Thursday, April 25, 2024

काठमांडू -A time travel




पशुपतिनाथ दर्शन अप्रैल 2015 (भुकंप के कुछ दिन पहले)

"काठमांडू की समय यात्रा "


"हरे राम हरे कृष्ण" एक फिल्म आई थी १९७२ में और हमारे मन मस्तिष्क में काठमांडू एक हिप्पी राजधानी के रूप में छा गई थी । इसके पहले कालेज जीवन में नेपाली सह छात्रा वास मित्रों को सबसे अलग थलग ही देखा था - शायद भाषा की दिक्कत के कारण या उनके पढ़ाई में ज्यादा ही serious होने के कारण। मेरा एक सहपाठी, जो नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र से था, ने एक "120 no" की रील पर १६ और १२ फोटो खींचने वाले दो अत्यंत सस्ते (₹ ९ और ₹ ११ के) चाईनीज कैमरे ला दिए थे १९६७ में जो मेरे कालेज ट्रिप्स में बड़े काम आए। हमारे मन में काठमांडू भारतीय उपमहाद्वीप के एक मात्र कैसीनो वाले शहर के रूप में भी अंकित था। क्या पता था इसी शहर की लड़की से विवाह हो जायेगी और इस शहर से अटूट रिश्ता बन जाएगा। ५१ वर्ष पहले १९७३ में की गई मेरी प्रथम काठमांडू यात्रा बहुत ही यादगार थी मेरा ब्लॉग भी है उस घटना पर। (मेरी पहली नेपाल यात्रा १९७३) तब वीरगंज से काठमांडू तक एक ही रोड था त्रिभुवन राज पथ जिसे बाय रोड के बाटो भी कहा जाता था। पता चला इस रोड के पहले भीमफेदी हो कर पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। पर अब कई रास्ते है। तब पारंपरिक घर मकानों वाला यह शहर हरा भरा था, हर घर के पीछे खेत। इन खेतों से बड़े पर स्वादिष्ट काउली (गोभी) , मूला , बंदागोवी (बंधागोभी), गोलभेड़ा (टमाटर) अपने घर के बाड़ी से ही आ जाते और अन्य सब्जियां तराई से। हलुआबेद, सुनतला, मुनतला, सेव नाशपाती भी घर के फुलवारी में ही होते थे। जगह जगह मंदिरों से पटा यह शहर एक doll house की तरह है। हर मंदिर मुर्ति किसी अनजाने काल की कलाकृति है जो एक doll की तरह आपका ध्यान खींच लेती है। लेकिन अब बहुत ही बदल गया है काठमांडू।



पारंपरिक नेपाली घर और खेत 2024

यदि आधुनिक विज्ञान समय-यात्रा को संभव बनाने का कोई रास्ता खोज लेता है, तो मैं अतीत में वापस जाने और पुराने दिनों के रहस्यमय शहर काठमांडू घाटी का अनुभव पुनः लेना चाहुंगा । प्राचीन काल में काठमांडू घाटी भारतीय और तिब्बती व्यापारियों के लिए एक लोकप्रिय व्यापारिक केंद्र थी। हिप्पी के मक्का के रूप में इसकी लोकप्रियता 1960 के दशक के दौरान बढ़ी। काठमांडू ने 60 और 70 के दशक के दौरान पश्चिमी लोगों की कल्पना पर कब्जा कर लिया था, और अपने अपने जीवन से निराश अमेरिकी और यूरोपीय उत्तर भारत और नेपाल की रूख करने लगे। खैर, अब मैं केवल यह आशा कर सकता हूं कि काठमांडू ऐतिहासिक, स्थापत्य और प्राकृतिक स्वर्ग होने के साथ-साथ अपने प्रचारित शहरी विकास को पकड़ने के लिए वैश्विक शहरों की बराबरी करते हुए अच्छा संतुलन बनाए रखे।
अपने २०२४ , अप्रैल के काठमांडू यात्रा के दौरान हमें शहर से निकल कर ग्रामीण इलाकों में जाने का अवसर मिला और मेरा विश्वास दृढ़ हो गया कि अभी भी बहुत सुन्दर है नेपाल। अपनी एतिहासिक और प्राकृतिक विरासत से भरपूर। कुछ जगहें जिसका जिक्र मैं करना चाहूंगा।

१) तराई क्षेत्र: इस बार हम जनकपुर भी गए थे। इतने सारे मकान, होटल बनने के बाद भी यह स्थान अपने सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के साथ प्राकृतिक रूप को बनाएं रखने में कामयाब है। कई जगहों पर अब भी जंगल से जानवर रास्ते पर आ जाते हैं अतः आग्रह है अब और जंगल न कांटे। जनकपुर पर और ब्लॉग भी लिखूंगा।


जानकी मंदिर, जनकपुर, 2024

२) नदी और घाटी : नेपाल में जल विद्युत की असीम संभावनाएं हैं और उनको परियोजनाओं में बदला भी जा रहा है। हमने एक मैरीन diversion परियोजना को बनते भी देखा जहां सुनकोशी का पानी एक टनेल से दूसरी नदी (बागमती) में divert किया जाएगा जिससे जहां सिंचाई की ज्यादा जरूरत है वहां पानी उपलब्ध कराया जा सके। अब कुछ भी बनेगा तो पहाड़ और पेड़ों की कटाई तो होगी ही पर आशा बंधी जब सुनने में आया नेपाल में environmental clearance आसान नहीं।


सुनकोशी 2024

३) काठमांडू के आसपास: कई जगह पहाड़ी, नदी किनारे, जंगलों में बेचने के लिए बने प्लौटिंग देख थोड़ा दुःखी भी हुआ। कुछ वर्ष बाद ये सरी मनोरम जगहें मकानों से पट जाएगी और हरियाली गायब भी हो जाएगी पर अभी तक आसपास की अनेकों स्थान काफी दर्शनीय है। 50 वर्ष पहले स्वयंभूनाथ के उपर से देखने पर सिर्फ खेत या खाली जगहें दिखती थी म्यूजियम को छोड़ कर। पर अब आस पास घर मकान दुकान से भरा पड़ा है।


धरहरा टावर स्वयंभूनाथ से 2024

- बूढ़ा नीलकंठ , शिवपुरी : शहर बढ़ते बढ़ते विष्णु के शयन‌ वाले मंदिर के नाम को चरितार्थ करते इस सोए से कस्बे को लील‌ चुका है। जाम , भीड़ भाड़ वाले कस्बे को पार कर शिवपुरी निकुंज जाने पर ही फिर से प्राकृतिक दृश्य सामने आते हैं। शिवपुरी में की गई ट्रेकिंग की कुछ फोटो शेयर कर रहा हूं। अनुरोध है प्लास्टिक की थैली, बोतल जैसे सभी प्लास्टिक के सामान साथ वापस ले आए। जंगल में नहीं फेंके।


इस फोटो के लिए क्षमा करें, पर ऐसा न करें

-दक्षिण काली : मुख्य शहर से करीब 20 कि०मी० दूर यह स्थान अभी भी शहरीकरण से दूर है, अवश्य इसके आसपास कई मार्ग, रोड बन रहे है। श्रीमती ने बताया यह जगह परिवार के वार्षिक पिकनिक का स्थान हुआ करता था। अब भी यहां पिकनिक बहुत रमाईलो (मनोरम) हो सकता है।


दक्षिण काली 2024

-गोकर्ण : करीब ५१ वर्ष पहले इस जगह पर पिकनिक मनाने आए थे। तब घने जंगल के बीच पिकनिक मनाई गई थी। शाम को लौटते समय बहुत सारे हिरणों की आखें कार के हेडलाइट में चमक उठी थी। अब जंगल में रिसार्ट और गोल्फ कोर्स बन गए हैं पर अब भी हरियाली है और हिरण भी दिख जाते है।


गोकर्ण का गोल्फ कोर्स 2024

-इंद्रयानी और चांगुनारायण :-

ईन्द्रयाणी मंदिर

मै यहां पहली बार ही आया था। पर श्रीमती यहां ५२ वर्ष बाद आई थी, अपने कालेज के दिनों की पुरानी यादें ले कर जब "गांऊ फर्क (लौट) अभियान" के लिए किसी गांव में कैंप करना पड़ता था। ऐसे उन्हें कुछ भी पुराना न दिखा। खेतों से घिरा गांव पक्के मकानों से घिरा था। रही सही कसर २०१५ के भुकंप में पारंपरिक मकानों के टूटने के बाद बने कंक्रीट के मकानों ने कर दी थी। गांव पालिका अब नगर पालिका में बदल गई थी। पर अब भी स्वच्छ हवा और स्वच्छ organic भोजन‌ उपलब्ध है यहां। चांगुनारायण मंदिर भी गए जो काठमांडू घाटी का सबसे पुराना मंदिर है। इस मंदिर की कथा किसी दूसरे ब्लॉग में।

चंगुनारायण मंदिर (द्वीतिय शताब्दी)

Saturday, April 20, 2024

सिंधुली गढ़ी, नेपाल #यात्रा

सबसे पहले जगह, स्थान, भूगोल:
हम लोग जनकपुर से काठमांडू लौट रहे थे, बी पी राजमार्ग से और "सिंधुली गढ़ी भी देख ले" वाला विचार सर्व सम्मति से पास हो गया। सेल्फी डाडा और खनियाखर्क के बीच एक बांए मोड़ मिला और हममें से किसीने ड्राइवर को सिंधुली गढ़ी के तरफ कार घुमा लेने को कहा। दो कि०मी० से भी कम दूरी तय करते ही हम आ पहुंचे सिंधुली गढ़ी। प्रवेश के लिए टिकट लेना था। आश्चर्य तब हुआ जब हम दोनों का 70+ होने के कारण टिकट नहीं लगा ।



सिंधुली गढ़ी मध्य नेपाल में एक ऐतिहासिक किला और पर्यटक आकर्षण है। सिंधुली गढ़ी तत्कालीन गोरखा सेना और कैप्टन किनलोच के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना के बीच लड़ाई के लिए प्रसिद्ध है। खजांची बीर भद्र उपाध्याय और सरदार बंशु गुरुंग की कमान के तहत गोरखा सेना ने नवंबर 1767 (कार्तिक 24, 1824 विक्रम संवत) में ब्रिटिश सेना को हराया।
कार पार्किंग के पास ही सानो (छोटा) गढ़ी की सीढ़ियां शुरू होती है। पत्थरों से बने कुछ खंडहर है। थोड़ी दूर चलने पर मिलता है शहीदों के स्मारक, म्यूजियम, नेपाल निर्माता श्री पृथ्वी नारायण शाह की मुर्ति, एक छोटा पार्क और ठुलो (बड़ा) गढ़ी की सीढ़ियां।
आईए अब इसके इतिहास के बारे में कुछ जाने।



नेपाल के एकीकरण के संबंध में राजा पृथ्वी नारायण शाह ने काठमांडू घाटी को घेर लिया और आर्थिक नाकेबंदी कर दी। उस समय काठमांडू के राजा जया प्रकाश मल्ल ने भारत में ब्रिटिश सेना को एक पत्र लिखकर सैन्य सहायता का अनुरोध किया। अगस्त 1767 में, जब ब्रिटिश सेना सिंधुली गढ़ी में पहुंची, तो गोरखा सेना ने उनके खिलाफ गुरिल्ला हमला किया। ब्रिटिश सेना के कई लोग मारे गए और बाकी अंततः भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद छोड़कर भाग गए, जिन्हें गोरखा सेना ने जब्त कर लिया। बंशु गुरुंग की कमान के तहत गोरखा सेना ने ब्रिटिश सैनिकों को काठमांडू घाटी की ओर बढ़ने से रोक दिया था। गोरखाओं ने ब्रिटिश सैनिकों को हराने के लिए कई अन्य युक्तियों के साथ-साथ अरिंगाल (ततैया) के छत्तो को तोड़ना और पत्थर फेंकना या लुढ़काने जैसी अपरंपरागत युद्ध रणनीति का इस्तेमाल किया था।
हम उपर गढ़ी तक नहीं गए और हममें से एक सदस्य के घुड़सवारी के बाद लौट आए ‌। मोड़ पर बहुत सारे ताजे फल की दुकान थे और हम जुनार (मौसंबी) और काफल भी खरीदे। रास्ते में प्राचीन कुशेश्वर नाथ मंदिर में दर्शन कर हम काठमांडू लौट आए।