कहां है फुलेरा ? क्या है कहानी ?
नायक अभिषेक शहर में पला बढ़ा है और कभी गा़व का चेहरा भी नहीं देखा है । उसे लाचारी में, जब तक MBA प्रवेश परीक्षा पास न हो जाए, पंचायत सचिव के पद पर बलिया जिला के एक अनजाने से गांव फुलेरा जाना पड़ा । गांव के नजदीक ही है फकौली बाजार । कहानी गांव में उसके अनुभवों और गांव वालों से उसके रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती है ।
फुलैरा गांव और फकौली बाजार नाम स्क्रिप्ट लिखनेवाले चन्दन कुमार ने अवश्य गूगल मैप देख कर चुना होगा। अब देखिये फुलैरा-250101 UP का एक गावं है जो ग़ाज़ियाबाद से करीब 35 km दूर है। एक दूसरा भी फुलैरा जंक्शन है राजस्थान में। फकौली बाजार भी है UP में प्रयाग राज से करीब 125 KM दूर। पर इस दोनों UP के गावों की आपस में दूरी है 540 KM. अब पंचायत सिरीज में इन दोनों जगह के बीच की दूरी है सिर्फ 10 KM यानी जगहें काल्पनिक है और यूट्यूब की दया से अब तो सभी जानते हैं इसकी सूटिंग भोपाल से 55 km दूर स्थित महौरिया गांव में हुई है।
और महौरिया गांव वालें अब टूरिस्टों से खुश-ओ-परेशान है।
उत्तर प्रदेश स्थित फुलेरा और उससे 540 km दूर स्थित फकौली बजार।
मध्यप्रदेश का महोड़िया ग्राम पंचायत ऑफिस जहां शूटिंग की गयी
Season-1 Episode-1 की कहानी कुछ यूं है।
नायक अभिषेक त्रिपाठी शहर छोड़ ग्राम पंचायत सचिव की नौकरी ज्वाइन करने फुलैरा पहुंच चुका है - गैस स्टोव, मोटरसाइकिल सभी ले कर । उसके स्वागत के लिए सहायक विकास और उप प्रधान प्रह्लाद चा चार पेठा मिठाई के साथ इंतजार कर रहे हैं, जिसमें से दो प्रहलाद चा खा चुके हैं, आफिस में ताला लगा है। ताले की चाभी प्रधान पति दुबे जी लेकर आने वाले हैं । पर चाभी प्रधान जी से खो जाता है खेत में झाड़ा फिरते समय । जब खेत में चाभी नहीं मिलता तब सहायक विकास अभिषेक के ही मोटरसाइकिल से चाभी मिस्त्री को लाने फकौली बाजार भेजा जाता है, पर वह मिस्त्री को साथ नहीं ला पाया, और तो और उसके मोटरसाइकिल का इंडिकेटर भी टूट चुका है। अभिषेक के झल्ला कर पूछने पर सहायक विकास क्या कहता है सुनिये।
विकास: पहले क्या बताए? मिस्त्री कहां है? या इंडिकेटर कैसे टूट गया ?
ताले
ताले लटकते नहीं लटकाए जाते हैं।
वे राह देखते हैं बस उस एक चाभी का।
ताले लटकते है, चाभियां घूम आती है।
रास्तों से गलियों से खेत खलिहानों से ।
पर कभी कभी चाभियां भटक भी जाती है ।
जेब से, चोरी से, लोटे से, या यादों से।
दूसरी चाभी को जब ताला नहीं पहचानते।
तब ताले डराएं जाते हैं यंत्रो और हथौड़े से।
कभी कभी ताले लटके रह जाते है
और टूट जाते है दरवाजे,
सभी संस्कार की बात है ।
खेत में सचिव जी प्रधान जी से और यह खेत किसका है?
सचिव जी का चाभी ढ़ूढने के बहाने खेत देखने जाना
प्रधान जी बताते है कि यह खेत विकास के चाचा का था, इसीको बेच कर तो अपनी बेटी का दहेज दिया और हम्हीं खरीदे। फिर फेकन और भाई के बीच खेत के बटवारे के लिए हुई लट्ठबाजी की बात भी बताते हैं। बहुत हल्के इशारे से गांव में अभी भी बचे सामंत शाही और दहेज प्रथा की बात कह जाता है यह episode. प्रधान वहीं बनता है जिसके पास पैसा हो खेत हो। लोग मजबूर हो तो उनका खेत औने पौने दाम में खरीद लेना या गिड़वी रख लेने वाला ही अंततः प्रधान बनेगा।
दहेज
कहां से दे दहेज ?
घर बेचे या खेत ?
देख बाप के माथे की लकीर
बेटी सोचे कहां खुदा और कहां फकीर ?
बिकने न दूंगी खेत घर द्वार
वो कर गुजरूंगी जो देखे संसार
दो कुलों का मान सम्मान रखने वाली
अब बेटा बन जाएगी, नाम कमाएंगी
जीवन साथी बनाने लड़को में होड़ लगे
ऐसा मुकाम हासिल कर जाएंगी
क्रमशः
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