अवध तिरहुत मेल के बारे में कुछ लिखूं उसके पहले भारत के तब चलने वाले प्राइवेट रेलवे के बारे में कुछ जान लेना उचित होगा। प्राइवेट कंपनी के सिवा कई राजे रजवाड़ों के रेलवे थी या अपनी ट्रैन / सैलून थे। मैं बिहार और बंगाल में चलने वाले कुछ प्राइवेट रेलवे के बारे में बताना चाहूंगा।
पूर्वी भारत के प्राइवेट रेलवे
भारत की सबसे पहली प्राइवेट रेलवे थी देवघर रेलवे। जसीडीह से बैद्यनाथधाम जाने वाली यह 6 km लम्बी लाइन बिना सरकारी मदद या गैरंटी से बनी थी और बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के तीर्थ यात्रियों की भारी भीड़ के कारण अच्छा लाभ भी कमा रही थी। बाबू हीरा चंद्र चटर्जी इंजीनियर इन चार्ज के देख रेख में बनी थी यह रेलवे।
देवघर रेलवे स्टेशन - अब
पूर्वी भारत के अन्य प्राइवेट रेलवे थे
पूर्वी भारत के अन्य प्राइवेट रेलवे थे। बंगाल में चलने वाले दो रेलवे लाइन अत्यंत छोटे २ फ़ीट के गेज वाली लाइन ।
- हावड़ा-अमता लाइट रेलवे, (२ फ़ीट या 610MM NG ), 1897 में शुरू हुई और १९७१ तक बंद हो गयी।
- हावड़ा-शेखल्ला लाइट रेलवे (२ फ़ीट या 610MM NG ), 1897 में शुरू हुई १९७१ में बंद हो गयी।
- बख्तियारपुर-बिहार शरीफ राजगीर लाइट रेलवे 762MM NG , 1902 में शुरू हुई 1962 में भारतीय रेल में विलय और बड़ी लाइन में परिवर्तित।
- आरा-सासाराम लाइट रेलवे, 1911 में शुरू हुई 1914 में विस्तारित हुई और 1978 में ये लाइन बंद कर दी गयी।
- फतुहा -इस्लामपुर लाइट रेलवे, 1922 में शुरू हुई 1986 में भारतीय रेल में विलय और बड़ी लाइन में परिवर्तित।
फतुआ इस्लामपुर लाइट रेलवे - railinfo.com के सौजन्य से
इसमें से फतुआ इस्लामपुर लाइट रेलवे तो तब भी था जब मैं पटना में पढ़ रहा था (1964-64 school, 1965-70 college) और हर बार पटना जाते वक़्त इस छोटी सी ट्रेन खासकर छोटे से स्टीम इंजन को देख मैं हैरान होता था। राजगीर लाइन तब तक ब्रॉड गेज हो चुकी थी और लोकल ट्रेन के अलावा भी कुछ ट्रेन राजगीर से ही खुलती थी।
ये सभी प्राइवेट रेल मार्टिन रेलवे कंपनी द्वारा बनाये गए थे और इनका परिचालन भी वे ही करते थे । मार्टिन रेलवे कंपनी ने ही नेपाल सरकार की रक्सौल - अमलेख गंज नैरो गेज रेलवे लाइन का निर्माण किया था और नेपाल सरकार के लिए उसका परिचालन भी ये ही करते थे।
जैसा मैंने अपने पिछले ब्लॉग में बताया था कविगुरु रविंद्रनाथ के दादा जी श्री द्वारकानाथ टैगोर ने भी वेस्ट बंगाल रेलवे के नाम से एक कंपनी खोली थे और वे रानीगंज तक रेल लाइन बिछाना चाहते थे पर अंग्रेजों ने इसकी अनुमति नहीं दी क्योंकि वे एक देशी (Native) थे।
अब अपने मुख्य विषय यानी बंद हुए प्रसिद्द ट्रेन अवध तिरहुत मेल पर वापस लौटते है । जबकि ब्रिटिश सरकार किसी देशी व्यापारी को रेलवे बनाने या चलाने नहीं दे रही थी लेकिन वे राजे महाराजों को नहीं रोक पायी और भारत में कई देशी रियासतों के अपने रेल लाइन थे। बृहत ब्रिटिश भारत की बात छोड़ भी दे तो भी तिरहूत के दरभंगा महाराज और अवध या रामनगर के नवाबों के रेलवे तो इस ब्लॉग के विषय की ही बातें है। दरभंगा महाराज और अवध के प्रिंस मुहम्मद आकरम हुसैन जब ब्रिटिश राज के सदस्य बने तब उन्होंने अवध क्षेत्र और तिरहुत क्षेत्र के बीच आवागमन को आसान बनाना चाहा।
अवध -तिरहुत रेलवे।
विकिपीडिया के सौजन्य से - काठगोदाम स्टेशन पर अवध तिरहुत रेलवे (AT railway ) की एक ट्रेन 1957
तिरहुत में पहली रेलवे लाइन दरभंगा महल परिसर - नारगोना टर्मिनस (जहां यह स्थान अभी भी परमेश्वर सिंह विश्वविद्यालय द्वारा चिह्नित है) से सकरी में बाजितपुर तक बिछाई गई थी। तिरहूत डिवीजन में सामान्य परिवहन के लिए पहली लाइन के रूप में दरभंगा से समस्तीपुर तक दूसरी लाइन बिछाई गई थी। जहा महल परिसर का रेलवे स्टेशन सिर्फ रॉयल परिवार के लिए ही था और लहेरियासराय स्टेशन सिर्फ अंग्रेजों के लिए था और आम जनता के लिए था हराही या दरभंगा रेलवे स्टेशन।
ऐसे तो इस रेलवे की स्थापना भीषण अकाल के समय 1874 में हुआ जब समस्तीपुर से दरभंगा के बीच अनाज से लदी मालगाड़ी चली थी पर बाद में पैसेंजर ट्रेनें भी चलायी गई और इसे मुजफ्फरपुर , मोतिहारी- बेतिया, सकरी जयनगर, सोनपुर-बहराइच, समस्तीपुर-खगड़िया, नरकटियागंज-बगहा इत्यादि तक बढ़ाया भी गया। तब गंगा नदी पर पुल नहीं थे कई जगह स्टीमर की व्यवस्था की गई और ऐसे घाटो तक रेलवे लाइन भी बिछाई गई जैसे पहलेजा घाट, मोकामा घाट, साहबपुर कमाल , सिमरिया घाट, मुंगेर घाट इत्यादि।
तिरहुत रेलवे के नरगौना टर्मिनल - ETV Bharat के सौजन्य से
तिरहुत रेलवे (तिरहुत राज्य रेलवे) सबसे पहले दरभंगा राज और बाद में प्रांतीय सरकार के स्वामित्व में था। इसके स्वामित्व को बाद में भारत के ब्रिटिश सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया, जिसने इसे 1886 के अंत तक भारतीय राज्य रेलवे के हिस्से के रूप में संचालित किया, 1886 के अंत से 30 जून 1890 तक तिरहुत रेलवे के रूप में और 1 जुलाई 1890 से बंगाल और उत्तर पश्चिमी रेलवे के रूप में। तिरहुत रेलवे ने सुगौली-रक्सौल रेलवे को 1920 के आसपास अवशोषित किया । 1 जनवरी 1943 को अवध और तिरहुत रेलवे को को विलय कर बना अवध -तिरहुत रेलवे । 14 अप्रैल 1952 को, अवध तिरहुत रेलवे को असम रेलवे और बॉम्बे, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे के कानपुर-अछनेरा खंड के साथ मिलाकर पूर्वोत्तर रेलवे बनाया गया, जो अब भी वर्तमान भारतीय रेलवे के 16 क्षेत्रों में से एक है।
इसके पहले फरवरी 1943 में, बंगाल - उत्तर पश्चिम रेलवे (BNW Railway) और रोहिलखण्ड - कुमाऊं रेलवे (R and K railway) को ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया और उन्हें तिरहुत रेलवे, मशरक-थावे एक्सटेंशन रेलवे , लखनऊ -बरेली रेलवे के साथ मिला कर बना अवध-तिरहुत रेलवे। इसका मुख्यालय गोरखपुर में था। ट्रेन नं. 301अप - 302 डाउन कानपुर (अनवरगंज)-सिलीगुड़ी अवध तत्कालीन अवध-तिरहुत मेल (जिसे ए.टी. मेल के नाम से जाना जाता है) इस क्षेत्र की सबसे प्रसिद्ध ट्रेन थी। आज का मेरा ब्लॉग इसी ट्रैन के बारे में है।
अवध तिरहुत मेल
मीटर गेज पर, सबसे लंबी दूरी की ट्रेनों में से एक लखनऊ (LJN) और गुवाहाटी के बीच 1/2 अवध तिरहुत मेल थी। 70 के दशक के अंत तक भी उत्तरी भारत से उत्तर-पूर्व तक कोई ब्रॉड गेज लिंक नहीं था। मीटर गेज की शायद सबसे लंबी दूरी तय करने वाली यही ट्रेन थी। आजादी के पहले बंगाल से उत्तर पुर्व जाने के लिए जिन लाइनों का प्रयोग होता था उनमें से कई पुर्वी पकिस्तान यानि बंगलादेश में चली गई और पुर्वोत्तर जाने वाली बहुत सी ट्रेनों का रूट बदला पर AT mail बंद होने तक अपने original रूट पर ही चली।
'मेल' ट्रेन क्या होती है
तब राजधानी , शताब्दी या वन्दे भारत तो होती नहीं थी , मेल ट्रेन ही सबसे तेज़ और कम स्टॉपेज वाली ट्रेन होती थी। ऐसे स्टीम इंजन के उपयोग के कारण स्टॉपेज लम्बे लम्बे होते - आधा से एक घंटे तक का। पानी - कोयला लेना या इंजन चेंज होने के लिए। इसे मेल इसलिए कहा जाता था क्योकि मेल या डाक इसीसे जाता था। इसमें रेलवे मेल सर्विस की बोगी भी होती थी और अति आवशयक या बिना विलम्ब के पहुचने के लिए RMS बोगी में चिट्ठियां डाल भी सकते थे। और इसलिए अवध तिरहुत मेल एक सबसे महत्वपूर्ण ट्रेन थी। पहले इसे अनवरगंज (कानपूर) से सिलीगुड़ी के लिए चलाया गया और तब ये पूरा रूट ही मीटर गेज था। बाद में इसे लखनऊ से गुवाहाटी तक चलाया गया। लेकिन 1979 के आस पास बरौनी समस्तीपुर बाराबंकी रुट की लाइन मीटर गेज से ब्रॉड गेज हो गयी और बरौनी - मानसी - कटिहार - सिलीगुड़ी लाइन मीटर गेज ही रह गयी तब इस ट्रेन को दो भागों में बाँट दिया गया। लखनऊ से आने पर बरौनी जंक्शन स्टेशन पर मीटरगेज की ट्रेन दूसरे प्लेटफार्म (ज्यादातर सामने वाले प्लेटफार्म) पर प्रतीक्षा रत मिलती। यात्रियों को ब्रॉडगेज से मीटरगेज या मीटरगेज से ब्रोडगेज़ में शिफ्ट करने के लिए पर्याप्त समय मिलता। मेरा इस ट्रेन में चलने का अनुभव थोड़ा ही है - अक्सर बरौनी से बेगूसराय तक (मीटरगेज) । याद नहीं दूरी का कोई प्रतिबंध था या नहीं जो अक्सर मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में तब हुआ करती थी पर भीड़ बहुत होती थी इस ट्रेन में। इस ट्रेन में १९५७ में ही AC डब्बे लगाने की मांग पार्लियामेंट उठाई गयी थी।
अवध तिरहुत मेल की जगह पर अवध -आसाम एक्सप्रेस जा फोटो - RAILINFO के सौजन्य से
१९८५ से इसी ट्रेन की जगह पर अब चलती है 15909 /15910 अवध - आसाम एक्सप्रेस जो लखनऊ से गुवाहाटी तक पूरी तरह ब्रॉडगेज पर चलायी गयी। इसका रूट जलपाईगुड़ी तक पहले वाली थी पर यह गुवाहाटी तक चली। दो साल के भीतर इसे दिल्ली से चलाया जाने लगा। 2003 में इसका पश्चिमी टर्मिनेशन स्टेशन हो गया दिल्ली - सराई - रोहिल्ला और 2006 में इसे राजस्थान से लालगढ़ तक बढ़ा दिया गया । 2014 में नई तिनसुकिया और 2016 में डिब्रूगढ़ तक बढ़ाये जाने के बाद रोज़ 3118 KM दूरी तय करने वाली भारत की सबसे लम्बी दूरी की ट्रेन हो गयी है ।
आज बस इतना ही। कुछ और बातें लेकर फिर हाज़िर होऊंगा तब तक के लिए शुभ कामनाएं।
The longest route of an Indian train is Dibrugarh to Kanyakumari Vivek Express.
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DeleteVivek Express is a weekly train but Awadh Assam Express with route distance of 3118 km has longest route among daily trains, as mentioned in the blog. Amitabh, Author
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