अरण्य काण्ड - चित्रकूट
यह सर्व विदित है कि श्री राम, देवी सीता और लक्ष्मण जी ने वनवास के कई वर्ष चित्रकूट में बिताये । एक बार इन्द्र पुत्र जयंत श्री राम का बल जांचने के इरादे से कौवे के भेष में आ कर सीता जी के पैर में चोंच मर दिया जिससे रक्त बह निकला । श्री राम ने तब सरकंडे के वाण से कौवे को मारा । मंत्र युक्त वाण जयंत का पीछा करने लगा , वह ब्रह्मा जी के पास गया , शिव जी के पास गया पर राम का शत्रु जान किसीने उसकी मदद नहीं की। अंत में नारद जी को दया आ गयी और उन्होंने उसे पुनः राम जी के पास भेजा । श्री राम ने उसे क्षमा कर दिया और दंड के तौर पर सिर्फ उसे एक आंख से काना कर छोड़ दिया। अब आगे ।
श्री राम कहते है
रघुपति चित्रकूट बसि नाना। चरित किए श्रुति सुधा समाना॥
बहुरि राम अस मन अनुमाना। होइहि भीर सबहिं मोहि जाना॥
यद्यपि चित्रकूट अमृत के सामान प्रिय है पर अब अनेक लोग हमें जांनने लगे है । भीड़ न होने लगे अतः हमें अब यहाँ से प्रस्थान करना चहिये।
अत्रि - अनुसूया आश्रम , सतना
सकल मुनिन्ह सन बिदा कराई। सीता सहित चले द्वौ भाई॥
अत्रि के आश्रम जब प्रभु गयऊ। सुनत महामुनि हरषित भयऊ॥
सब मुनियों से विदा लेकर सीताजी सहित दोनों भाई चले अगले पड़ाव के लिए चल पड़े ! और ऋषि अत्रि जी के आश्रम गए। जब प्रभु अत्रिजी के आश्रम में गए, तो उनका आगमन सुनते ही महामुनि हर्षित हो गए।
अत्रि जी का आश्रम वर्तमान के सतना जिला में माना जाता है और सती अनुसूया मंदिर भी है यहां। बताता चलूं कि सती अनुसूया अत्री जी की पत्नी थी। यानि चित्रकूट से सभी सतना की ओर गए।
राम चरित मानस में सीता-अनसूया मिलन का वृत्तांत इसी अवसर का है।
अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता॥
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देडइ निकट बैठाई॥
सुशील और विनम्र श्री सीताजी अनसूयाजी (आत्रिजी की पत्नी) के चरण पकड़कर उनसे मिलीं। ऋषि पत्नी के मन में बड़ा सुख हुआ। उन्होंने आशीष देकर सीताजी को पास बैठा लिया। पतिव्रत धर्म समझाया और दिव्य वस्त्र पहनाए जो कभी मलिन न होंगे।
अत्री मुनि आश्रम, अनुसुइया मंदिर Photos curtsey Tripadvisor
शरभंग ऋषि आश्रम , पिपरवा , मध्य प्रदेश
अत्रि ऋषि से विदा ले कर प्रभु दक्षिण की ओर दस दूर कोस स्तिथ सरभंगा ऋषि के आश्रम जाते हैं। यह स्थान वर्तमान में मध्यप्रदेश के पिपरावा़ में है। तुलसी दास कहते हैं।
जहूँ जहूँ जाहिं देव रघुराया। करहिं मेघ तहँ तहँ नभ छाया॥
मिला असुर बिराध मग जाता। आवतहीं रघुबीर निपाता॥
यानि जहाँ जहाँ देव श्री रघुनाथजी जाते हैं, वहाँ वहाँ बादल आकाश में छाया करते जाते हैं। रास्ते में जाते हुए विराध राक्षस मिला। सामने आते ही श्री रघुनाथजी ने उसे मार डाला। और शरभंग ऋषि के आश्रम की ओर चल पड़े।
तुरतहिं रुचिर रूप तेहिं पावा। देखि दुखी निज धाम पठावा॥
पुनि आए जहूँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा॥
प्रभु के द्वारा सदगति प्राप्त कर असुर बिराध सुंदर रूप लेकर विष्णु लोक पहुंच गया और श्री राम सुंदर अनुज और जानकी के साथ सरभंगा ऋषि के आश्रम में पहुंचे।
सरभंग ऋषि का आश्रम Photo curtsey Hello Travels
शरभंग मुनि प्रभु की प्रतीक्षा में ही थे । प्रभु राम के दर्शन से मानों उन्हें मोक्ष हो मिल गया , उन्होंने प्रभु दर्शन पश्चात् अपने तप बल से अपना शरीर अग्नि से जला डाला और विष्णु लोक को प्राप्त हुए। प्रभु मुनियो के समूह से साथ आगे बढ़ने लगे तब उन्हें हड्डियों का एक ढेर दिखा।
बनास नदी , सीधी गांव - यही एक पहाड़ी पर श्री राम ने अस्थियों का ढेर देखा था
मुनियो ने बताया यह उन मुनियों की हड्डियां है जिन्हे राक्षसों ने खा डाला । प्रभु के आँखों में अश्रु छलक आये । उन्होंने
प्रण लिया की वे दंडकारण्य को राक्षस मुक्त कर देंगें।
घने जंगल में बना शरभंग आश्रम
सुतीक्ष्ण मुनि आश्रम, वीरसिंगपुर
शरभंग आश्रम से श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी अगत्स्य मुनि के शिष्य सतीक्ष्ण मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम शरभंग आश्रम से कुछ ही दूर स्थित है और वर्तमान में सतना जिला के वीरसिंगपुर में स्थित है । तुलसी दास लिखते हैं।
मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना। नाम सुतीछन रति भगवाना॥
मन क्रम बचन राम पद सेवक। सपनेहुँ आन भरोस न देवक॥
मुनि अगस्त्यजी के एक सुतीक्ष्ण नामक शिष्य थे, उनकी भगवान में प्रीति थी। वे मन, वचन और कर्म से श्री रामजी के चरणों के सेवक थे। उन्हें स्वप्न में भी किसी दूसरे देवता का भरोसा नहीं था ।
प्रभु आगवनु श्रवन सुनि पावा। करत मनोरथ आतुर धावा॥
हे बिधि दीनबंधु रघुराया। मो से सठ पर करिहहिं दाया॥
उन्हें ज्यों ही प्रभु के आगमन की सूचना मिली , त्यों ही अनेक प्रकार के मनोरथ करते हुए वे आतुरता से दौड़ चले। हे विधाता क्या दीनबंधु प्रभु हमार जैसे सठ पर दया करेंगे ?
अबिरल प्रेम भगति मुनि पाई। प्रभु देखैं तरु ओट लुकाई॥
अतिसय प्रीति देखि रघुबीरा। प्रगटे हृदयँ हरन भव भीरा॥
मुनिहि राम बहु भाँति जगावा। जाग न ध्यान जनित सुख पावा॥
भूप रूप तब राम दुरावा। हृदयँ चतुर्भुज रूप देखावा॥
मुनि ने प्रगाढ़ प्रेमाभक्ति को प्रभु श्री रामजी वृक्ष की आड़ में छिपकर देख रहे हैं। मुनि का अत्यन्त प्रेम देखकर आवागमन के भय को हरने वाले श्री रघुनाथजी मुनि के हृदय में प्रकट हो गए। मुनि इस तरह भाव विभोर हो गए कि बीच रास्ते में बैठ गए और बिना हिले डुले प्रभु से मिलने का सुख लेने लगे। प्रभु के बहुत जगाने पर जब मुनि नहीं जागे तब प्रभु उनके हृदय से अपना राज रूप छिपा कर चतुर्भुज रूप प्रकट किया तब मुनि छटपटा कर उठ बैठे ।
सिलाहा, सतना स्थित सुतीक्ष्ण मुनि का आश्रम, अगस्त्य मुनि का आश्रम, पन्ना
देखि कृपानिधि मुनि चतुराई। लिए संग बिहसे द्वौ भाई॥
श्री राम सुतीक्ष्ण जी से उनके गुरु अगत्स्य मुनि से मिलने की इच्छा करते है तभी मुनि बोलते है , मैं भी प्रभु (आप) के साथ गुरुजी के पास चलता हूँ। इसमें हे नाथ! आप पर मेरा कोई एहसान नहीं है। मुनि की चतुरता देखकर कृपा के भंडार श्री रामजी ने उनको साथ ले लिया और दोनो भाई हँसने लग।
अगत्स्य मुनि आश्रम पहुंच कर सुतीक्ष्ण जी अपने गुरु अगत्स्य जी से राम जी , सीता जी और लक्ष्मण जी के आने की सूचना देते है और
सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए॥
मुनि पद कमल परे द्वौ भाई। रिषि अति प्रीति लिए उर लाई॥
सुचना मिलते ही अगस्त्यजी तुरंत ही उठ दौड़े। भगवान् को देखते ही उनके नेत्रों में (आनंद और प्रेम के आँसुओं का) जल भर आया। दोनों भाई मुनि के चरण कमलों पर गिर पड़े। ऋषि ने उठाकर बड़े प्रेम से उन्हें हृदय से लगा लिया।
तुलसी कृत रामायण के अनुसार अगस्त्य मुनि आश्रम से श्री राम पंचवटी की और गए और रास्ते में उन्हें गृद्ध राज जटायु से भेंट हुयी किन्तु वाल्मीकि रामायण सर्ग ११ के अनुसार प्रभु राम कई जगह घूम कर पंचअप्सर सरोवर आये कहते हैं वो सरोवर ही अब का लोनार झील है। सर्ग के कुछ अंश :
अग्रतः प्रययौ रामः सीता मध्ये सुशोभना |
पृष्ठतः तु धनुष्पाणिः लक्ष्मणः अनुजगाम ह ||
तौ पश्यमानौ विविधान् शैल प्रस्थान् वनानि च |
नदीः च विविधा रम्या जग्मतुः सह सीतया ||
सारसान् चक्रवाकां च नदी पुलिन चारिणः |
सरांसि च सपद्मानि युतानि जलजैः खगैः ||
उसके बाद आगे आगे राम , बीच में सीता और पीछे धनुष लिए लक्ष्मण चल रहे थे। सीता के साथ दोनों भाई नाना प्रकार से सरोवरों , नदियों , पहाड़ो और वन और रमणीय स्थानों को देखते आगे बढे। उन्होंने जलचर पक्षियों जैसे सारस , चक्रवाक और कमल से युक्त सरोवर देखा।
ते गत्वा दूरम् अध्वानम् लंबमाने दिवाकरे |
ददृशुः सहिता रंयम् तटाकम् योजन आयुतम् ||
पद्म पुष्कर संबाधम् गज यूथैः अलंकृतम् |
सारसैः हंस कादम्बैः संकुलम् जल जातिभिः ||
1.8 km व्यास का 57600 वर्ष पुराना लोणार झील , विकीपीडिया के सौजन्य से
दूर तक यात्रा कर लेने के बाद जब सूर्य डूबने लगा तो वे सरोवर के पास पहुँच गये जो एक योजन लम्बा और उतना ही चौड़ा थे । उसमे कमल खिले थे और हाथियों के झुण्ड क्रीड़ा कर रहे थे और नाना प्रकार के पक्षी विचरण कर रहे थे । कोई दिख नहीं रहा था पर गाने बजने के स्वर आ रहे थे। कथा अनुसार यहाँ मण्डकरणी ऋषि 5 अप्सराओं के साथ जल में रहते थे। बुलढाणा जिले में लोणार में स्थित यह विश्व का अद्भुत स्थल है। सीता नहानी, राम (गया) कुण्ड, पाँच अप्सराओं के मंदिर सभी की कहानी श्रीराम वनवास से जुड़ी है।
ब्लॉग लेखक के विचार में राम वन गमन मार्ग
वाल्मीकि रामायण में सीता सहित दोनों भाई का वन उपवन, नदी, पहाड़ आदि जगह जगह घूमने के सन्दर्भ में उन जगहों का नाम छिपा है जहां रामजी मिथको के अनुसार गए और जो अब भी जंगल पहाड़ और नदियों सरोवरों का क्षेत्र है जैसे छत्तीसगढ़ का सीतामढ़ी , चंपा झारखण्ड का रामरेखा धाम और मध्य प्रदेश का अमरकंटक !आज के भुगोल के हिसाब से भी ये जगहें बुलढाणा स्थित लोणार झील के रास्ते में ही पड़ेगा, ऐसे आज के नमकीन पानी वाले लोणार झील में कमल का खिलना या पक्षियों का कलरव संभव नहीं है। तो क्या एक योजन लंबा चौड़ा पंचप्सर सरोवर कहीं और है ?
इस विषय पर फिर और कुछ लिखूंगा अभी बस इतना ही !
No comments:
Post a Comment