Sunday, October 24, 2021

शरद पूर्णिमा त्योहार के बारे में रोचक तथ्य


नव रात्रि और विजयदशमी के पांच दिनों बाद आती हैं अश्विन मास की पूर्णिमा । हिंदू मान्यताओं में अनुसार अश्विन मास का बहुत महत्व है। इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, अमृत पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा के नाम से देश के भिन्न भागों में मनाया जाता हैं । इस साल २८ अक्टूबर को मनाई जा रही है जबकि २०२१ में 20अक्टूबर के दिन शरद पूर्णिमा मनाई गई । ये पूर्णिमा तिथि धनदायक मानी जाती है, ये भी माना जाता है कि इस दिन आसमान से अमृत की बारिश होती है और मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से सर्दियों की शुरुआत होती है. इस दिन चंद्रमा की पूजा होती है. पूर्णिमा की रात चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है और इसी दूधिया रोशनी के बीच पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

शरद पूर्णिमा और खीर

शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर चांदी के बर्तन में खुले आसमान में रखने की मान्यता है। आजकल कई वैज्ञानिक कारण देते हैं लोग । लेकिन मान्यता है की इस रात चाँद अमृत की वर्षा करती हैं । इस दिन का धार्मिक महत्व भी काफी ज्यादा है. ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी. इस धनदायक माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं. जो लोग इस दिन रात में मां लक्ष्मी का आह्वान करते हैं उन पर मां की विशेष कृपा रहती है।
खीर को रात भर रख कर खाने की परम्परा पर चाहे जो भी तर्क दिया जाये, मेरा मानना है की खीर और रसिया (गन्ने के रस में पकाया चावल) बासी होने पर और स्वादिष्ट हो जाता हैं और यदि रात भर छोड़ने का कोई धार्मिक कारण न दिया जाये बच्चों से सुबह होने तक धीरज बनाये रखने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं । एक बात और खीर मेरी पोती को बहुत पसंद हैं और इसबार शरद पूर्णिमा पर हमने उसे बहुत मिस किया ।



ऐसे की जाती है पूजा

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है, जिसमें उन्हें पूजा के अन्त में अर्ध्य भी दिया जाता है। भोग भी भगवान को इसी मध्य रात्रि में लगाया जाता है. इसे परिवार के बीच में बांटकर खाया जाता है। सुबह स्नान-ध्यान-पूजा पाठ करने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। लक्ष्मी जी के भाई चंद्रमा इस रात पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं। कुछ लोग उपवास भी रखते हैं । इस दिन की पूजा में कुलदेवी या कुलदेवता के साथ श्रीगणेश और चंद्रदेव की पूजा बहुत जरूरी मानी जाती है।


भारत में विभिन्न स्थानों में शरद पूर्णिमा

भारत में शरद पूर्णिमा विभिन्न स्थानों में अलग तरीके से मनाया जाता हैं ।यह दशहरे के बाद पांचवें दिन पड़ता है। देवी लक्ष्मी देश के कुछ हिस्सों में उत्सव की अध्यक्षता करती हैं, जबकि कुछ अन्य हिस्सों में भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं, और कृष्ण शाश्वत प्रेम के प्रतीक हैं।


बंगाल
बंगाल में यह लक्खी पूजा के रूप में घर घर में मनाया जाता हैं , ऐसे मेरे घर में दिवाली के रात ही लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती हैं और बोकारो/ रांची में निवास होने के पश्चात मैं लक्खी पूजा से वाक़िफ़ हुआ था बंगाली श्रद्धा से देवी लक्ष्मी को मां लक्खी कहते हैं। जब बंगालियों को दुर्गा पूजा के दौरान बुराई पर दैवीय जीत के कारण शांति का आशीर्वाद मिल जाता है, तो वे पूर्णिमा की रात को समृद्धि का आशीर्वाद पाने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा की तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं। प्रवेश द्वार से लेकर इंटीरियर तक फर्श को अल्पना से सजाने की रस्म हर घर में निभाई जाती है। बंगाल में अधिकांश घरों में कमल पर बैठी देवी की मूर्ति को फूल, घर की बनी मिठाई भक्ति के साथ अर्पित करके माँ लोकखी की पूजा की जाती है। घर की बनी मिठाइयों में नारकेल नाडु माँ लोकखी को विशेष भोग लगाया जाता है। यह उत्सव की मिठाई नारियल की गिरी को बारीक पीसकर, चीनी, दूध, घी और सूखे मेवों के साथ मिलाकर बनाई जाती है। पूर्णिमा की शाम को बंगाली घरों की रसोई में विशेष खिचड़ी पकाया जाता है । रांची में हर साल लक्खी पूजा का प्रसाद हमारे पड़ोसियों के आ ही जाते है । कोई न कोई बंगाली हमेशा हमारे पडोसी रहे हैं यहाँ ।


तिरहुत या उत्तर बिहार

इस पूर्णिमा की रात जिसे पूरे देश में शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है, तिरहुत में कोजागोरी पूर्णिमा या कोजागरा पर्व कहलाती है। यह पर्व नवविवाहितों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि परिवार के लोग उनके सुखद दांपत्य जीवन की मंगलकामना के लिए मनाते हैं। पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन के लिए मानसिक रूप से संकल्पबद्धता के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व में पान व मखान या मखाना का विशेष महत्व है। वर पक्ष के परिजन गांव-समाज में उस दिन विशेष रूप से पान-मखान बांटते हैं। पान की लालिमा खुशहाली व मनोरम स्वरूप का प्रतीक है, जबकि मखान संकल्प व श्रम से कठोर मखाने के बीज से छनन, तपन व प्रहार के बाद मिलने वाला स्वच्छ व पौष्टिक मखाना सफल एवं फलप्रद दांपत्य जीवन के प्रति आश्वस्त करता है। पर्व में लक्ष्मी पूजन के साथ दांपत्य जीवन में संतान की कामना के लिए भी प्रार्थना की जाती है। इसमें वधू पक्ष से अन्न, फल एवं मिठाई को सुसज्जित डाला में भेजा जाता है, जिसे वर पक्ष के लोग अरिपन या अर्पण करते हैं। पूजा के दौरान वर ससुराल से आए कुर्ता-धोती पहनकर बैठता है, जबकि महिलाएं गीत गाते हुए सुखद व सफल दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। रात भर लोग जग कर पचीसी भी खेलते हैं और जिसमे चांदी के पासे का उपयोग होता हैं ।


देवर संग खेलब पचीसी हे (कोजगरा गीत) मैथिली ठाकुर यहाँ क्लिक करें
ओडिशा या उड़ीसा राज्य

पुची खेला और चंदा चकता (केले छेना और लिए से बना)

भारत में, ओडिशा या उड़ीसा राज्य शरद पूर्णिमा को दो अलग-अलग तरीकों से मनाता है। कुछ समुदाय इस अवसर पर सूर्य और चंद्रमा की पूजा करते हैं, जबकि कुछ अन्य समुदायों में इस पवित्र दिन पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ओडिशा में, शरद पूर्णिमा को भारत के हिंदू पौराणिक कथाओं में युद्ध के देवता कार्तिकेय के सम्मान में कुमार पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को सबसे सुंदर देवता माना जाता हैं । लड़कियां सुंदर पति पाने की आशा में उनकी पूजा करती हैं (वास्तव में सूर्य और चंद्र की पूजा होती हैं )। रस्में सुबह बहुत जल्दी शुरू हो जाती हैं जब लड़कियां नए कपड़े पहनती हैं और उगते सूरज को तुलसी के पौधे के पास सात बार 'अंजुली' से 'लिया' (एक प्रकार का अनाज) चढ़ाती हैं। सात अन्य वस्तुएं, जिनमें नारियल, केला, सेब, खीरा, सुपारी, झींगा (धारीदार लौकी), गन्ना और फूल शामिल हैं। वे नाचते हैं और एक विशेष खेल खेलते हैं, पुची खेला - बैठ कर नाचने वाला खेल । ओडिशा के लोग शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में भी मनाते हैं। वे पूरी रात जागते रहने के लिए पासा और कुछ अन्य खेल खेलते हैं।


उत्तर भारत में

उत्तर भारत में, शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, भगवान कृष्ण के जीवन से रास पूर्णिमा की एक कहानी है। कहानी के अनुसार, यह माना जाता है कि पृथ्वी पर अपने मानव अवतार के दौरान, भगवान कृष्ण वृंदावन में अपनी गोपियों के साथ रास (एक पारंपरिक लोक नृत्य) खेलते थे। शरद पूर्णिमा की रात थी जब उन्होंने यमुना नदी के तट पर अपनी प्यारी राधा और गोपियों के साथ महा रास खेला था। उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में, युवा लड़के और लड़कियां उत्सव की शाम को रास लीला करते हैं।

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