मेरी ज़्यदातर यात्रा किसी न किसी बहाने से ही हुयी है और ऐसा ही एक मौका मिला जब मैंने इनसीटीटूशन ऑफ़ इंजिनीयरस के ३३ वें कांग्रेस के लिए एक पेपर लिखा और भेजा। ३३ वां कांग्रेस था २०१८ के दिसंबर महीने में उदयपुर में। पिछली बार यानि ३२ वां कांग्रेस चेन्नई में था। पेपर तब भी लिख भेजा था पर देखा दिखाया शहर था जाने का मन नहीं किया लेकिन उदयपुर पहली बार जाना था और यह था भी एक दर्शनीय और पर्यटन के हिसाब से बहुत अव्वल शहर था। मै क्या जनता था की ये ट्रिप कोरोना के पहले की अंतिम ट्रिप होगी। होटल और कांफ्रेंस इनसीटीटूशन ऑफ़ इंजिनीयर्स ने शहर से करीब २० km दूर रखा था पर पैसे मुझे ही देने थे। मैंने सोचा पत्नी को भी साथ ले चले एक दो दिन एक्स्ट्रा रुक कर घूम भी लेंगे। अपने हिसाब के होटल में ही रूक लेंगे। बिटिया भी अपने दोनों बच्चों के साथ जाने को तैयार हो गई । मैंने अपने भतीजे से भी पूछा । क्योंकि कांफ्रेंस शनिवार और रविवार को था वह भी तैयार हो गया। शुक्रवार से सोमवार तक का टूर था और क्रिसमस का समय था इसलिए सिर्फ एक दिन की छुट्टी लेनी पड़ती और इसलिए वह भी तैयार हो गया। इस तरह हमारी छह लोगों का आइडियल ग्रुप बन गया। एकदम एक SUV में फिट होने वाला। इस यात्रा का विवरण मैं २-३ भाग में ही लिख पाउँगा
उदयपुर को City of Lakes भी कहा जाता है (Pichola lake : photo Curtsey Wikipedia )
अब सबसे पहले आने जाने का टिकट लेना था और होटल भी ठीक करना था। दिल्ली से ही जाना था , और कई ट्रेन जाती है निजामुद्दीन स्टेशन से। मैंने गुरुवार २० दिसंबर २०१८ की पांच लोगों के लिए टिकट ले ली। भतीजे अंकुर ने गुरुग्राम के पास के स्टेशन से टिकट ली। मेक माय ट्रिप से होटल पारसमहल में दो कमरे चार वयस्क और दो बच्चे के लिए बुक कर लिए। यह होटल स्टेशन के करीब ही था।
Paras Mahal Hotel Lawn
20 दिसंबर 2018 , गुरुवार
मेरी ट्रेन थी मेवाड़ एक्सप्रेस और यह हज़रत निजाम्मुद्दीन से साढ़े छ बजे शाम को चलकर सुबह साढ़े सात बजे उदयपुर सिटी स्टेशन पहुँचती थी । हमारे ट्रेन में कुछ लड़किया जो शायद छात्र थी भी हमारे बर्थ के पास के बर्थ पर थी। वे ताश खेल रहीं थीं और अच्छा खासा शोर कर रहीं थी। मना करने पर कुछ ही समय शोर कम होता। बहुत देर के बाद हम अपना बर्थ खोल पाए फिर भी काफी देर से ही सो पाए। उनका शोर बंद होने पर भी फुसफुसाहट और फिर एक ब एक हंसी हमे सोने नहीं दे रहा था। सुबह हम उदयपुर पहुंच गए। अंकुर की ट्रेन चेतक एक्सप्रेस बाद में आई आठ बजे। हम लोगों ने उससे बात की और स्टेशन के बाहर आ कर उसके लिए प्रतीक्षा करने लगे। हमने गूगल में देख लिया था की हमारा होटल सिर्फ एक डेढ़ km दूर था। अंकुर के आने के बाद दो ऑटो ले कर हम होटल पहुंच गए। हमने पहले से घूमने के लिए एक गाड़ी एक ट्रेवल एजेंट से बुक कर ली थी। लेकिन होटल पहुंच कर फ़ोन किया तब पता चला गाड़ी नहीं आएगी , पिछले ग्राहक ने फ्री नहीं किया था पर ट्रेवल एजेंट ने एक दूसरा नंबर दिया किसी लोकल ड्राइवर का । मैंने फ़ोन किया और रेट और टाइम तय कर लिया। कुछ पैसे भी ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिए।
21 दिसंबर 2018, शुक्रवार
In 33rd Engineering Congress, at Anant Resorts Udaipur
आज ही मेरा इंजीनियरिंग कांग्रेस में पेपर पढ़ने का दिन था इस लिए यह प्रोग्राम बना की आज मैं होटल ड्राप हो कर गाड़ी वापस भेज दूंगा और बाकी की पार्टी नाथद्वारा घूम आएगी। काफी इंतज़ार के बाद गाड़ी आई तब पता चला कांफ्रेंस का वेन्यू होटल अनंत, कोडियट रोड हमारे होटल से काफी दूर है। दूरी तो सिर्फ १०-११ km था पर रास्ते तंग और ख़राब थे। वहां पहुंचने में करीब ४० मिनट लग गया । होटल गार्डस ने मेरी गाड़ी अंदर नहीं जाने दी और होटल के ही एक गाड़ी ने हमें वेन्यू तक पंहुचा दिया। मैं अपने पहचान वालों को खोज रहा था पर लंच के समय ही रांची और मेकॉन के लोग मिले। वहां नाथद्वारा वाली पार्टी २ घंटे देर से ही निकल सकी। करीब छह बजे गाड़ी आने की खबर हुई और मैं होटल के गाड़ी का इंतज़ार करने लगा जिसमे भी करीब २० मिनट निकल गए। होटल पहुंच कर हमने गरमा गर्म चाय काफी बनाई और गप्पों में मशगूल हो गए। मेरे बिना सभी लोग चले तो गए नाथद्वारा पर फोटो एक नहीं खींची। अगले दिन भी इंस्टीटूशन ऑफ़ इंजिनीयर्स का कांफ्रेंस था लेकिन मैंने यह निर्णय लिया की मैं वहां नहीं जा कर कुम्भलगढ़ घूमने जाऊंगा।
22 दिसंबर 2018, शनिवार कुम्भलगढ़ किला
हमारे पास गाड़ी थी और ड्राइवर का नंबर भी पर ड्राइवर के पास देर करने के लाखों बहाने होते है। आज गाड़ी करीब डेढ़ घंटे लेट आई। प्रतीक्षा के समय को हमने होटल के खूबसूरत लॉन में स्थित मूर्तियों के फोटो लेकर बिताये । होटल बहुत आरामदेह और खुला खुला है और हरा भरा लॉन सोने पर सुहागा था। लॉन का उपयोग शादी समारोहों के लिए प्रयोग में लाये जाते थे और पिछले शाम को ही शादी की पार्टी थी लेकिन कोई disturbance हमे नहीं हुआ।
कुम्भलगढ़ दूर से देखने पर
आज का सफर करीब ९० km था और तीन घंटे लगने वाले थे और अभी चलने पर भी लंच टाइम तक ही पहुंचने वाले थे। खैर हम लोग चल पड़े । रास्ते में कई अच्छे होटल और होमस्टे दिखे। पहाड़ी रास्ता और खुबसूरत दृश्य , काश हम इन होटलों में से किसी में रुक सकते। हम कुम्भलगढ़ फोर्ट के तरफ चल पड़े। हमलोग किले को ढूंढ रहे थे पर वह दिख नहीं रहा। उस समय यह एक रक्षा रणनीति रहती होगी। एक ढाबे में थोड़ा नाश्ता का कर हम चल पड़े। कुम्भल गढ़ में पहला प्रवेश द्वार अरेट पोल है, उसके बाद मुख्य है हल्लाबोल पोल, हनुमान पोल, राम पोल और विजय पोल। हनुमान पोल महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हनुमान की एक छवि स्थापित है जिसे राणा कुंभा द्वारा मांडवपुर से लाया गया था। पहले दो बड़े प्रवेश द्वार अरेट पोल और हल्लाबोल पोल के बाद गाड़ी को पार्किंग में रख एक गाइड ठीक किया और फोर्ट में जाने का टिकट भी खरीद लिए। गाइड ने बताया की इस किले में कुल नौ पोल या दरवाजे है। कुम्भलगढ़ के अंदर जाते ही बाई तरफ एक मंदिर था किले के परिसर में हनुमान पोल में स्थित, वेदी मंदिर कुंभलगढ़ में घूमने के लिए सबसे प्रतिष्ठित स्थानों में से एक है। यह देवी वेदी को समर्पित है और इसकी अद्वितीय अष्टकोणीय आकृति है वह प्रणाम कर हम गाइड के बताये रास्ते पर चल पड़े। ऊँची ऊँची सीढियाँ चढ़नी थी ।
कुम्भलगढ़ का 38 km लम्बा दीवार , हनुमान पोल
रास्ते में गाइड ने इस किले के निर्माण की कहानी बताई। राणा कुम्भा ने मेवाड़ में १५वीं सताब्दी में कुल ३२ किले बनवाये और कुम्भलगढ़ उनका एक border outpost था। इस फोर्ट के लिए अरावली की पहाड़िया चुनी गयी क्योंकि इस दुर्गम जंगल से घिरे स्थान तक दुश्मन पहुँच नहीं सकते । कहानी है की निर्माण के समय दीवार सुबह बनाओ रात में गिर जाती थी। यहाँ तपस्या करने वाले एक भैरव बाबा ने बताया यहाँ देवी का स्थान है और स्वेच्छा से नरबलि के बाद ही किला बन पायेगा । उन्होंने अपने को स्वेच्छा बलि के लिए प्रस्तुत भी किया। वे चलते गए और कहाँ कहाँ दरवज़ा या पोल बनेगा बताते गए। एक जगह उनका सर धड़ से अलग किया गया और वह बना भैरव पोल। गाइड ने हमें थकते देख बताया की अभी काफी ऊंचाई चढ़नी थी। यहाँ पर उनके बलि की जगह पर एक मंदिर बना है । गाइड ने बताया की सर कटने पर भी करीब ७०० फ़ीट ऊपर तक उनका धड़ चलता चला गया और रहने का खंड वही बना और वह एक भैरव मंदिर भी है । सबसे ऊँची (3700 above MSL ) जगह पर जो महल है उसे बादल महल कहते है क्योंकि बरसात में यह जगह बादलों के ऊपर होती है। हर लेवल पर कुछ न कुछ देखने को मिला कुछ। गाइड ने बताया की फोर्ट के बाहरी दीवार ३८ km लम्बी है और चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है। इस दीवार की चौड़ाई १५ m है। इस पर 4 घुड़सवार एक साथ जा सकते थे। यह दीवार UNESCO विश्व विरासत भी है। ऐसे राजगीर, बिहार में स्तिथ २६०० वर्ष पुरान सिक्लोपियन दिवार ४५-५० km लम्बीी है। इनकी स्तिथि भी ठीक है लेकिन जाने क्यों इसे भारत का सबसे लम्बा दीवार क्यों नहीं माना गया । शायद यह पूरा बिना किसी टूट के नहीं है इस लिए। बीच बीच में दरवाजो के लिए इसमें खाली जगहें है। कुम्भलगढ़ फोर्ट १५ वीं शताब्दी में राणा कुम्भा ने बनवाया था और इसी किले में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। अंत में नीचे हम लोग किले के अंदर स्थित कुछ दुकानों में गए और कुछ दोहर ख़रीदे।
यह एक अविजित किला है जो कभी किसी के अधीन नहीं आया। गुजरात के अहमद शाह प्रथम ने 1457 में किले पर हमला किया, लेकिन प्रयास व्यर्थ पाया। तब स्थानीय मान्यता थी कि किले में बाणमाता देवता इसकी रक्षा करते थे और इसलिए उन्होंने मंदिर को नष्ट कर दिया। 1458-59 और 1467 में महमूद खिलजी द्वारा और भी प्रयास किए गए, लेकिन वे भी व्यर्थ साबित हुए। जो बात इन आक्रमणकरियों के विरुद्ध गयी वह थे इस फोर्ट तक पहुंचने की कठिनाई। अव्वल तो रास्ता ही नहीं मिलता फिर वो ३८ km लम्बा अजेय दीवार। दीवार के लिए हर थोड़े दूर पर बनाये घुमाव के कारण गोह (monitor lizard) की मदद से भी बड़ी संख्या में ऊपर चढ़ना कठिन था ।
सांभर हिरण
कुम्भलगढ़ जंगल सफारी
किले से लौटने के बाद हमारा मन भरा नहीं था। पता चला यहाँ एक जंगल सफारी भी है और तेंदुआ, भालू , हिरण, लोमड़ी वैगेरह दिख जाते है। खास कर सुबह और शाम के सफारी पर। सभी सफारी सरकारी हिसाब से चलता था। शाम के छह बजे के बाद हमें एक ओपन मारुती सुजुकी जीप दी गयी। पहले के एक किलोमीटर तो रोड ठीक थे पर उसके बाद एक drop gate आया और रोड की स्थिति बदल गयी । रोड उबड़ खाबड़ थी और कही कही ३-४ फ़ीट के गड्ढे थे जिसमे उतरना या चढ़ना था । धीरे धीरे शाम रात में बदल रही थे और ठण्ड भी बढ़ गयी और हमारे कपडे जिसमे गर्मी लग रही थी कम पड़ गए। हम तेंदुए के दिखने के आशंका से डरे हुए भी थे। साथ में एक बंदूकधारी थे इस लिए थोड़े निश्चिन्त भी। तेंदुआ तो दूर कोई लकड़बग्घा भी नहीं दिखा। साथ के गॉर्ड ने बताया वे जानवर नज़दीक होंगे और हमे देख भी रहे होंगे पर सामने नहीं आते । जीप से गिर न पड़े इस डर से हम जीप को रॉड को पकडे थे। बच्चों को बार बार रॉड पकड़ने की वार्निंग देते रहना पड़ता । एक हाथ से रॉड और दूसरे से कैमरा पकड़ना मुश्किल काम था।
जंगल सफारी का प्रवेश जो करीब २ km बाद आया , सफारी खुली जीप
फोटो ठीक ठाक उसी जगह ले पते जहाँ कुछ दिखने पर गाड़ी रोका जाता। फोटो खीचना गाड़ी के मूवमेंट और रौशनी के कमी के कारण मुश्किल था फिर भी हमने बहुत सारे चीतल हिरण, बारह सिंघे, साभार दिखे। तेंदुआ और भालू तो नहीं देख पाए पर करीब १० किलोमीटर की यात्रा दो घंटे में पूरे हुए और हमारा बदन टूट गया जीप के उछल कूद के कारण ।
हम रात में एक ढाबे में जो मिला वही खा कर उदयपुर लौटना चाह रहे थे । पर बच्चे खाने से बहुत खुश नहीं थे पर उन्हें डांट कर चुप कराया गया। मैं बच्चो की नाराज़गी से खुश नहीं था और उनका मूड ठीक करने में लग गया । आखिर उनके पसंद का खाना ढाबे वाला बनाने को राजी हो गया और हम देर से ही सही ख़ुशी खुसी उदयपुर के लिए निकल पड़े। नींद अच्छी आई क्या पता था अगले दिन सिटी पैलेस उतना ENJOY नहीं कर पाएंगे। इसके लिए ब्लॉग के अगले भाग की प्रतीक्षा कीजिये।
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