दे रहे थे। हमारे सीट को पीछे बैठा बच्चा हिला रहा था। सामने बैठे बच्चे ने पानी गिरा दिया और मेरा हैंड बैग जो मैंने नीचे रख दिया था वह भींग गया। हल्ला गुल्ला की इस स्थिति में आराम से बैठ - ऊंघ नहीं पा रहे थे। हमारा सीट भी उल्टा था, यानि ट्रेन हमारे बैठने के दिशा के विपरीत दिशा में चल रही थी। यानि यात्रा कठिन थी। स्नैक्स में एक चोको पाई , एक समोसा , नमकीन और इंस्टेंट चाय था। स्नैक्स रांची राजधानी से बेहतर था। रात का समय उल्टी दिशा में चल रही गाड़ी , जिसकी गति कभी तेज कभी धीमे हो रही थी उस पर घुमावदार ऊँचा नीचा रास्ता। ऐसे में स्नैक्स में दिया समोसा खा कर मेरी पत्नी की तबियत ख़राब होने लगी और उन्होंने डिनर को मना कर दिया। मैंने डिनर खाया। डिनर में दिया खाने का स्वाद और मात्रा अच्छी थी। रोटी सॉफ्ट थी , दाल गाढ़ी था और पनीर सॉफ्ट। मीठे में एक बालू शाही था। राजधानी में मिलने वाले डिनर से बेहतर था यह लेकिन आइस क्रीम नहीं था क्योंकि बालूशाही जो था। लेकिन यहीं ठीक है कई लोग आइस क्रीम गाला ख़राब होने के अन्देशे से नहीं लेते ।
वापसी की यात्रा अच्छी थी। पहले सीट सिर्फ गया तक उल्टा था और गया के बाद ट्रेन की दिशा और बैठने की दिशा सही था। बच्चे कम थे और शांत थे। हम भी थके थे जो झपकने में कोई बाधा नहीं थी। सिर्फ जो तकलीफ हुई वह था ऊपर के रैक में सामान रखने की जगह । समान जगह बहुत कम थी और मेरे आने तक पूरा भर गया था। कुली ने किसी तरह एडजस्ट किया।
Old Shatabdi Chair car (lenght 25 m) , vandebharat Chair car length 23 m) , New Shatabdi Chair Car Lenght=25 m
मै खुद नहीं कर पाता। गया आने पर ऊपर जगह भी बन गयी और खाली भी रह गयी। दो बातें याद हो आई। जब स्लीपर शुरू हुआ था तब एक एन्क्लोज़र प्रवेश के बाद बड़े सामान रखने को हुआ करता था। हमने कभी प्रयोग नहीं किया लेकिन जब किसी का बहुत बड़ा सामान बर्थ के नीचे नहीं अंटता तब शायद ऐसी जगह काम में आता होगा पर बिना किसी सिक्योरिटी के कौन ऐसे सामान रखेंगा। धीरे धीरे ये व्यवस्था ख़त्म हो गया। शायद अब वन्दे भारत / शताब्दी जैसे ट्रेन में यह एक उपयोगी व्यवस्था हो यदि लगेज टैग देने वाला किसी आदमी को रेलवे वहां रक्खे। पहले आने वाले यात्री भी सामान रखते वक़्त आने वाले यात्रियों के लिए जगह नहीं छोड़ते।
दूसरी बात जो याद हो आई वह था लम्बी दूरी के गाड़ियों में distance restriction ! शायद हम कम दूरी जाने वालों को discourage कर सके तांकि दूर जाने वाले आराम से जा सकें।
सबसे पहले दो बिस्कुट के साथ instant चाय दी गयी। Unibic का बहुत स्वदिस्ट बिस्कुट था। गया के बाद नास्ता दिया गया जिसमे था दो ब्रेड स्लाइस मक्खन , जैम , ऑमलेट , फ्रेंच फ्राइज, उबला गाजर , मटर , कप केक। मात्रा और स्वाद में सभी ठीक था। लेकिन दुबारा चाय का इंतज़ार करते रह गए। क्योंकि यात्रा दिन में हुई हमने बाहर के दृश्यों का मज़ा भी लिया। हरे भरे पहाड़, घने जंगल और पांच सुरंग। जहां एग्जीक्यूटिव क्लास में घूमने वाली कुर्सी थी चेयर कार में पैरों के पास जगह कम थी एकदम हवाई जहाज़ के इकॉनमी क्लास की तरह। स्टेशन आने पर तीन भाषाओँ में घोषणा होती थी अंग्रेजी , हिंदी और बांग्ला। Display board हमे सीट से नहीं दिख रहे थे , शयद उसे डब्बे के बीच में लटकने चाहिए। CCTV कैमरा भी था। खाना मिला या नहीं के लिए भी घोषणा कर पूछा ज रहा था। WIFI था जिसमे इंटरनेट नहीं था पर लोकल मनोरंजन था - मूवी , टेलीविज़न और गाने। लेकिन काफी कम था यह सब। एयर लाइन की तरह करना चाहिए जिसजे यात्रियों को समय बिताना आसान हो जाये। ट्रेन की गति बहुत नहीं थी कहीं कही १०० KMPH तक गति जाती थी। अक्सर ७० - ८० KMPH की गति हे रही ट्रेन की।
पटना में मैंने क्या किया और कहाँ गए यह सब अगले ब्लॉग में।
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