अमेरिका मैं आ रहा हूँ
यूँ तो मैंने १९८३ में एक यात्रा जर्मनी का कर चुका था पर USA की यह मेरी पहली यात्रा थी। USA जाना अब सुलभ लगता है वे १० वर्ष का वीसा भी दे देते है पर १९९३ में यह इतना भी आसान नहीं था। मुझे ४ बार USA जाने का मौका मिला है, और पहला मौका मिला था १९९३ में। तब वीसा सिर्फ १ महीने का मिला था और फॉरेन एक्सचेंज भी RBI रूल्स के अनुसार मिलता था। भारतीय रूपये भी दूसरे देश ले जाना मना था। डॉलर हम लोग ट्रैवलर चेक में ले गए थे । मेरी पूर्व नियोकृता कंपनी एक टेक्निकल COSULTANT है - और इस्पात के कारखानों की कंसल्टेंसी करती है । पुराने मिल उपकरणों के मूल्यांकन और नवीनीकरण के साथ-साथ नई आपूर्ति के लिए विक्रेताओं का पता लगाने के लिए मार्च 1993 में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की यात्रा के लिए मेरी कंपनी और और COATED SHEET बनाने का कोशिश में पुणे की कंपनी की संयुक्त टीम का मैं भी हिस्सा था । और मुझे (पूर्ववर्ती पूर्वी) जर्मनी की एक कंपनी और मेरी कंपनी का संयुक्त उद्यम के लिए के मूल्यांकन के लिए स्वतंत्र रूप से बर्लिन भी जाना था। कैमरा नहीं ले जा सकते थे कस्टम के डर से। उस बार एक यूज़ एंड थ्रो कैमरा ख़रीदा और उसीसे कुछ फोटो खींचे। एक मिनोल्टा या शायद चिनोन कैमरा ख़रीदा था लौटते वक्त।
World Trade Centre- Cuffe Parade, Mumbai - then our office, Hotel Citizen, Juhu
१९९३ मुंबई बम विस्फोट
हम मुंबई पहुंचे १९९३ के कुख्यात serial बम विस्फोट के ठीक दो दिन बाद यानि रविवार 14 मार्च को । हम जुहू बीच के पास होटल सिटीजन में रूक गए । सोमवार 15 मार्च होटल सिटीजन से कफ परेड के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर स्थित हमारी कंपनी के कार्यालय तक यात्रा करते हुए हम माहिम और एयर इंडिया बिल्डिंग से गुजरे। और तबाही स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। पर मुंबई बमब्लास्ट के सिर्फ दो दिन बाद अपने पैरों पर खड़ी थी और आगे बढ़ रही थी। यह उल्लेखनीय बात थी। हमने मेसर्स श्री प्रीकोटेड लिमिटेड के MD अजमेरा साहेब से उनके फोर्ट कार्यालय में मुलाकात की और अंततः औपचारिकताएं पूरी होने के बाद शनिवार 19-3-1993 को बैंक में आधे दिन काम करके विदेशी मुद्रा प्राप्त की - हमारी कंपनी वालों का बैंक वालों से अच्छी जान पहचान काम आई। अपनी कंपनी के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आफिस दो दिन जाने के क्रम में एक बात समझ आ गयी मुंबईकर को शाम में घर लौटने की गजब की जल्दी रहती है । सब को जिस लोकल से लौटना है वह निश्चित है। छूट गई तो घर दो घंटे लेट पहुंचेंगे। खैर अगले दिन यूएसए के लिए रवाना हो गए। हम यूके, यूएसए, कनाडा और जर्मनी के लिए वीज़ा स्टांप के साथ बॉम्बे से निकले। हमारा टिकट डेल्टा एयरलाइन्स पर थे पर मुंबई से लंदन तक एयर इंडिया की फ्लाइट थी। पिछली बार क्लब क्लास / बिज़नेस क्लास में गया था लेकिन अब तक गवर्नमेंट का नियम बदल गया था और हमें इस बार इकॉनमी क्लास में ही जाना पड़ा। हम लोग पांच लोग थे और ग्राहक के दो लोग जिनमे एक अजमेरा के पुत्र थे। मेरे पास ब्रिटेन का वैध वीज़ा था लेकिन समय की कमी के कारण मैं हीथ्रो से बाहर नहीं जा सका।
अमेरिका पहुंच गया
लंदन से हम न्यूयोर्क गए और वहां फ्लाइट चेंज कर पिट्सबर्ग पहुच गए । पिट्सबर्ग हमारा फाइनल गंतव्य था। न्यूयोर्क में जब सिक्योरिटी से गुज़र रहा था तब पता चला US में सिक्योरिटी चेक कैसे होती है। मेटल डिटेक्टर पोस्ट से गुजरा हर बार मेटल डिटेक्टर की आवाज़ आ जाती। कोइन्स, चाभी, वॉलेट जूते सभी उतार दिया पर फिर भी मेटल डिटेक्टर से आवाज आती रही। अंत में जब फ्लाइट में दी गयी फॉयल में लिपटा चॉकलेट निकाल कर ट्रे में रख दिया तब मेटल डिटेक्टर से आवाज़ बंद हो गयी । पर सिक्योरिटी वालो ने कभी बदन को हाथ नहीं लगाया। हमनें अपने देश में बेसिक एयर पोर्ट ही देखें थे। यूरोप के भी तीन एयरपोर्ट १९९३ तक देख चुका था पर अमेरिका के एयरपोर्ट Ultimate थे। पहली बार पूरे एयरपोर्ट में मोटा कार्पेट बिछा देखा । यह एक बात युरोप से अलग दिखी। अब तो बहुत सारे एयरपोर्ट में कार्पेट बिछे हैं अपने T3 में भी, पर तब ऐसा नहीं था। हमें एक ट्रेन से जाना पड़ा एराईवल तक। हमारे होटल कम्फर्ट सूट्स की वान हमें लेने आई थी ओर। हम १०-१५ मि० में होटल पहुंच गये। होटल का नाम था कम्फर्ट सुइट्स । नज़दीक में एक माल था शायद K -MART । इस बार ब्लॉग लिखने के पहले मैंने इसे गूगल मैप पर खोजना चाहा तो मिला नहीं। थोड़ा खोज बीन पर पता चला ३० साल पहले अमेरिका में २००० K -MART थे पर अब सिर्फ ३ ही K -MART चालू है। अभी जो २ मॉल उस होटल के नज़दीक दिखते है वो है मॉल at रॉबिंसन और वालमार्ट । हम इसी में से कोई एक जगह जाते रहे होंगे - कुछ खरीदने या खाने के लिए। हमारे होटल से इस मॉल और एयरपोर्ट के लिए शटल सर्विस थी। हम इसीसे मॉल चले जाते। लौटने पर हमने सभी को ड्राइवर को १-५ डॉलर का टिप देते देखा था। फिर हमने भी टिप देना शुरू किया। पर हम लोगों में से कोई एक ही टिप देता । हमारे होटल में कोई रेस्टॉरंरट नहीं था सिर्फ सुबह complementary ब्रेकफास्ट होटल के रिसेप्शन एरिया में बने एक काउंटर पर मिल जाता था। पर एक पिज़्ज़ा हट , एक डंकिन डोनट्स
पास था। कुछ दुकाने पास वाले गैस स्टेशन के आस पास थे। लंच तो जहाँ भी ऑफिस के काम से जाते वही हो जाता। डिनर के लिए निकलना पड़ता। पहली बार पिज़्ज़ा तभी खाया था। सबसे के लिए एक एक माँगा लिया और फिर सभी से पूरा खाया न गया। एक बार हमारे एक सीनियर ने कहाँ सिन्हा खाना लेन जारहो हो तो डोनट्स मेरे लिए ले आना। मैंने डोनट्स के पैकेट्स खरीद लाया। उन्होंने खा भी लिया। तब देखा पैकेट पर उपयोग की गई सामग्री का लिस्ट था। उसमे एक था बीफ- चीज़ । पता नहीं यह क्या था। हमने अपने शाकाहारी सीनियर को यह नहीं बताया की इसमें बीफ चीज़ था। ऐसे वे एक साल पिट्असबर्ग में पहले भी बिता चुके थे । अजमेरा जी ने तो एक सूटकेस भर कर खाखरा और अन्य गुजरती खाना साथ लाया था और उन्होंने कभी बाहर का खाना नहीं खाया। एक रात तो उन्होंने सभी को अपने साथ लाये खानों का डिनर करवाया।
With NELCO-AEG persons, Downtown pittsburgh, Wean United Office
ओम शर्मा
पिट्सबर्ग में एक सज्जन थे ओम शर्मा - उन्होंने US में एक कंपनी खोल रखी थी शर्मन इंटरनेशनल। उनसे हमारे कुछ टीममेट्स से पुरानी जान-पहचान थी । एक दिन शायद शनिवार को वे हमसे मिलने आये। उन्होंने हमारे साथ होटल की लॉबी में नाश्ता किया और फिर हमलोग उनके साथ कुछ सप्लायर से भेंट करवाई और कुछ फैक्ट्री भी देखने गए। वह फिर आये अगले शनिवार को और हम उनके साथ भव्य वेकटेश्वर मंदिर का देखने गए । मुझे आज भी याद है इडली जिसे हमने मंदिर में प्रसाद के रूप में खाया था। ओम शर्मा एक बार रास्ता भटक गए थे और शाम हो गया था। तब गूगल मैप तो था नहीं एक बार में पूछ कर और रोड मैप के सहारे हम सही रास्ता ले पाए। ओम शर्मा के हाथ में हमने पहली बार एक ईंट की size
का सेल्यूलर फ़ोन देखा - १९९३ में ! कुछ नई टेक्नोलॉजी हमें रोज़ देखने को मिल रही थी। कार्ड वाली चाभी जिससे होटल का रूम और पीछे वाला गेट खुलता था। रुम में सेटअप बॉक्स जैसा कुछ था जो टीवी पर सिर्फ वही चैनल देखने देता जिसका पैसा भरा गया हो। उस समय हमारे देश में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। एक और मुलाकात जो याद है वो है श्री स्वैन (पूर्व मेकोनियन) और उनके परिवार के साथ। वे हमारे श्री पीसी साहू से मिलने के लिए 600 किमी से अधिक की दूरी तय करके कार से आए थे - वे चाहते थे कि हम अमेरिका में पैदा हुए उनके छोटे बेटे को भारत लौटने के लिए सहमत करे । पता नहीं वह लौटा या वही है। बड़े बच्चे इंडिया में जन्मा था और वापस जाने के लिए राजी था पर छोटे को इंडिया आना पसंद नहीं था।
ओम शर्मा हमारे होटल में , वेंकटेश्वर मंदिर पिट्सबर्ग
एक घटना जो याद है वह है डाउनटाउन पिट्सबर्ग की है। हमारे एक सीनियर मुंशी साहेब तब USA की किसी कंपनी में कार्यरत थे। उन्होंने अपना पता अमेरिका में हमारे सहयोगी कंपनी वीन यूनाइटेड में बता रखा था। जब हम वीन यूनाइटेड के ऑफिस गए तब बातों ही बातों मुंशीजी का पिट्सबर्ग में ही होने का पता चला और उनसे फ़ोन पर बात हो गयी।
उनका अपार्टमेंट नजदीक ही था । बस हम पैदल ही चल पड़े। एक पुल क्रॉस करने के बाद हम ऐसे लोकैलिटी में आ गए जहां थोड़ा डर सा लगा। हम थोड़ा भटक गए थे। खैर हम खोजते खोजते मुंशी साहेब के अपार्टमेंट पहुंच ही गए। उनकी परमिशन पर दरवाज़ा खुला और हम उनके साथ चाय पी कर होटल वापस आ गए ।
ऑहियो ब्रिज - डाउनटाउन पिट्सबर्ग
टोरंटो
हमें मेटल रोलिंग मिल में प्रयोग आने वाले लोड सेल के लिए टोरंटो यानि कनाडा जाना था। हम जब जहाज़ से वहां जा रहे थे तब नीचे कुछ झील दिख रही थी। उसपर आइस के टुकड़े तैर रहे थे। बहुत ही अच्छा लगा। टोरंटो उतरने पर इमीग्रेशन वालों को पता नहीं क्या शक हुआ की उन्होंने केबिन में बुला कर बहुत पूछ ताछ की। टोरंटो में हम किसी पांच तारा होटल में रुके क्योंकि हम वहां केल्क कंपनी के गेस्ट थे। अगले दिन होटल से हमे उनके ऑफिस ले जाया गया जहाँ मीटिंग हुई। फिर सिर्फ आधा दिन बचा था । निआग्रा जो सिर्फ ३० किलोमीटर दूर हम नहीं जा सके। हम डाउनटाउन और CNN टावर (तब का मनुष्य निर्मित सबसे ऊँचा स्ट्रक्चर) देख आये। लिफ्ट का ६० KMPH का स्पीड और ऊपरी तल्ले का हवा के झोकें से हिलना हमें हिला गया। अगले दिन हम पिट्सबर्ग लौट आए मुझे छोड़ बाकि टीम मुंबई/बॉम्बे लौट आई। मुझे तो एक अन्य कार्य के लिए लंदन और फ्रैंकफर्ट होते हुए बर्लिन की यात्रा करनी थी ।
CNN टावर का सबसे ऊपरी तल्ला , KELK ऑफिस
फ़्रंकफ़र्ट
हम लोग पिट्सबर्ग से न्यूयोर्क होते लंदन पहुंचे । वहां हमारी टीम इंडिया लौट आई और मैंने फ्रैंकफर्ट के लिए ब्रिटिश एयरवेज़ फ्लाइट पकड़ी। पर उड़ान लेते समय, एयरलाइन के कर्मचारियों ने मेरे हाथ के सामान को पंजीकृत बैग के रूप में रखने पर जोर दिया क्योंकि वह थोड़ा बड़ा था, और इसलिए मैं खाली हाथ फ्रैंकफर्ट पहुँच गया। समय काटने के लिए मैं कुछ बार फ्रैंकफर्ट पर एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल कई बार गया और विंडो शॉपिंग की मेरे इस तरह घूमने पर एक सुरक्षा अधिकारी का ध्यान गया, जिसे संदेह हुआ, शायद इसलिए कि मेरे हाथ में कोई सामान नहीं था और मैं एक वास्तविक यात्री की तरह नहीं दिख रहा था। वह मेरी पहचान सुनिश्चित करने के लिए मुझे लुफ्थांसा काउंटर पर ले गया। जब उन्होंने कन्फर्म किया तभी उस सुरक्षा कर्मी ने मुझे जाने दिया।
बर्लिन की मजेदार घटनाएं
फ़्रंकफ़र्ट में कई घंटे गुजरने ओर लुफ्थांसा की बेहतरीन मेहमाननवाज़ी के बाद मैंने अपनी बर्लिन के फ्लाइट पकड़ी। एक और दिलचस्प घटना तब घटी जब मैं रात 10 बजे बर्लिन (Tegel) पहुंचा। योजना के अनुसार एल्प्रो एजी - जो भूतपूर्व पूर्वी जर्मनी की कंपनी है को बर्लिन हवाई अड्डे पर मुझे रिसीव करना था और मेरे लिए बुक किये गये होटल तक ले जाना था। फैक्स के अनुसार मुझे उनके यहां 10 बजे को पहुंचना था। एल्प्रो ने इसे सुबह 10 बजे AM के रूप में लिया और जो आया उसने इंतजार किया और सुबह चला गया। मुझे होटल का नाम और अन्य विवरण भी नहीं पता था। मैंने यात्रियों के लिए उपलब्ध सार्वजनिक संबोधन प्रणाली पर कई घोषणाएँ कीं। इसका कोई नतीजा नहीं निकला और फिर मैंने देखा वहां होटल बुकिंग के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड था , होटलों के नाम और रूम टैरिफ के साथ लाल हरी बत्ती से पता चलता था की रूम उपलब्ध हैं या नहीं। बटन दबा दबा कर ही होटल बुक हो जाता था। मैंने खुद होटल बुक किया और टैक्सी लेकर चला गया। होटल खुद बुक करने का मतलब था मेरे डॉलर खर्च हो गए।
मेरे होटल के आस पास - बर्लिन (पश्चिमी साइड), टीवी टावर - बर्लिन (पूर्वी साइड )
मेरा होटल पश्चिम बर्लिन में था। यह सेवानिवृत्त लोगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए मोहल्ले में स्थित था। वहां के ग्रोसरी शॉप से एक बुजुर्ग महिला की किराने के सामान शॉपिंग ट्रॉली बहुत मुश्किल से ले जा रही थी मैंने मदद करना चाहा तो मुझे दरकिनार कर दिया गया। उनकी खुद्दारी देख अच्छा लगा। इस होटल में मेरा रूम एक दिन के लिए ही खाली था और अगले दिन थोड़ा महंगे रूम में शिफ्ट करना पड़ा।
बर्लिन को पूर्वी और पश्चिमी भाग में बांटने वाली बदनाम दीवार, एलप्रो AG बर्लिन की फैक्ट्री
पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी 16 महिने पहले ही पुनः एक हो गये थे लेकिन पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच अंतर अभी भी दिखाई दे रहा था। पश्चिम की ओर बर्लिन में समृद्धि थी पर पूर्व की ओर बर्लिन में लंबे समय तक कम्युनिस्ट सरकार का प्रभाव स्पष्ट था। बर्लिन की दीवार यानी बर्लिनर माउर आज भी पर्यटकों के आकर्षण के रूप में मौजूद था । Brandenburg Gate गेट भी। दो दिन वहां रुके और दोनों दिन जर्मनों ने हमें पिज़्ज़ा या कोई वेस्टर्न खाना ही खिलाया। मुझे एक हिंदुस्तानी से उसी कम्पनी में मुलाकात हुई। हमने प्रोग्राम बनाया की हम उन जर्मनों को हिंदुस्तानी खाना खिलाएंगे। उसे पता था की भारतियों के एक स्ट्रीट ही है जिसमे शेरे पंजाब और दिल्ली दरबार जैसे रेस्टोरेंट थे। हमने जर्मनों को लज़ीज़ हिन्दोस्तानी खाना खिलाया।
फ्रैंकफर्ट होते हुए मेरी वापसी यात्रा के साथ दो सप्ताह समाप्त हो गए। अतिरिक्त सामान का कुछ मुद्दा था क्योंकि अमेरिका में फ्री BAGAGE था 65 किलोग्राम था और यूरोप से यह 20 किलोग्राम ही था। हालाँकि जर्मन भाषी एल्प्रो के लोगों ने मेरी मदद की और मुझे कोई समस्या नहीं हुई । ट्रिप में आखिरी अड़चन के तौर पर जर्मनी में खरीदी गई वीसीपी के लिए मुंबई में कस्टम ड्यूटी चुकानी पड़ी।
दो को छोड़ सभी फोटो पुराने कैमरा से खींचे गए फोटो को स्कैन करके डाला गया है अतः क्वालिटी अच्छी नहीं है।
लाजवाब लिखनी और स्मरण शक्ति की जय हो
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