तुम हो
तसव्वुर में तुम हो
चांद तारों में तुम हो
ख़्वाबों में तुम हो
ख्यालों में तुम हो
मंजिल भी तुम हो
और राहें भी तुम हो
कश्ती भी तुम हो
और किनारा भी तुम हो
मौजमस्ती भी तुम हो
मटरगस्ती भी तुम हो
जेठ की तपिश हो
तो फागुन भी तुम हो
मेरे लफ्ज़ तुम हो
मेरे शेर तुम हो
किस्सा कहानी
और ग़ज़ल तुम हो
मेरे शब भी तुम हो
और सहर तुम हो
कहां हम जाए बता मेरे मौला
कि दर्द भी तुम हो
और दवा तुम हो
कि आफ़त भी तुम हो
और राहत भी तुम हो
एक और कविता
वसंत
जब हो मन में उमंग
समझो आ पहुंचा वसंत
डालों पर बैठे रति अनगं
मधु ले कर आ पहुँचा वसतं।
रंगो छन्दों में भरे प्राण
हे रितुराज तुमको प्रणाम।
बीता जाए शीतकाल
गृष्म ऋतु देता दस्तक।
पूछें कोयल कूक कूक
तुम आओगे अब कबतक।
मन तन है अब अलसाता
दूरी तो अब सहा न जाता ।
अब आओ सब छोड़ छाड़
तन्हां अब तो रहा न जाता।
होली
होली के रंग है
मन में उमंग है ।
पक्षियों के जोड़े भी
विचरते संग संग है ।
आ के छू जाओ मुझे
जब तन में तरंग है ।
अमिताभ कुमार सिन्हा
डिबडिह, रांची
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