Tuesday, November 2, 2021

छठ महापर्व और बिहार

छठ पर्व - प्रकृति पर आस्था का पर्व

छठ महापर्व फिर आने वाला हैं। मैंने एक ब्लॉग पिछले वर्ष लिखा था (यहां क्लिक करें) जिसमें मैंने छठ को लेकर अपनी बचपन की यादों को फिर से जीने की कोशिश की थी । कई बातें मन में रह गई । छठ की कोई कथा क्यों नहीं हैं ? बिहार और आस पास के जगहों में ही क्यों यह प्रधानतयः मनाया जाता हैं? मैं कोई प्रामाणिक बातें तो नहीं लिखने जा रहा हूँ पर मन में कई बातें आ गई हैं उनको ही शेयर कर रहा हूँ ।



छठ के घाट

दिवाली के धूमधाम और प्रदर्शन के उत्सव की कुंजी है भौतिकवाद है । उसके बाद आता हैं, छठ का त्योहार, जिसमें भक्त कठिन अनुष्ठानों, दृढ़ विश्वास और गंभीरता के माध्यम से सर्वोच्च ईश्वर से जुड़ते हैं। यह त्योहार व्रत उन प्राकृतिक शक्तियों के सम्मान के लिए हैं जो सभ्यता की शुरुआत से मानव की सहायता करते आये हैं । प्रकृति में माता का रूप होता है शायद इसलिए सुर्य उपासना के इस पर्व को छठ माई के उपासना का पर्व भी माना जाता है। इस इस त्योहार की एक और खास बात है। उगते सूरज के पहले डूबते सूरज की पूजा की जाती है। इसमें inclusiveness का विचार अंतर्निहित हैं। ऊंच नीच सभी बराबर हैं, ब्राह्मण दलित सभी एक बराबर । शायद जाति व्यवस्था से भी पुराना हैं यह पर्व ।
अन्य त्योहारों के विपरीत, छठ से जुड़ा कोई सर्वमान्य मिथक या कहानी नहीं है । क्योंकि ये पर्व सदियों से स्वाभाविक रूप से विकसित हुई है। इस पर्व में सूर्य और नदी प्रमुख पूज्य हैं । ज़ाहिर हैं दोनों खेती बारी के लिए कितनी जरूरी हैं । ये एक प्रार्थना और प्रायश्चित का त्योहार है जिसे अत्यधिक शुद्धता और गंभीरता के साथ मनाया जाता है। उत्सव के बजाय कई अवलोकनों में आध्यात्मिकता निहित है। यह आंतरिक आत्म और इसकी शुद्धि है जो त्योहार का मूल है। व्रत का पालन करने वाले लोग 36 घंटे तक बिना भोजन और पानी के उपवास करते हैं। विचार इस प्रक्रिया में उनके शरीर और आत्मा को शुद्ध करना है। सभी अनुष्ठानों के पूरा होने के बाद ही व्यक्ति को अपना भोजन करने की अनुमति दी जाती है जो प्रकृति और उसके अनगिनत उपहारों में उनके विश्वास को पुष्ट करता है।


प्रकृति को धन्यवाद्

देवताओं को चढ़ावा यह स्पष्ट करता है कि वर्ष में दो बार, कटाई के मौसम (चैत और कार्तिक) के समय लोग अपने निर्माता को पर्याप्त भोजन प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हैं। प्रसाद में गेहूं के आटे से बना ठेकुआ, सभी मौसमी सब्जियां, फल, चना, नारियल, नींबू, गन्ना और दूध शामिल हैं। हरे बांस से बनी नई टोकरियों में प्रसाद चढ़ाया जाता है। यानि प्रकृति ने जो भी दिया हैं उसके लिए उन्हें धन्यवाद् देने का एक तरीक़ा हैं ये पर्व ।




छठ का सूप और छठ के लिए सजे बाजार

छठ पर्व और बिहार

छठ बिहार और बिहारी से जुड़ा एक पर्व हैं । बकौल श्वेता (मेरी बिटिया) You can take a Bihari away from Bihar, but you cannot take away chhat from them. पर छठ और बिहार क्यों ? क्या कनेक्शन हैं ?


गयासुर की कहानी

जो एक मात्र मिथक या कहानी छठ के बारे में हैं मैंने सुना है वह गया (बिहार राज्य का एक शहर) के इर्द गिर्द घूमती हैं । वैदिक काल के दौरान, "कीकत प्रदेश" जो कि मध्य भारत के अधिकांश भाग में फैला हुआ था में गयासुर नामक एक 'असुर' रहता था। गयासुर आकार में बहुत बड़ा था। ऐसा कहा जाता है कि जब वह जमीन पर लेट जाता तो उसका सिर उत्तर भारत में और उसके पैर आंध्र क्षेत्र में पड़ते । खास बात यह है कि उसका दिल (हृदय स्थल) आज के गया में पड़ जाता था।'देवता' गयासुर से बहुत डरते थे क्योंकि वह उन्हें बिना किसी कारण के परेशान करता था। वे उससे छुटकारा पाना चाहते थे। गयासुर भगवान विष्णु का परम भक्त था। देवता उसके आतंक से परेशान थे और उससे मुक्ति चाहते थे । लेकिन गयासुर विष्णु के भक्त थे और उनका वरदान भी था उनके पास । देवताओं ने विष्णु की प्रार्थना की और विष्णु ने गयासुर को उसके ह्रदय भाग पर विष्णुयज्ञ करने को राजी कर लिया । गयासुर अपने आराध्य की बात कैसे टालता अपनी अवश्यम्भावी मृत्यु जान कर भी गयासुर राजी हो गया । ये तो उसके मुक्ति और वैकुण्ठ वास को निश्चित करने वाला यज्ञ जो था । विष्णुयज्ञ में शाक्यद्वीप(आज के ईरान),से गरुड़ पर आरूढ़ कर सात मगी ब्राम्हणों को यज्ञकार्य के लिए लाया गया। मग शब्द का ईरानी भाषा में अर्थ होता है आग का गोला। आग का गोला यानी सूर्य। ये सूर्योपासक ब्राम्हण शाक्यद्वीप से यहां आने के बाद यहीं सात स्थानों में बस गये। इन्होने इन सातों जगहों में सूर्य मंदिर भी बनाया ।



बीरुगढ़ सूर्य मंदिर (सिमडेगा), देव सूर्य मंदिर (देव, औरंगाबाद)

सूर्योपासक ब्राम्हण अपनी विशेष सूर्यपूजा पद्धतियों को यहां भी क्रमशः करते रहे। इन मगी ब्राम्हणों के कारण ही इस क्षेत्र का नाम मगध पड़ गया।सूर्य विष्णु स्वरूप देवता हैं। इसलिए इस निष्ठा और कर्मकांड रहित समर्पण भावप्रधान सूर्य पूजा की लोकप्रियता आसपास विस्तृत होती गयी और लोगों ने भी इसका अनुपालन करना शुरु किया। मालूम रहे कि जिन सात स्थानों में शाक्यद्वीपीय बसे वहां सूर्य के प्रसिद्ध मंदिर भी स्थापित हैं।



मुल्तान (अब पाकिस्तान में ) का सूर्य मंदिर जिसे १८८१ और १९९२ में नुकसान पहुंचाया गया और मोढेरा (गुजरात) का सूर्य मंदिर। मागि यानि शकलद्वीपिया ब्राह्मण मुल्तान में चेनाब नदी के किनारे, द्वारिका, ओडिशा और बिहार में बस गए। जहाँ जहाँ गए सूर्य मंदिर बनवाया और उनकी आराधना की । मुल्तान का सूर्य मंदिर श्री कृष्णा के पुत्र शाम्ब के द्वारा बनवाया माना जाता हैं । मुल्तान के सूर्य मंदिर के सीढ़ियों पर बैठ कर पहले पहल इस्लाम का प्रचार भी किया गया क्योकि यहाँ यात्रियों का आना जाना लगा रहता था और प्रचार के लिए उपयुक्त था । कहते हैं प्रह्लाद - होलिका वाली घटना भी यही घटी थी जो होली त्यौहार से सम्बंधित हैं ।


छठ पर्व और सीता जी वैदिक काल से जारी इस क्रम को माता सीता ने भी छठव्रत कर सूर्यदेवता के आशीर्वाद से समृद्ध हुईं। कृष्ण पुत्र साम्ब ने भी छठ कर कोढ़ से मुक्ति पाई थी। इस व्रत में पवित्रता और नमक से दूरी बनाकर रखने की प्रधानता होती है। छठ व्रतियों की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है। जहाँ जहाँ बिहार / झारखण्ड (आस पास के क्षेत्र यानि पूर्वी उत्तरप्रदेश, बंगाल, नेपाल के तराई क्षेत्र) के लोग जहाँ भी गए अपने साथ छठ पर्व भी ले गए । मैंने तो आंध्र, हरयाणा, दिल्ली और अमेरिका तक में छठ को मनते देखा हैं और लोगो द्वारा मुंबई, बैंगलोर, मॉरीसस, यूरोप आदि जगहों में छठ मनाये जाने की खबरें सुनता रहा हूँ ।

छठ के गीत की अलग छटा भी होती हैं और हर साल नए नए गीत आने के बावजूद "कांच ही बांस की बहँगिया लचकत जाय" "केरवा के पतवा" और "हो दीनानाथ" ज्यादा बजते हैं । पद्म भूषण शारदा सिन्हा (भोजपुरी और मैथिली गायिका) ने एक बहुत लोकप्रिय गायिका हैं और उनके गाये छठ के गीत बहुत कर्णप्रिय और परंपरा से जोड़ने वाले हैं । मैंने एक गीत सुना था "पाहिले पहिल छठी मैया" (यहां क्लिक करें) जिसमे एक सिख लड़की और बिहारी लड़के को पति पत्नी दिखलाया गया है । लड़के की माँ का फ़ोन आता है की इसबार छठ नहीं हो सकेगा क्योंकि वो खुद नहीं कर सकती और बहु पर अपने विश्वास को थोपना नहीं चाहती । लड़की इंटरनेट से छठ के विधि विधान, प्रसाद वैगेरह सभी कुछ डाउनलोड करती और छठ करना यह निश्चित करती हैं । पति के सहयोग से छठ करती भी हैं । बहुत सुन्दर गीत हैं यूट्यूब लिंक दे रहा हूँ जरूर सुनिए । गीत के प्रारम्भ के डायलॉग भी जरूर सुनिए ।
कुछ साल पहले एक गीत बहुत लोकप्रिय होगया था "मैया पांव पैजनिया" जो शहनाज़ अख्तर द्वारा गया गीत था । शहनाज़ हिंगलाज देवी की भक्त मानी जाती हैं । अब भी दुर्गा पूजा में यह गीत यदा कदा बज ही जाता हैं । दिवाली, भैया दूज और छठ की शुभ कामना ।

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