क्या आपको पता है आज ३ मार्च दोसा दिवस है ? एक food app की सूचना आई कि आज यानि तीन मार्च , दोसा दिवस है।
दोसे के कई प्रकार है अब - सिर्फ प्लेन और मसाला दोसा ही नहीं मिलते इनके सिवा भी बहुत प्रकार के दोसे मिलते है।
सादा दोसा , मसाला दोसा , मैसूर मसाला दोसा , रवा दोसा , कर्नाटकी स्पंज दोसा ,नीर दोसा (मंगलौर का ),पेसरट्टु (मूग दोसा ), अड़ाई दोसा , पनीर दोसा , बाजरा दोसा, अंडा दोसा , ओट्स दोसा , रागी दोसा , चना दोसा, उत्तपम आदि करीब २२ प्रकार के दोसा गूगल करने पर मिल जाता है। इनमे स्टैण्डर्ड प्लेन या मसाला दोसा, रवा दोसा , पेसरट्टु , अड़ा दोसा अक्सर मेरे घर पर बन ही जाता है।
JFWonline से साभार उद्धृत
आज दोसा दिवस पर मुझे अपने तीन ब्लॉग याद आ रहे है। जिसमें दोसा के विषय में मैंने आप बीती और कहानियां लिखी हैं। उनके कुछ भाग पुनः प्रस्तुत है। मैंने सबसे पहले डोसा या दोसा शायद १९६५ में ही खाई थी वह था मसाला डोसा । दक्ष्णि भारतीय व्यंजनों में सिर्फ डोसा ही तब उत्तर भारत में लोकप्रिय थे , समोसा बांकी दक्षिण भारतीय व्यंजनों जैसे इडली , उपमा पर भारी पड़ते थे और उत्तर भारत में हर जगह मिलते भी नहीं थे। मैंने अपने नौकरी जीवन के कई साल दक्षिण भारत में बिताये और अब लगभग सभी व्यंजन - डोसा , इडली , उत्तपम , उपमा , पायसम , बड़ा इत्यादि मुझे भाता है। कॉलेज में किये केरल ट्रिप में केले के पत्ते पर भात पर रसम परोस देने पर संभाल नहीं पाते थे पर रसम पीना अच्छा लगता था। सांभर तो अच्छा लगता ही था , नारियल - चना दाल मूंगफली की चटनी बहुत पसंद आती थी, है । बाद में आंध्र की अत्यंत तीखी चटनी ( लाल वाली ) और कर्णाटक के स्पेशल चटनी भी चखने का मौका मिला था। बंगलुरु में पूरन पोली भी खाने को मिला पर पता चला यह एक महाराष्ट्रियन डिश है। अब आईये मेरे पुराने ब्लॉग के कुछ अंश शेयर करता हूँ।
दोसा से मेरा पहला परिचय
मैंने पटना के एक प्रसिद्द तकनिकी संस्थान में दाखिला ले लिया था और हॉस्टल के उन्मुक्त जीवन का आनंद ले रहा था। मेस का खाना अत्यंत पसंद आता। पर जैसे जैसे समय बीता हॉस्टल के रूटीन खाने से ऊबने लगे और कभी कभी सोडा फाउंटेन (तब पटना का प्रसिद्द रेस्टोरेंट था) जा कर कुछ खा लेते । पहली बार मसाला दोसा इसी जगह खाई थी। । सोडा फाउंटेन में पहली बार होटल मैं बैठ कर आइस क्रीम खाई थी । तब सोडा फाउंटेन में बाहर लॉन में ही टेबल कुर्सी लगे होते और अंदर बैठ कर गर्मी खाने के बजाय हम बाहर ही बैठना पसंद करते क्योंकि हम शाम को ही सिनेमा जाने क्रम में ही यहाँ जाते । मसाला डोसा बहुत ही अच्छा लगा और बाहर जब भी खाने का मौका मिलता मसला डोसा फर्स्ट चॉइस होता । तब पता नहीं था मैं अपने नौकरी के कई साल दक्षिण भारत में बिताने वाला था ।
सालेम - तमिलनाडु (तमिल का अल्प ज्ञान)
अपने नौकरी जीवन में कोई एक - डेढ़ साल मुझे सालेम (तमिलनाडु ) में बिताने का मौका मिला। यहाँ से कई जगह घूमने भी गए जैसे मेट्टूर , यरकौड। चेन्नई तो आते जाते रुकना ही पड़ता था। वह की कई यादों में से एक मेरे एक पुराने ब्लॉग से।
एक बार हमारे वरिष्ठ सहकर्मी श्री डी.डी. सिन्हा सालेम आये। उस समय मैं अकेला ही था सालेम में। सालेम में मेरे सहकर्मी Vdyanathan या Nair जो दूभाषिए का काम कर देते थे और जिनके बदौलत हम तमिल, मलयलम फिल्म देेख लेते थेे, राँची गए हुए थे। एक रविवार हम स्टेशन के पास के सिनेमा हॉल 'रमना' में एक हिन्दी फ़िल्म देखने गए थे। इंटरवल में हम पुरुष शौचालय खोजने लगे। मैंने चैनैई (तब मद्रास) के लोकल बसों में लेडीज सीट के ऊपर लिखा देखा था पेनकाल् (பெண்கள்) । सिनेमा हाल में जब मैने एक शौचालय के ऊपर कुछ और ही लिखा देखा तो उसी को पुरुष शौचालय समझ बैठे और हम दोंनो अंदर चले गए। उस दिन पिटते-पिटते बचे।
एक बार हम दोनों शहर केे बीचों बीच स्थित वसंत विहार रेस्टुरेंट में गऐ। मैंने अपने तमिल ज्ञान को उपयोग में लाते हुए वेटर से पूछा तैयर बड़ा एरक् (दही बड़ा है?) । वेटर यह सोच कर की मुझे तमिल आती है अपने फ्लो में मेनू आइटम्स तमिल में बोलने लगा? मेरे पल्ले कुछ न पड़ा तो मैंने फिर पूछा तैयर बड़ा एरक् ? वह फिर तमिल में कुछ कह कर चला गया। शायद यह कह रहा होगा कि जो बताया बस वही है, श्री डीडी सिन्हा ने फिर कहाँ अब मेरा इशारों ( Sign Language) का कमाल देखो। उन्होंने हाथ हिला कर वेटर को बुलाया। वे बोले 'मसाला दोसा' और दो ऊँगली दिखाई और वेटर दो दोसा ले आया। फिर कॉफी भी इसी तरह मंगाई गई।
No comments:
Post a Comment